जिला अभिलेखागार, पूर्णिया में आवेदकों का तांता लगता है। प्रखंड स्तर पर अभिलेखागार की समुचित व्यवस्था के अभाव में दूर-दराज के क्षेत्रों से लोग यहाँ जरूरी दस्तावेज(अभिलेख) के लिए आते हैं। जिले के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से यहां आने वाले आवेदकों में मजदूर, किसान, व्यवसायी, सिविल व सशस्त्र बल के जवान, महिलाएं त्शामिल हैं। इनमें से अधिकतर भूमि विवाद के पक्षकार के तौर पर या अपनी भूमि के दस्तावेज(खतियान) की नकल की प्राप्ति के लिए आवेदन करते हैं। सरकार भूमि विवाद को बिहार की प्रगति में एक बड़ी बाधा मानती है और इसके लिए अनेक स्तर पर नेक नीयत के साथ काम कर रही है। क्या इस प्रक्रिया में जिला अभिलेखागार, पूर्णिया जैसी महत्वपूर्ण संस्था सरकार के साथ कदम मिलाकर चलने को तैयार है?
पड़ताल
पूर्णिया समाहरणालय परिसर में जिला पदाधिकारी के कार्यालय से चंद कदमों की दूरी पर जिला अभिलेखागार कार्यालय (अभिलेखागार) है, जिसमें 6-7 व्यक्ति दिखते हैं। सभी अभिलेखागार के विभिन्न संवर्गों के कर्मी मालूम पड़ते हैं। कार्यालय में दो कक्ष बने हैं, जिनमें से एक के ऊपर प्रभारी पदाधिकारी का पदनाम युक्त एक कागज चस्पां है। इसमें एक महिला बैठी देखी जा सकती है। दूसरे कक्ष में लेखपाल (संभवत: पुराभिलेख पाल) के बैठने की जानकारी मिली। इनके अतिरिक्त एक क्लर्क, एक सेवानिवृत्त कर्मचारी, एक महिला व एक पुरुष कर्मचारी अभिलेखागार में मौज़ूद दिखते हैं। अभिलेखागार में कुर्सी-मेज सहित बाइंडिंग की हुई कई पुरानी फाइल्स, दस्तावेजों की प्रतिलिपि निकालने की मशीन दिख जाती है।
अभिलेखागार भवन की बाह्य संरचना
अभिलेखागार का प्रवेश द्वार विकास भवन की ओर है। अभिलेखागार की दक्षिणी दीवार एक बेहद मजबूत दरवाजे और तीन जालीदार खिड़कियों से युक्त है। दैनिक कार्यावधि के दौरान यह दरवाजा केवल कर्मचारियों, लेखापाल, प्रभारी पदाधिकारी और उनकी अनुमति से प्रवेश करने वाले सीमित आगंतुकों के लिए खोला जाता है। दरवाज़े के ऊपर बड़े अक्षरों में ‘प्रवेश निषेध’ अंकित है। प्रवेश निषेध आज्ञा पर ज्यादा बल देने के लिए ‘कार्यालय में अनाधिकृत प्रवेश वर्जित है’ की जानकारी युक्त एक अतिरिक्त कागज भी दरवाज़े के ऊपरी हिस्से पर चस्पां कर दिया गया है।
तीनों खिड़कियों के निचले हिस्से में आवेदन सहित एक हाथ घुसा पाने की जगह बनायी गयी है। लेकिन, बिना मोड़े आवेदन को अधिकृत कर्मचारी तक पहुँचा पाना टेढ़ी खीर है।
आवेदन प्राप्ति का तरीका
इनमें से पहली खिड़की या काउंटर संख्या 01 पर बनी इस जगह का उपयोग आवेदक वांछित अभिलेख की माँग और अभिलेखागार के कर्मचारी आवेदन-प्राप्ति के लिए करते हैं। बीच वाली खिड़की या काउंटर संख्या 02 को बंद रखा गया है। यह निर्वाचन संबंधी कार्यों के लिए अधिकृत है। शायद, इसे अनुमति के साथ खोला जाता हो। तीसरी खिड़की या काउंटर संख्या 03 का उपयोग अभिलेख मुहैया कराने के लिए होता है। आवेदन के समय अधिकृत कर्मी द्वारा रजिस्टर में जरूरी सूचना प्रविष्ट करने के बाद निर्धारित आवेदन-प्रपत्र में संलग्न पावती आवेदकों को दी जाती है, जिस पर आवेदन की क्रम संख्या और तिथि दर्ज़ होती है।
सुधार की गुंजाइश
दैनिक कार्यावधि के दौरान सेवा मुहैया कराने वाले विभिन्न काउंटर्स पर कर्मी की मौजूदगी हमेशा रहती है न आवेदन प्राप्ति और अभिलेख मुहैया कराने संबंधी किसी निश्चित समय की सूचना काउंटर के बाहर लोक हित में प्रदर्शित की गयी है। उन्हें वांछित अभिलेख-प्राप्ति की निश्चित समय-सीमा नहीं बताई जाती। इसके अतिरिक्त अभिलेखागार के बाहर कोई सूचना पट्ट टंगा है न किसी प्रकार की ऑनलाइन व्यवस्था है, जिसके जरिये आवेदक अपने आवेदन की अद्यतित स्थित की जानकारी प्राप्त कर सकें। इसके अभाव में आवेदकों को अपने आवेदन और वांछित अभिलेख की उपलब्धता की स्थिति जानने के लिए अभिलेखागार के कर्मचारियों की खुशामद और दया पर निर्भर रहना पड़ता है।
वांछित अभिलेखों की प्राप्ति के लिए नियमावली 276 के तहत आवेदकों को प्रपत्र 28 में अपने पहचान-पत्र के साथ आवेदन करना पड़ता है। वांछित अभिलेखों की माँग के लिए अभिलेखागार से सशुल्क प्रपत्र संख्या 28 मुहैया कराने की कोई व्यवस्था नहीं है। बाहर से 10 रुपए की कोर्ट फीस वाले टिकट सहित आवेदन-प्रपत्र की खरीद के लिए आवेदकों को कुल 20 रुपए अदा करना पड़ता है। आवेदन प्राप्ति के बाद किसी दस्तावेज़ को उपलब्ध कराने में जिला अभिलेखागार बिना कोई ठोस कारण बताए महीनों का समय लगा देते हैं। कई बार आवेदकों को ऐसी स्थिति से दो-चार होना पड़ता है जिसमें अभिलेखागार के अंदर सारे कर्मचारी-पदाधिकारी होने के बावजूद घंटों तक आवेदन की अद्यतित स्थिति के बारे में जानकारी देने कोई नहीं आता।
क्या है मानदंड?
अभिलेखागार में अभिलेखों की सुगम आवाजाही की व्यवस्था होनी चाहिए। अभिलेखागार कार्यालय भवन व डिजाइन क्षमता के हिसाब से रिकॉर्ड एरिया, रिकॉर्ड रेफ्रेन्स और रिसेप्शन एरिया अलग-अलग होने चाहिए। बिहार राज्य लोक अभिलेख, अधिनियम, 2014 की धारा 6 की उप-धारा (छ) के अनुसार अभिलेख प्रबंध पद्धति में सुधार के लिए भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार द्वारा समय-समय पर अनुशंसित स्तरमानों, प्रक्रियाओं और तकनीकों को अपनाने का प्रावधान किया गया है।
प्रभारी पदाधिकारी (अभिलेख अधिकारी) के कर्तव्य व दायित्व बिहार राज्य लोक अभिलेख अधिनियम, 2014 में अभिलेख अधिकारी के कर्तव्य व दायित्वों को संहिताबद्ध किया गया है। अभिलेखागार के प्रभारी पदाधिकारी का कर्तव्य है कि वह अनुपलब्ध अथवा जीर्ण-शीर्ण हुए अभिलेखों को संबंधित व्यक्तियों, विभागों से प्राप्त करने में तत्परता दिखाएं।
ज्ञात हो कि अभिलेखों की समुचित सुलभता और जनता की मांग पर उन्हें उपलब्ध कराने की महती जिम्मेदारी इस कार्य के निमित्त बने अभिलेखागारों की है।
इस बाबत वर्ष 1960 में केन्द्रीय अभिलेख विधान समिति ने जांच की। समिति ने जांच-पड़ताल के बाद कई अनुशंसा की जिनमें से एक केन्द्र और राज्यों के अभिलेखों की देख-रेख के लिए एक ही केन्द्रीय अधिनियम बनाने की अनुशंसा शामिल थी।
उसके बाद भारत सरकार ने दिसम्बर, 1972 में अभिलेख नीति संबंधी एक संकल्प जारी किया। जनवरी, 1973 में भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख आयोग ने अपने 42वें सत्र में सभी राज्यों में भारत सरकार की तरह अभिलेख नीति निर्धारित करने का प्रस्ताव पारित किया। बिहार में केंद्रीय सचिवालय विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन आने वाले बिहार राज्य अभिलेखागार का पुनर्गठन 1954 में किया गया, जिसकी देख-रेख निदेशक सहित दक्ष पेशेवरों के जिम्मे होने का दावा इसकी वेबसाइट करती है।
जिला अभिलेखागार, पूर्णिया में आवेदकों को वांछित सेवा ससमय उपलब्ध कराने, आवेदन के समय सेवा मुहैया कराने की तिथि की स्पष्ट जानकारी देने, लोक हित से जुड़ी छोटी-बड़ी सूचना का सार्वजनिक प्रदर्शन करने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए। यह अभिलेख संबंधी सेवाओं की प्रदायगी के सरकारी प्रयासों को धत्ता बताने, बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियमावली, 2005 के उल्लंघन सहित जनहित के मुद्दे पर सरकार के अच्छे प्रयासों को धूमिल करने सरीखा है।
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