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मक्का किसानों का दर्द: चार महीने की मेहनत के बाद भी चढ़ गया क़र्ज़

बिहार के सीमांचल क्षेत्र के किसान लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर भूभाग में मक्के की खेती करते हैं। लेकिन, लॉकडाउन और मौसम ने किसानों की कमर तोड़ दी है।

shah faisal main media correspondent Reported By Shah Faisal |
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अगर आपका परिवार चार महीने किसी कारोबार में लगा हो, तो आप कितनी कमाई की उम्मीद रखते हैं? चंद हज़ार रुपये तो बिलकुल नहीं, लेकिन 2020 में उम्मीद शब्द बिहार के किसानों के लिए एक मज़ाक है।


बिहार के सीमांचल क्षेत्र में मक्के की खेती सबसे ज़्यादा होती है। क्षेत्र के किसान लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर भूभाग में मक्के की खेती करते हैं। लेकिन, लॉकडाउन और मौसम ने किसानों की कमर तोड़ दी है।

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लॉकडाउन की वजह से सिंचाई नहीं कर पाए, जिससे अच्छी उपज नहीं हुई। फिर बारिश में फसल गिर गई।

आदिल, किसान

ज़ाकिर को अपने खेत से 16-20 क्विंटल फसल की उम्मीद थी। लेकिन, उपज सिर्फ पांच क्विंटल ही हो पाई।

किशनगंज के किसान गुल संवर को पिछले साल मक्के की अच्छी कीमत मिली थी, इसलिए उन्होंने इस साल डेढ़ गुना ज़्यादा खेत में मक्का लगाया और 21,000 रुपये खर्च कर दिए। लेकिन, मक्के की कीमत मुश्किल से 1,000-1,100 प्रति क्विंटल ही मिल रही है, जबकि सरकार ने मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,760 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है।

सूबे के सहकारिता मंत्री राणा रणधीर सिंह के लगातार आश्वासन के बावजूद राज्य में मक्के की खरीद का कोई सरकारी केंद्र नहीं है, इसलिए मज़बूरी में किसानों को मक्का खुले बाजार में व्यापारियों को बेचना पड़ता है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के सवाल पर ज़ाकिर कहते हैं,

स्थानीय व्यापारी से इस बारे में पूछते हैं, तो वह बोलता है कि सरकार के पास ले जाकर बेचो। कहाँ बेचेंगे? सरकारी मंडी भी तो होना चाहिए उसके लिए।

ज़ाकिर, किसान
Pain of Bihar's Maize Farmers
रोजो

बूढ़ी अम्मा रोजो के जिस खेत में 11 क्विंटल मक्का होता था, इस बार उससे सिर्फ पांच क्विंटल ही निकल पाया। पहले उन्हें एक क्विंटल मक्के के 1,800-1,900 रुपये मिल जाते थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते इस बार 1,000-1,100 रुपये ही मिल पा रहा है। यानि इनके परिवार ने 3-4 महीने जो खेतों में पसीना बहाया, उसके लिए इन्हें सिर्फ 5,000-5,500 रुपये मिलेंगे। परिवार ने 30,000 रुपये का लोन ले रखा है। एकलौता बेटा मिस्त्री का काम करता है, तो उसी से किसी तरह गुजारा हो रहा है।

रोजो का लोन कैसे चुकेगा? उसे उम्मीद कौन देगा?

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Shah Faisal is using alternative media to bring attention to problems faced by people in rural Bihar. He is also a part of Change Chitra program run by Video Volunteers and US Embassy. ‘Open Defecation Failure’, a documentary made by Faisal’s team brought forth the harsh truth of Prime Minister Narendra Modi’s dream project – Swacch Bharat Mission.

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One thought on “मक्का किसानों का दर्द: चार महीने की मेहनत के बाद भी चढ़ गया क़र्ज़

  1. hi dear sir your team are great work in seemanchal area there are no any media here to show the pain of people who suffer from many problems i hope you are doin very well।।। pls connect with farmer & BPl families keep visit on Panchayat to Panchayat in this election what is the position of people as far as I know that’s not possible but your team can do a little 👍👍👍
    and pls give me your mobile number if I want to publish any news & support

    thanks
    Aam nagrik

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