बिहार में कुल 45,793 जल स्रोत हैं, जिनमें तालाब, टैंक, झील, रिजर्वायर आदि शामिल हैं, लेकिन इनमें से 49.8 प्रतिशत यानी 22799 जलाशयों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है।
केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय की तरफ से की गई पहली जल स्रोत जनगणना में यह खुलासा हुआ है। मंत्रालय ने देश के सभी राज्यों में स्थित जलाशयों की जनगणना की है।
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इसके लिए गांव स्तर पर फील्ड वर्करों को लगाया गया था, जिन्होंने हर गांव में जाकर जल स्त्रोतों का निरीक्षण किया और इसके आधार पर ही रिपोर्ट तैयार की गई। सर्वेक्षण का काम साल 2017-2018 में किया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, जल स्रोतों की जनगणना के लिए फील्ड वर्करों ने देशभर के 24,24,540 जल स्त्रोतों का भौतिक निरीक्षण किया था, जिनमें 59.5 प्रतिशत तालाब, 15.7 प्रतिशत टैंक, 12.1 प्रतिशत रिजर्वायर और बाकी 12.78 प्रतिशत जल संरक्षण ढांचे हैं। इनमें से 55.2 प्रतिशत ढांचा निजी स्वामित्व वाला और 44.8 प्रतिशत ढांचा सार्वजनिक है।
बिहार की स्थिति
रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के कुल 45,793 जल स्रोत हैं। इनमें से 0.5 हेक्टेयर आकार के 24187 जल स्रोत, 0.5 हेक्टेयर से एक हेक्टेयर तक के जल स्रोत 8964 जल स्रोत और एक हेक्टेयर से पांच हेक्टेयर तक 11026 जल स्रोत हैं। पांच से 10 हेक्टेयर तक के 983 जल स्रोत और 10 से 50 हेक्टेयर तक के 200 जल स्रोत हैं।
मगर इन 45793 जल स्रतों में से 22,799 जल स्रोत (49.8 प्रतिशत) इस्तेमाल में नहीं हैं। देश में दिल्ली, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के बाद बिहार ही ऐसा राज्य है, जिसके जल स्रोतों का एक बड़ा हिस्सा इस्तेमाल में नहीं है।
दिल्ली में कुल जल स्रोतों का 73.5 प्रतिशत हिस्सा, कर्नाटक का 78.2 प्रतिशत हिस्सा और मध्यप्रदेश का 54.9 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल में नहीं है। सबसे ज्यादा जल स्रोतों का इस्तेमाल त्रिपुरा, गुजरात और महाराष्ट्र में हो रहा है।
रिपोर्ट में इस्तेमाल नहीं होने की वजह इनका सूख जाना, गाद भर जाना, बर्बाद हो जाना और अन्य बतायी गयी है। सूख जाने के चलते 3957 जल स्रोत इस्तेमाल नहीं हो रहे हैं, वहीं, 5830 जल स्रोतों में निर्माण कर दिया गया है और 3560 जल स्रोतों में गाद भरा हुआ है। 1742 जल स्रोत पूरी इतने बर्बाद हो गए हैं कि उनका पुनरोद्धार संभव नहीं है, जबकि 489 जल स्रोतों का पानी खारा हो गया है और 129 जल स्रोतों में औद्योगिक इकाइयों ने निकलने वाला कचरा जा रहा है। वहीं, अन्य वजहों से 7093 जल स्रोतों का इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
49 प्रतिशत से अधिक जलस्त्रोतों के इस्तेमाल में नहीं होना जानकारों के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
भूगर्भ जलस्तर पर बढ़ता दबाव
जलस्त्रोतों के संरक्षण के लिए लम्बे समय से काम कर रहे नारायणजी चौधरी कहते हैं, “लगभग आधे जलस्त्रोतों का इस्तेमाल नहीं होने का ही असर है कि हम देख रहे हैं कि भूगर्भ जलस्तर में काफी गिरावट आ रही है। जब सतही जलस्त्रोतों का हम इस्तेमाल करते हैं, तो जाहिर है कि भूगर्भ जल का इस्तेमाल कम होता है जिससे उस पर दबाव नहीं पड़ता। लेकिन अगर सतरी जलस्त्रोत ही इस्तेमाल न हो, तो लोग भूगर्भ जल का इस्तेमाल करेंगे।”
उन्होंने दरभंगा जिले का उदाहरण देते हुए कहा कि दरभंगा शहर में इतने तालाब थे कि यहां के लोग कम उम्र में ही तैरना सीख जाते थे क्योंकि वे तालाबों में ही नहाया करते थे, लेकिन ज्यादातर तालाब पर अवैध अतिक्रमण कर उन्हें पाट दिया गया। अब लोग घरों में नहाते हैं, जिससे भूगर्भ जल का भीषण दोहन हो रहा है। “दरभंगा शहर के ज्यादातर पुराने हैंडपंप काम नहीं कर रहे हैं और लोग अपनी जरूरतों के लिए समर्सिबल पंप के भरोसे हैं। अगर स्थिति यही रही, तो आने वाले समय में जलसंकट और भीषण रूप ले लेगा,” उन्होंने कहा।
जलशक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 871 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनका अतिक्रमण कर लिया गया है। इनमें से 518 जल स्रोतों का 25 प्रतिशत से कम हिस्सा अतिक्रमित है। वहीं, 60 जल स्रोतों के 25 से 50 प्रतिशत हिस्से का अतिक्रमण कर लिया गया है। 17 जल स्रोत ऐसे हैं जिनके 50 से 75 प्रतिशत हिस्से अतिक्रमण की जद में है और 14 जल स्रोतों के 75 प्रतिशत से अधिक हिस्से का अतिक्रमण कर लिया गया है।
नारायणजी चौधरी कहते हैं, “केवल दरभंगा शहर में ही 100 तालाबों का अतिक्रमण कर लिया गया है। हैरानी की बात तो यह है कि एक तालाब को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए नेशनल ग्रीन ट्राइबुनल में मामला चल रहा था और दूसरी तरफ दो तालाबों का अतिक्रमण किया जा रहा था। इससे जाहिर होता है कि सरकार जलस्त्रोतों के संरक्षण को लेकर गंभीर नहीं है।”
गौरतलब हो कि बिहार में जलस्त्रोतों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार जल-जीवन-हरियाली अभियान चला रही है। इस मिशन की शुरुआत साल 2019 में की गई थी।
जल संरक्षण के लिए इस अभियान के तहत सार्वजनिक जल संचयन संरचनाओं जैसे तालाब, पोखर, आहर, पईनों को चिन्हित कर उन्हें अतिक्रमण मुक्त कराना, इनका जीर्णोद्धार करना, नये जलस्त्रोतों का निर्माण करना और जिन क्षेत्रों की नदियों में अधिक पानी है, वहां से पानी को जल संकट वाले इलाकों में स्थानांतरित करना, आदि शामिल हैं।
ग्रामीण विकास विभाग, जो जल-जीवन-हरियाली अभियान चला रहा है, के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “इस अभियान के तहत वित्तवर्ष 2021-2022 तक 16517 जल संरचनाओं को अतिक्रमणमुक्त कराया जा चुका है और 1723 को अतिक्रमणमुक्त कराया जाना बाकी है। वहीं, 8323 सार्वजनिक जल संरचनाओं का जीर्णोद्धार कर दिया गया है और 9487 जल संरचनाओं पर काम शुरू हो चुका है।”
“इस अभियान की सफलता को देखते हुए ही इसकी कार्य अवधि बढ़ाकर 2025 तक कर दी गई है और इस दौरान जल संचयन संरचनाओं के जीर्णोद्धार पर 840 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है,” उन्होंने कहा।
सीमांचल में 432 जल संरचनाओं का अतिक्रमण
ग्रामीण विकास विभाग से मिले आंकड़े बताते हैं कि कुल अतिक्रमणमुक्त हुई जल संरचनाओं में से सीमांचल के कटिहार जिले में 114, पूर्णिया में 93, अररिया में 79 और किशनगंज में 17 जल संरचनाओं को अतिक्रमण के चंगुल से मुक्त कराया गया है।
वहीं, कटिहार के 222, पूर्णिया के 210, अररिया के 68 और किशनगंज के 97 जल संचयन संरचनाओं का जीर्णोंद्धार किया जा चुका है।
सीमांचल में कुल 2574 जल संचयन संरचनाएं हैं, जिनमें से 432 जल संरचनाओं का अतिक्रमण किया चुका था।
गौरतलब हो कि बिहार के बहुत सारे तालाबों के अतिक्रमण में भूमाफियाओं के बड़ी भूमिका रही है।
हालांकि, नारायणजी चौधरी का कहना है कि अतिक्रमण के खिलाफ कड़े कानून नहीं होने के चलते भी लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं। “निजी से लेकर सरकारी जलस्त्रोतों तक को पाटने के खिलाफ सख्त कानून नहीं है, नतीजतन मेरे संज्ञान में तो ऐसा कोई मामला नहीं है कि जिसमें तालाबों का अतिक्रमण करने वालों को सख्त सजा मिली हो,” उन्होंने कहा।
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