[सीमांचल के चार जिलों किशनगंज, पूर्णिया, अररिया और कटिहार के छात्रों की सहूलियत के लिए साल 2018 में पूर्णिया विश्वविद्यालय (Purnea University) शुरू हुआ। लेकिन, दुर्भाग्य से ये विश्वविद्यालय शिक्षा की जगह दूसरी वजहों से सुर्खियों में आ गया। यूनिवर्सिटी के तत्कालीन वीसी, जो अभी दीनदयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी में हैं, उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे और लोकायुक्त फिलहाल मामले की छानबीन कर रही है। इसके अलावा यूनिवर्सिटी में कई सत्र निर्धारित समय से विलम्ब से चल रहे हैं, जिससे छात्रों का भविष्य दांव पर है। हम ऐसे छात्रों की आवाज उठा रहे हैं। इस कड़ी में एक छात्र ने हमें ये लेख भेजा है। इस यूनिवर्सिटी से जुड़े अन्य छात्र भी अपनी कहानी हमें हमारे मेल MainMediaHun@gmail.com पर लिख भेजें। हम उन्हें अपने प्लेटफार्म पर जगह देंगे।
-संपादक]
मैं 2018 में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (Banaras Hindu University) में रूसी भाषा से स्नातक कर रहा था कि मेरी तबयत इतनी बिगड़ गयी और मुझे कॉलेज छोड़ना पड़ा। उसी वर्ष मैंने अपनी पहली पुस्तक ‘परिवार, समाज और प्यार’ को प्रकाशित किया और खाली वक़्त में साहित्य के छेत्र में लगातार काम किया। वर्ष 2019 में मैं वापस BHU का प्रवेश परीक्षा पास कर उसके कॉउंसलिंग में जा रहा था कि मुझे ख्याल आया, जब अपने घर ही विश्वविद्यालय है, तो बाहर क्यों पढ़ना।
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इसी वजह से मैंने बीएचयू की कॉउंसलिंग छोड़ कर पूर्णिया विश्विद्यालय (Purnea University) के अधीन पूर्णिया कालेज (Purnea College) साल 2019 में व्यावसायिक प्रबंधन में स्नातक (BBA) में अपना नामांकन कराया। कुछ वक़्त बाद परीक्षा प्रारंभ हुई और उसके परिणामों के बाद मुझे उम्मीद थी कि अब सत्र समय से चलेगा और मैं अंततः ग्रेजुएट हो जाऊंगा। लेकिन मेरे सपने चकनाचूर हो गये।
आज 2022 के जनवरी महीने में मैं स्नातक के अंतिम वर्ष की परीक्षा के लिए फाॅर्म भरता, लेकिन अभी तक द्वितीय वर्ष की परीक्षा के फाॅर्म का इंतजार कर रहा हूँ।
वर्ष 2020 में जब लाॅकडाउन लगा तो मुझे लगा कि यूनिवर्सिटी प्रबंधन सेशन को समय पर पूरा करने के लिए अतिरिक्त पहल करेगा। ऐसा हुआ भी। दिसंबर में हमारी परीक्षा ली गयी और मार्च के महीने में हमारी परिणाम आया। इस परीक्षा में मैंने 324 अंक (प्रतिशत-81%) लाये, जो सबसे अधिक था।
मैं इस उम्मीद में था कि मेरी द्वितीय वर्ष की परीक्षा अब वक़्त से ले ली जाएगी और मैं स्नातक कर जाऊंगा। इसी हिसाब से मैं अपना करियर प्लान कर रहा था। सोचा था कि समय से सत्र पूरा हो जाएगा, तो दो-तीन सालों में एक बेहतर करियर की तरफ बढ़ जाऊंगा।
हर छात्र ये सोचता है कि 21 वर्ष में स्नातक, 23 वर्ष में स्नातकोत्तर होगा। हमारा भी यही ख्वाब था। स्नातक कर एक कदम और ऊंचाई के तरफ बढ़ते और किसी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करते। मगर हमारा तो अब तक स्नातक ही नहीं पूरा हुआ। हमारे शैक्षणिक जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष विश्वविद्यालय ने बर्बाद कर दिये। ये बर्बाद हुए साल अब लौटने वाले नहीं।
मुझे अब लग रहा है कि अपने गृह जिले की यूनिवर्सिटी पर भरोसा करना मुझे बहुत महंगा पड़ रहा है, जिसकी भरपाई जीवनभर नहीं हो सकेगी। मैंने गृह जिले का मोह छोड़कर दूसरे राज्य की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करता तो वही मेरे लिए सही विकल्प था। मैं अगर उस वक्त पूर्णिया यूनिवर्सिटी पर भरोसा न कर बीएचयू चला जाता तो सत्र विलम्ब न होता।
लगातार विलम्ब होते सत्र से न सिर्फ हम छात्रों का नुकसान हो रहा है बल्कि विश्वविद्यालय से सीमांचल के छात्रों कि भरोसा भी उठ रहा है, जो सीधे तौर पर पूर्णिया विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता खत्म हो रही है। इतना ही नहीं, इससे बिहार की शिक्षा प्रणाली से भी छात्रों का भरोसा डिग रहा है।
बिहार से सिर्फ नौकरी तलाशने के लिए ही लोग पलायन नहीं करते, बिहार से छात्र अच्छी शिक्षा को पाने भी पलायन करते हैं और जब विश्विद्यालय अपने कारण से छात्रों के जीवन से खिलवाड़ करेगा, तो हम छात्रों के पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है। हम गरीब किसान के बच्चे अपने शहर में विश्विद्यालय रहने के बावजूद बाहर जाकर पढ़ने को विवश होते हैं जिससे परिवार पर पैसे का अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
2011 के आंकड़े के मुताबिक, पूर्णिया बिहार का सबसे कम साक्षरता दर वाला जिला है। और मुझे यह लगता है कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है यहां की लुंज-पुंज शिक्षा व्यवस्था और बिहार सरकार की उदासीनता। यहां न अच्छी शिक्षा व्यवस्था है और न करियर के मौके। लेकिन, हम जैसे छात्रों पर घर की जिम्मेदारियों का बोझ जरूर है। ऐसे में हम जैसे छात्र करें तो करें क्या?
(तेजस्वी सिंह पूर्णिया के रहने वाले हैं और पूर्णिया यूनिवर्सिटी से अंगीभूत पूर्णिया काॅलेज में पढ़ते हैं।)
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पूर्णिया यूनिवर्सिटी के सत्र लेट होने के कारण है वहां के voice chancellor एंड dsw और जितने भी पदाधिकारी है सब सिर्फ अपना पेमेंट से मतलब रखते हैं क्योंकि उन्हें खुद ज्ञान की कमी है
वह क्या चलाएंगे यूनिवर्सिटी साडे घूसखोर है