बिहार के किशनगंज ज़िलांतर्गत पोठिया प्रखंड की परलाबाड़ी पंचायत स्थित डूमरमनी और छगलिया को स्कूल से जोड़ने वाली सड़क कच्ची गड्ढों से भरी है। बच्चों की सुविधा के लिए सड़क पर मिट्टी डालने का काम चल रहा था। कार्य में गुणवत्ता की कमी देख स्थानीय लोगों ने कार्य रुकवा दिया।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि सड़क पर ठीक से मिट्टी डालने के बजाय सिर्फ हल्की मिट्टी छिड़की जा रही थी, जिससे सड़क सुविधा बेहतर होने के बजाय आने जाने वालों के लिए परेशानी बढ़ गई। उनका आरोप है कि अनियमितता का विरोध करने पर उन्हें एफआईआर की धमकी दी गई।
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यह सड़क बच्चों के स्कूल जाने का एकमात्र रास्ता है। रास्ते में कई जगह बड़े बड़े गड्ढे हैं जिससे स्कूल आने जाने वाले बच्चों पर हादसे का खतरा बना रहता है।
पांचवीं कक्षा का छात्र रमज़ान रोज़ इसी रास्ते से स्कूल जाता है, लेकिन धूल और मिट्टी के कारण उसकी चप्पल अक्सर टूट जाती है। उसका कहना है कि मिट्टी डालने से पहले सड़क की हालत बेहतर थी लेकिन अब स्कूल जाने में काफी कठिनाई आती है।
परलाबाड़ी पंचायत की वार्ड संख्या 10 में मनरेगा के तहत वर्ष 2024-25 में दो सड़क परियोजनाएँ स्वीकृत की गईं। पहली परियोजना के तहत डुमरमनी बेकी धार से उत्क्रमित मध्य विद्यालय छगलिया होते हुए रफीक के घर तक और दूसरी परियोजना के तहत असलम के घर से मोजीब की जमीन तक कच्ची सड़क पर मिट्टी डालने का काम होना था। दोनों परियोजनाएँ आपस में ओवरलैप कर रही हैं, हालाँकि अब तक कार्य ठीक ढंग से नहीं किया जा सका है।
मनरेगा की वेबसाइट से मिले आंकड़ों के अनुसार, डुमरमनी बेकी धार से रफीक के घर तक वाली परियोजना में अगस्त 2024 से काम शुरू हुआ जो अब ख़त्म हो चुका है। इसमें 4,01,944 रुपये खर्च हुए ।
वहीं, असलम के घर से मोजीब की जमीन तक वाली परियोजना में इसी वर्ष 10 जनवरी को काम शुरू हुआ जिसे अनियमितता के आरोप में बंद कर दिया गया। काम बंद होने तक इसमें 2,21,040 रुपये खर्च हुए । इस परियोजना की अनुमानित लागत 4.7 लाख रुपये थी ।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि तस्वीर खींचते समय गाँव के मज़दूरों को बुलाया जाता है, लेकिन काम दूसरे गाँव के मज़दूरों से करवाया जाता है। डूमरमनी और छगलिया के मज़दूरों के पास श्रम कार्ड होने के बावजूद उन्हें काम नहीं दिया जा रहा है।
मिट्टी का काम सही तरीके से न होने के कारण ट्रैक्टर और अन्य वाहन गाँव तक नहीं आ पाते, परिणाम स्वरूप ग्रामीणों को अनाज कंधों पर लादकर लाना पड़ता है। मजबूर होकर ग्रामीणों ने खुद ही गड्ढे भरने की कोशिश की और कई जगहों पर अपने खर्चे से मिट्टी डलवाई।
इस मामले में हमने मनरेगा PO से बात की, लेकिन वह इस पूरे मामले से अनजान दिखे। हालांकि, उन्होंने तुरंत जांच करवाने का आश्वासन दिया।
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