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चाय बागानों में ‘भविष्य निधि’ : न ‘भविष्य’, न ‘निधि’, गड़बड़झाला!

इस बारे में हाल-हकीकत को पश्चिम बंग चा मजूर समिति (पीबीसीएमएस) की एक रिपोर्ट उजागर करती है। इस समिति के द्वारा 30 चाय बागानों के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि केवल चार चाय बागानों ने ही सितंबर 2024 तक मजदूरों के लिए पीएफ अंशदान जमा किया था।

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सिलीगुड़ी: उत्तर बंगाल के चाय बागानों विशेष कर तराई और डूआर्स के चाय बागानों में मजदूरों की भविष्य निधि (पीएफ) में खूब गड़बड़झाला हुआ है। इसके साथ ही घपला-घोटाला हुआ है। इसके चलते बड़ी संख्या में चाय बागान मजदूर कर्मचारी भविष्य निधि (पीएफ) अंशदान से जुड़ी चुनौतियों से जूझ रहे हैं। अनेक चाय बागानों के प्रबंधन ने पीएफ में नियोक्ता यानी अपना अंशदान जमा करने में चाही-अनचाही चूक की है। इससे अनेक चाय बागान मजदूर सेवानिवृत्ति उपरांत के अपने उचित लाभों तक पहुंच से वंचित रह गए हैं। ऐसे में वे वित्तीय संकट झेलने को मजबूर हैं।


आरोप है कि कुछ मामलों में चाय बागान प्रबंधन ने जान-बूझ कर मजदूरों के पहचान अभिलेखों में त्रुटियां पेश की हैं ताकि मजदूरों द्वारा पीएफ और ग्रैच्युटी का दावा करना और उसकी राशि निकाल पाना टेढ़ी खीर हो जाए और चाय बागान मालिकान को भुगतान न करने की राहत रहे।

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क्या है हाल, क्या हकीकत?

इस बारे में हाल-हकीकत को पश्चिम बंग चा मजूर समिति (पीबीसीएमएस) की एक रिपोर्ट उजागर करती है। इस समिति के द्वारा 30 चाय बागानों के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि केवल चार चाय बागानों ने ही सितंबर 2024 तक मजदूरों के लिए पीएफ अंशदान जमा किया था। अन्य चाय बागानों में या तो किए ही नहीं गए या फिर कुछेक द्वारा जो किए गए तो चाहे अनचाहे तौर पर त्रुटिपूर्ण रूप में किए गए। इन त्रुटियों के परिणाम गंभीर साबित हुए हैं। मजदूरों को अक्सर आपात स्थिति में अथवा सेवानिवृत्ति उपरांत वित्तीय लाभ प्राप्त किए बिना ही रह जाना पड़ता है। उनकी आर्थिक कमजोरियां और बढ़ जाती हैं। वे बेबसी व आर्थिक मजबूरी में ही जीने को मजबूर हो जाते हैं। चाय बागानों के प्रबंधन और विनियामक निरीक्षण की प्रणालीगत चुनौतियों को उजागर करने वाले हस्तक्षेपों के बावजूद यह समस्या बनी हुई है।


रिपोर्ट के मुताबिक, पीएफ व ग्रैच्युटी आदि भुगतान के अपने अधिकार हेतु मजदूरों को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। लोक अदालत द्वारा ऐसे 279 मामलों का निदान हुआ। मजदूरों के भुगतान दावे का निर्धारण लोक अदालत ने किया। उनमें तुलसी पाड़ा चाय बागान के 10, मधु बागान के 89, बांदा पानी चाय बागान के 55, कालचीनी चाय बागान के 35, हंटा पाड़ा चाय बागान के 48, और चिनचुला चाय बागान के 42 ऐसे मामले रहे जिनमें मजदूरों के दावों का निर्धारण लोक अदालत द्वारा हुआ। वहीं 236 मामले नियामक प्राधिकार द्वारा निपटाए गए। उनमें राम झोरा चाय बागान के 30, तुलसी पाड़ा चाय बागान के 100 और लंका पाड़ा चाय बागान के 106 मामले शामिल रहे। जबकि, अभी भी 1313 मामले लंबित हैं।

कहां-कहां कितने मामले लंबित?

पीएफ व ग्रैच्युटी की राशि के भुगतान के मामले छोटे-बड़े सभी चाय बागानों में कुछ न कुछ लंबित हैं। जलपाईगुड़ी व अलीपुरद्वार जिला अंतर्गत डूआर्स क्षेत्र के चाय बागानों में ऐसे 1,313 मामले लंबित हैं। उनमें तुलसी पाड़ा चाय बागान के 10, लंका पाड़ा चाय बागान के 124, वीर पाड़ा चाय बागान के 76, मधु बागान के 70, बंदा पानी के 51, कटहलगुड़ी के 203, ढेकला पाड़ा चाय बागान के 105, राय मटांग चाय बागान के 31, गरगंडा चाय बागान के 177, चिंचुला चाय बागान के 43, राम झोरा चाय बागान के 189, हंटापाड़ा चाय बागान के 49, कोहिनूर चाय बागान के 10 और कालचीनी चाय बागान के 175 मामले लंबित हैं।

पश्चिम बंग चा मजूर समिति (पीबीसीएमएस) के सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, 14 नवंबर 2024 तक 30 चाय बागानों में पीएफ के 79,52,68,564.00 रुपये बकाया हैं। इनके भुगतान की मजदूर बाट ही जोह रहे हैं। ये सभी चाय बागान उत्तर बंगाल के डूआर्स क्षेत्र यानी जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार जिला अंतर्गत क्षेत्र के हैं। डूआर्स में चाय बागान मजदूरों के समक्ष केवल पीएफ व ग्रैच्युटी भुगतान न होने की ही समस्या नहीं है बल्कि अनेक समस्याएं हैं। न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण न होना, ‘फालोई’ (बंद चाय बागानों में स्थायी श्रमिकों को वित्तीय सहायता) न मिलना, अनेक चाय बागानों का बंद रहना, ऐसे में काम न मिलना, रोजी-रोटी के लाले पड़ना, बेरोजगारी, भुखमरी कुपोषण आदि कई समस्याओं के सम्मुखीन रहने को चाय बागानों के मजदूर मजबूर हैं। चाय बागान मजदूरों की इन समस्याओं के समाधान की मांग को लेकर पश्चिम बंग चा मजूर समिति लंबे अरसे से आंदोलनरत है।

क्या कर रहा है शासन-प्रशासन?

इस बारे में पश्चिम बंग चा मजूर समिति (पीबीसीएमएस) की केंद्रीय कमेटी की सदस्य, जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता अनुराधा तलवार कहती हैं कि चाय बागानों व चाय बागान मजदूरों से संबंधित इन चुनौतियों के जवाब में पश्चिम बंगाल सरकार ने एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) लागू की है। इसमें कहा गया है कि यदि कोई चाय बागान तीन महीने से अधिक समय तक बंद रहता है, तो उसका पट्टा रद्द कर दिया जाएगा। जिला अधिकारियों को ऐसे बंद चाय बागानों और उनके बंद रहने की अवधि की सूची तैयार करने का काम सौंपा गया है। इन उपायों के बावजूद कुछ चाय बागान प्रबंधनों द्वारा इसे न मानने व इस पर अमल व अनुपालन नहीं करने के चलते ही उत्तर बंगाल में चाय बागानों व मजदूरों की दशा दयनीय है। चाय बागान मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए अधिक सख्त प्रवर्तन और निरीक्षण की आवश्यकता है। इस पर विचार किया जाना चाहिए।

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