शराबबंदी कानून से जुड़े दो साल पुराने एक मामले में पटना हाईकोर्ट ने आबकारी विभाग को फटकार लगाई और जुर्माने की राशि भी घटा दी।
पटना हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि महज 600 मिलीलीटर शराब की बरामदगी के लिए 8 लाख रुपये का जुर्माना कठोर फैसला है। “हमारा विचार है कि महज 600 एमएल अवैध शराब की बरामदगी पर शराब मिलने वाली गाड़ी की बीमित राशि का 50 प्रतिशत हिस्सा यानी लगभग 8 लाख रुपये बहुत ज्यादा और कठोर भी है। ऐसे में जुर्माने की राशि घटाकर 25000 रुपये की जाती है,” अदालत ने अपने फैसले में कहा।
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कोर्ट ने आगे कहा कि फैसले की प्रति मिलने के दो हफ्ते के भीतर अगर वाहन का मालिक जुर्माने की राशि जमा कर देता है, तो गाड़ी उसके हवाले करनी होगी और अगर जुर्माना नहीं दिया जाता है, तो जिला मजिस्ट्रेट नीलामी की प्रक्रिया में जाएंगे।
हालांकि, मद्य निषेध विभाग के सचिव ने विभाग की कार्रवाई को सही ठहराते हुए दलील दी कि चूंकि जिस वाहन से शराब बरामद हुई है, उस वाहन का बीमा 17,42,135 रुपये का है, इसलिए बीमा राशि का आधा हिस्सा जुर्माने के रूप में वसूलने का निर्णय लिया गया है।
क्या है पूरा मामला
मामला जमुई जिले के चकाई थाना क्षेत्र का है। एफआईआर के मुताबिक, 5 जुलाई 2022 को चकाई थाना क्षेत्र के महेशपत्थर चेकपोस्ट पर पुलिस के जवान वाहनों की चेकिंग कर रहे थे। चेकिंग के दौरान पुलिस ने सफेद रंग की स्कॉर्पियो को रोका। एफआईआर के अनुसार, उक्त वाहन बैरियर तोड़कर भाग रहा था, तभी बल प्रयोग कर वाहन को रोका गया। वाहन में वाहन मालिक अनिल यादव समेत चार लोग सवार थे। “सभी लोगों ने पुलिस से धक्कामुक्की की, तो बल प्रयोग कर सभी को पकड़ा गया। उनके मुंह से शराब की गंध आ रही थी। वाहन की जांच की गई, तो उसमें से एक प्लास्टिक का पाउच निकला, जिसमें 600 एमएल शराब थी,” एफआईआर में कहा गया।
गाड़ी की जब्ती के मामले में वाहन पर जुर्माना लगाया जाता है और जुर्माने की राशि वाहन मालिक द्वारा जमा करने पर गाड़ी छोड़ दी जाती है, लेकिन अगर वाहन मालिक जुर्माना नहीं देता है, तो वाहन की नीलामी की जाती है।
मद्य निषेध व उत्पाद विभाग ने जब्त वाहन पर 8 लाख रुपये जुर्माना लगाने का आदेश दिया क्योंकि वाहन का 17 लाख रुपये का बीमा हुआ था। वाहन मालिक अनिल यादव, जो सीतामढ़ी जिले के रहने वाले हैं, ने साल 2022 में ही पहली बार कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर हस्तक्षेप की अपील की थी, तो कोर्ट ने प्रशासन को जुर्माना लेकर वाहन छोड़ने का आदेश दिया था।
बाद में अनिल यादव फिर कोर्ट गये और जुर्माने की राशि को लेकर सवाल उठाये। उन्होंने याचिका दायर कर कहा कि महज 600 एमएल शराब मिलने पर वाहन पर बीमित राशि का 50 प्रतिशत हिस्सा जुर्माना लगाना कठोरता और कानून की भावना के खिलाफ है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “अदालत में पेश की गई दलीलों के आधार पर हमें लगता है कि वाहन की जब्ती के जिला मजिस्ट्रेट, एक्साइज कमिश्नर, रिविजनल अथॉरिटी मद्यनिषेद विभाग के आदेश कानून की नजर में टिकने लायक नहीं है।”
जुर्माने की राशि तय किये जाने के दो-तीन महीनों के भीतर ही अनिल यादव को उनका वाहन सौंप दिया गया था, लेकिन उनसे करीब 8 लाख रुपये की संपत्ति के कागजात जमा कराये गये थे।
अनिल कहते हैं, “8 लाख रुपये जुर्माना बहुत ज्यादा था और इसके खिलाफ हम डीएम से लेकर अन्य अधिकारियों तक से मिले थे, लेकिन कहीं से कोई सुनवाई नहीं हुई, तो हारकर हम कोर्ट में गये।”
उन्होंने आगे कहा, “वाहन दो-तीन महीनों के भीतर मिल गये थे, लेकिन हमें अपनी जमीन अन्य संपत्तियों से जुड़े कागजात जमा करने पड़े थे। अब जब कोर्ट ने जुर्माने की राशि घटना कर 25000 रुपये कर दी है, तो हमें अपनी संपत्तियों के कागजात वापस मिल जाएंगे।
शराबबंदी कानून के दुरुपयोग के अनगिनत मामले
ये पहली बार नहीं है जब पटना हाईकोर्ट ने शराबबंदी कानून के तहत की गई कार्रवाइयों की अलोचना की है। कई मामलों में ये भी सामने आया है कि पुलिस प्रशासन ने शराबबंदी कानून की गलत व्याख्या कर कार्रवाई कर दी और बाद में अदालत में उसे फजीहत झेलनी पड़ी। कुछ मामलों में तो यह भी देखा गया है कि पुलिस प्रशासन तयशुदा अवधि के काफी बाद तक जरूरी कार्रवाई नहीं करता है।
इसी साल फरवरी में शराबबंदी से जुड़े एक मामले में पटना हाईकोर्ट ने जब्त हाजमोले को अविलम्ब छोड़ने का आदेश दिया था और कहा था कि अगर ऐसा नहीं हुआ, तो दोषी अधिकारियों के खिलाफ अवमानना का वाद चलाया जाएगा।
दरअसल, मुजफ्फरपुर पुलिस ने एक वाहन से शराब की बड़ी खेप के साथ भारी मात्रा में हाजमोला बरामद किया था, जो उत्तर प्रदेश जाना था। हाजमोला जिनके यहां जाना था, उन्होंने पुलिस प्रशासन से गुहार लगाई कि हाजमोला छोड़ दिया जाए, प्रशासन ने उनकी एक नहीं सुनी। आखिर में मामला हाईकोर्ट पहुंचा, तो अदालत ने प्रशासन को कड़ी फटकार लगा दी।
मुजफ्फरपुर जिले के एक मामले में 30 अगस्त 2016 को होटल के एक कमरे से शराब की बरामदगी हुई थी। उक्त होटल को होटल मालिक ने किसी अन्य व्यक्ति को लीज पर दिया था। ऐसे में जब शराब बरामद हुई, तो लीज पर होटल लेने वाले व्यक्ति पर कार्रवाई हुई, लेकिन पुलिस ने होटल के उस कमरे को भी राज्यसात कर दिया, जहां से शराब मिली थी। कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए कहा था कि जब प्राथमिकी और अनुसंधान में मकान मालिक की संलिप्तता नहीं मिली, तो फिर उसके होटल वाले भवन को सील करना गैरकानूनी है।
इसी तरह के एक अन्य मामले में पुलिस शराब के साथ एक व्यक्ति के घर से नकदी भी जब्त कर ली थी। वह नकद रकम अब भी थाने में रखी हुई है। आरोपी व्यक्ति नकदी छोड़े जाने के लिए कोर्ट से लेकर प्रशासन तक से गुहार लगा चुका है, लेकिन अब तक नकदी नहीं छोड़ी गई है।
शराबबंदी के कई मामलों में प्रशासन की कार्रवाई इतनी गैरवाजिब होती है कि पटना हाईकोर्ट को मजबूर होकर जुर्माना तक लगाना पड़ता है। अब तक कई जिलों के मजिस्ट्रेट पर जुर्माना लगाया जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद शराबबंदी कानून की अनदेखी जारी है।
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