किशनगंज के दिघलबैंक के तौकीर अहमद और ज़ैद मुखिया ने पार्टनरशिप में पिछले साल अंडे का कारोबार शुरू किया है जिससे वे अपने ही इलाके में अंडों की सप्लाई कर रहे हैं।
मैं मीडिया से बात करते हुए अपने बिजनेस की शुरुआत के बारे में तौकीर आलम बताते हैं कि इस मुर्गी फॉर्म को लगभग डेढ़ साल हो गया है। उन्होंने इसे पिछले साल कोरोना के बाद रमजान में शुरू किया था। इसके बारे में पहले उन्होंने यूट्यूब पर देखा था।
Also Read Story
इसके अलावा उनके कुछ रिश्तेदार उत्तर प्रदेश में पहले से अंडे का कारोबार करते थे। इसलिए वह यूपी गए और वहां लखनऊ, गोरखपुर और देवरिया जैसी जगहों पर चल रहे पोल्ट्री फार्म का दौरा किया। वहां के जितने भी पोल्ट्री फार्मर हैं, उनसे बात की।
वह आगे बताते हैं, “उत्तर प्रदेश में हमने अंडा कारोबारियों से बात की तो उन्होंने हमें काफी सपोर्ट किया और इसके बारे में सारी जानकारी देते हुए बताया कि यह एक अच्छा कारोबार है। आप लोग इसको जरूर करिए, लेकिन इसमें निवेश ज्यादा लगता है।”
कितना खर्च हुआ
कारोबार में लगने वाली शुरुआती लागत को आमतौर से कॉस्ट कहा जाता है। अपने इस कारोबार में आने वाली कॉस्ट के बारे में तौकीर आलम बताते हैं कि उन्होंने अपने पार्टनर जैद मुखिया के साथ जब यह बिजनेस शुरू किया तो सबसे पहले 10 हज़ार मुर्गी के बच्चे खरीदे थे, जिन को खरीदने और उनके रहने व खाने का इंतजाम करने में उन्हें लगभग नब्बे लाख रुपए का खर्च आया था।
क्या रही प्रक्रिया
तौकीर आलम से जब इस कारोबार में इस्तेमाल होने वाली प्रक्रिया के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया, “हम कंपनी से 1 दिन का बच्चा खरीद कर लाते हैं। और उसे लगभग 4 महीने तक पालते हैं। 4 महीने बाद जब वे 1 किलो 200 ग्राम की हो जाती हैं, तो हम उसको ऊपर से नीचे वाले पिंजरे में लाते हैं।
तब ये अंडे देना शुरू करती हैं और 1 साल तक यह अंडे देती है। एक मुर्गी से डेढ़ साल तक अंडे लेते हैं और इसके बाद उसे कटने के लिए बेच देते हैं।
अंडे के कारोबार में नफा नुकसान
आमतौर पर हर कारोबार में नफा नुकसान लगातार चलता रहता है। और जरूरी नहीं कि कारोबार की शुरुआत में हमेशा फायदा ही हो, शुरुआत में बहुत हद तक नुकसान होने की आशंका रहती है।
तौकीर आलम को भी इस कारोबार की शुरुआत में नुकसान उठाना पड़ा था। इस बारे में बात करते हुए व कहते हैं, “हमने 10 हजार बच्चों को एक-डेढ़ महीने तक पाला। लेकिन, उसके बाद एक बीमारी आई और बीमारी में 4500 मुर्गियां मर गईं। जिसके बाद हमें 20 से 25 लाख रुपए का नुकसान हुआ। लेकिन फिर भी हमने इसे चालू रखा। हमें यहां के मौसम की वजह से भी थोड़ी परेशानी आ रही है, जिस कारण हम डॉक्टर से लगातार टच में हैं।”
वर्तमान में नफ़ा- नुकसान की स्थिति बताते हुए तौकीर कहते हैं, “हम लोग अभी ना नुकसान में है और ना ही मुनाफा कमा पा रहे हैं। हमें पहले इस कारोबार के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं थी लेकिन अब एक्सपीरियंस हो गया है, आगे कुछ करेंगे तो यह सब दिक्कतें नहीं आएंगी।”
आगे तौकीर ने बताया कि जो पुराने लोग इस बिजनेस को कर रहे हैं उनका काम अच्छा चल रहा है और वे काफी खुश हैं। 90% लोग खुश हैं इस बिजनेस में, बाकी केवल 10% लोग ही मेरे जैसे हैं जिनको नुकसान हुआ है।
अंडों का बाजार
अपने आसपास के क्षेत्रों में अंडों के मार्केट के बारे में तोक़ीर बताते हैं, “इसका मार्केट बहुत अच्छा है, बहुत डिमांड भी है इसकी। हम दिघलबैंक क्षेत्र में सप्लाई करते हैं और पूरे क्षेत्र को फिर भी कवर नहीं कर पाते हैं। यहां कोई घर ऐसा नहीं होगा जिसमें लोग अंडे नहीं खाते हैं।
मान लीजिए दिघलबैंक की आबादी कम से कम 4 लाख भी है, और उसमें 50% लोग भी अगर अंडे खाएं, तो मतलब 2 लाख अंडों की डिमांड रोजाना होती है। जबकि हमारी सप्लाई केवल 10 हजार की है। हम केवल 2-4 पंचायतें ही कवर कर पाते हैं। हम अपने आसपास के पंचायतों में लोगों को ताजा अंडा उपलब्ध करवाते हैं।”
अंडों के फायदे
“यह अंडा देसी अंडे से भी ज्यादा फायदेमंद है। इस अंडे के बारे में अगर आप पढ़ेंगे या रिसर्च करेंगे तो पता चलेगा कि यह देसी अंडे से भी ज्यादा अच्छा है।
अक्सर लोगों के दिमाग में गलतफहमी होती है कि देसी अंडा ज्यादा फायदेमंद है और यह जो अंडा है यह हाइब्रिड मुर्गी का होता है, इनको इंजेक्शंस दिए जाते हैं, इसलिए अच्छा नहीं होता।”
आगे तौकीर कहते हैं, “लेकिन असलियत यह है कि देसी अंडे से ज्यादा इस अंडे से फायदा है, क्योंकि ये एक सिस्टम से तैयार किए जाते हैं। हमारे यहां जो पूरा यह सिस्टम लगा हुआ है इसमें किसी बाहर वाले की एंट्री नहीं है। इसको एकदम हिफाजत से रखा जाता है।”
मुर्गियों को खिलाए जाने वाले खाने के बारे में तौकीर ने बताया, “दाना भी हम इनके लिए गोदरेज कंपनी का खरीदते हैं, जो सोयाबीन, मक्के का दाना, रिफाइंड और कैल्शियम डाल कर बनाया जाता है। इससे अंडे में कैल्शियम और प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है।”
“हम मुर्गी को इंजेक्शन भी नहीं लगाते हैं। बस एक बार वैक्सीनेशन होता है जो कि बीमारी से बचने के लिए जरूरी है।”
देसी मुर्गी के अंडों से अपने फ़ार्म की मुर्गियों के अंडे की तुलना करते हुए तौकीर कहते हैं, “देसी मुर्गी का देखें तो वह घूमती फिरती कुछ भी खा लेती है, लेकिन हम अपनी मुर्गियों को 1380 रुपए वाला गोदरेज कंपनी का दाना खिलाते हैं, और डॉक्टरों का भी मानना है कि यह अंडा देसी अंडों से ज्यादा अच्छा होता है।”
मुर्गियों के वेस्ट
अंत में तौकीर ने मैं मीडिया को एक और महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मुर्गी की जो बीट होती है वह यूरिया से महंगे दामों पर मिलती है। किसान लोग इसको किलो के हिसाब से खरीदते हैं, जो कि उनकी फसलों को यूरिया व डीएपी से ज्यादा फायदा पहुंचाती है।
उन्होंने आगे बताया कि जिन किसानों को इसकी जानकारी है, वे हमसे एडवांस में इसकी बुकिंग भी कर लेते हैं।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।
