बलिराम सेठ के पास रोजाना दर्जनों फोन कॉल आ रहे हैं और इनमें से हर दूसरा फोन कॉल किसी नेता का होता है, जो अपने प्रत्याशी का समर्थन करने की अपील करता है।
सामान्य जाति से आने वाले बलराम सेठ, भोजपुर जिले के तरारी विधानसभा क्षेत्र के एक पंचायत स्तरीय नेता हैं और इस बार उनकी पत्नी नीलम देवी ने स्थानीय जनप्रतिनिधि का चुनाव जीता है। लिहाजा, ऐसा माना जा रहा है कि उनकी पंचायत के वोटरों में उनकी पैठ है और वह उन्हें किसी भी प्रत्याशी की तरफ मोड़ सकते हैं। यही वजह है कि अलग-अलग पार्टियों के नेता उनसे संपर्क साध रहे हैं। लेकिन उन्होंने अब तक खुलकर किसी के समर्थन की बात नहीं कही है।
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“देखिए, पूरी पंचायत में मेरी बिरादरी के महज चार घर हैं, लेकिन इसके बावजूद मेरी पत्नी मुखिया बनी है, जाहिर है कि हर तरह के लोग हमें वोट कर रहे हैं, इसलिए हम किसी एक प्रत्याशी का समर्थन कर दूसरे प्रत्याशी की तरफ रुझान रखने वाले लोगों को नाराज नहीं कर सकते हैं,” वह कहते हैं।
हालांकि, उनका कहना है कि तरारी विधानसभा सीट पर इस बार किसी के लिए भी मुकाबला आसान नहीं होगा।
“मुख्य तौर पर मुकाबला तो एनडीए प्रत्याशी और भाकपा-माले प्रत्याशी के बीच ही है, लेकिन इस मुकाबले को प्रशांत किशोर फैक्टर दिलचस्प बना सकता है,” उन्होंने कहा। बलराम सेठ को लगातार आ रहे फोन कॉल से भी यही पता चल रहा है कि भाजपा व भाकपा-माले इस सीट से जीत हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का प्रयास कर रहे हैं।
तरारी विधानसभा
मिश्रित आबादी वाला तरारी विधानसभा क्षेत्र पूर्व में पीरो विधानसभा के तौर पर जाना जाता था। साल 2008 में परिसीमन के बाद इस सीट का अस्तित्व खत्म हो गया और तरारी विधानसभा नाम से नया क्षेत्र वजूद में आया।
इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 2.60 लाख वोटर हैं। आबादी के लिहाज से देखें, तो यहां ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार की एकमुश्त आबादी लगभग 1.15 लाख है। वहीं, गैर-यादव, गैर-बनिया और ओबीसी व ईबीसी की संख्या भी लगभग 1.20 लाख है। यादवों की आबादी लगभग 30 हजार और 20 हजार के करीब मुस्लिम आबादी है। अनुसूचित जातियों की संख्या इस क्षेत्र में कम है, लेकिन जो भी है, वो भाकपा-माले के समर्पित वोटर हैं।
साल 2008 में परिसीमन के बाद तरारी सीट पर तीन बार विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें से एक बार जदयू और दो बार भाकपा-माले की जीत हुई है। साल 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में जदयू उम्मीदवार नरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ सुनील पांडेय ने जीत दर्ज की थी। वहीं, वर्ष 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट से भाकपा-माले नेता सुदामा प्रसाद ने बेहद नजदीकी मुकाबले में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की गीता पांडेय को हराया था। उस चुनाव में सुदामा प्रसाद महज 272 वोटों से जीत पाये थे।
साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में सुदामा प्रसाद ने जीत दोहराते हुए वोटों का मार्जिन बढ़ाकर 11,015 जरूर कर लिया था, लेकिन, उस चुनाव में उन्हें भाजपा की अंदरूनी कलह का फायदा मिला था। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए में यह सीट भाजपा को मिली थी। भाजपा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के समर्पित कार्यकर्ता कौशल कुमार विद्यार्थी को टिकट दिया था, जिससे नाराज होकर नरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ सुनील पांडेय ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था। सुनील पांडेय इलाके में बाहुबली नेता को तौर पर चर्चित हैं और लोकप्रिय भी हैं, तो उनका पलड़ा भारी पड़ा। चुनाव में लगभग 62 हजार वोट लाकर वह दूसरे पायदान पर रहे जबकि कौशल कुमार विद्यार्थी को महज 13,833 वोट मिले थे।
लेकिन, इस बार एनडीए एकजुट है। ऐसे में भाकपा-माले के लिए जीत बरकरार रखना आसाना नहीं होगा।
उम्मीदवार
भाजपा इस सीट से किसी भी कीमत पर जीत दर्ज करना चाहती है, इसलिए उसने इस बार वर्ष 2020 वाली गलती नहीं दोहराई है। पार्टी नेताओं ने सुनील पांडेय, जो भाजपा से नाराज चल रहे थे और वर्ष 2020 में भाजपा छोड़ने के बाद लोजपा के पारस गुट में शामिल हो गये थे, को मनाया और उन्हें पार्टी में शामिल कराया। हालांकि, टिकट उनके पुत्र विशाल प्रशांत उर्फ़ सुशील पांडेय को दिया गया है।
भाकपा-माले भी इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने की भरपूर कोशिश कर रही है। पार्टी ने यहां से राजू यादव को टिकट दिया है, जो पूर्व में लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इस सीट से भाकपा-माले के वरिष्ठ नेता सुदामा प्रसाद ने लगातार दो बार जीत दर्ज की थी। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने आरा संसदीय सीट से जीत दर्ज कर ली। इसी वजह से ये सीट खाली हुई थी।
इस बार एक तीसरा उम्मीदवार भी मैदान में है। 2 अक्टूबर को अस्तित्व में आई जन सुराज पार्टी, जिसके संस्थापक पूर्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर हैं, ने किरण सिंह को टिकट दिया है। किरण सिंह, राजपूत जाति से आती हैं और उनकी पृष्ठभूमि गैर-राजनीतिक रही है। उनकी पहचान एक सामाजिक कार्यकर्ता की है। हालांकि, किरण सिंह, जन सुराज पार्टी की पहली पसंद नहीं थीं। पार्टी ने इस सीट से पूर्व सेना उप प्रमुख श्री कृष्ण सिंह, जो राजपूत जाति से ताल्लुक रखते हैं, को टिकट दिया था। लेकिन, उनका नाम बिहार की मतदाता सूची में था ही नहीं, जिस वजह से उनकी उम्मीदवारी रद्द कर पार्टी ने किरण सिंह को टिकट दिया।
किसका पलड़ा भारी?
रमाशंकर सिंह (परिवर्तित नाम), कपुरडिहरा गांव के निवासी हैं, जो तरारी विधानसभा क्षेत्र में आता है। वह स्थानीय नेता हैं और कुछ बड़ा मुकाम हासिल करने की इच्छा रखते हैं।
राजपूत जाति से ताल्लुक रखने वाले रमाशंकर सिंह कहते हैं, “इस बार तगड़ी लड़ाई होगी।” लेकिन, उन्हें ऐसा क्यों लग रहा है? इस सवाल पर वह कहते हैं, “देख नहीं रहे हैं! सिर्फ 10 महीने के कार्यकाल के लिए विधायकों को तो छोड़िए, भाजपा ने मंत्री-संतरी सबको उतार दिया है।” मगर क्या भाजपा इस बार जीत पाएगी? इस सवाल के जवाब में वह पूछते हैं, “इतना मंत्री-संतरी उतारने के बाद भी नहीं जीतेगी तो कब जीतेगी?”
उनका अपना राजनीतिक रुझान जन सुराज पार्टी की तरफ है, जिसकी तरफ से उनके सजातीय व्यक्ति को टिकट दिया गया है, लेकिन वह भाजपा उम्मीदवार का समर्थन कर रहे हैं और इसके पीछे उनकी निजी वजहें हैं। “सुनील पांडेय ने मेरे कई निजी कार्यों में मदद की है, इसलिए इस बार हम उनका समर्थन कर रहे हैं।”
जन सुराज पार्टी क्या कोई बड़ा फैक्टर हो सकती है? इस पर वह कहते हैं, “नहीं! इतना ही होगा कि जन सुराज पार्टी, भाकपा-माले व भाजपा उम्मीदवारों के कुछ वोट काटेगी।”
तरारी के ही पनवारी गांव के ददम राम, जो अनुसूचित जाति से आते हैं, का कहना है कि मुकाबला भले ही कठिन हो, लेकिन भाकपा-माले उम्मीदवार जीत सकते हैं। “मुस्लिम, यादव, बनिया, कहारों और दलितों के वोट राजू यादव को मिल रहे हैं। मेरी पंचायत में कुल 3900 वोट हैं, जिनमें अनुसूचित जातियों के वोट महज 700 वोट हैं, लेकिन यहां से भाकपा-माले को 250 से 300 वोटों की लीड मिलती है,” उन्होंने कहा।
वह कहते हैं, “सुनील पांडेय की अपनी छवि पर मुस्लिमों व अन्य जातियों, जो भाजपा को वोट नहीं देते हैं, के वोट मिल जाते थे, लेकिन इस बार उनके पुत्र मैदान में हैं, जिनकी इलाके में कोई लोकप्रियता नहीं है।”
जन सुराज पार्टी की उम्मीदवारी को भाकपा-माले से जुड़े नेता एक उम्मीद के तौर पर भी देख रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि प्रशांत किशोर की राजपूत उम्मीदवार, राजपूत और भूमिहार वोट काटेंगी, जो भाजपा के कोर वोटर हैं। पार्टी से जुड़े एक नेता ने कहा, “जन सुराज पार्टी को कुछ राजपूतों, भूमिहारों को वोट मिल सकते हैं, जो भाजपा के वोटर हैं, इससे फायदा हमें होगा,” माले से जुड़े एक नेता ने कहा। ऐसा होता है तो जन सुराज पार्टी की उम्मीदवारी हमारे लिए 2020 वाला मोमेंट बन सकता है।”
“हालांकि, प्रशांत किशोर मुस्लिम वोटरों को भी अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं, जिसका प्रभाव पीरो शहर में थोड़ा-बहुत पड़ सकता है, क्योंकि मुस्लिमों एक वर्ग में जन सुराज पार्टी को एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है,” उन्होंने कहा।
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