इन दिनों सीमांचल सहित पूरे राज्य में शीतलहर से लोग जूझ रहे हैं। कटिहार जिला क्षेत्र में पछुआ हवा और लगातार नीचे गिरते तापमान से आम जनजीवन अस्त व्यस्त है। शीतलहर और ठंडी हवा से अब फसल पर भी खतरा मंडराने लगा है। पछुआ हवा और बढ़ती कनकनी के कारण सबसे ज्यादा आलू की फसल प्रभावित है। खेतों में लगाए गए आलू पिछात झुलसा रोग से ग्रस्त हो रहे हैं। लाखों रुपए की लागत से लगाई गई आलू की फसल में पाला रोग से बचाने के लिए किसान दवाई का छिड़काव कर रहे हैं लेकिन उससे कुछ खास राहत नहीं मिल रही है।
आलू की खेती करने वाले ललियाही निवासी उमेश महतो ने बताया कि उन्होंने डेढ़ लाख की लागत से आलू का खेती की थी। कई जगहों पर आलू में पिछात झुलसा रोग लग गया है। फसल में पाला मार देने से सर पर कर्ज का बोझ बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि कृषि विभाग भी इस मामले पर कोई जानकारी नहीं उपलब्ध करा सका है।
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सुशीला देवी भी उन सैकड़ों लोगों में से एक हैं जिनकी खेती ठंड से खराब हो रही है। लीज़ पर ली गई ज़मीन पर खेती करने वाले ये किसान क़र्ज़ के बोझ दबे हुए हैं और फिलहाल इस कठिन परिस्थिति में सरकार से सहायता की आस लगाए बैठे हैं।
मंटू राय ने आठ एकड़ ज़मीन पर खेती की थी। वह कहते हैं कि हर हफ्ते 3 हज़ार से अधिक सिर्फ दवाइयों में खर्च हो रहा है क़र्ज़ देने वाला भी पैसे के लिए परेशान करता है। ऐसा ही चलता रहा तो किसानी ही छोड़नी पड़ेगी।
जिला कृषि विभाग की मानें, तो पूरे जिले में जैविक खेती और अन्य माध्यम से लगभग 1 हजार हेक्टेयर में आलू की फसल लगाई गई है।
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर कुणाल प्रताप सिंह ने इस संकट से बचने के लिए किसानों को कई उपाय बताए। साथ ही साथ उन्होंने ऐसे मौके पर उपयोगी दवाइयां और उनके डोज की भी जानकारी दी। उनके अनुसार समय रहते सही दवाई का छिड़काव कर फसल को बर्बाद होने से बचाई जा सकती है।
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