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मदरसा अजिजिया: तारीख का एक सुनहरा पन्ना, जो अब राख हो गया

मदरसा अजिजिया की लाइब्रेरी में कुरान, हदीस समेत लगभग 4500 किताबें रखी हुई थीं। आग की लपटें इतनी भीषण थीं कि इमारत की दीवारों में दरारें आ गई हैं और जली हुई लोहे की अलमारी से तपिश अब भी निकल रही है।

Reported By Umesh Kumar Ray |
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नालंदा जिले के बिहारशरीफ शहर के बीचोंबीच खड़े मदरसा अजिजिया के मेन गेट को पार कर इमारत के भीतर दाखिल होते ही जली हुई किताबों की गंध से नथुने भर जाते हैं।

यह मदरसा अजिजिया की लाइब्रेरी है, जिसमें कुरान, हदीस समेत लगभग 4500 किताबें रखी हुई थीं। आग की लपटें इतनी भीषण थीं कि इमारत की दीवारों में दरारें आ गई हैं और जली हुई लोहे की अलमारी से तपिश अब भी निकल रही है। लाइब्रेरी से सटा हुआ दफ्तर भी आग से क्षतिग्रस्त हुआ है। दफ्तर के टेबुल पर जले हुए कुछ कागज, जला हुआ एक डेस्कटॉप और एक ग्लोब पड़ा हुआ है।

Madarsa Azizia office
मदरसा का दफ्तर

मदरसा के दूसरे हिस्से में बने नमाजघर को भी आग के हवाले कर दिया गया था और आग के असर से पंखे की डैने मुड़ गए हैं और बिजली के तार बिखर पड़े हैं।


100 साल से भी अधिक पुराने इस मदरसे को 31 मार्च की शाम रामनवमी की शोभायात्रा के साथ चल रहे दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया था।

मदरसे के प्रिसिंपल शाकिर कासमी कहते हैं, “रामनवमी के जुलूस में शामिल दंगाइयों ने शाम को इस मदरसे की लाइब्रेरी को आग के हवाले कर दिया और अन्य कमरों में भी तोड़फोड़ की।”

इस मामले में अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।

शाकिर कासमी ने कहा, “मदरसे में एक सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था, जिसका फुटेज पुलिस को मुहैया कराया गया है ताकि मदरसा को जलाने वालों की शिनाख्त कर गिरफ्तारी की जा सके। हमलोग चाहते हैं कि सरकार जल्द से जल्द इस मदरसे का पुनर्निर्माण कराए और इसे जलाने वालों को कड़ी सजा दे।”

Madarsa Azizia Principal
मदरसा के प्रिंसिपल

साल 1910 में अस्तित्व में आया यह मदरसा नालंदा के इतिहास में बड़ी अहमियत रखता है। प्रिसिंपल के मुताबिक, इस लाइब्ररी में जितनी रेयर किताबें थीं, उतनी रेयर किताबें जिले की किसी और लाइब्रेरी में नहीं थीं। इनमें कुछ हस्तलिखित किताबें भी थीं। आग ने इन रेयर किताबों का अस्तित्व ही खत्म कर दिया और अब इन्हें दोबारा हासिल किया ही नहीं जा सकता है।

बताया जाता है कि इस मदरसे को सरकारी मान्यता 1930 में मिली थी और जब से मदरसा शुरू हुआ था, तभी से यह अल्पसंख्यक छात्रों का पसंदीदा शिक्षण संस्थान था। अरबी अदब के मशहूर अदबी मौलाना मसूद आलम नदवी, दारूल उलूम देवबंद के 10वें मुफ्ती मौलाना निजामुद्दीन, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार रहे डॉ एमएम कमाल, आलिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अबु सलमा समेत कई बड़ी शख्सियतों ने इसी मदरसे से शुरुआती तालीम हासिल की थी।

मदरसा में 500 बच्चों का था नामांकन

मदरसा अजिजिया में फिलहाल 500 बच्चे पढ़ रहे थे। इनमें से बहुत से छात्रों का मार्कशीट मदरसे में ही था। साथ ही कई जरूरी दस्तावेज भी थे, जो जल गए हैं। प्रिसिंपल ने कहा, “हम मदरसा से निवेदन कर रहे हैं कि इन छात्रों का मार्कशीट दोबारा जारी करे, ताकि इन बच्चों का भविष्य खराब होने से बच जाए।”

Burnt books and copies in Madarsa Azizia of Bihar Sharif
जले हुए किताब

कुछ लोगों ने इस बात पर राहत की सांस ली कि उस वक्त रमजान के चलते मदरसे में बच्चों की छुट्टी थी, वरना बच्चे भी इस हिंसा की चपेट में आ जाते।

इस मदरसे को स्थापित करने में बिहारशरीफ की सबसे बड़ी जागीरदार और समाजसेवी बीबी सोगरा का बहुत अहम रोल रहा है। उन्होंने अपने पति अब्दुल अजीज की याद में अपनी जमीन पर अपने खर्च से इस मदरसे की तामीर की और इसे मदरसा अजिजिया नाम दिया।

बीबी सोगरा का जन्म 1815 में मुंगेर में हुआ था और साल 1836 में उनका विवाह बिहारशरीफ के जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले मौलाना अब्दुल अजीज से हुआ था। अब्दुल अजीज की नालंदा, नवादा, शेखपुरा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, गया समेत आधा दर्जन इलाकों में जमीनें थीं और कहा जाता है कि उनकी गिनती उस वक्त के कुछ बड़े जमींदारों में हुआ करती थी।

अब्दुल अजीज ब्रिटिश हुकूमत में सरकारी मुलाजिम थे, मगर उन्होंने बाद में देश की आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए नौकरी छोड़ दी।

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कैसे बना मदरसा अजिजिया

हेरिटेज टाइम्स वेबसाइट ने बीबी सोगरा के जीवन और उनके सामाजिक सरोकार के बारे में काफी विस्तार से एक लेख लिखा है।

इस लेख के मुताबिक, उन्हें एक बेटी थी, जिसे टीबी हो गया था और कई चिकित्सकों से दिखाने के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका। बेटी की मृत्यु के गम में अब्दुल अजीज भी बीमार रहने लगे और एक दिन उनकी मौत हो गई।

पति की मौत से बीबी सोगरा बेहद टूट गई और अकेले रहने लगीं। बाद में खुद को व्यस्त रखने के लिए उन्होंने समाजसेवा का काम शुरू किया। 19वीं शताब्दी के आखिरी समय में उन्होंने सोगरा वक्फ एस्टेट की स्थापना की और अपनी जमीन पर शैक्षणिक संस्थान खोलना शुरू किया। पहला संस्थान मदरसा अजिजिया उन्होंने अपने पति की याद में खोला।

सोगरा वक्फ एस्टेट की जमीन पर ही आधा दर्जन स्कूल कॉलेज व मस्जिदें खोली गईं।

शाकिर कासमी कहते हैं कि उनकी वक्फ की हुई जमीन पर ही सोगरा कॉलेज, सोगरा स्कूल, सोगरा हाईस्कूल, सिफाखाना जैसे कई संस्थान चल रहे हैं।

मदरसा अजिजिया को भारी नुकसान पहुंचाए जाने के बाद अब इसके प्रवेशद्वार पर पुलिस की तैनाती हुई है और प्रशासनिक आदेश पर पुलिस को यह हिदायत है कि घटनास्थल पर किसी को न जाने दिया जाए। किताबों का मलबा अब भी उसी तरह पड़ा हुआ है। लाइब्रेरी के केयरटेकर मोहम्मद शाहाबुद्दीन ने कहा, “किताबें भले ही जला दी गईं मगर ये अब भी उतनी ही पवित्र हैं। इन्हें हम ऐसे ही कहीं फेंक नहीं सकते हैं। हमलोग इसे कहीं दफनाएंगे।”

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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