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नदी पर पुल नहीं, नाव है आधा दर्जन पंचायतों की जीवन रेखा

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“नदी की दूसरी तरफ मेरा मायके है। नदी की पश्चिम तरफ ससुराल है और पूरब की तरफ मायके है। आने जाने में बहुत परेशानी होती है।”

70 साल की आसमा खातून की शादी 40-50 साल पहले नदी की दूसरी तरफ के गांव में इस उम्मीद में कराई गई थी की कुछ सालों में नदी पर पुल बन ही जाएगा।

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आसमा बताती हैं, “मेरे पिता ने यह सोच कर तब शादी करवा दी थी कि किसी न किसी रोज़ पुल बनेगा ही।”


बिहार के कटिहार जिले के बारसोई प्रखंड अंतर्गत मोटबारी घाट पर नदी पर पुल बनाने के लिए करीब दो साल पहले सामान गिराया गया, लेकिन काम आज तक शुरू नहीं हुआ। पुल के इंतज़ार में पीढ़ियां बीत गईं हैं। पीडीएस से अनाज लेने से लेकर वार्ड सदस्य से मिलने, डॉक्टर से इलाज,
हर काम के लिए आसमा खातून को इस उम्र में भी नाव के सहारे उस पर जाना पड़ता हैं।

कंदेला पटोल पंचायत के वार्ड सदस्य मो. तौकीर को स्थानीय विधायक और सांसद से शिकायत है। बलरामपुर के भाकपा माले विधायक महबूब आलम और कटिहार के जदयू सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी इसी क्षेत्र के रहने वाले हैं। तौकीर कहते हैं, “साल भर पहले पुल बनने के लिए यहाँ सामान भी गिराया गया, लेकिन पुल नहीं बना।”

स्थानीय नेता हाजी आफताब बताते हैं, पुल नहीं होने से 5-6 पंचायत के लोग प्रभावित हैं। यहाँ के लोग पूरी तरह पश्चिम बंगाल के टुनिदिघी बाज़ार और सुधानी स्टेशन पर निर्भर हैं। नदी की दूसरी तरफ स्कूल है। ईदगाह और पंचायत भवन तक जाने के लिए लोगों को नदी पार करना पड़ता है।

35 साल से इसी घाट पर निजी नाव चला रहे नाविक भीमलाल यादव सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक नाव चलाते हैं। देर रात कुछ इमरजेंसी हो जाने पर भी उन्हें सेवा देनी पड़ती है।

इस पुल का काम मार्च 2021 में लगभग सात करोड़ की लागत के साथ शुरू किया गया था, जो मार्च 2022 तक पूरा हो जाना था। काम की ज़िम्मेदारी संजय कुमार झा नामक संवेदक को दी गई थी। बारसोई के ग्रामीण कार्य इंजीनियर ने ‘मैं मीडिया’ को फ़ोन पर बताया, जिस संवेदक को टेंडर मिला था, वो ब्लैकलिस्टेड था, इसलिए वो टेंडर कैंसिल हो गया है। नया टेंडर हो चुका है और अगले महीने से काम दोबारा शुरू हो जाएगा।

स्थानीय नेता आफताब कहते हैं, काम शुरू होने के बाद उम्मीद जगी थी, लेकिन अब सिर्फ आश्वासन की मिल रहा है।


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