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सुपौल: 16 साल से रास्ते का इंतजार कर रहा विद्यालय, सीएम का दौरा भी बेअसर

सुपौल जिले की माल्हनी पंचायत के वार्ड नंबर 10 यानी सिमरा टोला स्थित प्राथमिक विद्यालय में जाने के लिए पगडंडी वाला रास्ता है। बरसात के मौसम में उस रास्ते से जाने में काफी कठिनाई होती है।

Rahul Kr Gaurav Reported By Rahul Kumar Gaurav |
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कुछ महीने पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समाधान यात्रा निकाली थी। इस दौरान उन्होंने हर जिले के कुछ गांवों में जाकर लोगों से संवाद किया। इस यात्रा का उद्देश्य आॕन स्पाॕट लोगों की समस्याएं सुनना और समाधान करना था। जिन गांवों में उन्होंने दौरा किया, उनमें सुपौल जिले का मल्हनी गांव भी शामिल था।

लेकिन, मुख्यमंत्री की यात्रा के बावजूद इस पंचायत के एक स्कूल के लिए एक अदद सड़क नहीं मिल पाई। जबकि मल्हनी गांव के ही दूसरे स्कूल को रंगा गया था।

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मल्हनी गांव के रविंद्र कुमार बताते हैं, “मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आने की वजह से गांव की सूरत ही बदल गई। जनवरी महीने में हर दिन कोई न कोई अधिकारी हमारे गांव आते थे। कहीं शौचालय का निर्माण कराया जा रहा था, तो कहीं सोख्ता का। इसके बावजूद गांव के इस विद्यालय को रास्ता नहीं मिल पाया। पिछले 16 सालों से कई चिट्ठी और आवेदन लिखे जा चुके हैं। फिर भी इस संकरे रास्ते के माध्यम से छात्रों को विद्यालय तक जाना पड़ता है।”


सुपौल जिले की माल्हनी पंचायत के वार्ड नंबर 10 यानी सिमरा टोला स्थित प्राथमिक विद्यालय में जाने के लिए पगडंडी वाला रास्ता है। बरसात के मौसम में उस रास्ते से जाने में काफी कठिनाई होती है। प्राथमिक स्कूल की स्थापना 16 साल पहले यानी 2006 में हुई थी।

दान में दिया गया था स्कूल

मल्हनी पंचायत निवासी बिन्दा शुक्ला ने इस स्कूल के निर्माण के लिए 2 कट्ठा जमीन दान में दी थी। बिन्दा शुक्ला बताते हैं, “मुझे लगा स्कूल बन जाने के बाद बगल वाले लोग भी अपनी जमीन देंगे। लेकिन, आज स्थिति दयनीय और निंदनीय है। छोटा सा रास्ता है, बगल में पानी लगा रहता है। कई बच्चे दौड़ने के क्रम में गिर भी जाते हैं।”

बिन्दा शुक्ला को जमीन देने के बाद इस बात का मलाल है कि स्कूल के नाम को उनके पूर्वज के नाम पर नहीं रखा गया है, जबकि उस वक्त कई स्कूलों का नाम गांव के लोगों के नाम पर रखा जाता था।

Panchayat Sarkar Bhawan Malhani

स्कूल के पदास्थापित शिक्षक के मुताबिक, विद्यालय में छह कमरे का भवन, दो शौचालय और एक चापाकल का निर्माण शिक्षा विभाग द्वारा कराया गया है। विद्यालय में एक प्रधानाध्यापिका के साथ एक शिक्षिका और एक शिक्षक की नियुक्ति है। कक्षा एक से पांचवीं तक की पढ़ाई होती है, जिसमें लगभग 100 छात्रों का नामांकन इस स्कूल में है। इनमें से 70 से 75 छात्र रोज आते हैं।

मुआवजा मिलने पर तैयार हुए थे जमींदार

गांव के ही स्थानीय नेता नाम नहीं बताने की शर्त पर पूरी कहानी बताते हैं, “साल 2017 में स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा कई अधिकारियों को आवेदन दिया गया था। लेकिन, कोई फायदा नहीं हुआ फिर 2018 में छात्रों और ग्रामीणों के द्वारा सहरसा-सुपौल मुख्य मार्ग को ही जाम कर दिया, जो हमारे गांव का ही मुख्य मार्ग है।”

वह आगे कहते हैं, “इसके बाद तत्कालीन वीडियो और थानाध्यक्ष ने रास्ता देने का भरोसा दिला कर जाम खत्म करवा दिया। फिर प्रधानाध्यापिका के द्वारा अधिकारियों को चिट्ठी भिजवाई गई थी। इसमें जमीन के मालिक के द्वारा जमीन देने की बात लिखी गई थी। जमीन के मालिक मुआवजा देने पर जमीन देने के लिए तैयार हुए थे। लेकिन, कुछ नहीं हुआ। अभी भी स्कूल की हालत जस की तस है। अधिकारियों के द्वारा बार-बार आश्वासन दिया जाता है।”

विकास पर भारी राजनीति

बताया जा रहा है कि इस मामले में राजनीति भी हो रही और स्कूल के लिए रास्ते में अड़ंगे के पीछे स्थानीय राजनीति की भी भूमिका है, हालांकि इस पर कोई भी व्यक्ति कुछ भी बोलने से कतराता है।

मल्हनी के कई ग्रामीणों के मुताबिक, ग्रामीण राजनीति की वजह भी स्कूल के रास्ते का बाधक बन रही है। स्थानीय वैब पोर्टल पत्रकार विमलेंद्र बताते हैं, “मल्हनी गांव के पंचायत भवन को देखने के लिए इलाके के लोग आते है। 22 साल की युवा मुखिया ‘नूतन कुमारी’ जल जीवन हरियाली अभियान और जीविका को लेकर बेहतरीन काम की है। समाधान यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पंचायत के कई स्कूल का दौरा किया था। इसके बावजूद भी गांव के मध्य में स्थित स्कूल की ऐसी स्थिति क्यों है? क्योंकि ग्रामीण राजनीति विकास पर हावी है। नीतीश कुमार शायद उस स्कूल का दौरा करते तो स्थिति में सुधार हो जाती।”

मुखिया, प्रधानाध्यापिका और अधिकारी क्या कहते हैं

स्कूल की प्रधानाध्यापिका आशा कुमारी बताती है, “हमने कई बार अपने वरीय अधिकारी को स्कूल से संबंधित कागज और आवेदन दिया है। लेकिन आप देख ही रहे हैं। स्कूल की चारों तरफ जमीन मालिकों के द्वारा खेती की जाती हैं। रास्ते के बगल में पानी का अच्छा खासा जमाव रहता है, इसलिए बरसात में बच्चों का आना जाना काफी मुश्किल हो जाता है।”

“विद्यालय के द्वारा पिछले वर्ष पगडंडी के अगल-बगल मिट्टी डालकर रास्ता बनाया गया था। पहले तो स्थिति ऐसी हो जाती थी कि किसी निजी दरवाजे के सामने विद्यालय संचालित करवाना पड़ता था। ”

वहीं, मल्हनी पंचायत की 22 वर्षीय मुखिया नूतन कुमारी बताती है, “कक्षा 5 तक के छात्र इस स्कूल में पढ़ते हैं। ऐसे में छोटे बच्चे को रास्ता पार करने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण व विद्यालय प्रबंधन समिति के द्वारा शिक्षा विभाग के अधिकारी को आवेदन दिया गया है। आगे भी हम इस विषय पर शिक्षा विभाग के अधिकारी से बात करेंगे।”

जिला शिक्षा पदाधिकारी सुरेंद्र प्रसाद बताते हैं कि प्रधानाध्यापक से बात कर रास्ते के मामले में जल्द ही काम करेंगे।

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एल एन एम आई पटना और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर बिहार से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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