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प्रवासी मज़दूरों से ‘आत्मानिर्भरता’ चुराए हैं मोदी जी, copyright लगना चाहिए

आत्मनिर्भरता प्रवासी मजदूर का गहना है, उस पर उनका कॉपीराइट है। लेकिन प्रधानमंत्री ने उसे भी चुरा लिया और ग्लैमर के पुट के साथ आत्मनिर्भरता की नई परिभाषा दे दी।

Seemanchal Library Foundation founder Saquib Ahmed Reported By Saquib Ahmed |
Published On :
Story of PM Modi's Aatmanirbharta and Migrant Labourers

Opinion | प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोरोना महामारी के बीच 12 मई को रात के 8 बजे अपना छठा भाषण लिए टीवी पर अवतरित हुए। हर बार की तरह इस बार भी प्रधानमंत्री के जादुई झोले में एक नया शब्द था- आत्मनिर्भर, जिसे उन्होंने अपने 33:55 मिनट चले भाषण में लगभग 28 बार दोहराया।


प्रधानमंत्री ने लॉक डाउन के 49वां दिन लोगों को आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया, जबकि प्रवासी मज़दूरों ने तब से आत्मनिर्भरता को अपने जीवन के दिनचर्या में शामिल कर लिया है जब उन्हें शहर छोड़ कर अपने-अपने घर लौटने के लिए सिर्फ 4 घंटे का वक़्त दिया गया था।

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9 माह की गर्भवती शंकुतला अपने परिवार के साथ पैदल ही महाराष्ट्र के नासिक से मध्य प्रदेश के सतना के लिए रवाना हो गयी, लगभग 60 किलोमीटर चलने के बाद सड़क किनारे शंकुतला ने बिना किसी अस्पताल, नर्स या दाई के एक बच्ची को जन्म दिया। बमुश्किल 1 घंटा आराम करने के बाद जच्चा-बच्चा फिर अपने गाँव को निकल पड़े। इससे बढ़कर ‘आत्मनिर्भरता’ और क्या हो सकता है?

एक माँ अटैची पर अपने बच्चे को लादकर दोनों हाथों से घसीट रही है, मानो कोई बैल कंकड़ के खेत में अकेले हल खींच रहा हो। आत्मनिर्भरता।

सच कहूं तो, आत्मनिर्भरता प्रवासी मजदूर का गहना है, उस पर उनका कॉपीराइट है। लेकिन प्रधानमंत्री ने उसे भी चुरा लिया और ग्लैमर के पुट के साथ आत्मनिर्भरता की नई परिभाषा दे दी।

मज़दूरों के आत्मनिर्भरता का आलम ये है की जान हथेली पर लिए निकल पड़े हैं। आपके सड़क और पटरियां उन्हें कुचलने के काम आ रहे हैं। आपके Facebook और Twitter झूठी संवेदनाओं के शमशान बने हैं और आपका क्वारंटीन सेंटर समाज को सुरक्षा दे रहा है। मज़दूर तो कबसे आत्मनिर्भर है। हाँ मज़दूरों के खून पसीने से अगर आपकी राजनीति का मेकअप हो जाए, तो ले लीजिए ‘आत्मनिर्भरता’ भी।

बकौल दुष्यंत कुमार

भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ

आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ।

 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति ‘मैं मीडिया’ उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार ‘मैं मीडिया’ के नहीं हैं, तथा ‘मैं मीडिया’ उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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स्वभाव से घुमंतू और कला का समाज के प्रति प्रतिबद्धता पर यकीन। कुछ दिनों तक मैं मीडिया में काम। अभी वर्तमान में सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन के माध्यम से किताबों को गांव-गांव में सक्रिय भूमिका।

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