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खंडहर में तब्दील होता सहरसा का रेफरल अस्पताल

नौहट्टा प्रखंड के चंद्रायण रेफरल अस्पताल का सारा काम खंडहरनुमा इमारत में हो रहा है। अस्पताल की हालात इतनी भयावय है कि शाम के समय लोग इलाज के लिए आने से कतराते हैं।

Sarfaraz Alam Reported By Sarfraz Alam |
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सहरसा जिला मुख्यालय से तकरीबन 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नौहट्टा प्रखंड के चंद्रायण रेफरल अस्पताल का सारा काम खंडहरनुमा इमारत में हो रहा है। अस्पताल की हालात इतनी भयावय है कि शाम के समय लोग इलाज के लिए आने से कतराते हैं।

अस्पताल का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने किया था

1995 में बिहार सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव ने इस अस्पताल के भवन का उद्घाटन किया था। उस समय स्वास्थ्य मंत्री डॉ महावीर प्रसाद थे।

स्थानीय लोगों ने बताया कि अस्पताल खुलने के बाद कुछ सालों तक यह ठीक-ठाक चला लेकिन उसके बाद रखरखाव न होने के कारण अस्पताल की इमारत धीरे धीरे जर्जर होती चली गई।


इकलौते डॉक्टर के बदौलत अस्पताल

अस्पताल में फिलहाल खांसी, ज़ुकाम और बुखार जैसी बीमारियों का इलाज होता है। कोई आपातकालीन स्थिति पैदा होने पर ग्रामीणों को शहर की तरफ रुख करना पड़ता है।

डॉक्टर बुद्धदेव यहां के इकलौते डॉक्टर हैं। उन्होंने बताया कि इस अस्पताल में कम से कम चार डॉक्टर होने चाहिए, लेकिन फिलहाल वह अकेले ही यहां कार्यरत हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अस्पताल में खांसी, ज़ुकाम के इलाज के अलावा हैमोग्लोबिन और एचआईवी का टेस्ट कराया जाता है।

अनीता कुमारी अस्पताल की तीन नर्सों में से एक हैं। वह कहती हैं, ”जर्जर हो चले अस्पताल में जोखिम उठाकर काम करते हैं,लेकिन अब ड्यूटी है तो करनी तो पड़ेगी।”

एक कमरे में अस्पताल का सारा सिस्टम

दो मंज़िली इमारत वाला यह सरकारी अस्पताल पूरी तरह से जर्जर हो चुका है और केवल एक कमरे में ही अस्पताल का सारा सिस्टम चल रहा है।

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हर वर्ष बाढ़ से प्रभावित होने वाले दियारा इलाके के लिए यह अस्पताल काफी अहम है लेकिन अब खुद अस्पताल की सेहत बेहद खराब हो चुकी है।

स्थानीय निवासी रामरेख यादव बताते हैं कि 28 साल पहले जब इस पिछड़े इलाके में यह अस्पताल बना, तो लगा था कि अब गांव में अब स्वर्ग जैसा नज़ारा होगा लेकिन अस्पताल तो नर्क में परिवर्तित हो गया है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि बारिश के मौसम में अस्पताल की छत से पानी टपकता है और तेज हवा चलने पर दीवारें हिलने लगती हैं, ऐसे में हादसों का डर बना रहता है। स्थानीय निवासी प्रमोद कुमार ने कहा कि अक्सर गांव वालों को 25 किलोमीटर दूर शहर इलाज कराने जाना होता है, गरीब तो रास्ते में ही मर जाता है। वह आगे कहते हैं कि यह अस्पताल मानव नहीं दानव के रहने की जगह लगती है।

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एमएचएम कॉलेज सहरसा से बीए पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर सहरसा से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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