बिहार के किशनगंज शहर की पहचान कही जाने वाली रमज़ान नदी अब धीरे-धीरे सिमट रही है। कभी यह नदी शहर का गौरव और प्रमुख आकर्षण हुआ करती थी, लेकिन आज यह प्रदूषण की चपेट में है। लंबे समय से सफाई का अभाव और उदासीनता का शिकार रमज़ान नदी अपना अस्त्तित्व खोने के कगार पर है।
शहर के बीचोंबीच बहने वाली रमज़ान नदी के जीर्णोद्धार कार्य के लिए लगभग ₹12 करोड़ का प्रस्ताव तैयार किया गया है। किशनगंज जिला प्रशासन और लघु सिंचाई प्रमंडल, किशनगंज ने इस परियोजना का एस्टिमेट बिहार लघु संसाधन विभाग को सौंपा है।
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जल जीवन हरियाली अभियान के अंतर्गत रमजान नदी की सफाई, खुदाई और दोनों किनारों पर मिट्टी के बांध बनाने और इनलेट-आउटलेट तैयार करने की योजना है। हालांकि रमजान का विस्तार पोठिया प्रखंड की जहांगीरपुर पंचायत तक है, लेकिन शहरी क्षेत्र के करीब साढ़े 9 किलोमीटर लंबी धारा के जीर्णोद्वार के लिए कुल ₹11 करोड़ 80 लाख 90 हजार का एस्टिमेट तैयार किया गया है।
बरसात के दिनों में रमजान नदी में मिट्टी और गाद जमा होने से किसानों के लिए सिंचाई की व्यवस्था बाधित होती है। इस परियोजना की सफलता से नदी के पानी का उपयोग खेतों की सिंचाई के लिए किया जा सकेगा।
किशनगंज के सांसद मोहम्मद जावेद ने इस वर्ष 24 जुलाई को संसद में नियम 377 के तहत रमज़ान नदी के सौंदर्यीकरण, संरक्षण और प्रदूषण का मुद्दा उठाया था।
इसके जवाब में, जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग ने 3 सितंबर को बिहार राज्य गंगा नदी संरक्षण एवं कार्यक्रम प्रबंधन सोसाइटी (बीजीसीएमएस) को एक पत्र भेजा। इस पत्र में रमज़ान नदी में गिरने वाली नालियों के उपचार उपायों और इस योजना के लिए तैयार की गई डीपीआर का पूरा विवरण मांगा गया है।
Google Earth के Timelapse Tool की मदद से 2013 और 2024 की तस्वीरों की तुलना करने पर साफ़ देखा जा सकता है कि किशनगंज शहर में रमजान नदी के किनारों पर अतिक्रमण समस्या बढ़ रही है। रमज़ान के जीर्णोद्वार कार्य से नदी को अतिक्रमण मुक्त कराने में मदद मिलेगी।
पोठिया के लोग बताते हैं सालों पहले रमज़ान नदी डोंक नदी से जुड़ी थी हालांकि अब इसका मुंह अब बंद हो चुका है। पोठिया प्रखंड के जहांगीरपुर पंचायत स्थित आमबाड़ी गांव के पास रमज़ान की धारा बहती थी। धीरे धीरे डोंक नदी के उत्तर की तरफ चले जाने से रमज़ान नदी से इसका जुड़ाव टूट गया।
रमज़ान नदी का जीर्णोद्धार कार्य फिलहाल शहरी इलाकों तक केंद्रित है। भविष्य में अगर इसे ग्रामीण इलाकों में ले जाया गया तो गांवों पर इसका कैसा प्रभाव पड़ेगा यह कह पाना कठिन है। आमबाड़ी के ग्रामीणों का कहना है कि रमज़ान के मुंह को गांव में दोबारा खोला गया तो उससे किसानों को लाभ कम और नुकसान ज्यादा उठाना पड़ेगा।
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