युक्रेन से लौटे मेडिकल छात्र बजरंग कुमार कर्मकार का पिछला एक महीना कभी कभार ऑनलाइन क्लास और भविष्य को लेकर अनिश्चितताओं के बीच गुजरा है और उन्हें ठीक-ठीक नहीं मालूम कि आने वाला कितना वक्त इसी तरह गुजरेगा।
“सरकार की तरफ से हमें किसी तरह का ठोस आश्वासन नहीं मिला है और इसके चलते हम भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं,” बजरंग कुमार कहते हैं।
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बिहार के सीमांचल के किशनगंज जिले के बहादुरगंज प्रखंड के बैला चुर्ली गांव में रह रहे बजरंग कुमार कर्मकार उन हजारों मेडिकल छात्रों में से एक हैं, जो भविष्य चिंता सिर पर लिये पिछले महीने यूक्रेन से लौटे हैं।
कर्मकार चार महीने पहले दिसम्बर 2021 में ही यूक्रेन गये थे। वहां उन्होंने सरकारी विश्वविद्यालय में मेडिकल में दाखिला लिया था। मेडिकल का कोर्स लगभग 5 साल का था जिसके लिए 40-50 लाख रुपए खर्च होने थे, जिन्हें चार चरणों में जमा करना था। “10 लाख रुपए हमने दे दिया था संस्थान को और अब ये सब हो गया। अब पता नहीं ये पैसे वापस होंगे या नहीं,” कर्मकार कहते हैं।

बजरंग के पिता जुअलरी के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। बजरंग बताते हैं, “पहले मैंने बिहार के मेडिकल संस्थानों में दाखिला लेने की कोशिश की, लेकिन यहां फीस काफी ज्यादा थी। यूक्रेन में रहना, खाना और पढ़ाई सब मिलाकर 40 से 50 लाख रुपए खर्च होते हैं, लेकिन यहां सिर्फ संस्थान में दाखिला लेने और कोर्स पूरा कराने के लिए संस्थान 70 से 80 लाख रुपए मांग रहे थे। इसी वजह से मैंने यूक्रेन जाने का फैसला लिया।”
बजरंग जो बातें बताते हैं, वो अखिल भारतीय स्तर पर भी सच है। भारत के मेडिकल संस्थानों में दाखिले की फीस काफी ज्यादा है, जिस वजह से मेडिकल की पढ़ाई के इच्छुक देश के कमोबेश सभी क्षेत्रों के लोग यूक्रेन का रुख करते हैं। यही वजह है कि जब यूक्रेन पर रूस से हमला शुरू किया, तो भारत के हजारों छात्र इस युद्ध में फंस गये। आंकड़े बताते हैं कि लगभग 20 हजार छात्र युद्ध के बीच भारत लौटे।
किशनगंज जिले के ही रहने वाले नियामत अनवर साल 2020 में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए यूक्रेन गये थे। वह भी पिछले महीने 6 मार्च को किसी तरह घर लौटे हैं। वह बताते हैं, “यहां के संस्थानों में 70 से 90 लाख रुपए मांगे जा रहे थे जबकि इससे आधी फीस में यूक्रेन में न केवल मेडिकल की डिग्री पूरी हो जाती है, बल्कि रहने और खाने का खर्च भी इसी में शामिल होता है।”

साल 2016 में उनका मेडिकल का कोर्स पूरा हो जाता, लेकिन अचानक छिड़े युद्ध ने उन्हें अपने करियर को लेकर चिंता में डाल दिया है।
“विश्वविद्यालय प्रशासन हमारे संपर्क में है और वे बार-बार हमें भरोसा दिला रहे हैं कि जल्द ही वे वापस बुलाएंगे, लेकिन हमें उतना भरोसा नहीं हो रहा है,” उन्होंने कहा।
“सरकार कराए प्रैक्टिकल का इंतजाम”
नियामत चाहते हैं कि सरकार मेडिकल छात्रों को अपने यहां के सरकारी या निजी संस्थान में यूक्रेन में लगने वाली फीस जितनी रकम लेकर दाखिला और अस्पतालों में प्रैक्टिस करने की इजाजत दे।
“किशनगंज के सभी मेडिकल छात्रों ने आपस में बात कर सीएम नीतीश कुमार को लिखित आवेदन दिया और कहा है कि हमारे लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाए। लेकिन सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, जो हमारे लिए चिंताजनक है,” उन्होंने कहा।
यूक्रेन की यूनिवर्सिटी की तरफ बजरंग कर्मकार को ये आश्वासन जरूर मिल रहा है कि चीजें जल्द सामान्य हो जाएंगी। यूनिवर्सिटी फिलहाल ऑनलाइन कक्षाएं दे रहा है। कर्मकार भी ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि सिर्फ ऑनलाइन क्लास लेने से कोई फायदा नहीं होने वाला। “हमारे लिए प्रैक्टिकल कक्षाएं बहुत जरूरी हैं। अगर प्रैक्टिकल कक्षाएं नहीं मिलेंगी, तो पढ़ाई बेमानी है,” उन्होंने कहा।
अर्सादुल होदा का कोर्स अगले दो साल में पूरा होने वाला था और वे कोर्स की पूरी फीस लगभग 45 लाख रुपए जमा कर चुके थे। उन्होंने कहा, “यूक्रेन के जिस संस्थान में मैं पढ़ रहा था, वो संस्थान सुरक्षित है और वहां के शिक्षक रोजाना ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं, लेकिन सिर्फ ऑनलाइन क्लास नाकाफी है। हमारे लिए प्रैक्टिकल क्लास बहुत ही जरूरी है और इसका इंतजाम राज्य सरकार को करना चाहिए।”

भारत में दोगुनी फीस
किशनगंज के बहादुरगंज प्रखंड के रहमत नगर के रहने वाले दानिश अली ने भी बताया कि यूक्रेन से वह ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं। दानिश अली 6 महीने पहले ही यूक्रेन गये थे। वहां से लौटने के बाद उन्होंने डीएम को फोन कर आगे की पढ़ाई के लिए माकूल इंतजाम करने की अपील की थी। वह कहते हैं, “डीएम ने कहा कि वे जल्द ही फोन कर बताएंगे, लेकिन अब तक उनका कॉल नहीं आया है।”
दानिश ने यूक्रेन जाने से पहले किशनगंज के मेडिकल इंस्टीट्यूट के साथ हैदराबाद के एक संस्थान में दाखिला लेने का प्रयास किया था, लेकिन दानिश के मुताबिक, 60 से 70 लाख रुपए मांगे गये थे, जिस वजह से उसने यूक्रेन से पढ़ाई करने का फैसला लिया।
दानिश के पिता छोटा-मोटा बिजनेस करते हैं। दानिश कहते हैं, “काफी पैसा यूक्रेन के संस्थान में जा चुका है। लेकिन जो स्थिति बन गई है, अब मुझे मेरे भविष्य की चिंता हो रही है। पापा चिंतित रहने लगे हैं। सरकार को जल्द कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि हमारा करियर बर्बाद न हो।”

अर्सादुल होदा का भी यही कहना है कि यहां के मेडिकल संस्थानों में भारी फीस मांगी गई थी, जिस वजह से उन्हें यूक्रेन जाना पड़ा।
यूक्रेन से लौटने का संघर्ष
मैं मीडिया ने किशनगंज के जिन चार छात्रों से बात की, सभी ने कहा कि सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की, उन्हें यूक्रेन से सुरक्षित निकलने के लिए खुद संघर्ष करना पड़ा।
बजरंग कुमार कहते हैं, “25 और 27 फरवरी को एयर इंडिया की फ्लाइट वहां से आ रही थी, लेकिन टिकट का दाम बहुत ज्यादा था, इसलिए हमलोग नहीं आ सके। जब हालात और खराब हो गये, तो हमलोग पॉलैंड बॉर्डर पर पहुंचे, लेकिन वहां की सरकार ने हमें पॉलैंड में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी, लिहाजा हमें वापस लौटना पड़ा। इसके बाद हमलोग हंगरी सीमा पर गये। वहां सीमा पर हमलोग 15-16 घंटे तक रुके रहे, तब जाकर इंट्री मिली। वहां से फ्लाइट लेकर दिल्ली आए।”
नियामत ने कहा कि वे लोग बस भाड़ा कर 17 से 18 घंटे का सफर तय कर रोमानिया सीमा पहुंचे। इसके बाद दिल्ली लौटे।
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