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सुशांत केश के बहाने बड़ी जातियों को लुभाने में लगे हैं बिहार के राजनीतिक दल, क्या है इसका कारण?

बिहार चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है। चुनाव आयोग की ओर से जारी गाइडलाइन्स के अनुसार चुनाव का प्रोसेस 1 अक्टूबर से शुरू हो जाएगा और 10 नवंबर तक चुनाव संपन्न हो जाएगा।

Reported By Sahul Pandey |
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[vc_row][vc_column][vc_column_text]बिहार चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है। चुनाव आयोग की ओर से जारी गाइडलाइन्स के अनुसार चुनाव का प्रोसेस 1 अक्टूबर से शुरू हो जाएगा और 10 नवंबर तक चुनाव संपन्न हो जाएगा। लेकिन बिहार में चुनाव के राजनीतिक पहलूओं पर बात करें तो बिना जातियों की गोलबंदी के यहां के चुनाव की कल्पना करना संभव नहीं है। बिहार में करीब 200 से ज्यादा जातियां हैं लेकिन इनमें से केवल 15 या 16 ही ऐसी हैं जिनका राजनीतिक तौर पर महत्व है। ये जातियां चुनाव में डिसाइडिंग फैक्टर का काम करती हैं यहीं कारण है कि इन राजनीतिक पार्टियां भी इनपर चुनाव से पहले डोरे डालती हैं।

इस बार के चुनाव में भी बिहार में इन जातियों का बड़ा महत्व रहनेवाला है। चुनाव के पहले कुछ ऐसे माहौल बने हैं जिसके कारण इस बार उन जातियों का राजनीतिक महत्व भी बढ़ा है जो संख्या में कम हैं। पहले बात बिहार की जातियों के बारे में कर लेते हैं। ऐसा माना जाता हैं कि बिहार की आबादी में अगड़ी जातियों का हिस्सा 15 फीसद है, जिसमें ब्राह्मण 5 फीसद के करीब, राजपूत 4 फीसद, भूमिहार 5 फीसद और कायस्थ 1 फीसद के करीब हैं। वहीं बिहार में ओबीसी और इबीसी मिलाकर 50 फीसद की आबादी है जिसमें यादवों की संख्या 12 फीसद, कुर्मी 4 से 5 के करीब, कुशवाहा 8 फीसद और इबीसी वाले कास्ट की भागीदारी 26 फीसद के करीब है। वहीं बिहार में मुसलमान वोट भी 15 फीसद के करीब है।

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सुशांत केश और अगड़ी जाति की राजनीति

बिहार की अगड़ी जाति की बात करें तो 15 फीसद की आबादी इनकी है। अगड़ी जाति में ब्राहम्णों को भारतीय जनता पार्टी का कोर वोटर माना जाता है। कहा जा सकता हैं कि इस जाति के 100 में 90 लोग बीजेपी को वोट देते ही हैं। ऐसे में इस वोट बैंक को लेकर बीजेपी आश्वस्त नज़र आति है। लेकिन इस बार बिहार में बीजेपी की सहयोगी पार्टी जदयू इस वोट बैंक में सेंध डालना चाहती है। हालांकि मौजूदा राजनीतिक माहौल में इससे दोनों में से किसी को भी घाटा नहीं है क्यों कि दोनों साथी हैं। बता दें कि बिहार में ब्राह्मण वोट नीतीश कुमार को पीछले चुनावों में इसलिए भी मिलता रहा क्यों कि बीजेपी और जदयू दोनों सहयोगी रहे हैं। 2015 में यह वोट फिर से एकमुश्त बीजेपी के पक्ष में जाता हुआ दिखा क्यों कि तब जदयू अलग थी।

हाल में सुशांत सिंह राजपूत केश से चर्चा में आए बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डेय का जदयू में शामिल होना इस वोट बैंक को लेकर जदयू की सोच की ओर ध्यान खींचता है। बीजेपी भले ही आज जदयू के संग गठबंधन मे हो लेकिन बिहार में दोनों आगे भविष्य में साथ रहें इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती। ऐसे में नीतीश कुमार अपनी पार्टी के जनाधार को अपने 13 से 14 फीसद कुर्मी — कुशवाहा वोट बैंक से आगे बढ़ाना चाहते हैं। ऐसे में गुप्तेश्वर पाण्डेय जदयू के लिए यह काम कर सकते हैं।

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जदयू और बीजेपी दोनों के लिए गुप्तेश्वर पाण्डेय ओर सुशांत का मामला सिर्फ ब्राह्मण वोटोंं की गारंटी नहीं है बल्कि यह राजपूत वोटों के लिए भी गारंटी का काम कर सकता है। अपर कास्ट में सिर्फ राजपूत वोटर ऐसे हैं जो पूरी तरह से बीजेपी के कोर वोटर नहीं हैं। ऐसे में बीजेपी गठबंधन चाहती हैं कि सुशांत मामले के ​जरिए राजपूत वोटरों को लुभाकर ब्राह्मण वोटों के जैसे ही परमानेंट किया जाए। आपको बता दें कि ऐसी कोशिश लोकसभा चुनावों से ही जारी है। बीजेपी ने 5 राजपूत कैंडिडेटों को मैदान में उतारा था। ऐसे में बीजेपी की इस कोशिश को अब सुशांत मामले से तेजी मिली है।

 

सुशांत के जरिए राजपूतों को लुभाना चाहती है राजद

बिहार में सभी पार्टियों के बारे में कहा जाता हैं कि सबका अपना एक जातिगत जानाधार है। बात आरजेडी की करें तो उसके पास जीत का इक्का है एमवाई यानि मुस्लिम—यादव समीकरण। इसके अलावा अपर कास्ट की ओर से राजपूत कास्ट के वोट उनकों मिलते रहे हैं। रघुवंश बाबू के जैसे बड़े नेता इसके पीछे एक बड़ा कारण रहे हैं। लेकिन 2015 की बात करें तो जदयू और राजद एक साथ थे लेकिन अपर कास्ट की किसी भी पार्टी को नहीं मिला था।

ऐसे में इसके बाद से ही राजद में राजपूतों को लुभाने की कवायद शुरू हुई। हाल में राजद ने जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया था। यह उसी नीति का हिस्सा है। सुशांत की मौत को लेकर राजद भी काफी मुखर दिखी थी और इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की थी। यानि बात साफ हैं कि राजपूत वोट को पाने के लिए राजद भी पूरी कोशिश कर रही है।

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कुल मिलाकर कहें तो अपर कास्ट का वोट खासतौर पर राजपूत वोट को पाने के लिए बिहार के राजनीतिक दलों के बीच होड़ मची है। लेकिन इसमें फायदा मिलता हुआ बीजेपी और उसके गठबंधन को दिख रहा है। क्यों कि अपर कास्ट अटूट रुप से बीजेपी से जुड़ा हुआ है। रही बात राजपूतों की तो बीजेपी ने इस जिस तरीके से सुशांत राजपूत के मामले को मुद्दा बनाया है, इसे बिहारी अस्मिता से जोड़ा उससे साफ लगता हैं चुनाव में इस जाति का वोट उसकी ओर ओर मजबूती से जाएगा।

 


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