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पटना हाईकोर्ट ने दी जमानत, मगर आदेश छह महीने बाद लागू!

दरअसल, कोर्ट ने बिना कोई वजह बताये कहा कि जमानत देने का यह आदेश, आदेश जारी करने की तारीख से छह महीने बाद लागू होगा।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
patna high court granted bail, but the order came into effect after six months!

सारण जिले के खैरा थानाक्षेत्र के चंदनपुर गांव के रहने वाले नन्हक मांझी को इस साल जून महीने में पुलिस ने शराबबंदी कानून के तहत गिरफ्तार किया था।


उन पर मद्यनिषेध व एक्साइड संशोधन एक्ट की धारा 30(ए) व धारा 32(3) के तहत मामला दर्ज किया गया था। धारा 30(ए) में दोषी को कम से कम पांच साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है, वहीं, धारा 32(3), शराब बरामदगी के संबंध अन्य सामानों की जब्ती से संबंधित है।

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आरोपी ने जमानत के लिए पटना हाईकोर्ट में आवेदन दिया और जमानत की गुहार लगाते हुए कहा कि उन्हें फर्जी तरीके से फंसाया गया है और वह बेकसूर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस को उनके पास से कुछ बरामद भी नहीं हुआ है। दूसरी तरफ, सरकारी वकील ने जमानत अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी के खिलाफ तीन और आपराधिक मामले चल रहे हैं।


19 सितंबर को दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद पटना हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत तो दे दी, लेकिन एक ऐसी शर्त लाद दी जिसने आरोपी को राहत देने की जगह परेशान कर दिया।

दरअसल, कोर्ट ने बिना कोई वजह बताये कहा कि जमानत देने का यह आदेश, आदेश जारी करने की तारीख से छह महीने बाद लागू होगा। कोर्ट ने जमानत की शर्त के तौर पर 10,000 रुपये का बेल बॉन्ड और साथ ही इतनी ही राशि की दो प्रतिभूति जमा करने को कहा। इस आदेश का सीधा अर्थ था कि आरोपी को जमानत मिलने की प्रक्रिया छह महीने बाद शुरू होगी।

ये अपने तरह का एक नया और अनूठा आदेश था।

पटना हाईकोर्ट के एक वकील ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “ये अजीबोगरीब मामला था। छह महीने के बाद जमानत आदेश लागू करने का निर्देश दिया गया, लेकिन, ऐसा क्यों किया गया, इसकी कोई वजह पटना हाईकोर्ट ने नहीं बताई। फिर, इस तरह के आदेश का अर्थ क्या है? जबकि कानून में इस तरह की शर्त पर जमानत का कोई नियम ही नहीं है।”

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

19 सितंबर के पटना हाईकोर्ट के इस फैसले से परेशान नन्हक मांझी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर को मामले की सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट के फैसले पर तीखी टिप्पणी की और कहा, “यह उन कुछ आदेशों में से एक है जो पिछले कुछ दिनों में उच्च न्यायालय द्वारा पारित किए गए हैं, जिसमें मामले को गुण-दोष के आधार पर तय किए बिना, उच्च न्यायालय ने वर्तमान याचिकाकर्ता को इस शर्त के अधीन जमानत दे दी है कि आरोपी आदेश पारित होने के छह महीने बाद जमानत बांड प्रस्तुत करेगा।” “इस बात का कोई कारण नहीं बताया गया है कि जमानत देने वाले आदेश के क्रियान्वयन को छह महीने के लिए क्यों स्थगित किया गया। हमारी राय में, किसी व्यक्ति/आरोपी को जमानत देने के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं लगाई जा सकती। यदि न्यायालय गुण-दोष के आधार पर संतुष्ट है, तो उसे जमानत दे देनी चाहिए, अन्यथा उसे खारिज कर देना चाहिए,” सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और दोबारा इस पर सुनवाई करने को कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की, “मामले के मद्देनजर, प्रतिवादी-राज्य को नोटिस जारी किए बिना, 19 सितंबर के आदेश को रद्द किया जाता है। यह निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर आपराधिक विविध को उच्च न्यायालय की फाइल पर बहाल किया जाएगा और मामले/आवेदन को गुण-दोष के आधार पर और कानून के अनुसार नए सिरे से तय किया जाएगा।”

11 नवंबर को पटना हाईकोर्ट इस मामले की नये सिरे से सुनवाई करेगा।

पहले भी जारी हो चुके हैं ऐसे आदेश

गौरतलब हो कि यह पहली बार नहीं हुआ है जब पटना हाईकोर्ट ने इस तरह का आदेश दिया है। इससे पहले भी इस तरह के आदेश दिये जा चुके हैं।

19 सितंबर से महज एक हफ्ते पहले 11 सितंबर को पटना हाईकोर्ट ने इसी तरह का एक और आदेश दिया था। जमानत का आदेश जारी करते हुए पटना हाईकोर्ट ने कहा था कि ये आदेश जारी होने की तारीख से पांच महीने बाद लागू होगा।

पटना हाईकोर्ट ने कहा था, “उपर्युक्त तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए, उपर्युक्त याचिकाकर्ता को आज से पांच महीने बाद जमानत बांड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है और ऐसा करने पर, निचली अदालत उन्हें जमानत पर रिहा कर देगी।

इस मामले के आरोपी उपेंद्र मांझी हैं, जो सारण जिले के पीठाघाट रामपुर के रहने वाले हैं। एफआईआर के मुताबिक, उपेंद्र मांझी एक पिकअप वैन लेकर सारण इलाके से जा रहे थे। पिकअप वैन को जब रोकने को कहा गया तो उपेंद्र मांझी वैन लेकर भागने लगे, लेकिन पुलिस कर्मचारियों ने घेर कर वाहन को पकड़ लिया। पुलिस ने एफआईआर में बताया है कि उपेंद्र मांझी के मुंह से शराब की गंध आ रही थी और वाहन से लगभग 380 लीटर शराब बरामद हुई, जिसके बारे में उपेंद्र मांझी ने पुलिस को बताया कि शराब की खेप पहुंचाने के एवज में उन्हें मोटी रकम देने की बात कही गई थी।

पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ उपेंद्र मांझी भी सुप्रीम कोर्ट गये, तो सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के आदेश की आलोचना की और हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “मामले को देखते हुए, प्रतिवादी-राज्य को नोटिस जारी किए बिना, दिनांक 11सितंबर के विवादित आदेश को रद्द किया जाता है। यह निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर आपराधिक विविध को उच्च न्यायालय की फाइल पर बहाल किया जाएगा, और मामले/आवेदन को गुण-दोष के आधार पर और कानून के अनुसार नए सिरे से तय करने के लिए 11 नवम्बर को संबंधित न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा।”

इस साल जुलाई में भी पटना हाईकोर्ट ने एक आरोपी जितेंद्र पासवान की तरफ से दायर जमानती अपील की सुनवाई करते हुए ऐसा ही आदेश दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ‘हैरान करने वाला’ करार दिया था।

जितेंद्र पासवान, गोपालगंज जिले के रहने वाले हैं। तीन दिसंबर 2021 को गोपालगंज जिले के विजयपुर थाने में दर्ज एफआईआर के मुताबिक, जितेंद्र पासवान समेत 19 लोग, सूचक का खेत जोत रहे थे, जिसका विरोध सूचक ने किया, तो उन पर हमला कर दिया गया। एफआईआर के अनुसार, जितेंद्र पासवान के उकसावे पर ही सूचक पर अन्य आरोपियों ने हमले किये थे।

इस मामले में 26 सितंबर 2023 को जितेंद्र पासवान को गिरफ्तार किया गया था। जितेंद्र पासवान ने जमानत के लिए पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसपर 19 अप्रैल को सुनवाई हुई थी। आरोपी की तरफ से पैरवी करने वाले वकील ने कहा था कि आरोपी के खिलाफ 11 अन्य मामले चल रहे हैं और इन सभी मामलों में उन्हें जमानत मिल चुकी है। साथ ही उनके वकील ने यह भी कहा था कि उन्होंने सिर्फ उकसाया, हमले नहीं किये।

वहीं, सरकारी वकील ने जमानत नहीं देने की अपील की। दोनों पक्षों को सुनने के बाद पटना हाईकोर्ट ने जितेंद्र पासवान को जमानत दे दी, लेकिन कहा कि जमानत आदेश छह महीने बाद लागू होगा। इस मामले में भी कोर्ट ने ये नहीं बताया कि ऐसा आदेश क्यों दिया गया।

इस फैसले के खिलाफ जितेंद्र पासवान ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दिया, जिस पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायलय ने हाईकोर्ट के आदेश के 9वें पैराग्राफ का जिक्र करते हुए कहा, “आदेश के पैराग्राफ 9 में, उच्च न्यायालय ने माना है कि याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा किए जाने का अधिकार है। हालांकि, हैरानी की बात यह है कि उच्च न्यायालय ने कहा है कि जमानत देने का आदेश छह महीने बाद प्रभावी होगा।”

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा, “इस बीच हम हाईकोर्ट के आदेश के 9वें पैराग्राफ में जमानत के लिए दी गई शर्तों को पूरा करने की स्थिति में याचिकाकर्ता को अंतरित जमानत देते हैं।”

क्या कहते हैं कानून के जानकार

कानून के जानकार इसे कोर्ट की मनमानी बताते हैं। “जमानत की अपीलें तुरंत राहत के लिए की जाती हैं। ऐसे में अगर हाईकोर्ट पांच-छह महीने बाद जमानत आदेश लागू करने को कहेगा, तो फिर जमानत देने का कोई अर्थ ही नहीं है,” कानून के एक जानकार ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा।

उन्होंने आगे कहा, “सुप्रीम कोर्ट बार बार कह रहा है कि सात साल से कम सजा वाले मामलों में आरोपियों को तुरंत जमानत दे देनी चाहिए, लेकिन अदालत से इस तरह के मामलों में भी आरोपियों को कोई राहत नहीं मिल रही है।”

“कई मामलों में हम यह भी देख रहे हैं कि अदालत जमानत तो दे रही है, लेकिन साथ में ये शर्त भी जोड़ दे रही है कि आरोप तय होने के बाद जमानत की प्रक्रिया शुरू होगी। मान लीजिए कि आरोप तय होने में ज्यादा वक्त लग गया, तो उतने समय तक आरोपी जेल में रहेगा। और अगर बाद में वह निर्दोष साबित हो गया, तो जमानत आदेश जारी होने और आरोप तय होने की अवधि तक जो अतिरिक्त समय वह जेल में गुजारेगा, उसकी भरपाई कौन करेगा,” उन्होंने सवाल उठाया।

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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