गोबर के उपलों और पत्थरों से ढकी लोहे की रॉड दरअसल सरकार द्वारा लगाया गया एक नल है। ऐसे ही और बहुत से नल हैं जिनमें से कई नल बड़ी-बड़ी घास से ढके हैं, तो कोई मिट्टी के नीचे दबा हुआ है।
यह हालत है बिहार के सहरसा में मुख्यमंत्री नल जल योजना का। जिले में लोगों को साफ पानी पिलाने के लिए नल जल योजना चलाई गई। इसके तहत शहरी क्षेत्र के भी विभिन्न इलाकों में पाइप बिछाने की प्रक्रिया हुई। शहरी क्षेत्र से महज दो किलोमीटर की दूरी पर बसे गोरबगढा गांव में भी बीते साल सड़क किनारे जमीन खोदकर लोहे के पाइप बिछाए गए और तकरीबन 6 महीने पहले योजना का काम पूरा हुआ। लेकिन आज तक यहां के लोगों को इस नल जल योजना के तहत एक बूंद भी पानी नसीब नहीं हुआ। क्योंकि, कहीं नल की टोटी को मिट्टी में दबा कर छोड़ दिया गया है, तो कहीं नल से पानी नहीं निकलने के कारण उसमें लकड़ी की टहनी ठूंस दी गई है। वहीं कुछ नल को मिट्टी से ऊपर लाया गया है, तो वह चारों दिशाओं में हिलडुल रहा है।
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स्थानीय ग्रामीण महेश कुमार बताते हैं कि यहां सिर्फ नाम के नल लग गए हैं, पानी अभी तक नहीं आया है। वह आगे कहते हैं कि कोसी क्षेत्र होने के कारण यहां का पानी आयरन युक्त है, जिस कारण इलाके में हर साल चार पांच लोग गंभीर रोग का शिकार हो रहे हैं।
प्रवीण कुमार यादव बताते हैं कि यहां पानी बहुत गंदा आता है और हम लोग पिछले 6 महीने से तरस रहे हैं कि कब हमें शुद्ध पानी पीने को मिलेगा। उनका मानना है कि यहां नल जल योजना एकदम विफल हो चुकी है।
वहीं बैजनाथ दास ने बताया कि उन्होंने मुंशी को फोन कर इसकी शिकायत भी की थी कि यहां योजना का काम ठीक कराया जाए। लेकिन, उन्हें केवल आश्वासन दे दिया गया कि कुछ दिनों में लेबर आ जाएगा, पर आज तक लेबर नहीं आया है।
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