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बिहार सरकार की उदासीनता से मैथिली, शास्त्रीय भाषा के दर्जे से वंचित

गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से उत्तर बिहार जाने वाले या फिर वहां से आने वाले नेता-मंत्री लगभग दावे के साथ कहते पाए जाते रहे हैं कि शास्त्रीय भाषाओं में मैथिली को स्थान मिलना चाहिए।

rupesh teoth Reported By रूपेश त्योंथ |
Published On :
maithili deprived of classical language status due to bihar government's indifference

मैथिली भाषा शास्त्रीय भाषाओं में स्थान पाने से चूक गई है। मैथिलीभाषियों के बीच यह चर्चा गरम है। साहित्यिक, राजनीतिक व सामाजिक गोष्ठियों में मैथिली को लेकर फिर से हुए सौतेले व्यवहार की गुंज देखने को मिल रही है। मिथिला और मिथिला से बाहर भी चाहे-अनचाहे इस पर बातें हो रही हैं।


पिछले दिनों कोलकाता स्थित विद्यापति सदन के उच्चतल पर खुले आकाश के नीचे आयोजित गोष्ठी ‘अकासतर बैसकी’ में इस विषय पर अनायास गंभीर बहस ने मुझे चकित कर दिया। आमतौर पर इस गोष्ठी मे आरंभिक औपचारिकता के बाद जुटे कविताप्रेमी लोग कविता पाठ करते हैं। यह आयोजन वृहत कोलकाता में कई सालों से हो रहा है। लेकिन, उक्त आयोजन में ज्यादातर समय इस तर्क बहस मे लोग लगे रहे कि आखिर मैथिली भाषा को लेकर खेल कैसे हो गया?

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शास्त्रीय भाषाओं में मैथिली का स्थान लगभग सुनिश्चित माना जा रहा था। लेकिन अंतिम सूची की घोषणा के बाद यह स्पष्ट हो गया कि कहीं भारी चूक हो गई है। कुछ लोग लगे हाथ मैथिली के विद्वानों, चिंतकों व लाभुकों को खरी-खोटी सुनाने में जुटे हैं तो वहीं कुछ लोग अपने क्षोभ को खीझ के रूप में निकालते हुए मिथिला-मैथिली के पैरोकार नेताओं को भला-बुरा कह रहे हैं।


गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से उत्तर बिहार जाने वाले या फिर वहां से आने वाले नेता-मंत्री लगभग दावे के साथ कहते पाए जाते रहे हैं कि शास्त्रीय भाषाओं में मैथिली को स्थान मिलना चाहिए। लेकिन, जब सूची से मैथिली नदारद दिखी तो यही नेतागण कहते फिर रहे हैं कि पीएम से बात करेंगे, मिनिस्टर से बात करेंगे। विधानसभा चुनाव से पहले जनता इन चतुर-सुजानों को भांप रही है।

जानकार बता रहे हैं कि इस पूरे प्रकरण से मैथिली भाषियों में भारी नाराजगी है और ये नाराजगी आने विधानसभा चुनावों में पड़ सकता है। यही वजह है कि मंत्री-नेता डैमेज कंट्रोल के मोड में आ चुके हैं, मगर तीर अब कमान से निकल चुका है।

साहित्य अकादमी व आठवीं अनुसूची में मैथिली

मैथिली भाषा अपनी प्राचीन और समृद्ध साहित्य परंपरा के बल पर ही साहित्य अकादमी व आठवीं अनुसूची में विद्यमान है। बिहार सरकार और बिहार के तथाकथित नेताओं की कारगुजारियों से पर्दा उतर रहा है।

बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन (बीपीएससी) से समय-समय पर मैथिली को हटाया जाता रहा है, जबकि यूपीएससी में है। मैथिली को बिहार में राजभाषा तक का दर्जा प्राप्त नहीं है, वहीं झारखंड में यह राजभाषा है। केन्द्र की मान्यताओं के बावजूद बिहार सरकार अपनी ओर से यथाशक्ति मातृभाषा मैथिली के दमन-अभियान को हवा देती रही है। इसकी उपभाषाओं को अलग करके पहचान देने को आमादा बिहार की सरकार इसे कमजोर करने के कुचक्र में लगी हुई है। मैथिली अकादमी की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है।

द हिन्दू में छपी रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि मैथिली भाषा, शास्त्रीय भाषा के रूप में योग्य होने के बावजूद पीछे रह गई। बताया जा रहा है कि बिहार सरकार की ओर से इसे लेकर प्रस्ताव नहीं किया गया। मैथिली के लिए प्रस्ताव पटना स्थित ‘मैथिली साहित्य संस्थान’ द्वारा भेजा गया था, लेकिन बिहार सरकार द्वारा इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय को नहीं भेजा गया, जो कि आधिकारिक प्रक्रिया है। लिहाजा चर्चा-बहस होने के बावजूद बिहार सरकार के तकनीकी खामी व उदासीनता के कारण मैथिली को शास्त्रीय मान्यता से वंचित होना पड़ा। खबर की मानें तो मैथिली के लिए 300 पृष्ठों के प्रस्ताव पर भाषा विज्ञान समिति की बैठक में चर्चा हुई, परंतु ‘तकनीकी कारणों’ से इस पर विचार नहीं किया जा सका।

मैथिली प्रेमियों में नाराजगी

इससे पहले, बिहार विधानसभा में एक लिखित उत्तर में राज्य के शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने आश्वासन दिया था कि बिहार सरकार जल्द ही केंद्र को प्रस्ताव भेजेगी, मगर मौजूदा घटनाक्रम से तो लगता है कि बिहार सरकार की मैथिली भाषा को लेकर चिरपरिचित उदासीनता एक बार फिर भारी पड़ गई। वहीं, असमिया व बांग्ला के लिए संबंधित राज्य सरकार की ओर से प्रस्ताव दिया गया। आखिर बड़े-बड़े वादों और बातों के बाद भी बिहार सरकार ने जो किया उससे आश्चर्य कम, गुस्से का माहौल ज्यादा है।

वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. भीमनाथ झा सोशल मीडिया पर नाराजगी व्यक्त करते हुए मैथिली में लिखते हैं- हमर प्रस्ताव अछि जे मैथिलीकेँ ‘क्लासिकल’भाषा बनबामे बाधक बिहार सरकारक अरुचि आ उदासीनताक विरोधमे एहि वर्षक विद्यापति पर्वसमारोहक मंचपर उपस्थिति आ भाषणक हेतु बिहार सरकारक मंत्री, बिहारक एमपी, एमएलए., एमएलसीकेँ आमंत्रित नहि करबाक निर्णय लेल जाय (मेरा प्रस्ताव है कि बिहार सरकार की अरुचि और उदासीनता के विरोध में इस वर्ष के विद्यापति महोत्सव के मंच पर आने और भाषण देने के लिए बिहार सरकार के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों को आमंत्रित नहीं करने का निर्णय लिया जाये)।


भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता देने के लिए कुछ मानक बनाए गए हैं। इन भाषाओं के प्रारंभिक ग्रंथों/अभिलिखित इतिहास की प्राचीनता 1500-2000 वर्षों की होनी चाहिए। प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वाली पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता हो। साहित्यिक परंपरा मौलिक हो और किसी अन्य भाषा समुदाय से उधार नहीं ली गई हो। शास्त्रीय भाषा और साहित्य आधुनिक भाषा से भिन्न होने के कारण, भाषा और उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक भिन्नता भी हो सकती है।

मैथिली भाषा इन मानकों को पूरा करती है और शास्त्रीय भाषा घोषित होने के योग्य है। लेकिन बिहार सरकार अपने राज्य में भी मैथिली को उस सम्मान से वंचित किए हुए है जिसकी वह हकदार है। वहीं उचित अवसरों पर अड़ंगा देने में भी बिहार सरकार हिचकती नहीं है।

यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि किसी एक राजनीतिक पार्टी या नेता से लोगों को शिकायत हो सकती है लेकिन ऐतिहासिक घटनाक्रमों को देखें, तो बिहार सरकार मिथिला-मैथिली विरोध के अपने चरित्र को बार-बार सामने लाती है। मिथिला के लोग ठीक ऐसे ही अवसरों पर पृथक राज्य की इच्छा को न केवल प्रकट करते हैं बल्कि उसे जरूरी बताते हैं। कई बार लोग यह मानकर चलते हैं कि बिहार सरकार अपने मूल चरित्र में मिथिला-मैथिली विरोधी है।

 

बिहार सरकार को सही समय पर मैथिली को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए प्रस्ताव पेश करना चाहिए था। यह एक लंबी प्रक्रिया होती है जिसमें राज्य सरकार, विद्वानों की एक समिति बनाकर विस्तृत प्रस्ताव भेज सकती थी। जैसा कि बांग्ला और असमिया के लिए किया गया। मैथिली साहित्य संस्थान की जितनी सराहना की जाए वो कम है क्योंकि जो काम सरकारी तौर पर होना चाहिए, वह उसने अपने दम पर किया। भले ही मैथिली को लेकर विचार न हो पाया हो, चर्चा तो हो रही है।

maithili sahitya sansthan

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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रूपेश त्योंथ (Rupesh Teoth) सुपरिचित कवि, स्तम्भकार व सम्पादक हैं। फिलहाल आइटी प्रोफेशनल के रूप में कार्यरत हैं और स्वतंत्र लेखन के क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय हैं। मैथिली की प्रतिष्ठित ऑनलाइन पत्रिका मिथिमीडिया का सम्पादन व संचालन करते हैं। रूपेश मैथिली भाषा में नवकृष्ण ऐहिक नाम से व्यंग्य लिखते आ रहे हैं। इन्हें लेखन के लिए साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार सहित कई सम्मान प्राप्त हैं। रूपेश राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक आयोजनों में मैथिली का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

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