जब कोई भीड़ अपने हाथ में कानून लेकर किसी को सजा देने की नीयत से पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दे या हत्या की कोशिश करे, तो उसे मॉब लिंचिंग कहते हैं।
पिछले एक दशक में देश में इस शब्द का इस्तेमाल बढ़ा है, क्योंकि आए दिन ‘चोरी’, ‘तस्करी’ या अन्य आरोपों की बुनियाद पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो रही हैं। कुछ मामलों की चर्चा होती है। उस पर सड़क से सोशल मीडिया तक में आउटरेज होता है, लेकिन कुछ विचित्र कारणों से अन्य मामले गाँव और ज़िले के WhatsApp groups से आगे नहीं बढ़ पाते।
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चोरी के आरोप में मॉब लिंचिंग
बीते 29 अगस्त, 2022 को बिहार के किशनगंज जिले (Kishanganj District) के एक गाँव में 25 वर्षीय ज़ुल्फ़िकार और 45 वर्षीय जलाल नामक दो व्यक्तियों के शव बरामद हुए।
ठाकुरगंज थाना (Thakurganj Police Station) क्षेत्र अंतर्गत माटीखुड़ा गाँव के आदिवासी टोला, जहाँ से ये शव बरामद हुए, उसी दिन वहाँ के एक ग्रामीण सुनील हेम्ब्रम ने मीडिया में बयान दिया कि छह लोग चोरी करने आये थे, उन में से दो को गाँव वालों ने पकड़ कर बाँध दिया, उसके बाद चोरी के बात कह कर आते जाते ग्रामीणों ने उनपर हाथ साफ़ किया और इस तरह दोनों की मौत हो गई।
30 अगस्त को ‘मैं मीडिया’ की टीम ज़मीनी हकीकत जानने घटनास्थल और मृतकों के गाँव दूधोंटी पंचायत अंतर्गत अमलझाड़ी पहुंची। सुनील हेम्ब्रम की तरह अन्य स्थानीय लोगों ने भी मॉब लिंचिंग की पुष्टि की, लेकिन बयान देने से बचते नज़र आए। वजह पूछने पर लोग कहते हैं, आए दिन इलाके में चोरी की वारदात से आसपास के गांव परेशान थे, इसलिए जैसी करनी, वैसी भरनी।
शराब कारोबार में संलिप्तता
अमलझाड़ी गांव निवासी दोनों मृतक जलाल और ज़ुल्फ़िकार रिश्ते में मामा-भांजा थे। ज़ुल्फ़िकार की शादी 22 महीने पहले ही हुई थी। लगभग छह महीने की बेटी जानसी प्यारी माँ के सहारे खड़ा होना सीख रही है। जुल्फिकार के बूढ़े बाप मो. ताहिर को इस बच्ची के परवरिश की फ़िक्र सताने लगी है।
मो. ताहिर बताते हैं, बेटा ट्रैक्टर का ड्राइवर था। देर रात लगभग 10 बजे आदिवासी गाँव गया था। दोनों मामा-भांजा पिछले कुछ दिनों से आदिवासी टोले के कुछ लोगों के साथ मिलकर रात को शराब और नशे का डिस्ट्रीब्यूशन करता था। इसी में पता नहीं क्या हुआ और उन लोगों ने दोनों की हत्या कर दी। लेकिन, साथ ही मो. ताहिर का दावा है कि उनके बेटे ने कभी भी चोरी नहीं की है।
माटीखुड़ा गाँव के आदिवासी टोला के कुछ लोगों के साथ शराब के कारोबार में संलिप्तता की पुष्टि जलाल के छोटे भाई मो. मुस्तफा ने भी की। मुस्तफा का कहना है, जलाल और ज़ुल्फ़िकार दोनों पिछले तीन महीने से आदिवासी टोला के कुछ लोगों के साथ शराब का कारोबार कर रहे थे।
मुस्तफा के अनुसार, जिस आदिवासी ने देर रात उन्हें बुलाया था, वो नशा का कारोबारी है। ये दोनों उसी के लिए काम करते थे। शराब डिस्ट्रीब्यूशन के लिए एक रात के उसे एक हज़ार रूपये मिलता था। इसी को लेकर इनलोगों की आपसी लड़ाई हो गई। जिसमें दोनों की हत्या कर दी गई और चोरी का आरोप लगा दिया।
ज़ुल्फ़िकार की पत्नी कहती है, पिछले तीन-चार महीने से आदिवासी टोला में आना जाना करता था, लेकिन पहले कभी ऐसे चोरी का आरोप नहीं लगा।
आपराधिक इतिहास
जलाल की पत्नी ने बताया, उसपर लगभग पंद्रह सालों से IPC 376 यानी रेप का एक केस था, इसलिए अक्सर पुलिस से बचकर इधर उधर ही रहता था। घटना के रोज़ 10 बजे रात को भी यही कह कर घर से निकला था और सुबह मौत की खबर मिली, इसके अलावा मुझे कुछ नहीं मालूम।
जलाल के आपराधिक इतिहास की पुष्टि पुलिस ने भी की है। पुलिस के अनुसार स्थानीय पाठामारी थाने में IPC 376 के केस के अलावा जलाल के खिलाफ दिल्ली में भी कई मामले दर्ज़ थे। गाँव के ही कुछ लोगों ने नाम नहीं बताने के शर्त पर कहा, दिल्ली में इनका चोरी का एक गिरोह है। पहले ये लोग गाँव-इलाके में चोरी नहीं करते थे। लॉकडाउन के बाद उस गिरोह के कुछ लोगों ने इधर भी चोरी करना शुरू कर दिया है।
FIR और आवेदन
पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के विरुद्ध ठाकुरगंज थाने में हत्या, साक्ष्य मिटाना और कई लोगों द्वारा कोई आपराधिक कृत्य करने का मामला दर्ज़ किया है। पुलिस द्वारा दर्ज़ प्रथिमिकी में लिखा है, यह पूछने पर कि उन दोनों की हत्या कैसे हुई, ग्रामीणों के द्वारा बताया गया की शायद चोरी के माल के बंटवारे को लेकर चोरों के बीच आपस में झगड़ा झंझट हुआ होगा और उसी में उन्हीं के गैंग के लोगों के द्वारा मार कर निर्दोष गाँव वालों को फंसाने की नीयत से लाश को चबूतरे के पास फेंक दिया गया।
वहीं ज़ुल्फ़िकार के भाई ज़ुबैर ने 1 सितंबर को पुलिस को एक आवेदन दिया है, जिसमें लिखा है – “माटीखुड़ा आदिवासी टोला के तलु मरांडी, जोसेफ सोरेन, लुगु मरांडी और भटराई मरांडी मोटरसाइकिल पर बैठा कर ज़ुल्फ़िकार को ले गए थे।
दूधोंटी पंचायत की मुखिया फरहत जहाँ के बेटे टोनी ने बताया गांव वालों के मुताबिक वे लोग चोरी की नीयत से गए थे, इसी दौरान पकड़े गए। लेकिन, किसी को कानून अपने हाथ में नहीं लेना था। यह भी एक जुर्म है। यह समाधान नहीं है।
उधर ज़ुल्फ़िकार की सास क़ौसरी बेगम कहती हैं, जान के बदले मुझे जान चाहिए, जिन लोगों ने मेरे दामाद को मारा है, उनको फांसी होनी चाहिए।
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