[vc_row][vc_column][vc_column_text]बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। चुनावों की घोषणा के साथ ही बिहार में आर्दश आचार संहिता लागू हो गई है। आचार संहिता लागू होने के कारण अब बिहार के सभी कर्मचारी चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के कर्मचारी के रूप में काम करेंगे। इस दौरान सार्वजनिक धन, यानी सरकारी पैसे के जरिए कोई भी ऐसा कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जा सकेगा जिससे किसी दल का प्रचार होता हो। वहीं सरकारी गाड़ी, विमान या बंगले का इस्तेमाल भी नहीं हो सकता है। वहीं सत्ता में बैठा दल सरकारी घोषणा, शिलान्यास आदि कार्यक्रम भी नहीं कर सकता है। सरकारी स्थानों के प्रयोग की भी मनाही है। ऐसे में आप जानना चाहते होंगे कि आदर्श संहिता क्या है?
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क्या है आचार संहिता?
अपाके बता दें कि किसी भी राज्य में जहां चुनाव होने को होता है वहां के लिए चुनाव आयोग पहले अधिसूचना जारी करता है। इसके साथ ही उस राज्य में ‘आदर्श आचार संहिता’ लागू हो जाती है और नतीजे आने तक यह लागू रहता है। मुक्त और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जो मोडल कोड ऑफ कंडक्ट होता है उसे ही आदर्श आचार संहिता कहते हैं। लोकतंत्र के लिए यह बेहद जरूरी है कि चुनाव निष्पक्ष हो। चुनाव की आपाधापी में मैदान में उतरे उम्मीदवार अपने पक्ष में हवा बनाने के लिये सभी तरह के हथकंडे आजमाते हैं। ऐसे में चुनाव आयोग की यहां जिम्मेदारी होती है कि सबको बराबर का मौका मिले।
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आचार संहिता वो दिशा-निर्देश हैं, जिन्हें सभी राजनीतिक पार्टियों को मानना होता है। इनका मकसद चुनाव प्रचार अभियान को निष्पक्ष एवं साफ-सुथरा बनाना और सत्ताधारी राजनीतिक दलों को गलत फायदा उठाने से रोकना है। साथ ही सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना भी आदर्श आचार संहिता के मकसदों में शामिल होता है। यह राजनीतिक दलों और कैंडिडेटों के लिए आचरण एवं व्यवहार का पैरामीटर माना जाता है। दिलचस्प बात आपको बता दें कि यह किसी कानून के तहत नहीं बनाया गया। यह सभी राजनीतिक दलों की सहमति से बनी और विकसित हुई है।
सबसे पहले 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के तहत बताया गया कि क्या करें और क्या न करें। 1962 के लोकसभा आम चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में वितरित किया। इसके बाद 1967 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से इसे लेकर आग्रह किया गया। इसके बाद से लगभग सभी चुनावों में आदर्श आचार संहिता का पालन कमोबेश होता रहा है। बता दें कि समय-समय पर आदर्श आचार संहिता को लेकर राजनीतिक दलों से चुनाव आयोग चर्चा करता है।
इसकी जरूरत क्यों है?
एक ज़माना था, जब चुनावों के दौरान पोस्टरों से दीवारें पट जाती थीं। लाउडस्पीकर्स का कानफोडू शोर थमता नहीं था। वहीं जो उम्मीदवार दंबंग होते थे वे धन-बल के ज़ोर पर चुनाव जीतने के लिए कुछ भी करने को तैयार होते थे, साम, दाम, दंड, भेद का उपयोग खुलकर होता था। बूथ कैप्चरिंग और बैलट बॉक्स लूट की घअनाएं आम थीं। चुनावी हिंसा भी आम थी। ऐसे में एक कोड आॅफ कंडक्ट की जरूरत थी। अब कहीं पर भी चुनाव होने पर आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है और इसका सबसे बड़ा मकसद चुनावों को पारदर्शी तरीके से संपन्न कराना होता है।
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इसके अलावा समय से पहले विधानसभा का विघटन हो जाने पर भी आदर्श आचार संहिता में प्रावधान किये गए हैं। इनके तहत कामचलाऊ राज्य सरकार और केंद्र सरकार राज्य के संबंध में किसी नई योजना या परियोजना का ऐलान नहीं कर सकती है। चुनाव आयोग को यह अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के एस.आर. बोम्मई मामले में दिये गए ऐतिहासिक फैसले से मिला है। 1994 में आए इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि कामचलाऊ सरकार को केवल रोज़ाना का काम करना चाहिये और कोई भी बड़ा नीतिगत निर्णय लेने से बचना चाहिये।
इसकी विशेषता क्या है?
भारत में चुनाव के दोरान वोटर्स तक अपनी बातों को पहुंचानें के लिए राजनीतिक दल सभाओं, जुलूसों, भाषणों, नारेबाजी और पोस्टरों आदि का इस्तेमाल करते हैं। इसी के मद्देनज़र आदर्श आचार संहिता के तहत क्या करें और क्या न करें की एक लंबी-चौड़ी लिस्ट बनाई जाती है। लेकिन इसके अलावा कुछ और बातें होती हैं जो इससे ज्यादा अहम हैं।
आदर्श आचार संहिता लागू होते ही राज्य सरकारों और प्रशासन पर कई तरह की पाबंदियां लग जाती हैं। सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के अधीन हो जाते हैं। आचार संहिता में रूलिंग पार्टी के लिए कुछ खास गाइडलाइंस दी जाती हैं। इनमें सरकारी मशीनरी और सुविधाओं का उपयोग न करने और मंत्रियों तथा अन्य अधिकारियों द्वारा अनुदानों, नई योजनाओं आदि का ऐलान की मनाही होती है।
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मंत्रियों तथा सरकारी पदों पर तैनात लोगों को सरकारी दौरे में चुनाव प्रचार करने की इजाजत भी नहीं होती। सरकारी पैसे का इस्तेमाल कर विज्ञापन जारी नहीं किये जा सकते हैं। इनके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान किसी की प्राइवेट लाइफ का ज़िक्र करने और सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने वाली कोई अपील करने पर भी पाबंदी लगाई गई है। अगर कोई सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी किसी राजनीतिक दल का पक्ष लेता है तो चुनाव आयोग कार्रवाई कर सकती है। इसके अलावा चुनाव सभाओं में अनुशासन और शिष्टाचार कायम रखने और जुलूस के लिए भी गाइडलाइंस होता है।
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