2 अक्टूबर 2019 को मोदी सरकार ने देश सहित बिहार को बड़े ही धूमधाम के साथ खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया। लेकिन, राज्य के किशनगंज जिला अंतर्गत पोठिया प्रखंड की परलाबाड़ी पंचायत के छगलिया मध्य विद्यालय के बच्चे आज भी खुले में ही शौच करने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं यह विद्यालय गावों से दूर खेतों में बसा है, जहाँ तक पहुँचने के लिए गड्ढा नुमा एक कच्ची सड़क है। विद्यालय रमजान नहर के तट पर है, लेकिन परिसर की घेराबंदी तक नहीं की गई है, जिससे अभिभावक सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं।
स्कूल के पोषक क्षेत्र यानी वो इलाका जो इस स्कूल से लाभान्वित होता है, के एक अभिभावक जाहिदुर रहमान समस्याएं गिनाते नहीं थक रहे हैं। वे चाहते हैं कि विद्यालय को बेहतर बनाने के लिए समस्याओं को दूर किया जाना चाहिए।
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निकट के गाँव छगलिया निवासी सातवीं कक्षा के छात्र एहसान बताते हैं कि बड़े बच्चे तो किसी तरह आ जाते हैं, लेकिन रास्ता ख़राब होने के कारण छोटे बच्चे डर के मारे स्कूल आते ही नहीं। वे आगे बताते हैं कि शौचालय की बुरी स्थिति के कारण बच्चियां भी बहुत कम ही स्कूल आती हैं।
एहसान के सहपाठी अजीज आलम डूमरमनी गाँव से स्कूल आते हैं, जिनके आने-जाने के एक मात्र रास्ते में तीन बड़े बड़े गड्ढे हैं। लेकिन पढ़ाई को लेकर इनका जूनून इन्हें किसी भी खतरे को मोल लेने को प्रोत्साहित करता है। ये और बात है कि इनकी समस्याएं इनकी कठिनाइयां सरकारी तंत्र के विफलता का नतीजा हैं।
स्कूल में ही हमारी मुलाकात फजीलत नाम के बच्चे से हुई, शौचालय के सवाल पर पहले तो कतराने लगे, फिर हिम्मत कर दबी जबान में बताने लगे की पिछले दो सालों से शौचालय ऐसे ही ख़राब पड़ा हुआ है, सभी बच्चे शौच के लिए खेतों की तरफ जाने को मजबूर हैं।
उत्क्रमित मध्य विद्यालय के पदस्थापित प्रधानाध्यापक मनोज कुमार सिंह ने बताया कि चारों ओर से विद्यालय खुला होने के कारण इसके संचालन में काफी कठिनाइयां आ रही हैं, चहारदिवारी नहीं होने के कारण बाहर खेल रहे बच्चों को लेकर हमें काफी सतर्क रहना पड़ता है वहीं, शौचालय भी इसी कारण बर्बाद हो गया है। आगे उन्होंने बताया कि यह विद्यालय और भी बेहतर बन सकता है, अगर इसे पक्की सड़क के माध्यम से पोषक क्षेत्र के गावों से जोड़ दिए जाए।
इस मामले को लेकर स्थानीय मुखिया आलिया खातून के बेटे शमीम रब्बानी ने बताया कि कार्य बहुत बड़ा है, इसे पंचायत के मध्यम से कराना मुश्किल है।
अभिभावकों से लेकर बच्चों की उम्मीदें सरकारी तंत्र पर टिकी हैं, लेकिन देखने वाली बात यह होगी की प्रशासन विद्यालयों का सर्वांगीण विकास करने में रूचि रखता भी है या फिर जिले में 35 मॉडल स्कूल की आड़ में सैकड़ों विद्यालयों की समस्यों को कब्र खोद कर दफ़्न कर रख देना चाहती है।
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