दार्जिलिंग का चिड़ियाघर दार्जिलिंग के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। अधिकतर पर्यटक जो दार्जिलिंग की पहाड़ियों पर आते हैं वे चिड़ियाघर ज़रूर जाते हैं, जहाँ पर्यटकों में विशेष रूप से रेड पांडा को देखने की होड़ रहती है। दार्जिलिंग के इस मशहूर चिड़ियाघर पद्मजा नायडू हिमालयन ज़ूलॉजिकल पार्क से शुक्रवार को 3 मादा रेड पांडा संरक्षण क्षेत्र में छोड़े गए। करीब 2 महीने बाद इन्हें सिंगलाला वाइल्ड लाइफ़ पार्क में शिफ्ट कर दिया जाएगा।
यह चिड़ियाघर रेड पांडा के प्रजनन का केंद्र है और इस साल यहां 6 रेड पांडा का जन्म हुआ है, जो एक वार्षिक रिकॉर्ड है।
ज़ूलॉजिक्ल पार्क के अधिकारी ने बताया कि ये 3 मादा पांडा कुछ हफ़्तों बाद जब प्राकृतिक वातावरण से परिचित हो जायेंगे तो उन्हें सिंगलला वाइल्ड पार्क में भेजा जायेगा।
लाल पांडा भारत, नेपाल, भूटान और म्यांमार के उत्तरी पहाड़ों और दक्षिणी चीन के जंगलों में पाए जाते हैं। ये अक्सर वृक्ष पर बसेरा जमाते हैं। रेड पांडा बेहद शांत होते हैं इसलिए इन्हें ‘इंट्रोवर्ट मैमल’ यानि अंतर्मुखी स्तनपायी भी कहा जाता है । यह 2,200-4,800 मीटर पर ऊँचे मिश्रित पर्णपाती और शंकुधारी जंगलों में अधिक पनपते हैं , हालांकि 1800 मीटर की ऊंचाई पर भी लाल पांडा के कुछ प्रमाण पाए गए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ यानी IUCN के आंकड़ों के अनुसार विश्वभर में कुल लगभग 10,000 रेड पांडा बचे हैं जिनमें 5 से 6 हज़ार रेड पांडा भारत में रहते हैं।
रेड पांडा सिक्किम का राजकीय पशु है। भारत में यह प्रजाति सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों में पाई जाती है।
WWF इंडिया के आंकड़ों के अनुसार रेड पांडा खतरे वाली प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय प्राजति के रूप में शामिल है और भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची के तहत, लाल पांडा को उच्चतम कानूनी संरक्षण प्राप्त है।
दार्जीलिंग दशकों से प्राकृतिक सुंदरता के तौर पर जान जाता रहा है और अब लुप्तप्राय रेड पांडा के बढ़ते आंकड़े और भी पर्यटकों को खींच लाएंगे ऐसी उम्मीद है।
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