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वेतन के बदले कर्ज उठा रहे मौलाना मजहरुल हक अरबी व फारसी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर!

मौलाना मजहरुल हक अरबी व फारसी विश्वविद्यालय के नव नियुक्त प्रोफेसर पिछले एक साल से वेतन का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर शिक्षा विभाग तक मामले को लेकर उदासीन रवैया अपना रहा है।

Navin Kumar Reported By Navin Kumar |
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मौलाना मजहरुल हक अरबी व फारसी विश्वविद्यालय के नव नियुक्त प्रोफेसर पिछले एक साल से वेतन का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर शिक्षा विभाग तक मामले को लेकर उदासीन रवैया अपना रहा है।

नवनियुक्त शिक्षकों का कहना है कि सैलरी नहीं मिलने के कारण जरूरत की चीजों को पूरा करने के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ रहा है जिससे आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

मौलाना मजहरूल हक अरबी व फारसी विश्वविद्यालय, बिहार का एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय है जिसमें अरबी, फारसी,जर्नलिज्म से लेकर अनेक प्रोफेशनल कोर्स की पढ़ाई होती है। लेकिन, इसी विश्वविद्यालय के शिक्षकों के साथ वेतन संबंधी समस्या विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ साथ बिहार के शिक्षा विभाग पर भी सवाल उठाती है।


मामले से पीड़ित प्रोफेसर डॉ तहसीन जमा दुःख व्यक्त करते हुए कहते हैं, “मेरे साथ ही नियुक्त हुए मेरे साथी जो बिहार के अन्य विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं सभी का वेतन समय से मिल रहा है लेकिन हमलोगों को पिछले एक साल से सैलरी नहीं मिली है। सैलरी न मिलने से अब घरवाले भी शक की निगाह से देखते हैं।” उन्होंने कहा, “हमलोगाें की नौकरी नहीं लगी है और हमलोग झूठ बोल रहे हैं।”

विश्वविद्यालय प्रशासन की नाकामी और वेतन का इंतजार

“मेरी नियुक्ति विश्वविद्यालय सेवा आयोग के माध्यम से 11 मई 2022 को हुई है। विश्वविद्यालय में सेवा देते हुए मुझे एक साल हो गया है। लेकिन, अभी तक एक महीने की भी सैलरी नहीं मिली है। विश्वविद्यालय में कुल 18 प्रोफेसर इस मामले से पीड़ित हैं जिनकी नियुक्ति मार्च 2022 से जून 2022 के बीच हुई थी। विश्वविद्यालय प्रशासन की नाकामी और लापरवाही की वजह से हमलोगों का वेतन शुरू नहीं हो पाया है,” जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन विभाग में नियुक्त प्रोफेसर मुकेश कुमार ने प्रशासन को जिम्मेवार ठहराते हुए कहा।

उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन को दोषी ठहराते हुए कहा कि शिक्षा विभाग से सही राशि और बजट की मांग नहीं करने से मामला अटक हुआ है। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले मौलाना मजहरूल हक यूनिवर्सिटी को छोड़कर प्रदेश के सभी यूनिवर्सिटी के लिए पैसा निर्गत किया गया है।

विश्वविद्यालय में इस्लामिक स्टडीज के प्रोफेसर तहसीन जमा ने कहा कि विश्वविद्यालय कुलपति मोहम्मद आलमगीर को भी मामले से अवगत कराया गया। मोहम्मद आलमगीर ने गोल मोल जवाब देते हुए पहले कहा कि कुछ करते हैं, देखते हैं और फिर कहा कि अभी और इंतजार कीजिए।

प्रोफेसर तहसीन जमा के अनुसार, विश्वविद्यालय के आंतरिक स्रोत से पहले से कार्यरत शिक्षक और कर्मचारियों को नियमित रूप से वेतन का भुगतान किया जा रहा है और सिर्फ 18 प्रोफेसर का वेतन रोककर दोहरी नीति अपनाई जा रही है।

वेतन के बदले लोन

प्रोफेसर तहसीन आगे बताते हैं कि पिछले कुछ महीनों से हमलोगों को 50000 रुपये प्रति माह कर्ज के रूप में दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि नियुक्ति के 6 महीने के बाद भी जब सैलरी नहीं मिली तो हमलोग सक्रिय हुए और तत्कालीन कार्यवाहक वीसी गिरीश चौधरी को मामले से अवगत कराया। डॉ गिरीश ने सैलरी समस्या सुधार में देरी होने के कारण 50000 रुपए प्रति माह कर्ज के रूप में देने का आश्वासन दिया जिसे शुरू होने में भी तीन महीने लग गए। सैलरी के लिए लगातार दवाब बनाने पर तत्कालीन वीसी डॉ आलमगीर ने 50000 रुपये प्रति माह कर्ज के रूप में देने की स्वीकृति प्रदान की है। कर्ज के लिए भी बार-बार फॉर्म देना पड़ता है और कार्रवाई होने के बाद ही पैसे की स्वीकृति मिलती है। कर्ज के लिए हमलोगों से एक बॉन्ड भी बनवाया गया है, जिसमें दी जाने राशि को लोन दर्शाया गया है।

टूट रहा हौसला

“यूनिवर्सिटी में नवनियुक्त अधिकतर प्रोफेसर नियुक्ति से पहले बिहार के बाहर दूसरे राज्यों में ऊंचे पद पर कार्यरत थे। अपने राज्य और लोगों के लिए काम करने और उनके विकास में सहायता करने की अभिलाषा के साथ हमलोगों ने नौकरी ज्वाइन की थी, लेकिन प्रशासन की लापरवाही की वजह से हौसला टूट गया है,” अफसोस जाहिर करते हुए अरबी भाषा के प्रोफेसर डॉ अनवर ने कहा।

उन्होंने कहा कि वेतन संबंधी समस्या की वजह से आर्थिक और मानसिक कष्ट का सामना करना पड़ रहा है। अपने विषयों में नए-नए खोज और प्रयोग नहीं कर पा रहे है।

डॉ अनवर ने बताया कि मौलाना मजहरूल हक विश्वविद्यालय को सिर्फ एक मकान बनाकर छोड़ दिया गया है। यूनिवर्सिटी के अंदर जरूरत की चीजों और संसाधनों की भारी कमी है। यूनिवर्सिटी में रोजाना क्लास होती है, लेकिन बेंच डेस्क की कमी है। परीक्षा के समय छात्रों की संख्या बढ़ने पर अलग से बेंच डेस्क की व्यवस्था करना पड़ता है।

यूनिवर्सिटी वीसी डॉ आलमगीर ने यूनिवर्सिटी प्रशासन की लेट लतीफी को नकारते हुए कहा कि चार महीने पहले शिक्षा विभाग को वेतन संबंधी बजट भेज दिया गया है। शिक्षकों के वेतन में देरी की समस्या पर शिक्षा विभाग ही बता पाएगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन शिक्षकों की हमेशा मददगार रहा है। जल्द ही समस्या से प्रधान सचिव को भी अवगत कराया जाएगा।

प्रोफेसर तहसीन ने कहा कि मामले को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन पर लगातार दवाब बनाया जा रहा है। उचित कार्रवाई नहीं होने पर शिक्षा विभाग से लेकर शिक्षा मंत्री तक को पत्र लिखा जायेगा।

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नवीन कुमार बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के रहने वाले हूं। आईआईएमएससी दिल्ली से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। अभी स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं। सामाजिक विषयों में रुचि है। बिहार को जानने और समझने की निरंतर कोशिश जारी है।

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