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पूर्णिया: अवैध भवनों को सील करने की नगर आयुक्त की कार्रवाई पर उठे सवाल

निगरानी वाद के जरिये जुर्माने व तालाबंदी की जद में आने वाले शहर के चुनिंदा बड़े लोग हैं जिनमें व्यवसायी, बिल्डर, शिक्षक शामिल हैं।

Novinar Mukesh Reported By Novinar Mukesh |
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टमटम खींचने वाले घोड़े की आंखों की दोनों ओर रबड़ की पट्टी बंधी होती है जिससे घोड़ा सिर्फ तय दिशा में देख सके। ये पट्टी घोड़े को टमटम (तांगा) हाँकने वाले की मनचाहे दिशा से डेविएट नहीं होने देती। घोड़े का काम बस दौड़ना होता है। यह टमटम हांकने वाले पर निर्भर है कि वह घोड़ा, टमटम और उस पर बैठी सवारी को किस ओर हांकता है। इत्तेफाक से नगर आयुक्त, नगर निगम, पूर्णिया के अधीन चल रहे निगरानी वाद से जुड़े जांच दल के प्रतिवेदन और आदेश-फलक की दशा टमटम के उसी घोड़े जैसी बनी हुई है।

आरएन शाह चौक से चंद कदमों की दूरी पर रमेश अग्रवाल का मॉल हो या रंगभूमि मैदान के पास बन रहा बहुमंजिला भवन या सौरा नदी के बाँध के नजदीक एसएम झा का सेंट्रल स्कूल, सब जुर्माने की जद में आए और सबको सील कर दिया गया।

जमुई से तबादले के साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आरिफ अहसन पूर्णिया नगर निगम के आयुक्त बने। उन्हें इस पद पर योगदान दिए साल भर भी नहीं हुए। लेकिन, नगर निगम के आयुक्त पद पर योगदान के चंद महीने बाद से ही वह मीडिया के पोस्टर ब्वॉय बन गए। उनके पोस्टर ब्वॉय बनने के पीछे दो वजहें जगजाहिर हैं। पहला, जिला पदाधिकारी, पूर्णिया के साथ खड़े होकर अतिक्रमण हटाने के लिए महीनों चलने वाले तोड़-फोड़ अभियान में कदम-दर-कदम की सहभागिता, जिसे पूर्णिया के प्रबुद्धजन आईएएस राज की संज्ञा देते हैं। दूसरा, निगरानी वाद चलाकर नगर निगम से बिना नक्शा पास कराए भवनों को सील करते हुए उन पर जुर्माना लगाने की कार्रवाई।


निगरानी वाद के जरिये जुर्माने व तालाबंदी (भवन सील करने की कार्रवाई) की जद में आने वाले शहर के चुनिंदा बड़े लोग हैं जिनमें व्यवसायी, बिल्डर, शिक्षक शामिल हैं। हालांकि, अवैध निर्माण, नक्शे से विचलन संबंधी नोटिस पाने वालों में नामी चिकित्सक से लेकर आम लोग शामिल हैं।

नगर आयुक्त पर पक्षपात के आरोप

नगर आयुक्त की निगरानी वाद से जुर्माने और तालाबंदी का दंड झेल रहे लोगों में से कुछ ने उच्च न्यायालय का रुख़ किया, जहाँ उन्हें वांछित सफलता नहीं मिली। कुछ नगर निगम क्षेत्र में मौज़ूद वास्तविक तथ्यों को नगर निवासियों के सामने लाकर नगर आयुक्त और निगम अमलों के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए हैं। उनमें से एक एसएम झा हैं, जो मुखरता से नगर आयुक्त सहित नगर निगम अमलों के ऊपर गलत आधार पर कार्रवाई व उनकी कार्यशैली पक्षपात से भरी होने का आरोप लगा रहे हैं।

Central public school and multi storey building

उन्होंने निगम अमलों द्वारा उनके स्कूल का गलत वर्गीकरण करने, शहर के प्राइवेट बिल्डरों से सांठगांठ कर सौरा नदी किनारे से सटाकर बनाए गए ऊँचे भवनों पर नगर आयुक्त द्वारा कार्रवाई न किए जाने, शहर के कुछ नामी गिरामी शैक्षणिक संस्थानों का एक समूह चलाने वाले रसूखदार पर समान कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करने के मामले में कार्रवाई न करने का आरोप लगाया है।

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जिले में महीना भर से अधिक चले अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान भी एसएम झा जिला और निगम के पदाधिकारियों की कार्यशैली का विरोध करते नजर आए थे। उनके स्कूल पर हुई कार्रवाई के बाद निगम के अधिकारियों, कर्मचारियों की कार्यशैली दोबारा सुर्खियों में आ गई है।

शहर में एसएम झा की पहचान एक शिक्षक, समाजसेवी और नेता की रही है। नगर विकास प्रमंडल, पूर्णिया के स्थलीय जांच से जुड़े जांच-प्रतिवेदन में उनके स्कूल-भवन के निर्माण से जुड़ी तीन प्रमुख अनियमितता पाई गई। इनमें बिना नक्शा स्वीकृति जी प्लस टू भवन का निर्माण, सौरा नदी से 12 मीटर की दूरी पर निर्माण स्थल की अवस्थिति और स्कूल में पार्किंग स्थल के अभाव को उनके विरूद्ध निगरानी वाद चलाने का आधार बनाया गया है। नगर आयुक्त के आदेश-फलक पर एसएम झा द्वारा बिना नक्शा स्वीकृति जी प्लस टू भवन का निर्माण कराने की स्वीकारोक्ति दर्ज़ है।

हालांकि, इस बिंदु पर संयुक्त दल के जांच-प्रतिवेदन में दर्ज अभ्युक्ति (रिमार्क) “नक्शा स्वीकृति के पूर्व ही जी +2 भवन का निर्माण कार्य पूर्ण किया गया है…” और नगर आयुक्त के आदेश-फलक में “प्रतिवादी द्वारा अपने जवाब में स्वीकार किया गया कि उनके द्वारा भवन मानचित्र (नक्शा) स्वीकृत किये बिना सतही, प्रथम व आंशिक रूप से द्वितीय तल का निर्माण किया गया है” दर्ज़ है।

ये दोनों बातें परस्पर विरोधी और विरोधाभासी है। यह भी उल्लेखनीय है कि संयुक्त दल के जाँच-प्रतिवेदन में साइट डिटेल्स के दोनों कॉलम में दूसरे तल्ले को लिंटर स्तर तक का निर्माण बताया गया है, वहीं रिमार्क्स कॉलम में जी प्लस टू भवन के निर्माण कार्य को पूर्ण बता दिया गया है।

संयुक्त जांच दल प्रतिवेदन में निर्माण स्थल की अवस्थिति सौरा नदी से 12 मीटर दूर बताई गई है। वहीं, नगर आयुक्त, पूर्णिया के आदेश फलक में “उक्त निर्माण सौरा नदी से लगभग 120 मीटर दूर होने की बात कही गयी है..” दर्ज है। दोनों तथ्यों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि जांच दल द्वारा अंकित दूरी और एसएम झा द्वारा अपने जवाब में उल्लेखित दूरी के बीच 10 गुना का अंतर है। प्रथम दृष्टया सौरा नदी (मौजूदा पानी) के वर्तमान किनारे से बांध की दूरी 12 मीटर से अधिक है।

embankment distance from river

संयुक्त दल के जाँच-प्रतिवेदन में मौज़ूद विरोधाभासी बातों और एसएम झा के जवाब में उल्लिखित तथ्यों के आधार पर नगर आयुक्त, नगर निगम, पूर्णिया के समक्ष ऊपर अंकित बिंदुओं पर दोबारा जांच कराने का विकल्प था। नगर आयुक्त, पूर्णिया ने संयुक्त जांच दल के जांच-प्रतिवेदन को आरोपी द्वारा कही बात के ऊपर अनुचित प्राथमिकता देते हुए कार्रवाई की, जो नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत है।

एसएम झा के आरोपों पर क्या कहते हैं लोग

एसएम झा के आरोपों पर पूर्णिया निवासियों की प्रतिक्रिया मिश्रित है। जहाँ एक ओर लोग इसे कानून लागू कराने की दिशा में उठने वाले कदम की तरह देख रहे हैं, वहीं एस. एम झा के आरोपों, जांच-प्रतिवेदन और निगरानी वाद में पारित आदेश-फलक के अवलोकन से निकल कर सामने आ रहे तथ्यों से नगर आयुक्त और निगम अमलों की एकतरफा पक्षधरता भी उजागर होते दिखती है। नगर आयुक्त, पूर्णिया के निगरानी वाद से संबंधित आदेश-फलक की हालत टमटम के उस घोड़े जैसी है जिसकी आंखों के दोनों किनारे रबड़ की पट्टी बंधी है।

राजनीति के चश्मे का पावर पहचानने वाले प्रबुद्धजनों की मानें तो ये कार्रवाइयां पटना में हाल ही में बदले सियासी समीकरण से अछूता नहीं है। नगर निगम बनाम नक्शा पास कराए बिना भवन निर्माण कराने वाले नगर निवासियों की लुका-छिपी के पीछे कई महीन बातें निगम क्षेत्र की आबोहवा में घुली नज़र आती है जिसकी चर्चा किए बिना मौजूदा कार्रवाई को मेरिट के आधार पर जांच नहीं जा सकता है।

नक्शा पास कराने में पेचीदगी

इसमें दो मत नहीं कि नक्शा पास कराए बिना भवन या उसके भाग का निर्माण म्युनिसिपल एक्ट का उल्लंघन है। यह भी कि बिना अनुमति के भवन के किसी भाग में बदलाव भी म्युनिसिपल एक्ट की अवहेलना है। पर, नगर निगम से भवन निर्माण के लिए नक्शा स्वीकृत कराने की प्रक्रिया की कड़वी सच्चाई वैसे सभी आवेदक जानते हैं, जिन्होंने नगर निगम से नक्शा स्वीकृत कराया है या स्वीकृति के इंतजार में हैं।

अपनी जमीन पर रहने या व्यवसाय के लिए भवन बनाने से पहले नगर निगम से नक्शा स्वीकृत कराना जरूरी है, जिसकी निर्धारित प्रक्रिया के अनुपालन के दौरान इच्छुक आवेदक को बिहार सरकार के कम से कम तीन विभागों से दो-चार होना पड़ता है। पहला, राजस्व व भूमि सुधार विभाग, दूसरा, नगर विकास व आवास विभाग और तीसरा, श्रम विभाग। नक्शा पास कराने की प्रक्रिया में श्रम विभाग की भूमिका महज इतनी है कि निर्माण के इच्छुक आवेदक द्वारा एक निश्चित रकम श्रम विभाग को देय होती है।

निर्माण के इच्छुक आवेदकों को अपनी जमीन से जुड़े राजस्व संबंधी दस्तावेज़ जैसे नामांतरण आदेश, लगान रसीद आदि अनिवार्य रूप से जमा करना होता है। ध्यान देने योग्य है कि जमीन पर स्वत्व सिद्ध करने वाली सर्वाधिक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ रजिस्टर्ड सेल डीड (केबाला) और गिफ्ट डीड होते हैं जो नगर विकास व आवास विभाग द्वारा नक्शा पास कराने के लिए नामांतरण आदेश, लगान रसीद के साथ मान्य होती है।

पूर्णिया जिले में राजस्व व भूमि सुधार विभाग की खस्ता हालत की कल्पना मात्र कानून पर से विश्वास डगमगा देने के लिए पर्याप्त है। के. नगर, पूर्णिया पूर्व जैसे कई अंचलों में अंचल अमलों की कारगुजारियाँ नगर निगम के निवासियों से छुपी नहीं है। जमाबंदी पंजी से छेड़छाड़, अमीन द्वारा जमीन की अस्पष्ट व गलत मापी, गलत बन्दोबस्ती, रिकॉर्ड ऑफ राइट में अवैध छेड़छाड़, कटे-फटे या नष्ट हो चुके आरएस खतियान के कई मामले सुर्खियों में आकर आम हो चुके हैं।

मामूली कामों में भी लगता है लम्बा वक्त

इस विभाग के अंचल या अनुमंडल स्तरीय कार्यालय में छोटे से छोटा काम हो जाने पर लोगों को मिलने वाली राहत की सांसें तीर्थ यात्रा पूरी करने जैसी अनमोल लगने लगती है। मसलन, लगान-निर्धारण के मामले को साल 2018 से ही तिल का ताड़ बना दिया गया और सख़्त शासकीय आदेशों, समय सीमा निर्धारण संबंधी कानूनी प्रवाधानों के अभाव में हजारों आवेदकों के काम सालों से बेवजह लटके पड़े हैं। इस प्रक्रिया में ‘कानून का शासन’ महज किताबी पन्नों में सिमट कर रह जाने वाला जुमला साबित होता दिखता है।

लगान-निर्धारण के वाजिब मामलों में विभागीय अधिकारियों के कारण हो रही देरी से हजारों लोग अंचल कार्यालय द्वारा संधारित अधिकार अभिलेखों में अपना नाम दर्ज करा पाने से बीते चार-पांच साल से वंचित हैं। जब राजस्व व भूमि सुधार विभाग के कार्यालयों द्वारा जमीन की लगान का निर्धारण ही सालों से लंबित रखा गया हो तो संबंधित जमीन के भू-राजस्व दस्तावेज जैसे नामांतरण आदेश, लगान-रसीद आदि जारी करने में होने वाली गैर-जरूरी देरी निश्चित है।

Purnea DCLR office

लगान-निर्धारण की निश्चित समय सीमा निर्धारित न होने के कारण धरातल पर मामले की गंभीरता और बढ़ जाती है। जाहिर है, भवन निर्माण के इच्छुक आवेदकों को नामांतरण, जमाबंदी, लगान रसीद के लिए सालों से लटकाए रखना तथ्यात्मक और कानूनी रूप से गलत है। इसकी महती जिम्मेदारी बिहार सरकार के भू-राजस्व विभाग की है।

इन परिस्थितियों के आधार पर बीते कुछ सालों में पूर्णिया नगर निगम क्षेत्र में भवन निर्माण के इच्छुक आवेदकों द्वारा नक्शा पास कराना एक गंभीर चुनौती बन कर उभरी है जिसकी सार्वजनिक स्वीकारोक्ति और नगर निवासियों के प्रति उत्तरदायी होने की अपनी स्वाभाविक जिम्मेदारी से नगर निगम के अधिकारी और चुने हुए प्रतिनिधि कन्नी काटते रहे हैं।

बीते साल ही नगर, विकास व आवास विभाग द्वारा भवनों का नक्शा पास करने के लिए नया पोर्टल तैयार करने की बात उठी थी। नए केन्द्रीकृत पोर्टल के जरिये राज्य भर के नगर निकायों के भवनों का नक्शा स्वीकृत होने की बात कही गई थी। इस कारण से पूर्णिया नगर निगम में कुछ महीने नक्शा स्वीकृत करने-कराने की ऑफलाइन व्यवस्था बाधित रही। मौजूदा तारीख में नगर, विकास व आवास विभाग के निर्देश पर एक पोर्टल बना दिखता है। पूर्णिया नगर निगम से नक्शा स्वीकृति के काम से जुड़े एक जानकार नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, “नगर निगम से भवन निर्माण के लिए ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों ही मोड से आवेदन लिए जा रहे हैं। नक्शा स्वीकृति के आवेदन के साथ केबाला (सेल डीड), नामांतरण आदेश, लगान-रसीद और भू-स्वामित्व प्रमाण-पत्र अनिवार्य है। आवेदन के 45 दिनों के अंदर नक्शा स्वीकृत कर दिए जाने का प्रावधान है। हालांकि, विभाग से जुड़े अधिकारियों व कर्मचारियों के अवकाश में रहने पर देरी हो जाती है।” आवेदन-प्रक्रिया में आवेदकों द्वारा भुगतान योग्य शुल्क के बाबत पूछे जाने पर उन्होंने अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए जवाब देने से मना कर दिया।

यह हैरतअंगेज, दयनीय और डरावना है कि सरकार का राजस्व व भूमि सुधार विभाग पूर्णिया के निवासियों को गैर कानूनी कदम उठाने को विवश करता है। वहीं, नगर विकास व आवास विभाग से जुड़े कानून का उल्लंघन करने के नाम पर नगर निगम, पूर्णिया अर्थदंड वसूलने व भवन सील करने का आदेश पारित करने के लिए तैयार दिखता है। इससे उपजा डर नगर निवासियों की परेशानी का सबब बना है।

म्युनिसिपल एक्ट को लेकर सरकार गंभीर नहीं

गौरतलब है कि अब तक बिहार सरकार का नगर विकास व आवास विभाग डिजिटल प्रौद्योगिकी के दौर में नक्शा पास कराने के लिए एक अधिकतम पारदर्शी फेसलेस व्यवस्था की मुकम्मल व्यवस्था करा पाने में पूरी तरह से सक्षम नहीं है। बिहार म्युनिसिपल एक्ट के प्रावधानों के प्रति बिहार सरकार के रवैये का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस अधिनियम की धारा 329 के तहत गठित किए जाने वाले म्युनिसिपल बिल्डिंग ट्रिब्यूनल (एमबीटी) का गठन मात्र कराने के लिए ही बिहार सरकार को कई बार पटना उच्च न्यायालय की फटकार सुननी पड़ी। उच्च न्यायालय, पटना द्वारा निर्धारित एक माह की समय-सीमा बीत जाने के बाद भी बिहार सरकार, म्युनिसिपल बिल्डिंग ट्रिब्यूनल का गठन नहीं कर पाई।

इससे पहले साल 2013 में भी उच्च न्यायालय, पटना ने राज्य सरकार को दो महीने के भीतर एमबीटी के गठन का आदेश दिया था। उच्च न्यायालय के कहने पर नगर विकास व आवास विभाग के तत्कालीन सचिव और मुख्यमंत्री के वर्तमान अपर मुख्य सचिव एस. सिद्धार्थ ने न्यायालय में हाजिर होकर ट्रिब्यूनल के चेयरमैन पद के लिए विधि विभाग को रिक्विजिशन देने की बात कही थी। उच्च न्यायालय द्वारा वादों की अधिक संख्या के लिहाज से महज एक ही पद के लिए रिक्विजिशन देने की बात पर आपत्ति की, तो उन्होंने कुछ ही दिनों में दो पदों के लिए रिक्विजिशन देने की बात कही थी।

अपने स्कूल पर हुई कार्रवाई के जवाब में शिक्षक और समाजसेवी एसएम झा कैमरे पर कहते नज़र आए कि पूर्णिया में हजारों भवन बिना नक्शा पास कराए बने हैं। उनके इस कथन में सच्चाई है।

हालांकि, एसएम झा बिना नक्शा पास कराए भवनों की वास्तविक संख्या नहीं बताते हैं।

इन परिस्थितियों में नगर निगम की सशक्त स्थायी समिति (एम्पावर्ड स्टैंडिंग कमेटी)’’ को गंभीरता से सोचना चाहिए। सशक्त स्थायी समिति को निगम और उसके निवासियों के हित में बिना नक्शा पास कराए भवनों की एक सूची तैयार कराते हुए उनके सामूहिक नियमितीकरण (रेगुलराइजेशन) के लिए साफ मंशा से कदम उठाना चाहिए।

देश की बड़े नगर निकाय जैसे वृहन मुंबई निगम, दिल्ली नगर निगम आदि ने समय-समय पर नगरपालिका अधिनियम और भवन निर्माण उपविधि का उल्लंघन कर बने अवैध निर्माणों को रेगुलराइज किया है।

इसे क्षमादान योजना का नाम देते हुए उत्तरी दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति ने जमीन मालिकों पर सर्किल रेट(एमवीआर) के आधार पर अर्थदंड लगाने का प्रस्ताव पेश किया। नगर निगम क्षेत्र, पूर्णिया में बिना नक्शा स्वीकृति के बने भवनों को बिहार भवन निर्माण उपविधि, 2014 (समय-समय पर हुए संशोधन सहित) में दर्ज प्रावधानों के लिहाज़ से नक्शा और वास्तविक निर्माण में विचलन के आधार पर दो भागों में बाँट दिया जाना चाहिए। वैसे भवन, जिनमें बिहार भवन निर्माण उपविधि के सेट बैक संबंधी प्रावधानों का स्वत्व प्रभावित होने की सीमा तक गंभीर उल्लंघन हुआ हो, उनका नियमितीकरण अर्थदंड के साथ-साथ विशेष रूप से तय शर्तों के साथ करने का प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। मामूली विचलनों का नियमितीकरण बिना शर्त किया जा सकता है।

इससे एक ओर जहां बड़ी संख्या में नगर निगम क्षेत्र में बने अवैध भवन नियमित हो जाएंगे, वहीं निगम को भारी राजस्व की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही नगर निवासियों को सम्भावित डर, शंका, उत्पीड़न के माहौल से छुटकारा मिलने की संभावना बढ़ जाएगी।

इस साल की शुरुआत में ही नगर निवासियों ने अपनी रहनुमाई के लिए प्रतिनिधियों को चुनकर नगर निगम में भेजा है। उनके कंधों पर एक तरफ निगम क्षेत्र की बेहतरी के लिए प्रयास, वहीं दूसरी ओर कानून के दायरे में रहते हुए नगर निवासियों को सम्भावित डर, शंका, उत्पीड़न के माहौल से बाहर निकालने की अहम और दोहरी जिम्मेदारी है। इससे नगर निवासी सम्मान के साथ जी सकेंगे।

जैसा कि कैनेडियन लेखिका और नेओमी क्लेन के कहा है, “लोकतंत्र महज वोट देने का अधिकार नहीं है, यह सम्मान के साथ जीने का अधिकार है।“

इसके लिए नेक नीयत, कानून का शासन बनाए रखने की साफ-सुथरी मंशा और मजबूत इरादों की जरूरत है। अब भी नगर निगम, पूर्णिया के चुने हुए प्रतिनिधियों के अलावा नगर आयुक्त और उनकी टीम में निगम और नगर निवासियों की बेहतरी के लिए काम करने की असीम संभावनाएं हैं।

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मधेपुरा में जन्मे नोविनार मुकेश ने दिल्ली से अपने पत्रकारीय करियर की शुरूआत की। उन्होंने दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर , एडीआर, सेहतज्ञान डॉट कॉम जैसी अनेक प्रकाशन के लिए काम किया। फिलहाल, वकालत के पेशे से जुड़े हैं, पूर्णिया और आस पास के ज़िलों की ख़बरों पर विशेष नज़र रखते हैं।

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