[vc_row][vc_column][vc_column_text]बिहार चुनावों को लेकर सरगर्मियां तेज हैं। बिहार में विधानसभा चुनावों को लेकर तारीखों का एलान हो गया है। ऐसे में पार्टियों के बीच जोड़ तोड़ भी तेज है। मीडिया में ज्यादात्तर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और यूनाईडेट प्रोग्रेसिव एलायंस (UPA) की बात हो रही है। वहीं बिहार में एक तीसरा मोर्चा बनाने की बात भी जारी है। लेकिन इस सब के बीच पप्पू यादव खबरों में आ गए हैं। ऐसा इसलिए है क्यों कि पप्पू के संग आ गए हैं दलितों के नेता चंद्रेशेखर आजाद ‘रावण’। दोनों के साथ आने से बिहार की राजनीति में कई समीकरणों के बदलने की बातें भी तेज हो गईं हैं।
बिहार में वोटिंग से पहले नए समीकरण बनने और बिगड़ने का सिलसिला जारी है। अब जब पप्पू यादव और चंद्रशेखर आजाद साथ आए हैं ऐसे में बिहार में दलित वोट को लेकर समीकरणों के बदलने की बात हो रही है। बता दें कि पप्पू यादव की जनधिकार पार्टी और रावण की आजाद समाज पार्टी, बीएमपी और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) ने मिलकर नए गठबंधन की नींव डाली है। इस गठबंधन का नाम है ‘प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक अलायंस (Progressive Democratic Alliance).
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दोनों पार्टियों के बीच हुए इस नए गठबंधन (Progressive Democratic Alliance) के बीच इस गठबंधन को लेकर एक प्रेस कांफ्रेंस भी किया गया था। इस दौरान जाप प्रमुख के पप्पू यादव ने कहा कि बिहार को कैसे बचाया जाए, उसके लिए ये गठबंधन है। आप मत सोचिए की अंतिम है। कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने के सवाल पर पप्पू यादव ने कहा कि कांग्रेस की आदत अपमानित होने की हो गई है। हमने कई बार कहा आइए स्वागत है।
नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए पप्पू यादव ने कहा कि नीतीश जी वहीं जिन्होंने जीतनराम मांझी का संभु बध किया था। आज नीतीश को ऐश्वर्या तो सुशांत, तो राघुवंश बाबू याद आते हैं। यादव ने कहा कि चंद्रशेखर जी बिहार बचाने के लिए आए हैं। वहीं इस नए गठबंधन में पप्पू यादव ने उपेन्द्र कुशवाहा का भी स्वागत किया। उन्होंने चिराग पासवान और कांग्रेस के लिए भी रास्ता खूले होने की बात कही।
क्या बदलेगा ‘रावण’ के आने से
बिहार के बाहर यूपी और अन्य राज्यों में चंद्रशेखर रावण को दलितों के बड़े नेता के रुप में देखा जाता है। वहां उन्होंने दलितों के लिए कई आंदोलन किए हैं और इससे वो पूरे देश के दलितों के बीच लोकप्रिय चेहरा हैं। बात बिहार की करें यहां 16 फीसद के करीब दलितों का वोट बैंक है, जिसपर पहले राजद का दावा हुआ करता था। लेकिन धीरे —धीरे नीतीश कुमार ने इसमें सेंध लगाया है। हाल के चुनाव में जीतन राम मांझी को अपनी ओर लाकर नीतीश ने इस वोट बैंक को सुरक्षित करने की कोशिश की है। यही कारण है कि लोजपा एनडीए में बगावत के मूड में है। ऐसे में बिहार की राजनीति में रावण का आना दलितों के वोट बैंक में बड़ा सेंध लगा सकता है। क्यों कि उनकी छवि जिस तरह की है उससे दलित युवा काफी प्रभावित है। ऐसे में कहा जा सकता हैं कि बिहार की राजनीति में इस बार दलित वोट बैंक डिसाइडिंग फेक्टर बन सकता है।
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