बिहार के कटिहार ज़िला स्थित बारसोई प्रखंड के विभिन्न हिस्सों में नागर और महानंदा नदी के लगातार घटते-बढ़ते जलस्तर से किसानों को दोगुनी मार का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, लगभग दो हफ्ते पहले इन दोनों नदियों का जलस्तर उफान पर था, जिसके चलते क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी। नेपाल के तराई इलाकों में लगातार हुई बारिश ने इसमें और इज़ाफा कर दिया।
करीब तीन सप्ताह पहले किसानों द्वारा खेतों में धान की रोपनी की गई थी, लेकिन, बाढ़ ने फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। अब किसानों को दोबारा धान लगाने में दोगुनी लागत पड़ रही है। कई किसानों ने तो घर के क़ीमती गहने बेच कर धान की फसल लगाई थी, लेकिन, सैलाब ने उनकी फसल भी तबाह कर दी। अब उनके पास दोबारा धान लगाने के पैसे नहीं है, जिससे उनके सामने विकट स्थिति पैदा हो गई है।
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शुरुआत में किसानों को लगा था कि थोड़ा बहुत पानी है जिससे फसलों को ज्यादा नुकसान नहीं होगा, लेकिन पानी का स्तर लगातार बढ़ता गया और खेत-खलिहान, सभी जगह पानी ही पानी भर गया। महंगाई के दौर में किसान किसी तरह अपनी फसल लगाते हैं, लेकिन, बाढ़ ने सब बर्बाद कर दिया। अब अगर वे दोबारा फसल नहीं लगाते हैं, तो उन्हें भूखे रहने की नौबत भी आ सकती है।
जिन किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक है, वे तो खेती कर लेंगे, लेकिन छोटे तबके के किसान शायद दोबारा खेती न कर पाएं। किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि धान रोपने के लिए (बीज) कहां से लाएं। अगर कहीं बीज मिलता भी है तो उसकी कीमत बहुत ज्यादा है।
आंकड़ों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि हर साल सैलाब से फसलों का बहुत ज़्यादा नुक़सान होता है। वर्ष 2019-20 की बात करें तो उस वर्ष बिहार में सैलाब से 2.61 लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसल बर्बाद हुई थी। वहीं, वर्ष 2020-21 की बात करें तो राज्य में उस साल 7.54 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगी फसल बर्बाद हुई थी।
खेत में हफ्तों पानी लगे रहने से बढ़ी परेशानी
लगातार हो रही बारिश से बाढ़ जैसी हालत हो गई, जिस वजह से खेतों में हफ्तों पानी लगा रह गया। इतने लंबे समय तक पानी लगे रहने की वजह से पौधा सड़ने लगा और नतीजतन बर्बाद हो गया। किसान अमन कुमार महतो ने बताया कि रोपनी के दो-तीन दिनों के बाद ही खेतों में पानी लगना शुरू हो गया था। लगातार दस दिनों तक पानी खेत में रहा, जिसके वजह से धान की फसल बर्बाद हो गई। उन्होंने बताया कि सबसे ज़्यादा फर्क छोटे तबक़े के किसानों को पड़ा है।
अमन ने कहा, “जो छोटे किसान हैं वो तो बर्बाद ही हो चुके हैं। क्योंकि आठ-दस दिनों तक पानी लगा रहा। जिस कारण जो भी रोपाई हुआ था वो गल गया। इस वजह से छोटे-मोटे किसान काफ़ी परेशान हैं। वो दोबारा रोपाई नहीं कर पा रहे हैं। उनको धान का बीज नहीं मिल पा रहा है। मिल भी रहा है तो ज़्यादा क़ीमत मांगा जा रहा है। ज्यादा कीमत पर बीज ख़रीदना छोटे किसानों के वश की बात नहीं है।”
उन्होंने आगे बताया, “बीज में बहुत ज़्यादा रुपये लग रहा है। साथ ही लाने का किराया भी है। खाद और पानी भी है। लेट भी बहुत हो चुका है। इसलिये संभव ही नहीं है कि छोटे किसान दोबारा रोपाई कर पायेंगे। हालांकि, बड़े किसान दोबारा कर रहे हैं खेती। छोटे किसानों पर सरकार ध्यान दे थोड़ा। हमारे यहां के ग़रीब किसानों को मुआवज़ा दे सरकार। मेरे खेत में कुछ भी धान नहीं बचा है। सभी धान गल गया है।”
घर के क़ीमती गहने बेच कर की थी खेती
एक बीघा जमीन में धान लगाने के लिए किसानों को ढाई से तीन हज़ार रुपये खर्च करना पड़ता है। इस वजह से बहुत से किसान दोबारा धान नहीं लगा पा रहे हैं। किसानों का कहना है कि एक बार तो बर्बाद हो ही गए हैं, अब दोबारा बर्बाद नहीं होना चाहते। उन्हें डर है कि फिर से बाढ़ आ सकती है।
कटिहार के बारसोई के ही एक अन्य किसान, जिनको लगभग तीन बीघे में लगी धान फसल का नुक़सान हो गया, कहते हैं कि उन्होंने घर के क़ीमती गहने बेच कर फसल लगाई थी, जो बर्बाद हो गई, अब उनके पास फसल लगाने के लिये और पैसे नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को किसानों के ऋण को भी माफ कर देना चाहिये।
“हमारे ऊपर जो बैंक का ऋण है, वो भी माफ़ हो। कभी बाढ़ आ जाती है तो कभी सूखा पड़ जाता है तो कभी तूफान आ जाता है। बीच में किसान ही पिसता है। जो बड़ा किसान है, जिसके पास पूंजी है उसको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है। लेकिन, दो, तीन, चार बीघा वाले को तो फ़र्क़ पड़ता है। हमलोगों का सबकुछ बर्बाद हो गया। बाल-बच्चों को खिलायेंगे क्या,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “ना ऊपर वाला देख रहा है, ना नीचे वाला देख रहा है। बीच में हमलोग पिस रहे हैं। हम चाहते हैं कि प्रशासन किसानों की मदद करे। हमलोगों को मुआवज़ा मिले, ताकि हमलोग दोबारा धान लगा सकें…बीज है ही नहीं तो लगायें कहां से दोबारा? जुताई का पैसा नहीं है। एक बीघा धान लगाने में लगभग तीन हज़ार पड़ता है। तीन बीघा में दस हज़ार रुपये लगाये थे बीवी का ज़ेवर बेच कर। अब हम दोबारा पैसा कहां से लायें?”
किसान सरकार से कर रहे मुआवज़े की मांग
किसानों ने कहा कि सरकार को उनकी समस्याएं सुननी चाहिए और उचित मुआवजा देकर उन्हें हौसला देना चाहिए। किसान हसन रज़ा कहते हैं कि सैलाब से ज़्यादातर किसानों की फसल बर्बाद हो गई है, और दोबारा रोपाई करने के लिये किसान आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं, इसलिये सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिये।
हसन रज़ा ने कहा, “सैलाब से किसानों का बहुत नुक़सान हुआ है। सबसे बड़े दुख की बात यह है कि हमारे इलाक़े में जितनी भी फ़सल निचले हिस्से में थी, वो बर्बाद हो चुकी है। धान की रोपाई लगभग लोग कर चुके थे। 90 फीसद लोग खेत की जुताई कर चुके थे। दोबारा रोपाई करने के लिये किसान सक्षम नहीं हैं, क्योंकि उसको बीज नहीं मिल पा रहा है, जिस वजह से लोग खेती करने से वंचित हो रहे हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “मुझे ऐसा लग रहा है कि आगे चल कर इलाक़े में जो धान की खेती हो रही है, उसमें काफ़ी कमी होने की संभावना है। उत्पादन की भारी कमी हो जायेगी। इसलिये हम चाहते हैं कि सरकार किसानों को मुआवज़ा दे। किसानों को आर्थिक रूप से मज़बूत करने के लिये मुआवज़ा ज़रूरी है। और सरकार यह व्यवस्था तुरंत करे, मेरी यही मांग है।”
रिपोर्ट विभाग को भेजी जा रही है: प्रखंड कृषि पदाधिकारी
‘मैं मीडिया’ ने बर्बाद हुई फसल के मुआवज़े को लेकर बारसोई के प्रखंड कृषि पदाधिकारी पवन कुमार से सवाल पूछा तो उन्होंने बताया कि फिलहाल बाढ़ ग्रस्त इलाकों में हुई फ़सल की बर्बादी को लेकर रिपोर्ट विभाग को भेजी जा रही है, वहां से जो भी निर्णय होगा किसानों को बताया जायेगा।
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