सर्पगंधा पौधा काली खांसी, सांस उखड़ने, हैजा समेत कई बीमारियों को दूर करता है। कौंच या कबछुआ के बारे में तो लगभग सभी लोग जानते हैं। यह जंगलों में यूं ही उग आता है। इस के फल में कई औषधीय गुण छिपे हुए हैं। मसलन यह पुरुषों के स्पर्म में शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाता है। यह डायबिटीज और मानसिक रोगों के इलाज में काम आता है। अश्वगंधा पौधे का इस्तेमाल आर्युर्वेदिक और युनानी दवाइयां बनाने में किया जाता है। बाजार में इसकी मांग इतनी अधिक है, कई इलाकों में नकदी फसल के रूप में इसकी खेती की जाती है।
इस तरह के दर्जनों पौधे बिहार के गांवों में बहुतायत में पाए जाते हैं। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, बिहार में 150 से अधिक वनस्पतियां औषधीय गुणों से भरपूर हैं। वहीं, वनस्पति सर्वेक्षण संस्थान द्वारा साल 2001 में संयुक्त बिहार में वनस्पतियों की लेकर एक सर्वेक्षण किया गया था। सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार में 2963 पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं। लेकिन, अगले कुछ समय में इनमें से कई पौधों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा क्योंकि कई पौधे विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं।
बिहार सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, औषधीय गुणों से भरपूर 18 वनस्पतियों पर खतरा मंडरा रहा है। इनमें से 13 वनस्पतियों के अस्तित्व पर गंभीर खतरा है और दो वनस्पतियां सर्पगंधा और करिहरी अस्तित्व खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं वहीं, तीन वनस्पतियां मुश्किल से दिख पा रही हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, सतमुली, कांटा आलू, जंगली प्याज, बांदा, केऊ, तीखुर, अनतमूल जैसी वनस्पतियों का अस्तित्व खतरे में है। इन वनस्पतियों में कई तरह के औषधीय गुण हैं। ग्रामीण इलाकों में ढाई तीन दशक पहले तक कई तरह की बीमारियों में इन्हीं वनस्पतियों का इस्तेमाल किया जाता था। मगर, लोगों निर्भरता दवाइयों पर बढ़ने लगी, तो इन पौधों पर लोगों का ध्यान नहीं गया। साथ ही ग्रामीण इलाकों में बढ़ती आबादी के चलते जंगल व हरियाली को खत्म कर मकान बनने लगे, तो इन वनस्पतियों की बलि चढ़ गई।
रिपोर्ट कहती है, “बिहार में औषधीय महत्व की वानस्पतिक प्रजातियों में से कुछ पिछले पांच दशक प्रचूर मात्रा में पाई जाती थीं, जो अब दुर्लभ या अत्यन्त दुर्लभ की श्रेणी में आ गई हैं।”
पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन विभाग के अधिकारियों ने कहा कि इन वनस्पतियों को विलुप्ति से बचाने के लिए इन्हें खेती के रूप में उगाने की जरूरत है और इससे पहले यह देखने की जरूरत है कि इन पौधों को उगाने के लिए किस तरह की जैवविविधता की आवश्यकता है।
औषधीय पौधों के अलावा बिहार के बहुत सारे स्थानिक पौधे भी दुर्लभ होते जा रहे हैं। जैवविविधता पर वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, पौधों को दुर्लभ तब माना जाता है जब उनकी संख्या किसी क्षेत्र विशेष में कम हो जाती है या उनमका प्राकृतिक आवास अत्यंत संकुचित हो जाता है और इनके विलुप्त हो जाने का जोखिम बहुत बढ़ जाता है।
रिपोर्ट बताती है कि बिहार के 70 से ज्यादा स्थानिक पौधे दुर्लभ की श्रेणी में पहुंच चुके हैं। इनमें पोएसी, रुटेसी, ओलेसी, फेबासी, ऑर्किडेसी, सैपोटेसी आदि शामिल हैं।
जानकारों के मुताबिक, औषधीय पौधों के मामले में बिहार धनी राज्य रहा है, लेकिन इनके लिए संरक्षण के लिए काम करने की जरूरत है।
यूरोपियन जर्नल ऑफ बायोमेडिकल एंड फार्मासियूटिकल साइंसेज में साल 2018 में छपे एक अध्ययन में बिहार में औषधीय पौधों को कृषि जलवायु जोन के आधार पर तीन जोन में बांटा गया है क्योंकि अलग अलग कृषि जलवायु जोन में अलग अलग तरह के औषधीय पौधे पनपने और विकसित होते हैं। अध्ययन कहता है कि कुछ औषधीय पौधे जो बिहार में भारी मात्रा में मिलते थे, लगभग दुर्लभ हो चुके हैं। अध्ययन में दुर्लभ औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए सभी सेक्टरों के लोगों को एक साथ आने का मशविरा दिया गया है।
जैवविविधता रजिस्टर के नाम पर खानापूर्ति
विलुप्तप्राय पशु-पक्षियों और स्थानीय औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए ही केंद्र सरकार ने बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी एक्ट, 2002 बनाया और साल 2003 में राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण की स्थापना की थी। इस एक्ट की धारा 41 के तहत सभी राज्यों में जैवविविधता विविधता नियमावलियां, जैवविविधता परिषद और पंचायत स्तर पर जैवविविधता प्रबंधन समितियां गठित की जानी है। समिति में अध्यक्ष समेत सात सदस्य होते हैं। समिति में कम से कम एक तिहाई महिलाएं और 18 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य होने चाहिए।
जैवविविधता प्रबंधन समिति का मुख्य काम स्थानीय लोगों के साथ बातचीत कर समिति के क्षेत्र में पाये जाने वाले पैधों, खाद्य पदार्थों के स्रोत, वन्यजीव, औषधीय स्रोतों का रजिस्टर तैयार करना है। पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, जैवविविधता रजिस्टर में दर्ज आंकड़ों को ऑनलाइन सुरक्षित रखा जाएगा और जब जब नई सूचनाएं आएंगी, इन आंकड़ों को अपडेट किया जाएगा। वेबसाइट तैयार करने और सूचनाएं ऑनलाइन करने की योजना पर 41.34 लाख रुपए खर्च होंगे।
शुरुआत में बिहार का रवैया बेहद उदासीन रहा, जिस कारण नेशनल ग्रीन ट्राइबुनल को बिहार को लेकर तल्ख टिप्पणी करनी पड़ी थी, जिसके बाद बिहार सरकार ने कुछ गंभीरता दिखाई और साल 2020-2021 और 2021-2022 में पंचायत स्तर पर जैवविविधता प्रबंधन समितियों का गठन कर जैवविविधता रजिस्टर तैयार किया।
साल 2022-2023 लिए 21 नवम्बर को 8058 पंचायतों में ग्राम सभा आयोजित हुई और जैवविविधता प्रबंधन समितियों का गठन किया गया।
हालांकि, जैवविविधता प्रबंधन समिति के कामकाज को लेकर स्थानीय जन प्रतिनिधियों में जानकारी की कमी नजर आती है।
गया जिले की भेटौरा पंचायत की मुखिया अनीता देवी कहती हैं, “हमें यह सुनिश्चित करना है कि हमारे पंचायत में पशु पक्षियों के रहने के लिए सुरक्षित ठिकाना हो। लोग खुद के रहने के लिए मकान बना लेते हैं, लेकिन पशु पक्षियों को रहने के लिए भी तो ठिकाना चाहिए। इसे ही सुरक्षित रखना हमारा काम होगा।” “हमें 10-15 दिनों के भीतर रिपोर्ट देने को कहा गया है,” उन्होंने कहा।
सीमांचल के किशनगंज जिले के टेढ़ागाछ प्रखंड की भॉराह पंचायत के मुखिया अबु बकर कहते हैं, “सरकार के निर्देश पर हमने समिति का गठन तो कर लिया है, लेकिन हमें नहीं पता है कि हमलोगों को करना क्या है। अभी तक सरकार की तरफ से हमारे पास कोई दिशानिर्देश नहीं आया है। हमलोग सरकार के निर्देश का इंतजार कर रहे हैं।” अबू बकर ने जो बात बताई वही बात टेढ़ागाढ़ पंचायत के मुखिया मुफ्तलाल ऋषिदेव ने भी कही।
“सिर्फ समिति बनाने को कहा गया था, वो बन गया है। लेकिन करना क्या है, यह हमें नहीं बताया गया है, इसलिए 21 नवम्बर के बाद कोई बात नहीं हुई है इस पर,” मुफ्तलाल ऋषिदेव कहते हैं।
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अबू बकर तो यह भी कहते हैं कि पिछले साल समिति बनी थी, तो उस वक्त भी कोई दिशानिर्देश नहीं आया था और न ही समिति ने कोई रजिस्टर बिहार सरकार को जमा किया था।
साल 2020-2021 और 2021-2022 का जो जैवविविधता रजिस्टर, बिहार राज्य जैवविविधता परिषद को सौंपा गया है, उनसे भी पता चलता है कि रजिस्टर के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है, क्योंकि रजिस्टर में ऐसा कुछ भी निकल कर नहीं आया है, जिससे पता चलता हो कि किसी पंचायत में क्या कुछ अलग पेड़-पौधे या पशु-पक्षी मिले हैं।
दोनों वर्षों की वार्षिक रिपोर्ट में जो जानकारियों दी गई हैं, वो पहले से ही सार्वजनिक पटल पर है। दोनों रिपोर्टों से बिल्कुल नहीं लगता कि किसी पंचायत में कुछ खास जैवविविधता मौजूद है।
इस संबंध में बिहार राज्य जैवविविधता परिषद की प्रतिक्रिया के लिए परिषद के आधिकारिक ई-मेल पर सवाल भेजा गया है। परिषद की तरफ से प्रतिक्रिया आने पर स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी।
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