अररिया जिले के इस गांव के लोग सामाजिक भेदभाव के कारण अपना धर्म परिवर्तन कर जिंदगी बिता रहे हैं।
दरअसल, खास हलहलिया नाम के इस गांव में महादलित मुसहर समुदाय के लोग रहते हैं। इन लोगों ने सामाजिक बंधन को तोड़ कर सिख धर्म को अपनाने का काम किया है। आज इस गांव में एक गुरुद्वारा भी है, जहां रोजाना सुबह शाम शब्द कीर्तन भी होता है और विशेष मौकों पर लंगर का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें दूसरी जाति के लोग भी आते हैं।
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फारबिसगंज अनुमंडल की हलहलिया पंचायत के इस गांव का नाम भी लोगों ने सरदार टोला रख दिया है। दरअसल, इस गांव में अभी 300 के करीब सिख धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। जिन्होंने इस धर्म को अपनाया है, उनकी वेशभूषा भी बदल गई है। रहन-सहन के स्तर में भी बदलाव आया है। सिख धर्म अपना चुकी महिलाएं अब सिखों की तरह सलवार कमीज पहनती और कृपाण लटकाए रहती हैं। बच्चे भी केस बढ़ाकर पगड़ी बांधे रहते हैं।
30 साल पहले गए थे पंजाब, बन गए सिख
इस गांव के पूर्व मुखिया नारायण सिंह ज्ञानी बताते हैं कि आज से 30 वर्ष पहले वह रोजी रोटी के लिए पंजाब गए थे, जहां वह मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार को पाल रहे थे। नारायण सिंह ज्ञानी ने बताया, “वहां मुझे सबसे अच्छी बात यह लगी कि सिख समुदाय के लोग हम लोगों को भी साथ बैठाकर खाना खिलाते थे। रहन-सहन भी अपने जैसा ही रखते थे। वहां तो कोई भेदभाव था ही नहीं। जबकि ठीक इसके विपरीत बिहार के कई गांवों में हम लोगों जैसे महादलित के साथ भेदभाव होता और लोग दूरी बनाकर रहते हैं जबकि हम लोग भी उन्हीं की तरह एक इंसान हैं। इन सभी बातों को जब मैंने पंजाब में महसूस किया तो अपने परिवार के साथ मिलकर एक बड़ा फैसला लिया कि हम सिख धर्म को अपनाएंगे। फिर हम लोगों ने सिख धर्म को अपना लिया।”
“हमलोग पूरा परिवार गुरुद्वारा जाने लगे। शब्द कीर्तन सुनने लगे। इसके बाद मैंने वहां आहिस्ता आहिस्ता गुरुमुखी भाषा सीखी और गुरु ग्रंथ साहिब को पढ़ना भी शुरू किया। तब मुझे सारी बातें समझ में आईं कि इस धर्म में कोई भी ऐसा भेदभाव नहीं है। हमारे साथ कई और लोग जो पंजाब में मजदूरी करते थे, उन लोगों ने भी आहिस्ता आहिस्ता धर्म परिवर्तन करना शुरू कर दिया और सिख धर्म को अपना लिया,” उन्होंने कहा।
जब वापस वे अपने गांव खास हलहलिया पहुंचे, तो थोड़ी परेशानी हुई। लोगों ने कई तरह के ताने मारे। लेकिन उन सबों को अनदेखा कर उन्होंने यहां एक गुरुद्वारे का निर्माण किया, जहां रोजाना शब्द कीर्तन शुरू हो गया। जब दूसरी जाति के लोगों ने इस बात को देखा तो उनके समझ में आया कि यह धर्म काफी साफ सुथरा है, तो उनका गांव पूरी तरह से सिख धर्म को मानने वाला हो गया।
इस समुदाय के बच्चे शिक्षा से वंचित थे, तो उन्हें शिक्षा से जोड़ने का काम किया गया। बच्चे शिक्षित होने लगे तो महिलाओं में भी बदलाव आया। बोलचाल के साथ रहन-सहन में भी फर्क आने लगा। “यह देखकर दूसरे धर्म को मानने वाले लोग भी हम लोगों का सम्मान करने लगे और आहिस्ता आहिस्ता गुरुद्वारा पहुंच कर इस शब्द कीर्तन में भी भाग लेने लगे,” नारायण सिंह ज्ञानी ने बताया।
गुरुद्वारा के कैंपस में खेल रहे कुछ बच्चों से जब उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने अपना नाम हरनाम सिंह, विशाल सिंह, गुरप्रीत सिंह आदि बताया। इन बच्चों ने बताया, “हम लोग अब पढ़ाई करते हैं। इससे हम लोगों में काफी बदलाव आया है।”
जनगणना में परेशानी
सिख होने से इनके सामने एक परेशानी खड़ी हो गई है। जब जातीय जनगणना शुरू हुई तो उन्हें लगने लगा है कि उन लोगों का जो आधार कार्ड या वोटर आईडी हैं, उसमें उनकी पहचान मुसहर जाति है, तो कहीं सरकार अपनी योजनाओं से उन्हें वंचित न कर दे।
नारायण सिंह ने बताया कि वह हलहलिया पंचायत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और लोगों ने उन्हें मुखिया भी बनाया था। “अब जातीय जनगणना में हम लोग मुसहर समुदाय से जुड़े हैं। हम लोगों की पहले जो जनगणना हुई थी, उसके आधार पर हमलोग मुसहर समुदाय से ही जुड़े हैं। नाम सिर्फ बदल गए हैं। लेकिन, जाति अभी भी पुराना ही है। इसलिए अंदर से थोड़ा डर लग रहा है। देखते हैं, सरकार हम लोगों को योजना का लाभ देती है कि नहीं,” वह कहते हैं।
पास के टोला के रहने वाले राजीव कुमार भगत ने बताया कि आज से दो दशक पहले इस गांव की स्थिति काफी दयनीय थी। यहां मुसहर समाज के लोग रहते थे। यह सभी दूसरे के खेतों में मजदूरी का काम किया करते थे। लेकिन जब से इन लोगों ने सिख धर्म को अपनाया है इनमें काफी बदलाव आया है। उनके अंदर साफ-सफाई नियमित पूजा पाठ करने जैसी बातें देखने को मिलती है। हम लोग भी समय-समय पर गुरुद्वारे में जाते हैं।
वह आगे कहते हैं, “अभी हाल ही में गुरु गोविंद सिंह के प्रकाशोत्सव को लेकर गुरुद्वारे में बड़ा उत्सव मनाया गया था। 3 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में न सिर्फ आसपास के जिले के सिख बल्कि दूसरे प्रांतों से भी सिख समुदाय के लोग आए थे। और यहां का माहौल काफी अच्छा रहा। कार्यक्रम के अंतिम दिन विशाल लंगर का आयोजन भी किया गया, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए।
गौरतलब हो कि मुसहर समुदाय के लोगों का धर्म परिवर्तन करना, इस जिले में पहले काफी सवालों के घेरे में था। लेकिन आहिस्ता आहिस्ता लोगों ने उन्हें अपनाना शुरू कर दिया है। अब ये लोग भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ गए हैं। उनके रहन-सहन, खान-पान के साथ-साथ अब जीवन के स्तर में भी काफी बदलाव आया है।
यहां यह भी बता दें कि कटिहार जिले के काढ़ागोला में भी आज से कई दशक पहले लोगों ने सिख धर्म को अपनाया था और वहां के लोग आज देश के कई बड़े जगह पर आसीन हैं।
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