बिहार में भूमि और राजस्व विवादों से जुड़े आवेदकों को एक्जिक्यूटिव कोर्ट से जुड़ी जानकारियाँ ऑनलाइन मुहैया करा पाने की सरकारी मुहिम कुंद पड़ चुकी है। करीब आठ साल पहले प्रमंडलीय आयुक्त आनंद किशोर ने पटना प्रमंडल के सभी जिलों को एक्जिक्यूटिव कोर्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम (ईसीआईएस बिहार) से जोड़ते हुए कहा था कि इससे केस की जानकारी में पारदर्शिता आ जाएगी और शिकायतकर्ता को इधर-उधर नहीं घूमना पड़ेगा।
बिहार के एक्जिक्यूटिव कोर्ट के दायरे में प्रमंडलीय आयुक्त का कोर्ट (कमिश्नर कोर्ट), समाहर्ता या जिला पदाधिकारी का कोर्ट (कलेक्टर कोर्ट), अपर समाहर्ता का कोर्ट (एडिसनल कलेक्टर कोर्ट), अनुमंडल दंडाधिकारी का कोर्ट (एसडीएम कोर्ट) शामिल हैं। अनुमंडल स्तर से लेकर प्रमंडलीय स्तर तक चलने वाले इन कोर्ट्स में म्युटेशन, लैंड सीलिंग, भू दान यज्ञ, बन्दोबस्ती, लगान-निर्धारण, बँटाईदारी, भू अर्जन, चकबंदी, वन अतिक्रमण, भूमि विवाद, उत्पाद अपील, वासगीत पर्चा, सूचना का अधिकार अपील, सर्विस अपील आदि से जुड़े मामलों की सुनवाई होती है।
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बिहार में एक्जिक्यूटिव कोर्ट को ऑनलाइन करने की योजना वर्ष 2016 से चल रही है। इसका मतलब कि कोर्ट से जुड़ी अहम जानकारियाँ जैसे तारीख, जजमेंट से जुड़ी जानकारी आदि के लिए शिकायतकर्ता को संबंधित कोर्ट-कार्यालय व बाबुओं के चक्कर नहीं काटने होंगे।
एक्जिक्यूटिव कोर्ट से जुड़ी जानकारियों को ऑनलाइन करने के पीछे कुछ तर्क दिए जा रहे हैं, जिनमें पहला है कि इससे नागरिकों को मिल रही सेवाओं की डिलीवरी प्रभावी और समयबद्ध तरीके से मुहैया कराई जा सकेगी। दूसरा तर्क, समाहर्ता सह जिला पदाधिकारी के न्यायालय में न्याय-निर्णयन सहायता व्यवस्था विकसित करने से जुड़ी है। तीसरा, प्रक्रियाओं के मशीनीकरण (ऑटोमेशन) से हितधारियों तक सूचना या जानकारी की पारदर्शी पहुँच की व्यवस्था का विकास करना है। ऑटोमेशन की इस प्रक्रिया के तहत एनआईसी के बिहार स्टेट सेन्टर द्वारा एक वेबसाइट बनाई गई है, जिस के लिए कन्टेंट मुहैया कराने की जिम्मेदारी बिहार के अलग-अलग संबंधित विभागों की है। विभागों द्वारा समय-समय पर मुहैया कराई गई सूचना को वेबसाइट पर अपलोड किए जाने की व्यवस्था की गई है।
एक्जिक्यूटिव कोर्ट से जानकारी हासिल करने की मौजूदा व्यवस्था
फिलहाल, भूमि और राजस्व से जुड़े मामलों से जुड़े व्यक्ति को केस दायर करने से लेकर अंतिम पारित आदेश प्राप्त करने तक संबंधित एक्जिक्यूटिव कोर्ट के कार्यालयों और बाबुओं का चक्कर लगाना पड़ता है। मौजूदा व्यवस्था में केस दायर होने से लेकर हाजिरी, सुनवाई के दौरान कोर्ट के शीर्ष अधिकारी की लिखित टिप्पणी, अगली तारीख की जानकारी, जजमेंट की मौखिक जानकारी व आदेश की प्रति पाने की जानकारी के लिए बहुत हद तक बाबुओं पर निर्भर रहना पड़ता है। इन जानकारियों को हासिल करना किसी आवेदक के लिए बीरबल की खिचड़ी पकाने जैसा है।
इस प्रक्रिया में अक्सर उनके समय, सेहत और धन की फिजूलखर्ची होती है। बिहार के कई जिले और विशेषकर, सीमांचल के किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया जिले के एक्जिक्यूटिव कोर्ट को ईसीआईएस की वेबसाइट पर अब तक शामिल नहीं किया गया है। इस कारण सीमांचल के इन तीन जिलों सहित अन्य जिलों के आवेदक और कोर्ट पुराने ढ़र्रे पर ही चल रहे हैं।
वेबसाइट पर आवेदकों के लिए उपलब्ध जानकारियाँ
ईसीआईएस, बिहार की वेबसाइट पर अब तक आठ जिलों के जिला पदाधिकारी और पटना प्रमंडल के प्रमंडलीय आयुक्त के कार्यालय का फोन नम्बर और ई-मेल पते दर्ज़ हैं। इन जिलों में सुपौल, जमुई, कैमूर, बक्सर, रोहतास, भोजपुर, नालंदा और पटना शामिल हैं।
वेबसाइट का एक हिस्सा ‘केस स्टेटस’ का है। इस हिस्से में अब तक मात्र 13 जिलों के केस की जानकारी अपलोडेड हैं। इन 13 जिलों में अररिया, कैमूर, गया, पटना, पूर्वी चम्पारण, बक्सर, दरभंगा, जमुई, भोजपुर, नालंदा, रोहतास, सहरसा, सुपौल शामिल हैं। सीमांचल के तीन अन्य जिले सहित राज्य के कुल 25 जिले और प्रमंडल के एक्जिक्यूटिव कोर्ट में लम्बित और दिन-प्रतिदिन दायर होने वाले केस की सूची अपलोड नहीं की गई है।
परेशानी
एक्जिक्यूटिव कोर्ट की सूचना के ऑफलाइन से ऑनलाइन शिफ्टिंग के दौरान भूमि व राजस्व मामलों से जुड़े केस दायर करने के इच्छुक आवेदक को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मसलन, कुछ जिलों के एक्जिक्यूटिव कोर्ट में ऑनलाइन शिफ्टिंग के नाम पर केस पंजीकरण की व्यवस्था मृतप्राय कर दी गई है। जमाबंदी, लगान निर्धारण अपील से जुड़े कई मसलों को लेकर इच्छुक आवेदक अपर समाहर्ता के कोर्ट तक पहुँच रहे हैं, लेकिन उन्हें बेरंग लौटना पड़ रहा है।
पूर्णिया के अपर समाहर्ता का कोर्ट इसकी एक बानगी है। हालांकि, इस बारे में अपर समाहर्ता, पूर्णिया स्पष्ट कहते हैं, ‘’हमारा विभाग ऑफलाइन केस रिसीव करता है। कुछ पुराने केस हैं, जिसमें ऑनलाइन रसीद नहीं है उसमें (वेबसाइट) ऑप्शन नहीं देता है।“
अमूमन, ऐसे सभी मामलों में केस दायर करने के समय की निश्चित सीमा निर्धारित होती है। उदाहरण के लिए, अंचलाधिकारी द्वारा किसी भूमि या उसके किसी भाग की जमाबंदी कायम करने के निर्णय से असंतुष्ट व्यक्ति जमाबंदी-आदेश पारित होने के 30 दिनों के अंदर भूमि सुधार उप-समाहर्ता की कोर्ट में अपील कर सकता है। भूमि सुधार उप-समाहर्ता के आदेश से असंतुष्ट व्यक्ति अपील आदेश के विरूद्ध 30 दिनों के अंदर अपर समाहर्ता या समाहर्ता के कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर कर सकता है।
ऐसे में जब नई व्यवस्था पूरी तरह से लागू न हो पाई हो तो उसे अपनाने के नाम पर आवेदकों के मामले को रजिस्टर न करना विवाद निपटाने का तरीका नहीं हो सकता। सूत्रों की मानें तो आवेदकों को कार्यालय कर्मचारियों द्वारा कहा जा रहा है कि मामला विभाग के उच्च स्तरीय अधिकारियों के विचारार्थ लम्बित है। ऊपर से आदेश प्राप्ति के बाद ही इस दिशा में आगे कदम बढ़ाया जाएगा।
ईसीआईएस, बिहार की वेबसाइट पर पूर्णिया के एक्जिक्यूटिव कोर्ट के मामलों को अपडेट करने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘’हमारा कोर्ट तो ऑनलाइन है ही। विभागीय साइट (वेबसाइट) पर रहता ही है। हमारा जिला पूरे बिहार में दूसरे नम्बर पर है।‘’
अपर समाहर्ता ने जिस उपलब्धि का ज़िक्र किया वो बिहार सरकार के राजस्व व भूमि सुधार विभाग द्वारा जिलों की रैंकिंग जारी करने से जुड़ी है। यह रैंकिंग जिलों में होने वाले नामांतरण के सुपरविज़न, लगान वसूली अपडेशन, अंचल कार्यालयों के निरीक्षण, परिमार्जन के मामलों का सुपरविज़न, भू बन्दोबस्ती आदि के आधार पर तैयार की जाती है। इसके लिए बेहतरीन काम करने वाले तीन जिलों के अपर समाहर्ता को सम्मानित और तय मानकों के आधार पर अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाले अपर समाहर्ताओं की सूची कार्रवाई के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को भेजे जाने का प्रावधान है। इस आधार पर जारी जिलों की रैंकिंग में पूर्णिया जिले को दूसरा स्थान दिया गया है। यह तब है, जब पूर्णिया जिले के पूर्णिया पूर्व अंचल के अंचल अधिकारी निलम्बित कर दिए गए हैं। उन पर विभागीय कार्रवाई चल रही है।
दाखिल-खारिज के नाम पर 35 हजार घूस लेते के आरोप में नगर अंचल के राजस्व कर्मचारी अवधेश गुप्ता जनवरी में गिरफ्तार किए गए। वहाँ के कुछ पुराने कर्मचारी, अधकारियों पर पहले से मामला दर्ज़ है।
ईसीआईएस, बिहार की वेबसाइट इससे अलग है। एक्जिक्यूटिव कोर्ट से जुड़ी सूचनाओं की नागरिकों तक पारदर्शी और सुगम पहुँच समय की माँग है। यह नागरिकों को सशक्त करती है। इसलिए ईसीआईएस बिहार वेबसाइट पर सूचना की पहुँच में देरी, उच्च प्रशासनिक मानकों से विचलन और एक्जिक्यूटिव कोर्ट व्यवस्था के ढुलमुल रवैये का संकेत देती है।
ढुलमुल मानक और कुव्यवस्थित कोर्ट व्यवस्था विवाद निपटारे का साधन नहीं हो सकते। इसके विपरीत ये विवाद की यथास्थिति बनाए रखने और कई बार उन्हें बढ़ाने की गुंजाइशों से भरे होते हैं।
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