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शरद यादव: समाजवादी राजनीति का लोकप्रिय चेहरा

प्रख्यात समाजवादी नेता व मधेपुरा के पूर्व सांसद शरद यादव नहीं रहे। उन्होंने 12 जनवरी 2023 को गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली।

Navin Kumar Reported By Navin Kumar |
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प्रख्यात समाजवादी नेता व मधेपुरा के पूर्व सांसद शरद यादव नहीं रहे। उन्होंने 12 जनवरी 2023 को गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली।

शरद यादव के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लालू यादव सहित देश के अनेक राजनेता ने शोक व्यक्त किया।

वह भारतीय राजनीति का एक जाना माना चेहरा थे। उनकी बिहार की राजनीति में भी एक गहरी छाप थी। मध्यप्रदेश में जन्म लेने के बावजूद शरद यादव ने अपनी राजनीतिक जमीन को बिहार और उत्तरप्रदेश में सींचा और अपने राजनीतिक सफर में उस मुकाम को हासिल किया, जो किसी भी राजनेता का सपना होता है। उन्हें यूपी और बिहार की जनता का भी भरपूर सहयोग मिला।


छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि

शरद यादव का जन्म 1 जुलाई 1947 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बंदाई गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थे। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने मध्यप्रदेश के जबलपुर के ही इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। इस दौरान उन्होंने छात्रसंघ का चुनाव लड़ा और अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने बीई की डिग्री गोल्ड मेडल के साथ पूरी की।

डॉ लोहिया के विचारों से प्रेरित

शरद यादव जब कॉलेज में थे, तो उस समय देश में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के समाजवादी विचारों की चर्चा चारों ओर फैल रही थी। शरद यादव भी उनके विचारों से प्रभावित हुए। उनके विचारों से ही प्रेरित होकर उन्होंने मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने इसके बाद कई सार्वजनिक आंदोलनों में भाग लिया और इमरजेंसी के दौरान जेल भी गए।

27 की उम्र में पहुंचे लोकसभा

शरद यादव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1971 से हुई थी। वह कुल सात बार लोकसभा सांसद रहे जबकि तीन बार राज्य सभा सदस्य चुने गए। साल 1974 में 27 साल की उम्र में वह पहली बार मध्य प्रदेश की जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। इसके अलावा उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट और बाद में बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट से भी सांसद बने।

केंद्र में मंत्री से लेकर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने

शरद यादव जनता दल के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वह 1989-1990 में केंद्रीय टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्री भी रहे। उन्हें 1995 में जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। 1996 में बिहार से वह पांचवीं बार लोकसभा सांसद बने। साल 1997 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। साल 1998 में जॉर्ज फर्नांडीस के सहयोग से उन्होंने जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) नाम से पार्टी बनाई और एनडीए के घटक दलों में शामिल होकर केंद्र सरकार में फिर से मंत्री बने। साल 2004 में शरद यादव राज्यसभा गए। 2009 में सातवीं बार सांसद बने, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्हें मधेपुरा सीट से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, जीवन के अंतिम पड़ाव में अपने घनिष्ठ सहयोगी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मनमुटाव भी हुआ। इसलिए, शरद यादव ने जेडीयू से नाता तोड़ लिया था।

अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय

नीतीश कुमार से मनमुटाव के कारण उन्होंने जेडीयू से नाता तोड़ लिया। उसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल गठित किया, लेकिन स्वास्थ्य कारणों की वजह से राजनीति में उतना सक्रिय नहीं रहते थे। बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय लालू यादव की पार्टी राजद में कर दिया।

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नवीन कुमार बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के रहने वाले हूं। आईआईएमएससी दिल्ली से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। अभी स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं। सामाजिक विषयों में रुचि है। बिहार को जानने और समझने की निरंतर कोशिश जारी है।

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