2017 में आई बाढ़ ने बिहार के सीमांचल में भारी तबाही की थी। बाढ़ के समय अररिया जिले के कजराधार पर बना तटबंध टूट गया था। तटबंध के टूटने से फारबिसगंज प्रखंड स्थित रामपुर दक्षिण पंचायत वार्ड संख्या 12 के लोग काफी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।
वार्ड संख्या 12 के महादलित टोले में करीब 30 घर हैं। ग्रामीण लंबे समय से कजराधार पर पुल की मांग कर रहे हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि कई सालों पहले ग्रामीण लकड़ी के एक पुल के सहारे नदी पार किया करते थे लेकिन 2008 में आयी बाढ़ में वो पुल ध्वस्त हो गया और कजराधार पर बने तटबंध को भी नुकसान पहुंचा।
9 वर्ष बाद 2017 की भीषण बाढ़ में लगभग 500 मीटर लंबा तटबंध पूरी तरह से तबाह हो गया। इससे पहले 2008 की बाढ़ ने काफी तबाही मचाई थी। पिछले 16 सालों में दो विनाशकारी बाढ़ ने कजराधार पर बसे ग्रामीण काफी प्रभावित हुए हैं।
रामपुर वाल पट्टी निवासी नुनु लाल ने बताया कि नदी पार करने के लिए ग्रामीण आपसी चंदा कर हर साल चचरी का पुल बनाते हैं जो नदी का जलस्तर बढ़ने से बह जाता है। चचरी का पुल इस समय जर्जर हो चुका है और इस्तेमाल योग्य नहीं है।
नुनु लाल कहते हैं, “हर साल हमलोग पूरा गांव मिलकर चचरी पुल बनाते हैं, उसमें 5-10 हज़ार बांस लग जाता है। हर साल चचरी टूट जाता है तो फिर बनाना पड़ता है। इसके लिए अपने और बाहर के गांवों से (बांस) मांग कर चचरी बनाते हैं। यह बांध बहुत साल से टूटा हुआ, ऐसे ही पड़ा हुआ है। हमलोग तो ऐसे ही डूबे पड़े हुए रहते हैं, हमलोग को कोई नहीं देखता है।”
आगे उन्होंने कहा, “2017 में बहुत नुकसान हुआ था, हमलोग का घर द्वार सब डूब गया था। हमलोग तीन महीने नहर किनारे रहे थे। 2008 में भी हुआ, 2017 में भी हुआ, हमलोग को कोई नहीं देखा, पुल भी नहीं दिया। पुल बनाना एमपी, एमएलए, जिला परिषद का काम है लेकिन वो लोग वोट लेने आता है। वोट लेने के जाने के बाद कोई पता नहीं।”
पुल न होने से किसान भी परेशान
पुल नहीं होने से गांव के किसानों को भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। महादलित टोला निवासी मणिलाल ने बताया कि गाड़ी से नदी पार करने के लिए कोई सुविधा नहीं है जिसके कारण फसल ले जाने में बहुत परेशानी होती है। सरकार द्वारा एक नाव दी गई थी जो अब टूट गई है। नदी पार करते समय कई बार नाव पलटने की घटना हो चुकी है।
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“जाने आने में हमको बहुत दिक्कत है। फसल जब उगता है तो उसको ले जाने में भी दिक्कत होता है। फसल ले जाएं या अपना जान संभालें, हमारी कोई सुनवाई नहीं है। हेलकर हमलोग इस पार आते हैं और अगर किसी को हेलने नहीं आता है तो उस पार ही रहना पड़ता है। एक नाव दिया है ब्लॉक से, वो भी टूट गया है अब। चचरी तो हमलोग हर साल बनाते हैं अपने पैसे से। सरकार से मांग है कि हमलोग को पुल दीजिये,” मणिलाल ने कहा।
रामपुर पंचायत वार्ड संख्या 12 स्थित महादलित टोले के ग्रामीण बरसात आने पर अनाज और लकड़ियां पहले से इकट्ठा कर लेते हैं। गर्भवती महिलाएं और मरीज़ों को स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाने में सबसे अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। गांव में स्वास्थ्य सुविधा न होने के कारण ग्रामीणों को छोटी, बड़ी बीमारी के इलाज के लिए पंचायत या प्रखंड मुख्यालय जाना पड़ता है।
“दो जवान लड़का गुज़र गया फिर भी पुल नहीं दिया”
स्थानीय बुजुर्ग सहदेव ऋषिदेव ने बताया कि तीन-चार साल पहले नदी पार करने के लिए नाव की सुविधा नहीं थी। उसी समय गांव में दो लड़के बीमार पड़ गए, कुछ लोग नदी तैर कर मरीज़ों को स्वास्थ्य केंद्र तक ले गए लेकिन देरी हो जाने के कारण दोनों लड़कों की मौत हो गई।
“गांव में हमारा दो जवान लड़का गुज़र गया फिर भी पुल नहीं दिया हमलोग को। नाव नहीं था न कोई और साधन था, केला का बेल भी काटने नहीं दिया। तीन चार लोग तैरकर दोनों को अस्पताल ले कर गया लेकिन वहां जाकर दम तोड़ दिया। दो चार साल हुआ, दो लड़का मरा था। मेरे पड़ोस का था। यह देखिए पानी कोई टप सकता है। बरसात में तो जहां हमलोग खड़े हैं वहां पूरा पानी भरा रहता है। इतना दुःख दर्द से जीवन काटते हैं हमलोग मत पूछिए,” सहदेव ऋषिदेव ने कहा।
बरसात के दिनों में नदी पार करने के लिए नाव ही ग्रामीणों का एक मात्र सहारा होता है। रामपुर दक्षिण पंचायत वार्ड संख्या 7 निवासी मोहम्मद जुबरैल रोज़ नदी पार कर खेती-बाड़ी करने 12 नंबर वार्ड आते हैं। उन्होंने बताया कि कजराधार पर कई बार नाव पलटने की घटना हो चुकी है जिसमें दर्जनों लोग घायल हुए हैं। एक बार तो एक बुज़ुर्ग की मौत भी हो गई थी।
जुबरैल कहते हैं, “अगर कोई बीमार पड़ गया तो उसको अस्पताल ले जाने में बहुत कठिनाई होती है। जब पानी ज्यादा हो जाता है तो नाव का सहारा लिया जाता है लेकिन उसमें भी कई बार नाव पलटी मार गया। नाव पलटने से एक बुज़ुर्ग की मौत हो चुकी है यहां पर। लगभग 30 घर है गांव में और बहुत परेशानी है इन लोगों को। पानी जब बहुत भर जाता है तो 7 किलोमीटर घूम के जाना पड़ता है।”
“कोई शादी, ब्याह होता है तो बहुत दिक्कत होती है। अभी तो सूखा है, जब बारिश होती है तो यह पूरे में पानी रहता है। यह जो चचरी है इसपर चलना संभव नहीं है। गांव के लोग बहुत कष्ट में जीते हैं, बहुत तकलीफ है, जितना कहा जाए कम है,” जुबरैल ने आगे कहा।
ग्रामीणों का कहना है कि 2017 में तटबंध टूटने के बाद से कजराधार पार करना और अधिक जोखिम भरा हो गया है। नाव पलटने और चचरी पुल में गिरने से अक्सर लोग चोटिल हो जाते हैं। स्थानीय निवासी भोला ऋषिदेव ने बताया कि दो महीने पहले एक व्यक्ति बाइक लेकर चचरी पुल पर गिर गया था। बाइक सवार को टांगें और चेहरे पर काफी चोटें आई थीं।
“उस बेचारे का दांत झड़ गया, अपाहिज हो गया। मोटरसाइकिल टपा रहा था तो गिर गया और अपाहिज हो गया बेचारा। यहां पर कोई देखने वाला नहीं है। न मुखिया देखने वाला है न सरकार देख रहा है। सरकार क्या देखेगा, पब्लिक कहां मर रहा है। उसको सिर्फ वोट चाहिए, हमलोग वोटर हैं तो वोट कर देते हैं लेकिन हमलोग को देखने वाला कोई नहीं है, क्या करेंगे,” भोला ऋषिदेव ने कहा।
निजी जमीन के कारण पुल का काम अटका: विधायक कार्यालय
इस मामले को लेकर हमने फारबिसगंज विधायक विद्यासागर केसरी से संपर्क किया। उनके कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार फारबिसगंज विधायक ने विधानसभा में यह मुद्दा उठाया था लेकिन पुल निर्माण नहीं हो सका।
आगे बताया गया कि 2017 की बाढ़ के बाद नदी अपना रास्ता बदल कर निजी जमीनों की तरफ आ गयी है इसलिए निजी जमीनों पर तटबंध बनाने में दिक्कत हो रही है। विधायक प्रयास में हैं कि जल्द वहां पुल और सड़क का निर्माण कराया जाए। भूमालिकों से बातचीत कर जल्द से जल्द इसका समाधान निकालने की कोशिश की जा रही है।
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