सीमांचल के किशनगंज ज़िले में एक प्रदर्शन के लिए ग्रामीणों ने बांस, लोहे के पाइप और खाली ड्रम की मदद से करीब 60 घंटे में एक पुल बना दिया। स्थानीय बोल चाल में ऐसे अस्थायी पुल को ‘पीपा पुल’ या ‘चचरी पुल’ कहते हैं।
ज़िले के पोठिया और ठाकुरगंज प्रखंड सीमा पर स्थित खरखरी-भरभरी महानन्दा नदी घाट पर पुल निर्माण की मांग को लेकर आस-पास के ग्रामीण 28 मई से अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन पर बैठे थे। पुल निर्माण संघर्ष कमिटी खारुदह के बैनर तले आयोजित इस धरना प्रदर्शन के दस दिन बीत जाने के बाद भी जब प्रशासन ने उनकी सुध लेने नहीं आई, तो कमिटी ने 11 जून को किशनगंज शहर से ठाकुरगंज जाने वाली सड़़क को खरखरी चौक पर जाम करने का फैसला किया। इस सड़़क जाम के दौरान नदी की दूसरी तरफ के ग्रामीणों को इकट्ठा करने के मकसद से कमिटी ने तीन दिन पहले से पुल बनाना शुरू कर दिया।
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बांस का पुल क्यों बनाया?
पुल निर्माण संघर्ष कमिटी के सदस्य और स्थानीय जिला परिषद सदस्य फैज़ान अहमद बताते हैं, “पिछले साल 11 अगस्त को भी हमने ऐसा ही एक प्रदर्शन किया था। तब लोग नाव के सहारे आये थे। इस दौरान दो बार नाव डूब भी गयी थी। हालाँकि, नदी में पानी कम होने की वजह से सभी लोग सुरक्षित बच कर निकल गए थे।”
11 जून को नदी में पानी बढ़ने का डर था। ज़्यादा भीड़ होने पर नाव से कोई अप्रिय घटना हो सकती थी, इसलिए नाविक ने प्रदर्शन के लिए नाव के इस्तेमाल से भी मना कर दिया।
जालंधर में कपड़े का कारोबार करने वाले पुल निर्माण संघर्ष कमिटी के कोषाध्यक्ष मो. राही ने अस्थाई चचरी पुल बनाने का सुझाव दिया। राही बताते हैं, “पीपा पुल बनाने को लेकर कमिटी एक मत नहीं थी। क्यूंकि उस रोज़ नदी में ज़्यादा पानी बढ़ने पर पुल भी किसी काम का नहीं रह जाता। लेकिन, मेरी ज़िद्द थी की जो भी ग्रामीण उस दिन प्रदर्शन के लिए आएं उन्हें कहीं चप्पल-जूते उतारने न पड़े।”
लगभग 60,000 रुपए की लागत से 350 फ़ीट लम्बी इस पुल को बनाने में 400 बांस, 50 किलो प्लास्टिक की रस्सी, 40 किलो नट और 46 खाली ड्रम इस्तेमाल किया गया। साथ ही 180 फ़ीट लंबी लोहे की पाइप जोड़ी गयी।
“घाट पर हुए एक हादसे के बाद बालू संवेदक लोहे की पाइप और खाली ड्रम छोड़ कर गए थे, हमने उसका इस्तेमाल किया और बांस ग्रामीणों ने दिया,” मो. रही बताते हैं।
पहले भी हो चुके हैं प्रदर्शन
खरखरी-भरभरी महानन्दा पुल के नहीं होने से दर्जनों पंचायत की लगभग डेढ़ लाख आबादी को जिला मुख्यालय जाने के लिए 85 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। पुल बन जाने से ये दूरी घट कर 21 किलोमीटर हो जाएगी। पुल के लिए पहले भी दो बड़े प्रदर्शन हो चुके हैं। जनवरी 2019 में भी ग्रामीणों ने किशनगंज-ठाकुरगंज मुख्य सड़़क को जाम कर प्रदर्शन किया था। उसके बाद 11 अगस्त 2021 को पुल निर्माण को लेकर एक विशाल प्रदर्शन हुआ। तब जिला प्रशासन नें आश्वासन दिया था कि 3 महीने के अन्दर Detailed Project Report (DPR) बना कर दे दिया जायेगा। लेकिन 10 महीने बाद आज तक इस दिशा में कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई। इसलिए पुनः उसी मांग को आगे बढ़ाते हुए पुल निर्माण संघर्ष कमिटी ने 28 मई को घाट पर ही धरना प्रदर्शन किया और 11 जून को सड़क जाम किया।
फिर एक बार आश्वासन
सुबह 9 बजे से शुरू हुए सड़क जाम की वजह से किशनगंज-ठाकुरगंज मुख्य मार्ग पर गाड़ियों की लम्बी कतार लग गयी। आखिरकार शाम को जिला प्रशासन ने स्थानीय पोठिया प्रखंड विकास पदाधिकारी छाया कुमारी को प्रतिनिधि बना कर प्रदर्शनकारियों से मिलने भेजा। मौके पर उन्होंने कहा, “आप अपना मांग पत्र हमें दीजिए, मैं उसे जिला पदाधिकारी महोदय तक पहुंचाऊंगी। अगर आपकी मांग पर 10 दिन में प्रगति नहीं दिखी, मैं पुनः यहाँ आकर आपके पास बैठूंगी।”
पोठिया प्रखंड विकास पदाधिकारी से मिले आश्वासन के बाद ग्रामीणों ने सड़़क जाम खत्म किया। प्रदर्शन के बाद ग्रामीण बीडीओ को बांस का पुल दिखाने भी ले गये, जो मुख्य सड़़क से लगभग दो किलोमीटर अंदर है।
मुख्यमंत्री ने भी दिया था आश्वासन
इस पुल को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद भी आश्वासन दे चुके हैं। राही बताते हैं, “2014 में हमलोगों ने मुख्यमंत्री के सामने प्रदर्शन किया था, तब उन्होंने आश्वासन दिया। उसके बाद 2015 चुनाव में हमने इसी उम्मीद से ठाकुरगंज विधानसभा से जदयू के नौशाद आलम को जिताया, लेकिन पुल नहीं बना। जब मुख्यमंत्री के आश्वासन से कुछ नहीं हो पाया, तो जिला प्रशासन के आश्वासन पर कैसे भरोसा करें।”
इस मुद्दे को लेकर पुल निर्माण संघर्ष कमिटी के सदस्य मो. सद्दाम हुसैन ने पिछले साल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दरबार में भी गुहार लगाई। सद्दाम बताते हैं, “वहाँ मैंने पूछा था कि आपने दो बार वादा किया है, एक बार डॉ. अबुल कलाम आज़ाद कृषि कॉलेज और दूसरी बार पौआखाली ग्राउंड में, तो उन्होने कहा कि, वह देख रहे हैं, जल्द काम होगा।”
प्रदर्शन में शामिल हुए ठाकुरगंज के राजद विधायक सऊद आलम कहते हैं, “मैंने विधानसभा में इसको लेकर सवाल किया है। पुल निगम से भी इसको लेकर बात चल रही है, उनलोगों ने आश्वासन दिया है कि जल्द इसको लेकर फैसला लिया जाएगा। इसी उम्मीद में ही हमलोग हैं।”
दूसरे दिन ही बहने लगा पुल
जैसा कि पुल निर्माण संघर्ष कमिटी को डर था, प्रदर्शन के दूसरे दिन वैसा ही हुआ। 11 जून की रात से ही नदी में पानी बढ़ने लगा और 12 जून की सुबह होते होते पुल बहने लगा। फैज़ान कहते हैं, “अल्लाह का शुक्र है कि 11 जून को पुल ने साथ दिया। नुक्सान बचाने के लिए हम पुल को आज ही खोल देंगे।”
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BBC स्टाईल मे लिखा गया है। काफी बेहतरीन स्टोरी है।