पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले के निजामपुर के निश्चिंद्रा के रहने वाला अबु सामा ने बारहवीं की परीक्षा में 99 प्रतिशत यानी कुल 495 नंबर लाकर पूरे सूबे में दूसरा स्थान हासिल किया है। इतने ही नंबर लाकर बांकुड़ा जिले की सुषमा खान ने भी दूसरा स्थान प्राप्त किया है।
बारहवीं में पहला स्थान शुभ्रांशु सरदार ने हासिल किया है जो दक्षिण 24 परगना जिले के महेशतला का रहने वाला है। उसे 496 नंबर आये हैं।
पश्चिम बंगाल में हायर सेकेंडरी (बारहवीं) के लिए इस साल 8.5 लाख छात्रों ने नामांकन कराया था। इनमें से 8.2 लाख छात्रों ने परीक्षा दी थी, जिनमें से कुल 89.3 प्रतिशत यानी 7.3 लाख छात्रों ने यह परीक्षा उत्तीर्ण की है। इस बार इस बार 87 छात्रों ने शीर्ष 10 में जगह बनाई है और इस बार भी शीर्ष 10 में से अधिकांश छात्र सुदूर ग्रामीण इलाकों के रहने वाले हैं।
इस मौके पर जहां इन छात्रों को बधाइयां दी जा रही हैं, वहीं अबु सामा के मुस्लिम होने के चलते उसको लेकर सोशल मीडिया पर नफरत भरे कमेंट किये जा रहे हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के बांग्ला अखबार ने जब अबु सामा को लेकर अपने फेसबुक पेज पर खबर प्रकाशित की तो लोगों ने उसे संभावित आतंकवादी बता दिया।
पी.कू. नाम के एक फेसबुक यूजर ने लिखा, “बढ़िया रिजल्ट लाकर भी क्या करेगा, कुछ दिन बाद ही तो आतंकवादी बन जाएगा।”
सौरभ बनर्जी नाम के एक फेसबुक यूजर ने लिखा – बम बनाना सीखना होगा।
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एक अन्य फेसबुक यूजर योगीभक्त मोदीशाह ने लिखा, “अभिनंदन है कि तुमने मदरसा में नहीं पढ़कर हाई स्कूल में पढ़ा। जातभाई जैसा मन बनना। शिक्षित होकर नाम ऊंचा करो।”
दीप शाहा चौधरी नाम के फेसबुक यूजर ने लिखा – शुक्र है कि मदरसा से नहीं पढ़ा है।
कुछ यूजर ने तो यह भी लिख दिया कि मुस्लिम वोट बैंक, सीएम ममता बनर्जी के पैरों से खिसक रहा है इसलिए एक मुस्लिम को अधिक नंबर दिया गया है
अबु सामा का परिवार शेरशाहबादी मुस्लिम
अबू सामा का परिवार शेरशाहबादी मुस्लिम है। शेरशाहबादी शब्द की उत्पत्ति शेरशाहबाद नाम के एक परगना से हुई, जो पठान राजा शेरशाह सूरी के वक्त विकसित हुई थी। यह क्षेत्र दक्षिणी मालदह से लेकर उत्तरी मुर्शिदाबाद तक फैला हुआ था।
पश्चिम बंगाल में शेरशाहबादी मुस्लिमों की आबादी उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, मालदह, मुर्शिदाबाद में आधा दर्जन जिलों में फैली हुई है।
शेरशाहबादी मुस्लिम आर्थिक तौर पर बेहद गरीब होते हैं। अन्य शेरशाहबादी मुस्लिमों की तरह अबु सामा भी गरीब परिवार से आता है। उसके पिता किसान हैं और बड़े भाई भी खेती-बाड़ी में पिता का हाथ बंटाते हैं।
संभवतः अबु सामा अपने परिवार में पहला व्यक्ति है, जिसने बारहवीं तक की पढ़ाई की है।
मीडिया के साथ बातचीत में अबु ने बताया कि वह रोजाना औसतन आठ से 10 घंटे पढ़ाई करता था और जब वक्त मिलता, तब उससे ज्यादा भी पढ़ाई किया करता था।
अबु सामा ने कहा कि वह अव्वल स्थान पाने की उम्मीद कर रहा था, लेकिन किन्हीं चूकों से वह अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाया। उसने इस रिजल्ट के लिए अपने अभिभावक और स्कूल शिक्षकों को धन्यवाद देते हुए कहा कि अगर साल भर उनका भरपूर सहयोग नहीं मिलता, तो वैसा रिजल्ट संभव नहीं था।
अबु सामा फिलहाल बीमार चल रहा है। उसके बड़े भाई ने कहा कि उसके बाद लगातार बधाइयों के काॅल आ रहे हैं। लोग घर पर आकर भी बधाइयां दे रहे हैं। इससे वह अपनी नींद भी पूरी नहीं कर पा रहा है इसलिए बीमार चल रहा है।
उन्होंने सोशल मीडिया पर अबु सामा के लेकर की जा रही भद्दी व आपत्तिजनक टिप्पणियों को लेकर कहा, “सोशल मीडिया पर जो भी कहा जा रहा हो, मगर हमारे गांव के तो सभी मुस्लिम और साथ साथ हिन्दू भी बधाइयां दे रहे हैं, इसलिए हमलोग सोशल मीडिया के कमेंट्स को गंभीरता से नहीं लेते हैं।”
आईपीएस बनना चाहता है अबु सामा
अबु सामा रामकृष्णपुर प्रमोद दासगुप्ता मेमोरियल हाई स्कूल में पढ़ता था, जहां हिन्दू बच्चों की आबादी अपेक्षाकृत अधिक थी।
“गांव में हम सब हिन्दू मुस्लिम मिलकर रह रहे हैं। बल्कि जिस स्कूल में वह पढ़ता था, उसमें 90 प्रतिशत हिन्दू बच्चे पढ़ते थे।”
अबु सामा फिलहाल सिविल सेवा में जाने का इच्छुक है। उसके भाई ने कहा, “वह यूपीएससी की तैयारी करना चाहता है और उसकी ख्वाहिश आईपीएस अधिकारी बनने की है।
“वह चाहता है कि वह गरीबों को न्याय दिलाये। उनके ऊपर किसी तरह का अत्याचार नहीं हो। उसे लगता है कि अगर वह आईपीएस अफसर बन जाएगा, तो वह गरीबों को उनका हक दिलवा पायेगा, इसलिए वह यूपीएससी की तैयारी करना चाहता है,” उन्होंने कहा।
सामा ने आर्ट्स लेकर पढ़ाई की है। चूंकि, अबु सामा का परिवार गरीब है, इसलिए उसने बहुत ज्यादा ट्यूशन भी नहीं ली। घर पर ही पढ़ाई करता था। ऐसे में परिवार की चिंता यह है कि वे यूपीएससी की तैयारी का खर्च कितना उठा सकेंगे।
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