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कुल्हैया मुस्लिम समाज की महिला पहली बार बनीं सब इंस्पेक्टर

Ariba Khan Reported By Ariba Khan |
Published On :

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की साल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में समग्र साक्षरता दर
70.9% है और देश के सभी राज्यों की सूची में बिहार नीचे से तीसरे स्थान पर है। बिहार में भी सीमांचल शिक्षा के मामले में सबसे पिछड़े क्षेत्रों में गिना जाता है। सीमांचल के चार जिलों (अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार) की औसत साक्षरता दर केवल 35% है।

ऐसी स्थिति में भी सीमांचल के छात्रों के सपने मजबूत हैं। हाल ही में सीमांचल के अररिया जिले के मुनगुल्ला गांव की एक छात्रा हुमा शमीम ने 2020 बैच की 2213 बिहार पुलिस सब इंस्पेक्टर परीक्षा पास की है।

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हुमा शमीम कुल्हैया मुस्लिम समाज से सब इंस्पेक्टर बनने वाली पहली महिला है।


हुमा ने बताया कि उनकी शुरुआती पढ़ाई गर्ल्स गाइड एकेडमी में हुई, जिसमें उनके परिवार वाले और खासतौर से मां का काफी सहयोग रहा। आजाद एकेडमी से उन्होंने मैट्रिक किया और उसी दौरान उन्होंने प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।

हुमा कहती हैं कि उन्हें बचपन से ही बीपीएससी (बिहार पब्लिक सर्विस कमिशन), डीएसपी वगैरह की परीक्षा देने का शौक था। उन्होंने तीन बार बीपीएससी का प्रिलिमिनरी टेस्ट निकाला और मुख्य परीक्षा भी दी। मुख्य परीक्षा की तैयारी करने के लिए वह “हज भवन” पटना गईं, तो उन्होंने देखा कि वहां छात्र दरोगा समेत और भी कई प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं।

वह आगे बताती हैं, “हज भवन में मेरे कई दोस्त बने, जिन्होंने मुझे लड़की होने के बावजूद सब इंस्पेक्टर का एग्जाम देने के लिए प्रेरित किया।”

साल 2020 में इस पद के लिए वैकेंसी निकली थी और 26 दिसंबर को पीटी हुआ था। चार माह बाद 24 अप्रैल को मुख्य परीक्षा हुई और 24 जून को फिजिकल टेस्ट हुआ था।

हुमा बताती हैं कि पीटी और मुख्य परीक्षा की तैयारी उन्होंने लगभग घर पर रहकर ही की और फिजिकल टेस्ट की तैयारी के लिए हज भवन गई थीं।

बिहार हज भवन

हज भवन बिहार राज्य सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधीनस्थ संचालित कोचिंग सह मार्गदर्शन संस्था है। बिहार हज भवन में बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की निशुल्क तैयारी कराई जाती है।

हज भवन की प्रशंसा करते हुए हुमा बताती हैं कि यहां खाने-पीने का काफी अच्छा इंतजाम है। प्रोटीन व जूस मिलता है और दवाई वगैरह की भी व्यवस्था है। साथ ही लड़कों के लिए पुरुष ट्रेनर और लड़कियों के लिए महिला ट्रेनर उपलब्ध हैं और यह सब पूरी तरह निशुल्क है।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

हुमा बताती हैं कि उनके पापा यादव कॉलेज के प्रिंसिपल रह चुके हैं और उनकी माता साक्षरता अभियान से जुड़ी हुई थीं। इसलिए दोनों शिक्षा को लेकर काफी जागरूक थे। “उनका (माता-पिता) मानना है कि लड़कियों को पढ़ लिख कर आगे बढ़ना चाहिए। हमको कभी भी शिक्षा से रोका नहीं गया। परिवार में कितनी भी परेशानियां हों, लेकिन हमें पढ़ाई छोड़ने के लिए कभी नहीं कहा गया।”

इस सफर के दौरान वह अपने भाइयों के सपोर्ट का भी जिक्र करती हैं। हुमा कहती हैं कि जब भी उन्हें कोई एग्जाम देना होता था, तो उनके भाई हमेशा उनके साथ जाते थे। उन्होंने कभी भी साथ जाने को मना नहीं किया।

चुनौतियां

इस बीच, आने वाली चुनौतियों के बारे में हुमा कहती हैं, “मैं घरेलू लड़की हूं। मेरा खेलकूद से कोई वास्ता नहीं था, इसलिए मुझे फिजिकल के लिए दौड़ में परेशानी हुई। मुझे 6 मिनट में 1 किलोमीटर दौड़ना था।” ” मैंने 26 दिन तक प्रैक्टिस की और फाइनल रेस में मुझे 1 किलोमीटर दौड़ने में 5 मिनट 20 सेकंड ही लगे। साथ ही मैंने हाई जंप, लॉन्ग जंप और शॉट पुट थ्रो एक बार में ही निकाल लिया था।”

सीक्रेट रखी अपनी प्लानिंग

समाज के विरोध से बचने के लिए हुमा ने पीटी और मुख्य परीक्षा देते समय अपने परिवार वालों को भी इस बारे में नहीं बताया था। रिजल्ट आने पर ही उन्होंने घर में बताया जिसके बाद उनके पिता ने फिजिकल की तैयारी के लिए बिना किसी विरोध के उन्हें पटना भेज दिया। हुमा का कहना है कि विरोध से बचने के लिए जरूरी है कि अपनी प्लानिंग को सीक्रेट ही रखा जाए, जब तक सफलता न मिले।


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अरीबा खान जामिया मिलिया इस्लामिया में एम ए डेवलपमेंट कम्युनिकेशन की छात्रा हैं। 2021 में NFI fellow रही हैं। ‘मैं मीडिया’ से बतौर एंकर और वॉइस ओवर आर्टिस्ट जुड़ी हैं। महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर खबरें लिखती हैं।

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