बिहार के किशनगंज जिले में मुग़ल और बंगाल रियासत के सदियों पुराने इतिहास की एक पुरानी कड़ी आज भी मौजूद है। किशनगंज नगर परिषद वार्ड संख्या 31 में खगड़ा एस्टेट की पुरानी हवेली सदियों पुराने धूमिल हो रहे इतिहास की साक्षी है। इसे स्थानीय लोग खगड़ा नवाब कोठी के नाम से जानते हैं। कभी यहां किशनगंज के सबसे रसूखदार जागीरदारों का निवास हुआ करता था।
आज खगड़ा नवाब कोठी में आखिरी नवाब के तीन भतीजों का परिवार रहता है। हालांकि, जब हम वहाँ पहुंचे तो केवल सैयद ज़ैग़म मिर्ज़ा ही वहां मौजूद थे जो आखिरी नवाब सैयद ज़ैनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा के छोटे भाई सैयद नासीरुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा के पोते हैं।
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खगड़ा एस्टेट बिहार, बंगाल के अलावा नेपाल तक फैला था। खगड़ा में स्थित कोठी से पहले नवाबों का निवास स्थान किशनगंज हलीम चौक से करीब 2 किलोमीटर दूर पुराना खगड़ा हुआ करता था। पुराना खगड़ा तब पुरानी ड्योढ़ी कहलाता था।
पुरानी हवेली में क्या क्या दिखा
खगड़ा एस्टेट की जमींदारी सैकड़ों एकड़ में फैली हुई थी। आज इसकी विरासत के तौर पर नवाब कोठी और चंद गिनी चुनी इमारतें बची हैं। किशनगंज का मशहूर खगड़ा मेला भी खगड़ा एस्टेट की देन है। कोठी में एस्टेट की पुरानी याद के तौर पर कुछ पुरानी मेज़, दरवाज़े, अलमारी, सजावट के कुछ सामान, मेटल पीस और अंग्रेजों के जमाने की चिमनी जैसी पुरानी चीज़ें मौजूद हैं।
किशनगंज कोठी के पीछे मुख्य सड़क के किनारे एक मस्जिद है जिसे मेला मस्जिद कहते हैं क्योंकि इसे 19वीं सदी के अंत में खगड़ा मेले में आने वाले मुसाफिरों के लिए बनाया गया था। दूर दराज़ के लोग यहां नमाज़ पढ़ते और रात बसर करते थे। अब इस मस्जिद की तस्वीर बदल चुकी है, कुछ सालों पहले स्थानीय लोगों द्वारा इसका नवीकरण किया गया। वर्षों पहले खगड़ा नवाब ने यह मस्जिद स्थानीय लोगों को दे दी थी।
खगड़ा के नवाब चूँकि शिया समुदाय से ताल्लुक रखते थे तो उन्होंने मस्जिद के साथ कई इमामबाड़े और मातमखाने भी बनवाए। पुराना खगड़ा में मस्जिद और इमामबाड़े सालों तक आबाद रहे। फिर एस्टेट के जागीरदार खगड़ा में स्थित नवाब कोठी में रहने लगे। इसे संभवतः सैयद फ़ख़रुद्दीन हुसैन ने अठारवीं सदी में बनाया था।
कोठी के सामने सफ़ेद पत्थर का एक चबूतरा है जहां पहले तोप रखा जाता था। खगड़ा के आखिरी नवाब ज़ैनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा ने पूर्णिया के डीएम को यह तोप तोहफे में दे दी जो आज भी नगर निगम के दफ्तर में मौजूद है। जब खगड़ा के नवाब कहीं बाहर से आते थे तो उसकी घोषणा के लिए तोप का गोला छोड़ा जाता था।
खगड़ा एस्टेट ने धार्मिक साहित्य के अलावा और भी कई काम अंजाम दिए। इतिहासकार अकमल यज़दानी ने लिखा कि खगड़ा एस्टेट ने एक मंदिर का निर्माण किया और साथ ही कई लोगों की पढ़ाई का खर्च भी उठाया जिसमें किशनगंज के एक वकील श्री राधा बाबू के पिता का नाम शामिल है। खगड़ा एस्टेट के अधिकतर खजांची हिन्दू थे।
खगड़ा का इतिहास
1980 के दहाई में छपी किताब ‘तारीख़ ए खगड़ा, खगड़ा मेला और राजगान ए खगड़ा’ में इतिहासकार अकमल यज़दानी ने खगड़ा एस्टेट का इतिहास लिखा है। सन 1545 ईस्वी में शेरशाह सूरी से मुकाबले के लिए जब मुग़ल शासक हिमायूं ने बंगाल में अपनी फ़ौज भेजी तो ईरान से आए सैयद ख़ान दस्तूर को फ़ौज के साथ भेजा गया।
1545 में सैयद ख़ान दस्तूर को उनकी बहादुरी से खुश होकर हुमायूं ने सुरजापुर परगना का ज़मींदार बना दिया। सैयद ख़ान दस्तूर के साथ एक ईरानी सिपहसालार सैयद राय ख़ान थे जो ईरान के तिरमिज़ शहर से आकर बसे थे। उनकी मदद से सैयद ख़ान दस्तूर की सेना ने मोरंग के हमलावरों को हरा दिया। उनके लिए जलपाईगुड़ी के हल्दीबाड़ी में एक क़िला बनाया गया।
सैयद ख़ान दस्तूर ने अपनी बेटी का निकाह सैयद राय ख़ान से कर दिया। ससुर की मृत्यु के बाद उनकी जगह सैयद राय ख़ान सुरजापुर परगना के जागीरदार हुए। उनके बाद उनके बेटे सैयद जलालुद्दीन मोहम्मद ख़ान बहादुर ने जब भूटानी हमलवारों से जीत हासिल की तो जहांगीर ने उन्हें राजा बहादुर का खिताब दिया। तब उन्होंने भूटानी लड़ाकों के हमलों से बचने के लिए पूर्णिया के फौजदार अस्फंदयार ख़ान के कहने पर एक क़िला बनाया था जिसे उनके नाम पर जलालगढ़ क़िला का नाम रखा गया।
उनके बाद सैयद रज़ा ख़ान राजा हुए और जब उन्होंने सैयद रज़ा ख़ान ने मोरंग की फ़ौज को हराया तो शाहजहाँ ने सुरजापुर एस्टेट को और भी कई क्षेत्र दे दिए। इसी खानदान के सैयद हुसैन मोहम्मद और बुरहानुद्दीन मोहम्मद में गद्दी के लिए झगड़ा हो गया। उस समय पूर्णिया के फौजदार सैफ ख़ान ने हाफ़िज़ रहमत ख़ान को मामला सुलझाने को कहा और फिर सैयद मोहम्मद सईद को उस खानदान का राजा चुना गया।
पैसों के बंटवारे के लेकर सैफ़ ख़ान और सैयद मोहम्मद सईद के बीच अनबन हुई। सैयद मोहम्मद सईद ने सैफ़ ख़ान से जमा किए पैसों में से हिस्सा मांगा जबकि सैफ़ खान ने उनसे खज़ाना मांग लिया। अनबन लंबी चली और इसी दौरान मोहम्मद सईद की मृत्यु हो गई। बेटे सैयद मोहम्मद जलील को राजा का पद मिला।
जलालगढ़ किले पर सौलत जंग का आक्रमण
बंगाल के नवाब अलीवर्दी खान के भतीजे सौलत जंग को जब पूर्णिया का फौजदार बनाया गया तो उन्होंने मोहम्मद जलील से ख़ज़ाने की मांग की। इसपर मोहम्मद जलील की लड़ाई सौलत जंग से हो गई। जलालगढ़ किले को सौलत जंग ने घेर कर मोहम्मद जलील और उनके परिवार को बंधक बना लिया। राजा मोहम्मद जलील की कारावास में ही मौत हो गई। उनके दो बेटे सैयद ग़ुलाम हुसैन और सैयद ग़ुलाम हसन को सौलत जंग ने टैक्स देने की शर्त पर रिहा कर दिया। जान का खतरा देख दोनों ने दिनाजपुर के राजा रामचंद्र के पास जाकर शरण ली।
राजा रामचंद्र ने दोनों को पाला और पढ़ाया लिखाया। सैयद ग़ुलाम हुसैन के पुत्र सैयद फ़ख़रुद्दीन हुसैन ने अंग्रेजी शासन में जमींदारी हासिल की और किशनगंज की खगड़ा ड्योढ़ी जिसे बाद में पुराना खगड़ा कहा गया, पर घर बनाया और उनका परिवार वहीं रहने लगा।
पुरानी ड्योढ़ी में मस्जिद, तालाब, अज़ाख़ाना, मातम-कदा भी बनाया गया। क़दम रसूल की यादगार के तौर पर उन्होंने एक दरगाह क़दम रसूल बनाई। यहां एक मस्जिद, बाबा कमली शाह का चिल्लाख़ाना और कुछ मज़ार भी हैं। सैयद फ़ख़रुद्दीन के दौर में जलालगढ़ किले की यादगार के लिए आशूरागढ़ किला बनाया गया जो खगड़ा से दक्षिण की ओर था। अब दशकों पहले किला ध्वस्त हो चुका है।
सैयद फ़ख़रुद्दीन हुसैन के दो बेटे सैयद अकबर हुसैन और राजा सैयद दीदार हुसैन में अनबन हुई और दोनों भाई ने अलग अलग ड्योढ़ी बसा ली। सैयद अकबर हुसैन ने ड्योढ़ी किशनगंज (क़ुतुबगंज) में रिहाइश की वहीं सैयद दीदार हुसैन खगड़ा पुरानी ड्योढ़ी में ही रहे।
सैयद अकबर हुसैन की संतान नहीं थी इसलिए उनके मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को संपत्ति मिली। पत्नी ने सारी संपत्ति अपने भाई सैयद हसन रज़ा के नाम कर दी। उनके पोते सैयद असग़र रज़ा और सैयद दिलावर रज़ा हुए। सैयद दिलावर रज़ा का महल किशनगंज शहर में स्थित दिलावर पैलेस कहलाता था। इसे बाद में पदमपुर एस्टेट के जागीरदार ने खरीद लिया था।
खगड़ा एस्टेट जब बन गया नवाब घराना
सैयद दीदार हुसैन की पांच संतान थीं जिनमें से सिर्फ एक पुत्र सैयद अनायत हुसैन ही की संतान हुई इसलिए वही अगले राजा हुए। उनकी मौत के बाद उनके बेटे सैयद अता हुसैन एस्टेट के मालिक बने। अता हुसैन का विवाह मुर्शिदाबाद के नवाब सैयद मंसूर अली मिर्ज़ा की पुत्री शहर बानो बेगम से हुआ। सैयद अता हुसैन को 1887 में नवाब का खिताब मिला।
इससे चार साल पहले 1883 में उन्होंने खगड़ा मेले की शुरुआत की। मेले में कोलकाता, ढाका, दार्जिलिंग, दरभंगा, छपड़ा, पटना और बनारस जैसे शहरों से दुकानदार आते थे।
1954 में बिहार लैंड रिफॉर्म एक्ट 1950 के तहत खगड़ा मेला बिहार सरकार के राजस्व विभाग के अधीन हो गया। 1958 में तत्कालीन नवाब सैयद ज़ैनुद्दीन ने मेले की कुछ जमीनों पर दावा किया जिसके बाद खगड़ा मेला स्थल को तीन हिस्सा कर खगड़ा नवाब, बिहार सरकार और रैयत में बांटा गया।
नवाब सैयद अता हुसैन ने एस्टेट के खर्च से इल्म-ओ-अदब पर कई काम कराए। अरबी, उर्दू, फ़ारसी में कई किताबें उनकी दौर में छापी गईं। क़ादरी पीर बाबा कमली शाह से उनका ख़ास लगाव था। सैयद अता हुसैन ने खगड़ा मेले की शुरुआत बाबा कमली शाह की सलाह पर ही की थी।
नवाब सैयद अता हुसैन के दो बेटे सैयद मोहिउद्दीन हुसैन मिर्ज़ा और सैयद मोइनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा का दौर आया। सैयद मोहिउद्दीन हुसैन मिर्ज़ा का विवाह अंग्रेज़ी महिला नोरा फ्रांसिस से हुआ। एक लड़की हुई जिनका नाम अख्तर बानो उर्फ़ रीना मिर्ज़ा था।
बिहार डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर पूर्णिया में एलएस ओ’माली ने लिखा कि नवाब सैयद अता हुसैन खान की पत्नी नवाब शहर बानो बेगम के दो बेटे थे। बड़े बेटे का नाम सैयद मोहिउद्दीन हुसैन मिर्ज़ा और सैयद मोइनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा था। उनकी एक बेटी का नाम ज़ैनुन-निसा बेगम था।
1892 में नवाब सैयद अता हुसैन की मौत के बाद उनकी पत्नी शहर बानो बेगम के भाई सैयद सिकंदर अली मिर्ज़ा भांजे और भांजी को लेकर मुर्शिदाबाद चले गए। इसके बाद कुछ वर्ष के लिए खगड़ा एस्टेट अंग्रेजी हुकूमत के कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स की देखरेख में रही।
मुर्शिदाबाद आकर नवाब सैयद अता हुसैन खान के दोनों बेटे सैयद मोहिउद्दीन हुसैन मिर्ज़ा और सैयद मोइनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा ने मिर्ज़ा शुजाअत अली बेग से तालीम हासिल की। नवाब सैयद अता हुसैन खान की बेटी ज़ैनुन निसा बेगम का बचपन में ही देहांत हो गया। ज़ैनुन निसा की संपत्ति उनकी मां शहर बानो बेगम को मिली। शहर बानो ने बच्चों के शिक्षक शुजाअत अली मिर्ज़ा से निकाह कर लिया। इस तरह खगड़ा नवाब के साथ मिर्ज़ा जुड़ गया। बाद में शुजाअत अली मिर्ज़ा को अंग्रेजी हुकूमत से ख़ान बहादुर का टाइटल मिला।
एस्टेट में खत्म हुआ कोड ऑफ़ वार्ड्स
1906 में नवाब सैयद अता हुसैन के बड़े बेटे सैयद मोहिउद्दीन हुसैन मिर्ज़ा व्यस्क होने के बाद भारतीय व्यस्कता अधिनियम, 1875 की धारा 3(1) के अनुसार खगड़ा नवाब एस्टेट के वारिस कहलाये और इस तरह खगड़ा नवाब की कोठी से कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स का दखल ख़त्म हुआ।
नवाब सैयद मोहिउद्दीन हुसैन मिर्ज़ा ने 1919 में मसूरी में अपनी आखिरी साँसे लीं। उनके बाद संपत्ति की हक़दारी के लिए छोटे भाई सैयद मोइनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा और उनकी पत्नी नोरा फ्रांसिस मिर्ज़ा, बेटी अख़्तर बानो बेगम के बीच मुकदमा शुरू हुआ। कुछ समय बाद नोरा फ्रांसिस मिर्ज़ा और उनकी बेटी अख्तर बानो बेगम को प्रति वर्ष 27,000 भुगतान देने पर सहमति के साथ सैयद मोइनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा खगड़ा नवाब एस्टेट के अगले जागीरदार बने।
सैयद मोइनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा का विवाह अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पर पोती आलम आरा बेगम से हुआ। मामू सिकंदर अली ने मुर्शिदाबाद में अच्छी शिक्षा दी। अंग्रेजी शासनकाल में वह फुटबॉल के अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी थे। कलकत्ता में ओरिएण्टल स्पोर्टिंग के संस्थापक सदस्य भी रहे। फिर मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब के अध्यक्ष भी रहे।
सैयद मोइनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा के पांच बेटे और 3 बेटियां थीं। सैयद मोइनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा के सबसे बड़े बेटे सैयद ज़ैनुद्दीन मिर्ज़ा उनके बाद खगड़ा के अगले नवाब हुए। ज़ैनुद्दीन मिर्ज़ा कुछ वर्ष संथाल परगाना में रहे और फिर 1945 में खगड़ा वापस आ गए। उनका विवाह क़मर ताज बेगम से हुआ जिनकी मृत्यु 1971 में हुई। उनकी क़ब्र किशनगंज के खगड़ा कर्बला में है।
सैयद मोइनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा की मृत्यु सन् 1935 में हुई। उन्हें कोलकाता के मटियाबुर्ज स्थित फिरदौस महल इमामबाड़े के पास दफ़्न किया गया।
आखरी नवाब ज़ैनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा
सैयद ज़ैनुद्दीन मिर्ज़ा 1937 में बिहार असेंबली में एमएलए बने। 1945 में किशनगंज नगर परिषद् के सदस्य भी रहे। सैयद ज़ैनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा को किशनगंज के पूर्वी हिस्से को बंगाल में जाने से रोकने का श्रेय दिया जाता है। दरअसल, एसआरसी कमीशन के अध्यक्ष जस्टिस फज़ल अली जब किशनगंज आये तो सैयद ज़ैनुद्दीन मिर्ज़ा ने वकील मौलवी मोहम्मद सुलैमान के साथ उनसे मुलाकात की और किशनगंज के पूर्वी हिस्से को बिहार में रखने की मांग की जिसमें वह सफल रहे।
सैयद ज़ैनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा के तीन छोटे भाई की मौत उनके जीवनकाल में हो गई थी। सैयद कमालुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा का परिवार किशनगंज में रहा जबकि सैयद नसीरउद्दीन हुसैन मिर्ज़ा और सैयद जमालुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा के परिवार के अधिकतर लोग कोलकाता या लखनऊ जाकर बस गए। हालांकि, सैयद ज़ैनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा समेत चार भाई की क़ब्र किशनगंज में ही है।
सन् 1995 में खगड़ा एस्टेट के आखिरी नवाब सैयाद ज़ैनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा की मौत हो गई। उनकी कोई संतान नहीं थी जिसके कारण छोटे भाई सैयद इकरामुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा को संपत्ति का अटॉर्नी अधिकार मिला। मुंबई में इकरामुद्दीन हुसैन की नौकरी थी और वह अंत तक वहीं रहे। 2014 में उनकी मौत के साथ खगड़ा नवाब परिवार में एक युग का अंत हो गया।
सदियों पुराने एस्टेट की मिट रहीं निशानियां
खगड़ा एस्टेट के आखिरी नवाब के छोटे भाई सैयद नसीरुद्दीन मिर्ज़ा के चार बेटे और चार बेटियां हुईं। इनमे से एक बेटे सैयद ऐजाज़ुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा के बेटे सैयद ज़ैग़म मिर्ज़ा ने मशहूर खगड़ा एस्टेट और खगड़ा मेले के पतन की बारे में हमसे बात की।
“बचपन से ही डिक्लाइन देखे हैं। जब बड़े हुए तो देखे कि चीज़ें बदल गईं। खगड़ा मेला इसमें बहुत अहम् रोले प्ले करता है। पहले 3 से 5 किलोमीटर के दायरे में मेला लगता था। लोग दूरदराज़ से जानवर खरीदने आते थे, बंगाल, नेपाल और बांग्लादेश से भी लोग आते थे। शहर का विकास हुआ तो मेला सिकुड़ गया और जब से सरकार के अधीन हुआ है तो मेला पतन की तरफ चला गया,” ज़ैग़म मिर्ज़ा बोले।
“पहले मेला गेट हुआ करता था जो मेले की पहचान हुआ करती थी, उसे तोड़ दिया गया। बस यही निवेदन है कि समय के साथ किशनगंज जरूर आगे बढ़े लेकिन अपना इतिहास भी याद रखे। कोई भी देश या समाज जब अपने इतिहास को याद रखता है तो वो प्रगति कर सकता है,” पेशे से शिक्षक सैयद ज़ैग़म मिर्ज़ा बोले।”
1954 में बिहार लैंड रिफार्म एक्ट 1950 लागू होने के बाद खगड़ा एस्टेट की ज़मींदारी खत्म हो गई। सैयद ज़ैनुद्दीन हुसैन मिर्ज़ा तब 41 वर्ष के थे। 7 दशक बाद आज खगड़ा एस्टेट और नवाबी रियासत की पहचान खगड़ा नवाब कोठी अब काफी पुरानी हो चुकी है। कोठी में रह रहे सैयद ज़ैग़म मिर्ज़ा ने कहा कि इमारत में जगह जगह पेड़ निकल जाते हैं। इसे हर कुछ दिनों पर मरम्मत कर ठीक किया जाता है।
वह कहते हैं, “हर साल हमलोग रेनोवेट कराते हैं। केमिकल डालकर दीवारों पर छेद बंद करते हैं लेकिन फिर साल दो साल बाद पेड़ निकल आता है। ये पेड़ इमारत के ढाँचे को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। हमारा पूरा प्रयास है कि यह इमारत इसी तरह हमेशा सलामत रहेगी। यहां रहने वाले लोग इसे यूँ ही संजो कर रखेंगे। यही हमारा इतिहास है, हमेशा हम से जुड़ा रहेगा।”
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