आम इंसान जीवन भर की जमापूंजी लगाकर घर बनाता है, लेकिन, उनको यह अंदाज़ा भी नहीं होता है कि एक ही झटके में उसकी जिंदगी भर की कमाई से बना घर नदी में समा जायेगा। बिहार के पूर्णिया जिले के अमौर विधानसभा स्थित बैसा प्रखंड की सिरसी पंचायत की मठुआ टोली, बैरबन्ना और मलहना गांव के लोगों के साथ ऐसा ही कुछ हुआ है। कभी इन गांवों में सैकड़ों हँसता-खेलता परिवार हुआ करता था। लेकिन, आज इन परिवारों के घर, ज़मीन, संपत्ति, सुख-चैन सब कुछ महानंदा नदी में समा गये।
इन दिनों महानंदा नदी में कटाव काफी तेजी से हो रहा है। कटाव के कारण लोग अपने मकानों को अपने ही हाथों से छेनी-हथौड़ी की मदद से तोड़ कर एक-एक ईंट निकाल रहे हैं। घर तोड़ रहे पीड़ित शहज़ाद आलम ने बताया कि उन्होंने मजदूरी कर मकान बनाया था, लेकिन, आज नदी उनके घर के काफी करीब आ गई है, जिस कारण वह अपने ही मकान को अपने परिवार के साथ तोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर वह घर नहीं तोड़ेंगे तो घर भी नदी में समा जाएगा।
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“हमलोग बहुत परेशान हैं, सब ज़मीन नदी में चला गया। कहीं रहने की भी जगह नहीं है। कहां जायेंगे नहीं जायेंगे, नहीं पता। इतना नेताओं और लोगों से मिले कुछ करता ही नहीं है कोई। आता है बस, देख कर चला जाता है। कोई कुछ नहीं करता है। घर में जो थोड़ा बहुत कुछ बचा हुआ है, वही खा रहे हैं। हमलोगों के पास कोई सहारा नहीं है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “इसलिये हमलोग अपना घर खुद से तोड़ रहे हैं। उस समय बहुत जल्दी हो जाता है जब नदी पास आने लगती है। इसलिये अभी तोड़ दे रहे हैं। बिल्कुल बग़ल में आ गई है नदी। अगर घर तोड़ेंगे नहीं तो यह नदी में समा जायेगा। बहुत सारा मकान बह गया। बहुत सारा सामान बह गया हमलोगों का। बस यही बचा है ईंट। इसी को बेच कर कुछ खाने का इंतज़ाम कर लेंगे कुछ दिनों के लिये।”
बांध निर्माण नहीं होने से बढ़ी परेशानी
सरकार के सुस्त सिस्टम ने बाढ़ पीड़ितों का दर्द और बढ़ा दिया है। लोगों का मानना है कि सरकार यदि समय पर महानंदा नदी में बांध निर्माण कर देती तो आज इन सैकड़ों परिवारों को भटकना नहीं पड़ता। पीड़ित मो. हाशिम बताते हैं कि कटाव के समाधान के लिये जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक कार्यालयों का चक्कर लगाते-लगाते वे थक गये, लेकिन, कहीं से कोई मदद नहीं मिली।
“(बांध के निर्माण के लिये) हज़ारों बार नेता और ब्लॉक दौड़ते-दौड़ते हमलोगों का पैर थक गया। मेरे टोले में 43 घर थे, इस बार सभी घर उजड़ गये। महानंदा नदी के किनारे होने के कारण कोई ज़मीन देता भी है तो वहां नहीं लेता है। बांध के निर्माण के लिये कोई बात ही नहीं करता है। सैकड़ों हेक्टेयर ज़मीन नदी में समा गयी,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “हमलोग मांग करते हैं कि सरकार ज़मीन दे कहीं पर घर बनाने के लिये। बिहार सरकार के पास तो बहुत ज़मीन है। हमलोगों को उस ज़मीन पर बसा दे सरकार। यहां पर खाने-पीने में भी बहुत तकलीफ़ हो रही है। नदी किनारे क्या ही खाना-पीना हो पायेगा।”
हर साल हज़ारों घर तबाह, लाखों हेक्टेयर फसल बर्बाद
बिहार में सैलाब से हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं। हज़ारों लोगों को दूसरी जगह घर लेकर जाना होता है। आंकड़े बताते हैं कि सैलाब से वर्ष 2018 में डेढ़ लाख लोग प्रभावित हुए। साथ ही 1,074 घर बर्बाद हुए, जिसकी क़ीमत तक़रीबन 42 लाख रुपये है। इसमें लगभग एक हज़ार लोगों की जान चली गई।
17 सितंबर 2020 को सांसद अशोक कुमार रावत द्वारा संसद में पूछे गये एक सवाल के जवाब में केन्द्रीय जल शक्ति और समाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रतन लाल कटारिया ने ये आंकड़ा सदन पटल पर रखा था।
सैलाब से हर वर्ष लाखों लोग विस्थापित तो होते ही हैं, साथ ही लाखों हेक्टेयर फसल भी तबाह हो जाती है। इस दोहरी मार से किसानों की ज़िंदगी पर बहुत असर पड़ता है।
आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि सैलाब से होने वाली फसलों की यह तबाही बहुत ज़्यादा है। वर्ष 2019-20 में बिहार में सैलाब से 2.61 लाख हेक्टेयर जमीनों पर लगी फसल बर्बाद हुई। वहीं, वर्ष 2020-21 में 7.54 लाख हेक्टेयर में लगी फसल बर्बाद हुई।
यह आंकड़ा सांसद कीर्ति चिदंबरम द्वारा 20 सितंबर 2020 को संसद में पूछे गये एक सवाल के जवाब में कृषि व किसान कयाण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संसद की पटल पर प्रस्तुत किया था।
पहले भी नदी में विलीन हुए सैकड़ों घर
लोगों का कहना है कि पहले भी इस गांव में करीब एक सौ से अधिक घर महानंदा नदी में कट कर समा चुके हैं। इस बार फिर महानंदा नदी उफान पर है। लोग अपने घरों को तोड़कर सुरक्षित जगह पर जा रहे हैं। ये लोग झुग्गी-झोपड़ी बनाकर सड़कों के किनारे रह रहे हैं। लोगों ने कई बार डीएम से लेकर सांसद को आवेदन देकर गुहार लगाई थी कि यहां कटाव निरोधक काम शुरू किया जाये। लेकिन, आज तक कुछ नहीं हुआ।
सड़क किनारे वर्षों से गुजर बसर कर रहे लोगों ने बताया कि घर नदी में विलीन हो जाने के बाद पिछले पांच वर्षों से सड़क किनारे टेंट और जुग्गी झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं, लेकिन, उनका कहना है कि आज तक सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं दी गयी है।
पीड़ित अंज़ार आलम ने बताया कि पहले भी यहां पर घर नदी में समा गया, लेकिन, प्रशासन ने इसकी सुध नहीं ली, नतीजतन एक बार फिर उनके गांव में कई घर नदी में विलीन हो गये।
“पहले भी 65-70 के आस-पास घर थे, हरा-भरा गांव था, जो नदी में बह गया। जब हमलोग पहले आते थे तो यहां सब कुछ था। लेकिन, आज देख सकते हैं कि बिल्कुल पानी में चला गया। यहां तक कि जिस समय कटान हो रहा था, जान बचाना भी मुश्किल हो रहा था। छोटे-छोटे बच्चे थे, लोग उनको बचाये या घर को बचाये। प्रशासन कुछ मदद नहीं कर पाया, ना ही कुछ किया,” अंजार ने बताया।
उन्होंने आगे कहा, “कटाव अभी भी जारी है। सरकार से यही विनती है कि हमलोगों के साथ सौतेला व्यवहार ना करे। हमलोगों को कुछ ना कुछ मुआवज़ा दे, सिर्फ इस नदी से बचा ले। हमलोगों के पास जो ज़मीन थी, वही थी जो नदी में समा गयी…प्रशासन से विनती है कि हमलोगों के गांव को बचा ले। सरकार हमलोगों के तरफ देखे और ध्यान दे, बस इतनी विनती है।”
यह सीमांचल के साथ सौतेला सुलूक है: अख़्तरुल ईमान
स्थानीय विधायक अख़्तरुल ईमान ने कटान से प्रभावित गांवों का दौरा किया। उन्होंने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि यहां के सैकड़ों विस्थापित परिवार तीन वर्षों से सड़क किनारे जुग्गी-झोपड़ी बनाकर गुजर बसर कर रहे हैं, लेकिन, जो इन विस्थापित परिवारों को सरकार की तरफ़ से सुविधाएं मिलनी चाहिए वो आज तक नहीं मिली है। ईमान ने आगे कहा कि यह सीमांचल के साथ सौतेला सुलूक है और अगर प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो सड़क पर उतर कर आंदोलन किया जायेगा।
“सरकार की लापरवाही और जल संसाधन मंत्री की सौतेलेपन की वजह से महानंदा के किनारे बसी हुई बस्तियों की सुरक्षा के लिये कुछ काम नहीं किया गया। जो कुछ भी किया गया वो सिर्फ लीपापोती की गई। माननीय मुख्यमंत्री कहते हैं कि राज्यकोष पर सबसे पहला हक़ आपदा पीड़ितों का है, उनका यह जुमला भी छलावा साबित हुआ,” ईमान ने कहा।
ईमान ने आगे बताया, “यह सीमांचल के साथ बिहार सरकार का सौतेलापन का सुलूक है। हमें लूटती है सरकार। हम आज भी नाव पर पार होते हैं…हर वर्ष डूब कर मरने वालें की सबसे ज़्यादा संख्या अमौर-बैसा में है। हर साल हज़ारों एकड़ ज़मीन कट कर नदी में चली जाती है…आज भी यह ज़ालिम सरकार अंग्रेज़ों की तरह महानंदा नदी पर दर्जनों जगह पचास-सौ रुपये लेकर कश्ती पर नदी पार कराती है।”
चिन्हित कर मुआवजा दिया जायेगा: विभाग
विस्थापित परिवारों को चिन्हित कर रहे सर्किल इंस्पेक्टर महबूब आलम ने बताया कि नदी कटान से प्रभावित परिवारों को चिन्हित कर उनके बीच पॉलीथिन का वितरण किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि 110 परिवारों को चिन्हित कर सूची बनाकर विभाग को भेजा जायेगा, जिसके अनुसार मुआवजा दिया जायेगा।
वहीं, बांध निर्माण के सवाल पर महबूब आलम ने कहा कि इस संबंध में रिपोर्ट संबंधित विभाग को भेज दिया गया है, आगे का काम संबंधित विभाग करेगा। उन्होंने आगे कहा कि इन पीड़ितों को अस्थायी रूप से बसाने के लिये ज़मीन की खोज जारी है, उपलब्ध होने पर वहां उनको बसाया जा सकता है।
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