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“इतना बड़ा हादसा हुआ, हमलोग क़ुर्बानी कैसे करते” – कंचनजंघा एक्सप्रेस रेल हादसा स्थल के ग्रामीण

निर्मल जोट में करीब 80 मुस्लिम परिवार रहते हैं, लेकिन किसी के घर में कुर्बानी नहीं हुई। बच्चे, बूढ़े, नौजवान, महिलाएं सभी सुबह से शाम तक यात्रियों की सेवा में लगे रहे। यहाँ तक कि शुरुआती कुछ घंटे तक ग्रामीणों ने ही घायलों का फर्स्ट ऐड किया और उन्हें चाय-पानी पिलाया।

Tanzil Asif is founder and CEO of Main Media Reported By Tanzil Asif and Umesh Kumar Ray |
Published On :
villagers at the kanchenjunga express train accident site did not celebrate eid ul adha

पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर सोमवार 17 जून की सुबह करीब 9 बजे एक दर्दनाक रेल हादसा हुआ। अगरतला से सियालदह जा रही 13174 कंचनजंघा एक्सप्रेस को एक मालगाड़ी ने जोरदार टक्कर मार दी। ये हादसा रंगापानी और निजबाड़ी स्टेशन के बीच हुआ। इसमें कंचनजंघा एक्सप्रेस की गार्ड, पार्सल और जनरल बोगियां बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गईं और एक-दूसरे पर चढ़ गईं। कंचनजंघा एक्सप्रेस की चार बोगी और मालगाड़ी के पांच कंटेनर क्षतिग्रस्त हो गए।‌ मालगाड़ी के चालक, कंचनजंघा एक्सप्रेस के गार्ड सहित नौ लोगों की मौत की खबर है। साथ ही 50 से ज़्यादा लोग घायल हैं।


ये हादसा दार्जिलिंग जिले के फांसीदेवा प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत निर्मल जोट के पास हुआ है। देशभर के मुसलमानों की तरह निर्मल जोट के ग्रामीण भी 17 जून की सुबह ईद उल-अज़हा की नमाज पढ़ कर कुर्बानी की तैयारियां कर रहे थे। हादसे की आवाज़ सुन कर गाँव दहल गया और सारी तैयारियां छोड़ कर ग्रामीण रेलवे लाइन की तरफ दौड़े।

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क़ुर्बानी छोड़ हादसे की आवाज़ पर दौड़े ग्रामीण

निर्मल जोट में करीब 80 मुस्लिम परिवार रहते हैं, लेकिन किसी के घर में कुर्बानी नहीं हुई। बच्चे, बूढ़े, नौजवान, महिलाएं सभी सुबह से शाम तक यात्रियों की सेवा में लगे रहे। यहाँ तक कि शुरुआती कुछ घंटे तक ग्रामीणों ने ही घायलों का फर्स्ट ऐड किया और उन्हें चाय-पानी पिलाया।


ग्रामीण नाजनीन परवीन कहती हैं, “नमाज़ पढ़कर आये थे और कुर्बानी करने के लिए प्लास्टिक लगा रहे थे क्योंकि बारिश हो रही थी। तभी हादसे की आवाज सुनाई दी। पहले मैं गई फिर मेरे ससुर, देवर और पति गये। हमलोगों ने यात्रियों को खींच खींच कर बाहर निकाला। जो मर गये थे उन्हें तो बाहर नहीं निकाल पाये लेकिन जो जीवित थे, उन्हें ट्रेन से निकाला। हमलोग कुर्बानी के लिए प्लास्टिक तैयार कर रहे थे। लेकिन कुर्बानी नहीं की। हम लोग वहां चले गये थे, फंसे लोगों को निकाल रहे थे। कल या फिर परसों कुर्बानी करेंगे।”

निर्मल जोट के सभी परिवार निम्न मध्य वर्गीय हैं और उनका जीवन खेती किसानी पर निर्भर है। इसके बावजूद जिससे जितना भी बन पड़ा अपने घर से चादर, कंबल आदि ले जा कर राहत कार्य में लगे रहे।

“हमारे गांव के लड़के भी वहां गये और यात्रियों को बाहर निकाला। बच्चों और महिलाओं को सुरक्षित निकाल कर हम लोग गांव में ले आये। बच्चे बहुत रो रहे थे। वे लोग बता रहे थे कि उन्हें बहुत ठंड लग रही है, तो हम लोग बिस्तर, कंबल और चादर लेकर गये। बहुत सारी साड़ियां, नाइटी भी ले गये महिलाओं के लिए। पानी वगैरह भी ले गये थे‌। कई यात्री घर पर आकर खाना खाये थे। हम लोगों ने यात्रियों को चाय बिस्कुट भी खिलाया,” ग्रामीण मुसकिदा खातून बताती हैं।

बचाव में शामिल युवकों से मिलीं सीएम

सोमवार की शाम को ही बचाव कार्य में शामिल 10 ग्रामीणों को स्थानीय प्रशासन घटना की जानकारी के लिए अपने साथ ले गयी थी। बाद में उनकी मुलाक़ात मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी करवाई गई। मुख्यमंत्री ने उन्हें कुछ उपहार दिए और रोज़गार का आश्वासन दिया है।

10 साल में 591 मौत, शून्य इस्तीफा

साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने से लेकर अब तक रेलवे में 11 बड़े हादसे हो चुके हैं जिनमें 591 लोगों की मौत हुई है।

इनमें से चार हादसे सुरेश प्रभु के रेल मंत्री रहते हुए, जिनमें कुछ 192 लोगों की जान गई। वहीं, तीन हादसे पीयूष गोयल के समय हुए जिसमें 83 लोगों की मौत हुई थी। चार तीन हादसे अश्विनी वैष्णव के रेल मंत्री रहते हुए जिसमें 316 लोगों की जान चली गई।

मृतकों की संख्या के मामले में सबसे बड़ा हादसा 2023 में हुआ था, जिसमें 293 यात्रियों की मौत हो गई थी। ये हादसा अश्विनी वैष्णव के रेल मंत्री रहते हुआ था, जब ओडिशा के बालासोर में दो एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी टकरा गये थे।

दूसरा हादसा इंदौर पटना एक्सप्रेस के साथ उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था, जिसमें 152 यात्री मारे गये थे। उस वक्त सुरेश प्रभु रेल मंत्री थे।

साल 2018 में जालंधर-अमृतसर एक्सप्रेस अमृतसर में दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, जिसमें 60 यात्रियों की जान चली गई थी। उस वक्त पीयूष गोयल रेल मंत्री थे।

उससे पहले 2017 में सुरेश प्रभु के रेल मंत्री रहते हीराकुंड एक्सप्रेस आंध्र प्रदेश में हादसाग्रस्त हो गई थी, जिसमें 40 मौतें हुई थीं।

साल 2020 में कोविड-19 के लॉकडाउन में पैदल चल रहे मजदूर थककर पटरी पर सो गये। उसी वक्त एक ट्रेन ने उन्हें रौंद दिया था जिसमें 16 मजदूरों की जान चली गई थी।

2022 में बीकानेर-ग्वालियर एक्सप्रेस ट्रेन जलपाईगुड़ी में दुर्घटना का शिकार हो गई थी जिसमें 10 यात्रियों की मृत्यु हुई थी। वहीं, 2019 में सीमांचल एक्सप्रेस के वैशाली में दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से 7 लोगों की मौत हुई थी।

साल 2023 में बक्सर में नाॅर्थ ईस्ट सुपर फास्ट ट्रेन के 21 डिब्बे बेपटरी हो गये थे जिसमें 4 लोगों की मौत हुई थी।

ताज़ा घटना में न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन के निकट हुए ट्रेन हादसे में 9 लोगों की मृत्यु हुई है।‌ गौरतलब हो कि इस घटनास्थल से 75 किमी दूर पश्चिम बंगाल के गैसल में साल 1999 में भी एक भीषण ट्रेन हादसा हुआ था, जिसमें 295 लोगों की मृत्यु हुई थी। इस दुर्घटना के वक्त नीतीश कुमार रेल मंत्री थे। उन्होंने इस हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उस वक़्त अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में NDA की सरकार थी। आज 25 साल बाद केंद्र में NDA की ही सरकार है। नीतीश कुमार की पार्टी इस सरकार अहम् हिस्सा है, लेकिन अब न रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेते हैं, न इस्तीफा पर कोई विचार होता है।

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तंजील आसिफ एक मल्टीमीडिया पत्रकार-सह-उद्यमी हैं। वह 'मैं मीडिया' के संस्थापक और सीईओ हैं। समय-समय पर अन्य प्रकाशनों के लिए भी सीमांचल से ख़बरें लिखते रहे हैं। उनकी ख़बरें The Wire, The Quint, Outlook Magazine, Two Circles, the Milli Gazette आदि में छप चुकी हैं। तंज़ील एक Josh Talks स्पीकर, एक इंजीनियर और एक पार्ट टाइम कवि भी हैं। उन्होंने दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) से मीडिया की पढ़ाई और जामिआ मिलिया इस्लामिआ से B.Tech की पढ़ाई की है।

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