डॉ मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे, रघुवंश बाबू ने उन्हें एक चिट्ठी लिख कर UPA सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री की शिकायत की और उन्हें गरीब विरोधी बताया। तब के Planning Commission chairman Montek Singh Ahluwalia उस मंत्री का संदेश लेकर रघुवंश प्रसाद सिंह के पास पहुंचे और कहा, मंत्री जी आपके चिट्ठी से नाराज़ हैं और चाहते हैं, आप उनके साथ गाँव में चल रहे विकास कार्यों को देखने चलें। जवाब में रघुवंश बाबू बोले, नहीं! मंत्री जी को मेरे साथ उत्तरी बिहार के एक ऐसे गाँव में चल कर तीन रात बितानी चाहिए, जहाँ अब तक बिजली नहीं पहुंची, तब उन्हें समझ आएगा देश के किसी गाँव में रहना क्या होता है”
कुछ ऐसे समाजवादी विचार के थे पूर्व केंद्रीय मंत्री और बिहार के एक बड़े नेता रघुवंश प्रसाद सिंह, जिन्होंने रविवार 13 सितंबर को दिल्ली के AIIMS में आखरी सांस ली। देश के आज़ादी से पूर्व 6 जून 1946 को वैशाली ज़िले के शाहपुर में जन्मे रघुवंश प्रसाद सिंह ने मुजफ्फरपुर के बिहार यूनिवर्सिटी से mathematics में Phd कर रखी थी।
राजीनीति में आने से पहले डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने करीब 5 सालों तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में बच्चों को गणित पढ़ाया। प्रोफेसर के तौर पर डॉ सिंह ने नौकरी भी की और इस बीच कई आंदोलनों में जेल भी गए। पहली बार 1970 में टीचर्स मूवमेंट के दौरान जेल गए। जब कर्पूरी ठाकुर के संपर्क में आए, तो साल 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के आंदोलन के दौरान फिर से जेल गए।
1974 में emergency के समय सीतामढ़ी में छात्रों के आंदोलन को स्थानीय कॉलेज लेक्चरर डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ही लीड कर रहे थे। इस दौरान वो तीन महीने जेल में रहे। 1977 में आपातकाल हटने के बाद जब नए सिरे से चुनाव हुए, रघुवंश प्रसाद सिंह को सीतामढ़ी की बेलसंड सीट से टिकट मिला। त्रिकोणीय मुकाबला हुआ और रघुवंश बाबू छह हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए।
बिहार के 324 विधानसभाओं में से 214 सीटों पर जनता पार्टी की जीत हुई। मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार थे, सत्येन्द्र नारायण सिंह और कर्पूरी ठाकुर। 33 राजपूत में से 17 ने पिछड़ी जाती से आने वाले कर्पूरी ठाकुर का समर्थन किया, उन में एक डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह भी थे। कर्पूरी ठाकुर ने उन्हें उर्जा मंत्री बनाया।
बेलसंड सीट से उनकी जीत का सिलसिला 1977 से 1985 तक चलता रहा। 1988 में कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया। रघुवंश प्रसाद सिंह ने लालू यादव का साथ दिया। यहां से लालू और उनके बीच की करीबी शुरू हुई। कुछ दिनों पहले लालू यादव की लिखी चिट्ठी में जब रघुवंश बाबू ने लिखा, “कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीठ पीछे खड़ा रहा”, वो इसी दोस्ती का ज़िक्र कर रहे थे। 1990 में रघुवंश प्रसाद सिंह विधानसभा चुनाव हार गए, तो लालू यादव ने उन्हें विधान परिषद भेज दिया, 1995 में वापस विधानसभा पहुंचे तो लालू मंत्रिमंडल में दोबारा ऊर्जा मंत्री बने।
रघुवंश प्रसाद सिंह 1996 में वैशाली से लोकसभा चुनाव जीते, 1996 से 1998 के बीच केंद्र में उठापटक चलती रही, रघुवंश बाबू देवेगौड़ा सरकार और गुजराल सरकार में मंत्री बने। 1999 में जब लालू यादव को शरद यादव ने मधेपुरा से लोकसभा चुनाव हरा दिया, तो रघुवंश प्रसाद को राष्ट्रीय जनता दल के संसदीय दल का अध्यक्ष बनाया गया। कहा जाता है की अटल बिहार की सरकार में NDA के सांसद यह कहते पाए जाते थे कि विपक्ष की नेता भले ही सोनिया गांधी हों, लेकिन सरकार को घेरने में रघुवंश प्रसाद सिंह सबसे आगे रहते हैं।
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2004 में UPA की सरकार बनी तो ग्रामीण विकास मंत्रालय का जिम्मा रघुवंश प्रसाद सिंह के पास आया। 2 फरवरी, 2006 को महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना यानि MNREGA लागू की गई। रघुवंश प्रसाद सिंह MNREGA के architect कहे जाते हैं। मनमोहन सिंह सरकार के बड़े मंत्री जैसे पी. चिदंबरम और प्रणब मुखर्जी MNREGA को सरकार पर बोझ बढ़ाने वाला समझते थे।
कहा जाता है की एक दोपहर सोनिया गाँधी पार्लियामेंट के सेंट्रल हॉल से गुज़र रहीं थीं, रघुवंश प्रसाद सिंह उनके पास गए और MNREGA में हो रही देरी के बारे में बताया। उसी वक़्त सोनिया गाँधी ने GoM (Group of Ministers) की मीटिंग बुलाई और कुछ ही दिनों के अंदर देश के 200 ज़िलों में MNREGA लागु कर दिया गया। कोरोना महामारी के बीच केंद्र सरकार के जिस योजना की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह यही MNREGA है।
2009 के चुनाव में कांग्रेस की सत्ता बचाने में जो चीज़ें सबसे ज़्यादा काम आयीं, उनमें से एक MNREGA है, लेकिन उसका श्रेय रघुवंश प्रसाद को नहीं मिला।
2009 में राजद ने कांग्रेस से अलग होकर लोकसभा चुनाव लड़ा, रघुवंश प्रसाद सिंह ने लालू प्रसाद यादव के इस फैसले का विरोध किया और राजद को इसका भारी खामयाजा हुआ। बिहार में राजद की सीट 22 से घटकर 4 पर आ गयी। राजद ने कांग्रेस को बाहर से समर्थन दिया। कहा जाता है मनमोहन सिंह चाहते थे रघुवंश प्रसाद सिंह फिर से ग्रामीण विकास मंत्री बने। लेकिन आरजेडी सरकार में शामिल नहीं हुई। रघुवंश बाबू को कांग्रेस जॉइन करने का ऑफर भी आया, लेकिन उन्होंने प्रस्ताव खारिज़ कर दिया।
डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह शायद राजद के अकेले ऐसे नेता थे, जो खुलेआम लालू यादव की आलोचना कर सकते थे। एक बार उनसे एक इंटरव्यू में पूछा गया, वह लालू प्रसाद की उपलब्धियों को कैसे आंकेंते हैं। जवाब में रघुवंश प्रसाद ने कहा political management में लालू यादव को 10 में 10 नंबर देंगे, लेकिन एक प्रशासक के रूप में वह जीरो से अधिक नंबर के लायक नहीं हैं।
2015 में नीतीश कुमार महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बने, तो राजद नेता शहाबुद्दीन ने नीतीश कुमार को ‘परिस्थितियों का मुख्यमंत्री’ करार दिया। डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने शाहबुद्दीन के इस बयान से सहमति जताते हुए यहाँ तक कह दिया की उनकी बिना सहमति के ही चुनाव से पहले नीतीश कुमार को महागठबंधन में मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाया गया था’
2014 के बाद डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह लोकसभा नहीं पहुँच पाए। 2020 के जून उन्हें कोरोना हुआ, पटना AIIMS में भर्ती हुए और इसी दौरान उन्होंने राजद उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया। 10 सितंबर को लालू यादव के नाम एक चंद शब्दों की चिट्ठी लिख कर उन्होंने राजद छोड़ दिया। कहा जाता है, वो लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के ‘एक लोटा पानी’ वाले बयान से आहत थे।
13 सितंबर को डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने दिल्ली के AIIMS में आखरी सांस ली। रघुवंश प्रसाद सिंह दो भाइयों में बड़े थे, उनके छोटे भाई रघुराज सिंह का पहले ही देहांत हो गया है, धर्मपत्नी जानकी देवी भी अब इस दुनिया में नहीं हैं, दो बेटे और एक बेटी है, परिवार से उनके अलावे कोई और राजनीति में सक्रिय नहीं है।
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