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निकाय चुनाव पर रोक से उम्मीदवारों पर बढ़ा आर्थिक बोझ

पटना उच्च न्यायालय के फैसले के बाद बिहार निर्वाचन आयोग ने बिहार में 10 और 20 अक्टूबर को होने वाले नगर निकाय चुनाव को स्थगित कर दिया है।

Aaquil Jawed Reported By Aaquil Jawed |
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election material in dustbin

पटना उच्च न्यायालय के फैसले के बाद बिहार निर्वाचन आयोग ने बिहार में 10 और 20 अक्टूबर को होने वाले नगर निकाय चुनाव को स्थगित कर दिया है। आयोग ने यह फैसला पटना उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका (सुनील कुमार बनाम राज्य सरकार एवं अन्य) पर 4 अक्टूबर को न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के आलोक में लिया है।


साथ ही हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को निष्पक्ष होकर काम करने की हिदायत दी है।

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मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने 86 पृष्ठों के आदेश में कहा कि, “चुनाव आयोग को एक स्वायत्त और स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करना चाहिए न कि बिहार सरकार के हुक्म से बंध कर।”


चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाने से उम्मीदवार चुनाव की तैयारी में लग गए थे। प्रचार गाड़ियां सज गई थीं। उम्मीदवार प्रचार भी करने लगे थे, लेकिन अचानक चुनाव स्थगित करने के आदेश से उम्मीदवारों की पेशानी पर पसीना साफ दिखाई दे रहा है।

election pamphlets

उम्मीदवारों की मानें, तो वे अपने चुनावी बजट का 30% से 40% या इससे भी ज्यादा खर्च कर चुके थे। ऐसे में उनके चेहरे पर अब चुनाव में खर्च बढ़ने का डर सताने लगा है।

“आगे चुनाव लड़ पाना कठिन”

मो० मोमिर आलम कटिहार जिले की बारसोई नगर पंचायत अंतर्गत वार्ड नंबर एक से वार्ड पार्षद के लिए चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन अचानक चुनाव रद्द होने की सूचना से वह काफी निराश हो गए।

वह कहते हैं, “चुनाव लड़ने में काफी ज्यादा खर्च आता है, जो हम जैसे आम आदमी के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है। जनता और समाज की मांग पर हम चुनाव मैदान में थे। इधर-उधर से किसी तरह पैसे जमा कर चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन चुनाव आयोग के इस फैसले से काफी नुकसान हम जैसे छोटे उम्मीदवारों को झेलना पड़ रहा है।”

अपने खर्च के बारे में मो० मोमिर आलम कहते हैं, “सबसे पहले हम लोगों को लगभग 10,000 रुपए मकान का टैक्स जमा करना पड़ा, उसके बाद वकील को पैसा देना पड़ा और फिर बैनर पोस्टर इत्यादि पर खर्च हुआ।”

आलम अब तक 50-60 हजार रुपए खर्च कर चुके हैं। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं है कि इतने बड़े नुकसान को सह पाएं। “आने वाले वक्त में चुनाव लड़ना हमारे लिए कठिन हो जाएगा,” उन्होंने कहा।

वोट देने गांव लौटे थे प्रवासी मजदूर

मोहम्मद नाजिम प्रवासी मजदूर है। वह दिल्ली में प्लंबिंग और इलेक्ट्रिक मिस्त्री का काम करता है। चुनाव में वोट देने के लिए वह गांव पहुंचा है। उसके साथ उसके 10 साथी भी आए हैं। जिस दिन वे लोग गांव पहुंचे, उसी दिन चुनाव रद्द होने की खबर आई।

मोहम्मद नाजिम ने कहा, “हम लोग 10 आदमी तत्काल टिकट बना कर वोट देने के लिए गांव आए थे। हम लोगों ने 13 दिन की छुट्टी ली है। लेकिन अब हम लोगों का गांव आना बेकार हो गया। बहुत नुकसान हो जाएगा, क्योंकि दिल्ली में हर दिन लगभग 11 सौ रुपए कमा लेते थे। चुनाव रद्द होने की वजह से हम लोगों को आर्थिक रूप से काफी नुकसान हुआ है, जबकि हम लोग कोई उम्मीदवार नहीं हैं।”

मोहम्मद मुर्शीद भी दिल्ली के पास एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में मजदूर हैं और सरिया ढोने का काम करते हैं। वह और उनके 4 साथी नगर पंचायत चुनाव में वोट डालने के लिए छुट्टी लेकर घर आए हैं।

उन्होंने कहा कि 2500 रुपए देकर तत्काल में एक एक टिकट खरीदना पड़ा। “लेकिन हमलोग जैसे ही घर पहुंचे, उसके एक दिन बाद चुनाव रद्द हो गया। अब बताइए, हम लोग क्या करें। किससे पैसा मांगें।”

election pamphlet on a wall

वह गुस्से में कहते हैं, “चुनाव आयोग, हाई कोर्ट और सरकार के बीच के झमेले में हम मजदूरों के हजारों रुपए बर्बाद हो गए। क्या हाई कोर्ट हमारे इस नुकसान पर कोई फैसला लेगा ? घर आने जाने में हर मजदूर का 10,000 रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ है, अगर दिल्ली में रहता तो इतने पैसे कमा लेता‌।”

सूदबन्ना पर जमीन देकर लड़ रहे थे चुनाव

श्रवण कुमार वाहन चालक हैं। वह बारसोई नगर पंचायत के वार्ड नंबर एक से प्रत्याशी थे। उनका कहना है कि चुनाव के इतना नजदीक आकर यह फैसला नहीं लेना था। “हम लोग मेहनत मजदूरी करने वाले लोग हैं। दिन में ₹400-₹500 कमाते हैं। अपनी कोई जमीन भी नहीं है, जिसमें खेती-बाड़ी कर सकें,” उन्होंने कहा।

मो. शमीम राहत बारसोई नगर पंचायत के वार्ड नंबर 4 से उम्मीदवार थे। उन्होंने बताया, “चुनाव रद्द होने से हम जैसे छोटे-मोटे कैंडिडेट के लिए काफी दिक्कत हो गई है, बहुत नुकसान हुआ है मानसिक तौर पर भी और आर्थिक तौर पर भी।”

मीरा देवी अत्यंत पिछड़ा वर्ग से आती हैं और बिहार निकाय चुनाव में बारसोई नगर पंचायत से उप मुख्य पार्षद का चुनाव लड़ रही थीं।

Meera devi from barsoi

उनके बड़े बेटे अमित कुमार चुनाव रद्द होने से काफी नाराज हैं। वह कहते हैं कि सभी कैंडिडेट को मिलकर इलेक्शन कमिशन के इस निर्णय के खिलाफ केस कर देना चाहिए। क्योंकि इसमें मानसिक और आर्थिक तौर पर काफी नुकसान हुआ है।

“हम लोगों ने चुनाव लड़ने से पहले एक बीघा खेतिहर जमीन सूदबन्ना में दिया था और उस पैसे से चुनाव लड़ रहे थे। इतने बड़े क्षेत्र में प्रचार करना भी काफी चुनौतीपूर्ण है बैलट पेपर और पोस्टर में 10,000 रुपए से ज्यादा खर्च होते हैं। वकील को पैसा देना पड़ता है और ₹10,000 एनओसी लेने में भी लगा है,” उन्होंने आगे कहा।

वह खर्च का गणित समझाते हुए कहते हैं, “प्रचार प्रसार और माइकिंग के लिए गाड़ी रखनी पड़ी, जिसका हर दिन का किराया लगभग 2000 रुपए था। क्षेत्र में चुनाव प्रचार के लिए जाने पर ग्रामीणों को चाय पिलाना पड़ता है, क्योंकि यहां चाय पिलाने का रिवाज है। हर चाय दुकान पर एक चाय पर पांच रुपए खर्च होते हैं। दिन में अगर 10 चाय दुकान पर गए, तो सोचिए कितना खर्च हुआ होगा।”

“चुनाव आयोग के इस फैसले ने हम लोगों को तोड़ कर रख दिया है,” उन्होंने कहा।

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Aaquil Jawed is the founder of The Loudspeaker Group, known for organising Open Mic events and news related activities in Seemanchal area, primarily in Katihar district of Bihar. He writes on issues in and around his village.

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