करीब 10 साल पहले मानवी मधु कश्यप ने बहुत हिम्मत बटोर कर अपनी मां के सामने दबी आवाज में एक राज खोला था। इस राज को अपने दिल में दफ़्न कर वह जी रही थी और बहुत तकलीफ में जी रही थी। उसे लगा था कि मां के सामने ये राज खोल देने से उनके मन पर पड़ा बोझ हल्का हो जाएगा और कम से कम परिवार में वह एक सामान्य जीवन जी सकेंगी। लेकिन हुआ इसका उल्टा।
“जब मैंने परिवार को बताया कि मैं ट्रांस वुमन हूं, तो परिवार के लोगों ने कहा कि अभी जिस तरह रह रही हो, उसी तरह रहो,” मधु कहती हैं, “लेकिन मैं दोहरी जिंदगी जीते जीते तंग आ चुकी थी। मुझे उस शरीर में नहीं रहना था, जो मेरे मन के प्रतिकूल था। अगर वैसी स्थिति में रहती, तो वो सब नहीं कर पाती जो आज मैं कर पाई हूं।” अतः उन्होंने अपनी जिंदगी के लिए परिवार को छोड़ना तय किया और एक रोज घर से निकल गईं।
10 साल बाद अब वह ‘दुनिया क्या कहेगी’ की दुविधा पार कर चुकी हैं। वह प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर बिहार पुलिस में सब इंस्पेक्टर बनी हैं और सिर उठाकर कह रही हैं कि वह ट्रांस वुमन हैं।
मानवी मधु कश्यप बिहार की पहली ट्रांस वुमन सब इंस्पेक्टर हैं। उनके साथ दो अन्य ट्रांस मेन भी बिहार पुलिस में सब इंस्पेक्टर बने हैं। बिहार सरकार ने बिहार पुलिस में सब इंस्पेक्टर पद पर ट्रांसजेंडर लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है। प्रति 500 पदों पर एक पद ट्रांसजेंडर व्यक्ति के लिए आरक्षित है। इसी आरक्षण का लाभ लेते हुए मधु कश्यप ने यह असाधारण सफलता हासिल की है।
पहचान छिपाकर की पढ़ाई
मानवी मधु कश्यप मूल रूप से बांका जिले के पंजवारा गांव की रहने वाली हैं। उनके परिवार में माता-पिता, दो भाई और एक बहन हैं। मानवी की स्कूल व कॉलेज शिक्षा गांव में ही हुई। वह बताती हैं कि उनका स्कूली व कॉलेज जीवन सामान्य था, लेकिन सामान्य इसलिए रह सका क्योंकि उन्होंने अपनी पहचान को छिपाए रखा।
मधु पैदा हुई थी, तब उनकी शारीरिक बनावट लड़कों जैसी थी, लेकिन उनकी मानसिक बनावट महिलाओं-सी थी। ये दोहरी जिंदगी एक तनावपूर्ण स्थिति होती है, जिसे डॉक्टरी भाषा में जेंडर डिस्फोरिया कहा जाता है। दोहरी जिंदगी से आजादी के लिए ऑपरेशन किया जाता है, जिसे सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी या जेंडर-अफर्मिंग सर्जरी कहा जाता है। यह एक खर्चीली सर्जरी है। बिहार सरकार इस तरह की सर्जरी के लिए भारी-भरकम आर्थिक मदद देती है।
मधु कहती हैं, “मैं पुरुष शरीर में पैदा हुई थी, लेकिन मानसिक तौर पर मैं महिला थी। मेरा शरीर कुछ और था, पर मेरा मन कुछ और। लेकिन, मैंने मानसिक तनाव की स्थिति के साथ पूरी पढ़ाई एक पुरुष के रूप में की।”
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मानसिक तौर पर महिला होने के बावजूद पुरुष होकर जिंदगी जीने की तकलीफों को बयां करते हुए वह कहती हैं, “बहुत मुश्किल था जेंडर ओरिएंटेशन को इतने वर्षों तक छिपाकर रखना। यह ऐसा ही था जैसे एक इंसान को घर में कैद करके रखना। सांस लेना भी मुश्किल होता था।”
हालांकि, ट्रांस समुदाय के लोगों के लिए मुख्यधारा के समाज के साथ रह कर पढ़ाई कर पाना लगभग नामुमकिन होता है क्योंकि दूसरे लोग इस समुदाय का मजाक उड़ाते हैं। लेकिन मधु ने पढ़ाई को एक औजार के रूप में देखा, जिसकी बदौलत वह समाज में सिर उठा सकती थीं, अपना हक मांग सकती थीं। वह कहती हैं, “जहां समाज हम जैसे लोगों को कोई मदद नहीं देता है, वहां आप पढ़ेंगे भी नहीं तो कुछ नहीं मिलेगा। पढ़ाई ही वो हथियार व जरिया है, जिसके जरिए आप अपना हक मांग सकते हैं। इसलिए मैं किसी भी कीमत पर पढ़ाई करना चाहती थी।”
जब उन्होंने अपनी पहचान उजागर की…
पढ़ाई पूरी करने के बाद मधु को अहसास हुआ कि आगे की जिंदगी के लिए उन्हें अपनी असली पहचान उजागर करनी ही होगी, इसलिए उन्हें सबसे पहले परिवार को बताने की ठानी। मधु ने बताया कि साल 2014 में जब उन्होंने अपनी मां के सामने अपने जेंडर रुझान के बारे में बताया, तो उनकी मां हैरान रह गईं और कहा कि वह अब तक जिस तरह जीती आ रही है, आगे भी उसी तरह जीती रहे। लेकिन, मधु को यह मंजूर नहीं था इसलिए उन्होंने घर छोड़ दिया। “अगर मैं परिवार के साथ रहती, तो जैसा मैं जीना चाहती थी, वैसा नहीं जी पाती। रोज मारपीट होती घर में,” उन्होंने कहा।
मधु को घर छोड़ते हुए इस बात का बखूबी अहसास हो गया था कि मुख्यधारा के समाज में उन्हें खारिज किये जाने की यह पहली और आखिरी घटना नहीं होने वाली है। लेकिन, जीवन के रास्ते में मधु को कुछ ऐसे लोग मिलते गये, जिन्होंने लैंगिक रुझान की परवाह किये बगैर उन्हें सहयोग किया।
परिवार छोड़ने के बाद मधु कुछ दिनों तक पश्चिम बंगाल के आसनसोल में अपनी बहन के यहां रहीं। वहां उन्हें एक पार्टनर मिला, जिसके साथ वह बंगलुरू चली गईं। बंगलुरू में रहते हुए उन्हें पता चला कि पटना में थर्ड जेंडर समुदाय के रहने के लिए एक सरकारी होम खुला है, तो वह बंगलुरू से यहां आ गईं और होम में रहने लगीं।
मानवी ने दारोगा बनने का नहीं सोचा था, लेकिन ये जरूर तय कर लिया था कि कोई ऐसा पद हासिल करेंगी, जिससे समाज में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लेकर लोगों की मानसिकता बदले। वर्ष 2021 में उन्होंने सरकारी नौकरी हासिल करने का सोचा और पटना के मुसल्लहपुर में सरकारी नौकरियों की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों में गईं, लेकिन वहां उन्हें नामांकन नहीं मिला। परिवार द्वारा खारिज किये जाने के बाद यह दूसरा मौका था, जब उन्हें खारिज किया गया था। “कोचिंग वालों ने ये कहकर दाखिला नहीं लिया कि मेरे पढ़ने से कोचिंग का माहौल खराब हो जाएगा,” मधु याद करती हैं।
गुरु रहमान ने अपनी कोचिंग में दिया दाखिला
कोचिंग सेंटर तलाशने की जद्दोजहद के बीच उनकी एक साथी वर्षा ने सब इंस्पेक्टर की नौकरी की तैयारी कराने वाले शिक्षक गुरु रहमान से मिलने को कहा। मानवी, गुरु रहमान के पास गईं, तो उन्होंने बिना एक पल सोचे, उन्हें दाखिला दे दिया।
गुरु रहमान कहते हैं, “मानवी शुरू से ही सीरियस थी। जब मेरे पास आई थी, तो उसने बताया कि वह कई और केचिंग सेंटरों में जा चुकी है, लेकिन वहां एडमिशन नहीं हुआ है। मैंने एडमिशन ले लिया। कोचिंग में अन्य बच्चों ने कभी भी उसके साथ बुरा बर्ताव नहीं किया। बल्कि उन लोगों ने काफी सहयोग किया।”
गुरु रहमान के लिए मानवी का दाखिला कोई अनूठी घटना नहीं थी क्योंकि उनके कोचिंग में वर्ष 2018 से ही ट्रांसजेंडर लोग पढ़ रहे हैं।
“मेरी कोचिंग में पहले से ही ट्रांसजेंडर लोग पढ़ रहे हैं। मैंने मानवी से पूछा कि वह क्या बनना चाहती है, तो वह बोली दारोगा। मैंने उसके माथे पर अंगुली से एसआई लिख दिया,” उन्होंने कहा।
गुरु रहमान की कोचिंग में अभी 26 ट्रांसजेडर लोग सब इंस्पेक्टर और 46 ट्रांसजेंडर लोग सिपाही की तैयारी कर रहे हैं।
दारोगा के पदों पर ट्रांसजेंडर लोगों के लिए आरक्षण को गुरु रहमान एक अच्छी शुरुआत मानते हैं और बीपीएससी (बिहार पब्लिक सर्विस कमिशन) तथा यूपीएससी (यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन) में भी ऐसी ही रिजर्वेशन व्यवस्था चाहते हैं। मैं राज्य सरकार और केंद्र सरकार से अपील करना चाहता हूं कि बीपीएससी और यूपीएससी में भी ट्रांसजेंडर लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया जाना चाहिए।
ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट रेशमा प्रसाद कहती हैं, “हम लोग ट्रांसजेंडर बटालियन चाहते हैं, लेकिन फिलहाल बिहार सरकार ने दारोगा पदों के लिए जो आरक्षण लागू किया है, वो अच्छी शुरुआत है।” वह दूसरे सरकारी क्षेत्रों में भी ट्रांसजेडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण चाहती हैं और इसके लिए दोबारा कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगी। उनका अगला लक्ष्य शिक्षा विभाग की रिक्तियों में आरक्षण लागू कराना है। “बिहार में ट्रांसजेडर व्यक्तियों की आबादी 825 है। सरकारें संख्या बल को ध्यान में रखते हुए आरक्षण देती हैं, ऐसे में हमें सरकार से बहुत उम्मीद नहीं है, इसलिए हमलोग कोर्ट के जरिए आरक्षण की मांग करेंगे,” उन्होंने कहा।
इधर, मानवी मधु कश्यप बहुत जल्द पटना जिले के किसी थाने में दारोगा की वर्दी में नजर आएंगी। स्कूली दिनों से लेकर अब तक की अपनी परिकथा सरीखी कहानी को समेटते हुए कहती हैं, “पहले मेरी मां को इस बात का दुख था कि उन्होंने एक ट्रांसजेंडर को जन्म दिया है, लेकिन अब कहती है कि वह हर बार मेरी मां के रूप में जन्म लेना चाहती हैं।”
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