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बिहार में कितनी भाषाएं बोली जाती है? जानिए किन इलाकों में कौन सी भाषा बोली जाती है

जानिए कौन-कौन सी भाषाएं बोली जाती हैं बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में। मगही, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका, बज्जिका, सुरजापुरी और उर्दू-हिंदी मिश्रित भाषाएं यहाँ प्रमुख हैं, जबकि हिंदी और उर्दू बिहार की राजभाषाएं हैं।

Seemanchal Library Foundation founder Saquib Ahmed Reported By Saquib Ahmed |
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विविधताओं से भरे बिहार में भाषा को लेकर भी कमाल की विविधता है। बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों में मुख्यतः मगही, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका, बज्जिका, सुरजापुरी और उर्दू-हिंदी मिश्रित भाषाएं बोली जाती है।

हिंदी और उर्दू बिहार की राजभाषाएं हैं। पठन-पाठन, कार्यक्रमों और कार्यालयों में मुख्यतः इन्हीं दो भाषाओं का उपयोग होता है। अंग्रेजी भाषा का उपयोग ज़्यादातर अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों तक सीमित है।

2011 की जनगणना के मुताबिक़, बिहार में हिंदी – 2,65,90,625, भोजपुरी – 2,58,81,691, मैथिली – 1,30,63,042, मगही – 1,13,16,313, उर्दू – 87,70,002, सुरजापुरी – 18,57,930 और बंगाली – 8,10,771 लोगों की मातृभाषा है।


बज्जिका और अंगिका का जनगणना में अलग से भाषा कोड नहीं था, इन भाषाओं को बोलने वाले अलग भाषा कोड की मांग वर्षों से कर रहे हैं।

मगही भाषा

मगही इंडो-आर्यन भाषा के पूर्वी समूह की भाषा है, जो पूर्वी भारत में बोली जाती है। मगही, मगध जनपद में बोली जाने वाली भाषा का आधुनिक स्वरूप है, जो कभी प्राचीन मगध साम्राज्य की राजभाषा, राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा के रूप में प्रचलित थी।

मगही भाषा का इतिहास

मगही का इतिहास 600 ई. पूर्व का है। मगध की सभ्यता और संस्कृति की वाहिका के रूप में इस भाषा का महत्वपूर्ण स्थान सुरक्षित रहा है।

मगही प्राचीन महाजनपद की प्रमुख भाषा हुआ करती थी और आज भी मगध जनपद में यह भाषा बोली जाती है। मगही भाषा कैथी लिपि में लिखी जाती थी, पर अब इसे देवनागरी में लिखी जाती है।

मगही का विकास “मागधी’ शब्द से हुआ है। सुनीति कुमार चटर्जी ने पश्चिमी मागधी अपभ्रंश से बिहारी बोलियों को विकसित माना है। दोहों की भाषा और मगही भाषा की तुलना से यह तथ्य सुनिश्चित होता है कि मगही सिद्धों की भाषा से विकसित हुई है। मगही का स्वतंत्र भाषा तत्व है।

एंग्लो-इंडियन भाषाविद ग्रियर्सन ने ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ में मगही को मैथिली और भोजपुरी के साथ बिहारी भाषा बताया है और उन्होंने मगही के दो रुपों को स्वीकार किया है:

(क) पूर्वी मगही; तथा
(ख) शुद्ध मगही।

1903 में छपी ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ के अनुसार, “शुद्ध मगही भाषा तत्कालीन गया ज़िले, हज़ारीबाग़ ज़िले के पूरे हिस्से और पलामू, भागलपुर, मुंगेर ज़िले के कुछ हिस्सों में बोली जाती थी। पूर्वी मगही का क्षेत्र हजारीबाग, मानभूम, दक्षिणभूम, दक्षिणपूर्व रांची तथा उड़ीसा में स्थित खारसावां एवं मयुरभंज के कुछ भाग तथा छत्तीसगढ़ के वामड़ा तथा मालदा जिले का दक्षिणी क्षेत्र था।”

ग्रियर्सन आगे लिखते हैं, “अन्य भारतीय भाषाओं के वक्ताओं द्वारा मगही की निंदा की जाती है कि मगही इसका इस्तेमाल करने वाले लोगों की तरह असभ्य और गंवार हैं।”

भोलानाथ तिवारी ने मगही के चार रूपों का निर्धारण हिन्दी भाषा नामक पुस्तक में किया है :

(क) आदर्श-मगही

(ख) पूर्वी-मगही

(ग) जंगली-मगही

(घ) सोनतरी मगही

मगही को जनगणना में हिंदी के अंदर उपभाषा के रूप में गिनती की जाती है। यह संविधान की आठवीं अनुसूची की भाषा नहीं है, मगही को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग बहुत सालों से हो रही है और हालिया दिनों में इसे बोलने वाले, इसके लिए जमीनी स्तर पर जन आंदोलन चलाने की बातें कर रहे हैं।

तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के कार्यकाल में 1981 में मगही भाषा के प्रोत्साहन के लिए, मगही अकादमी की स्थापना की गयी थी, वर्तमान में पटना के शास्त्रीनगर में मगही अकादमी का दफ्तर है।

वर्तमान में मगही भाषा मुख्यतः बिहार के पटना, गया, औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद, नालंदा, शेखपुरा, लखीसराय और अरवल एवं झारखण्ड, पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है।

2011 की जनगणना के अनुसार पूरे भारत में 1,27,06,825, बिहार में 1,13,16,313 और झारखंड में 13,67,337 लोगों की मातृभाषा मगही है।

बिहार के गया ज़िले में 18,16,894, नवादा ज़िले में 12,32,267, औरंगाबाद ज़िले में 17,70,059, जहानाबाद ज़िले में 7,42,724, अरवल ज़िले में 6,06,459, पटना ज़िले में 27,05,883, नालंदा ज़िले में 16,19,113, शेखपुरा ज़िले में 2,42,869 और लखीसराय ज़िले में 4,70,050 लोग मगही बोलते हैं।

भोजपुरी भाषा

भोजपुरी इंडो-आर्यन भाषा के पूर्वी समूह की भाषा है जो उत्तरी भारत के गंगा के मैदानी इलाक़ों और साथ ही नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाती है। इस भाषा का मूल बिहार के भोजपुर से जोड़ा जाता है।

भोजपुरी का इतिहास

भोजपुरी, बिहार के अन्य भाषाओं के साथ सामान्य वंश और संरचनात्मक समानताएं साझा करता है, जैसे कि मगही, अंगिका, बज्जिका और मैथिली। शायद इसी वजह से ग्रियर्सन ने इन सारी भाषाओं को एक ही भाषा ‘बिहारी’ भाषा के रूप में वर्गीकृत किया है और भोजपुरी को हिंदी के बजाय बांग्ला के ज़्यादा नज़दीक बताया है।

लेखक उदय नारायण तिवारी अपनी किताब “दी ओरिजिन एंड डेवलपमेंट ऑफ़ भोजपुरी” में लिखते हैं, “भोजपुरी भोज से आया है, उज्जैन के भोज, भोजपुर के क्षेत्र में आकर बस गए थे।”

भोजपुरी की कोई अपनी अलग लिपि नहीं है, इसको लिखने के लिए अतीत से अब तक लोग कई लिपि को अपना चुके हैं। पहले भोजपुरी लिखने के लिए कैथी, महाजनी और नस्तलीक़ लिपि का उपयोग किया जा चुका है और आजकल देवनागरी लिपि में भोजपुरी को लिखा जाता है।

हिंदुस्तान में भोजपुरी को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है। इसको हिंदी के अंदर उप-भाषा के रूप में जनगणना में गिनती की जाती है। किसी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने या न करने का फैसला गृह मंत्रालय के अंदर आता है

वर्ष 1960 से भोजपुरी को भारत के संविधान के आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की मांग लगातार हो रही है। इसको लेकर संसद में कुल 18 बार प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया जा चुका है। साल 2012 में तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने आश्वासन दिया था कि वह भोजपुरी बोलने वालों की भावना समझते हैं। उन्होंने जरूरी कदम उठाने की बात कही थी।

भोजपुरी अकादमी

बिहार में भोजपुरी भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पांडेय की सरकार में भोजपुरी अकादमी की स्थापना की गई थी।

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साल 2014 में उत्तर प्रदेश भोजपुरी अकादमी का गठन किया और वह इसके पहले चेयरमैन थे।

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मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली की स्थापना सन् 2008 में तत्कालीन शीला दीक्षित की सरकार में हुई थी। यह दिल्ली सरकार का एक स्वायत्तशासी प्रतिष्ठान है। इसका उद्देश्य था- मैथिली व भोजपुरी भाषाओं व साहित्य-संस्कृति का विकास।

मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा वर्ष 2013 में मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद के अंतर्गत भोजपुरी साहित्य अकादमी का गठन किया गया है।

भारत के अलावा दुनिया के 15 से ज्यादा देशों में यह भाषा बोली जाती है, जिनमें मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, ब्रिटिश गुयाना, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, हॉलैंड, नेपाल और दक्षिण अमेरिका के कई द्वीप शामिल हैं।

भारत में भोजपुरी भाषी मुख्यतः पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार, उत्तरी-पूर्वी झारखण्ड, उत्तरी छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से और दक्षिणी नेपाल के निचले हिस्से में रहते हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार पूरे भारत में 5,05,79,447, बिहार में 2,58,81,691, उत्तर प्रदेश में 2,18,44,783 और झारखंड में 7,56,726 लोगों की मातृभाषा भोजपुरी है।

बिहार में भोजपुरी मुख्यतः भोजपुर, बक्सर, कैमूर, रोहतास, सारन, सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चम्पारण और पश्चिमी चम्पारण ज़िले के लोग बोलते हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार बिहार के भोजपुर ज़िले में 25,11,647, बक्सर ज़िले में 16,64,969, कैमूर ज़िले में 14,72,657, रोहतास ज़िले में 25,95,064, सारन ज़िल में 36,81,550, सिवान ज़िले में 31,09,288, गोपालगंज ज़िले में 24,61,733, पूर्वी चम्पारण ज़िले में 42,15,755 और पश्चिमी चम्पारण ज़िले में 36,14,989 लोग भोजपुरी को मातृभाषा मानते हैं।

मैथिली भाषा

मैथिली भाषा भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित 22 भाषाओं में से एक है। वर्ष 2004 से प्रभावी 92वें संविधान संशोधन अधिनियम में मैथिली को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। इससे पहले मैथिली बोलने वालों को हिंदी के अंदर वर्गीकृत किया जाता था।

मैथिली भाषा का इतिहास

इंडो-आर्यन भाषा समूह के पूर्वी बिहारी शाखा से मैथिली संबंधित है और इसे मगही एवं भोजपुरी भाषा के नजदीक माना जाता है। मैथिली भाषा का विकास मागधी प्राकृत से होने का दावा किया जाता है।

शुरुआती दौर में मैथिली को तिरहुता लिपि (मिथिलाक्षर) में लिखा जाता था और अब इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। तिरहुता एक अत्यंत प्राचीन लिपि है।

ग्रियर्सन ने पहली बार अपने ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ में बिहार में बोली जाने वाली भाषाओं को बिहारी कहा और मैथिली को भी इसका एक हिस्सा माना।

ग्रियर्सन आगे लिखते हैं, “संस्कृत और प्राकृत भाषा पर 1801 में लिखे अपने प्रसिद्ध निबंध में कोलब्रुक ने पहली बार मैथिलि को अलग बोली कहा और मैथिली का बंगला भाषा से संबंध बताया।”

मैथिली मुख्यतः बिहार, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बोली जाती है।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी का 1.12 प्रतिशत यानी 1,35,83,464 लोग अपनी मातृभाषा मैथिली मानते हैं। इनमें से 96.17 प्रतिशत बिहार, 1.02 प्रतिशत झारखण्ड, 0.91 प्रतिशत दिल्ली, 0.40 प्रतिशत उत्तराखंड और शेष अन्य राज्यों में रहते हैं।

मैथिलि भाषा बोलने वाले सबसे ज़्यादा बिहार में ही रहते हैं। बिहार में सबसे अधिक मैथिली बोलने वाले मधुबनी ज़िले में 37,72,386 रहते हैं, इसके बाद सुपौल ज़िले में 17,01,065, दरभंगा ज़िले में 28,64,405, सहरसा ज़िले में 13,08,935, मधेपुरा ज़िले में 7,69,211, समस्तीपुर ज़िले में 13,12,322, अररिया ज़िले में 5,78,391 और पूर्णिया ज़िले में 3,49,875 रहते हैं।

बिहार सरकार द्वारा राज्य में मैथिली के उत्थान एवं संरक्षण के लिए मैथिली अकादमी का संचालन किया जाता है।

मैथिली के प्रचार और संरक्षण के लिए समिति का गठन

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मैथिली भाषा और उसकी लिपियों के प्रचार और संरक्षण के लिए 2018 में एक समिति गठित की थी।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने फ़रवरी 2019 में समिति की निम्नलिखित सिफारिशों को लागू करने के लिए तत्काल कार्रवाई करने का फैसला लिया था –

  1. दरभंगा में किसी एक विश्वविद्यालय में लिपि और पांडुलिपि केंद्र स्थापित करना नामतः कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय या ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय।
  2. भारतीय भाषाओं के प्रौद्योगिकी विकास (टीडीआईएल) द्वारा मिथिलाक्षर की यूनिकोड लिपियों से संबंधित कार्य को शीघ्र पूरा करना, और
  3. मिथिलाक्षर लिपियों को पढ़ाने के लिए दृश्य-श्रव्य शिक्षण सामग्री तैयार करना।

अंगिका भाषा

अंगिका बिहार के ‘अंग’ क्षेत्र’ (अंग प्रदेश) में बोली जाने वाली एक भाषा है। इसे ‘आंगी’, ‘अंगभाषा’ या ‘चिका चिकि बोली’ भी कहा जाता है और यह पूर्वी इंडो-आर्यन भाषा समूह की भाषा है। अंगिका बिहार, झारखण्ड के कुछ ज़िलों और नेपाल के कुछ तराई क्षेत्रों में बोली जाती है। इसे पहले कैथी लिपि में लिखी जाती थी, अब देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।

बिहार में अंगिका मुख्यतः भागलपुर, जमुई, मुंगेर, खगड़िया, बेगुसराई और बांका में बोली जाती है। पहले ‘अंग देश’ या ‘चंपा देश’ से मशहूर भागलपुर जिले को अंग क्षेत्र का सांस्कृतिक केंद्र माना जाता है।

ग्रियर्सन ने ‘लिंगविस्टिक सर्वे ऑफ़ इंडिया’ में अंगिका को मैथिली की एक उपभाषा ‘चिका चिकी बोली’ माना है। इसके आधार पर मैथिली बोलने वाले अंगिका को इसी की एक उपभाषा मानते हैं लेकिन इसके इतर अंगिका भाषी लोग इसको एक अलग भाषा मानते हैं।

अंगिका को भारत के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है। अंगिका बोलने वाले इसकी मांग बहुत वर्षों से करते आ रहे हैं। अंगिका का जनगणना में अपना भाषा कोड नहीं है, अंगिका को मातृभाषा बताने वालों की हिंदी के अंदर ‘अन्य’ उपभाषा में गणना की जाती है।

खुशबू कुमारी और रमनजनेय कुमार उपाध्याय अपने शोध पत्र “सोशियो-कल्चरल आस्पेक्ट ऑफ़ अंगिका” में लिखते हैं, “यह सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि अंगिका, जिसे ‘स्वतंत्र भाषा’ के रूप में इतनी प्रमुखता से मान्यता नहीं मिली है, अपने विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक शर्तों को स्पष्ट रूप से अन्य स्थापित सजातीय भाषाओं से भिन्न प्रदर्शित करती है। कई भारतीय भाषाओं पर वास्तव में बहुत अधिक काम नहीं किया गया है, अंगिका उनमें से एक है।” वे आगे लिखते हैं, “प्रौद्योगिकी के समय में, जब हमारे पास अधिक आसानी से आईटी उपकरणों तक पहुंच है, यह सही समय है कि हम इस तरह के कम अध्ययन किए गए भाषाओं के ध्वन्यात्मक, वाक्यात्मक कार्यात्मक दृष्टिकोण का अध्ययन करें।”

अंगिका को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग

भागलपुर के तत्कालीन लोकसभा सांसद सुबोध राय ने सदन में 18 फ़रवरी 2003 को अंगिका भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने की आवश्यकता पर कहा था, “अंगिका भाषा बिहार राज्य के भागलपुर, मुंगेर, बांका, खगड़िया, जमुई, शेखपुरा, लखीसराय, पूर्णिया, गोड्डा, साहेबगंज, देवघर, मधेपुरा, सुपौल, बेगुसराय और कटिहार के ग्रामीण क्षत्रों की मातृभाषा है। लगभग 3 करोड़ की आबादी में अंगिका भाषा का आम बोल-चाल की भाषा में प्रयोग किया जाता है। यह भाषा अति प्राचीन एवं समृद्ध भाषा है जिसका अपना सर्वनाम है। गीत काव्य इस भाषा की मूल पहचान है। इसकी चार मुख्य उप-भाषा है- 1. चम्पानगरी, 2. मुंगरिया, 3. धर्मपुरिया एवं 4. खोहा। इस भाषा की बोल-चाल लगभग 58 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। अति प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय में इस भाषा का प्रयोग किया जाता था। वर्तमान में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय ने इस भाषा की पढ़ाई के लिए एक पृथक विभाग खोल दिया है। अतः मैं सदन के माध्यम से सरकार से मांग करता हूँ कि अंगिका भाषा के समुचित विकास के लिए इसे संविधान की आठवीं सूची में सम्मिलित किया जाए।”

बिहार सरकार द्वारा राज्य में अंगिका के उत्थान एवं संरक्षण के लिए अंगिका अकादमी का संचालन किया जाता है।

बज्जिका भाषा

बज्जिका इंडो-आर्यन परिवार के बिहारी समूह की भाषा है। बज्जिका उत्तरी-पश्चिमी बिहार और नेपाल में बोली जाती है। बिहार में जिस क्षेत्र में मुख्यतः बज्जिका भाषा बोली जाती है उसे बज्जिकांचल के नाम से भी जाना जाता है।

बज्जिका पूर्व में कैथी लिपि में लिखी जाती थी, अब देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।

बिहार में बज्जिका मुख्यतः मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी और शिवहर में बोली जाती है। इन ज़िलों से सटे समस्तीपुर, पूर्वी-चम्पारण और दरभंगा के कुछ इलाकों में भी बज्जिका बोली जाती है।

ग्रियर्सन ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ में बज्जिका को मैथिलि का एक उप-भाषा माना है और इसको ‘पश्चिमी मैथिलि’ कहा है। उन्होंने बज्जिका को भोजपुरी और मैथिली से प्रभावित बताया है।

बज्जिका के विद्वान ग्रियर्सन की बात इत्तिफ़ाक़ नहीं रखते हैं और बज्जिका को मैथिलि से एक अलग भाषा मानते हैं।

बज्जिका भाषा के महाकवि डॉ. अवधेश्वर अरुण ने बज्जिका को चार उपभाषा में बांटा है – 1. शुद्ध बज्जिका, 2. मैथिली प्रभावित बज्जिका, 3. मगही प्रभावित बज्जिका और 4. भोजपुरी प्रभावित बज्जिका।

अभिषेक कुमार कश्यप अपना शोध पत्र ‘दी बज्जिका लैंग्वेज एंड स्पीच कम्युनिटी’ में लिखते हैं, “अशिक्षित लोग, जो विशेष रूप से तथाकथित निचली जातियों के हैं, बज्जिका में एकभाषी हैं। इसका मतलब है कि वे दैनिक जीवन के सभी उद्देश्यों के लिए बज्जिका बोलते हैं और उन्हें इस भाषा के रखरखाव का श्रेय मिलना चाहिए। तथाकथित निचली जातियों की जुबान में बज्जिका जीवित है, हालांकि जो भाषा वे लोग बोलते हैं, उसके बारे में उन्हें बहुत कम जानकारी है।”

भारत में बज्जिका की कोई आधिकारिक पहचान नहीं है। भारत की 2011 की जनगणना में हिंदी के तहत 56 मातृभाषाओं की गणना की गयी थी लेकिन बज्जिका सूची में नहीं था। इसे हिंदी मातृभाषा के अंदर अन्य भाषा में गिनती किया गया है।

बज्जिका बोलने वालों की जनगणना में अलग से गिनती नहीं होने के चलते उनकी कोई आधिकारिक तादाद मालूम नहीं है लेकिन अभिषेक कुमार कश्यप के एक अनुमान के मुताबिक बज्जिकांचल में कम से कम 1 करोड़ 10 लाख लोगों की मातृभाषा बज्जिका है।

दशकों की मांग के बाद सितंबर 2022 में बिहार सरकार ने बज्जिका भाषा के उत्थान एवं संरक्षण के लिए राज्य में ‘बज्जिका अकादमी’ स्थापित करने का निर्णय लिया है।

सुरजापुरी भाषा

सुरजापुरी भारत की एक छोटी भाषा है, जो बिहार के पूर्वी भाग और पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर और इसके आसपास के ज़िले में बोली जाती है। सुरजापुरी को पूर्वी इंडो-आर्यन भाषा के सदस्य के रूप में हिंदी के अंदर वर्गीकृत किया गया है। यह भाषा मैथिली, भोजपुरी, बांग्ला और असमिया जैसी पड़ोसी भाषाओं के साथ विशेषता और शाब्दिक संसाधन साझा करती है। यह मगधी प्राकृत की वंशज है। सुरजापुरी को अन्य बिहारी भाषाओं की तरह कैथी लिपि में लिखी जाती थी। इसे अब देवनागरी में लिखी जाती है।

बिहार में सुरजापुरी भाषा मुख्यतः सीमांचल के चार ज़िले किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार में बोली जाती है। सुरजापुरी भाषी हिंदी और उर्दू भाषाओं को भी अच्छे से जानते हैं।

ग्रियर्सन ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ में सुरजापुरी को ‘सिरिपुरिया’ या ‘किशनगंजिया’ भाषा कहा है। ग्रियर्सन ने सुरजापुरी को बंगाली भाषा की एक उपभाषा माना है, लेकिन वह लिखते हैं, “सुरजापुरी को कैथी लिपि में लिखा जाता है, जो हिंदी के लिए इस्तेमाल होता है।”

1903 में छपी ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ के अनुसार 6,03,623 लोग उस वक़्त सुरजापुरी बोलते थे।

2011 की जनगणना में सुरजापुरी को हिंदी भाषा के अंदर कई मातृभाषाओं में से एक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। जनगणना के मुताबिक, सुरजापुरी को मातृभाषा मानने वालों की भारत में कुल जनसंख्या 22,56,228 है। सबसे ज़्यादा सुरजापुरी भाषी बिहार में 18,57,930 हैं। पश्चिम-बंगाल में 3,95,686 लोग सुरजापुरी बोलते हैं।

बिहार के 4 जिलों में सुरजापुरी बोलने वालों की संख्या इस प्रकार है- कटिहार ज़िले में 7,94,052, किशनगंज ज़िले में 7,20,239, पूर्णिया ज़िले में 2,84,989 और अररिया ज़िले में 53,693।

तत्कालीन पूर्णिया ज़िला से काटकर 1956 में उत्तर दिनाजपुर नामक अलग जिला बनाया गया था जो अभी पश्चिम बंगाल में है। इस जिले के इस्लामपुर सब-डिवीज़न में भी सुरजापुरी भाषा बहुतायत में बोली जाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर-दिनाजपुर ज़िले में 3,93,421 लोगों की मातृभाषा सुरजापुरी है, जिनमें से सिर्फ इस्लामपुर सब-डिवीज़न के 5 प्रखंडों में ही 3,88,728 लोग सुरजापुरी बोलते हैं।

कुछ दिन पहले ही बिहार सरकार ने सुरजापुरी भाषा के उत्थान और संरक्षण के लिए ‘सुरजापुरी अकादमी’ खोलने की घोषणा की है।

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