वर्ष 2023 के जनवरी से सितंबर महीने तक भारत में 93% दिनों में चरम मौसमी घटनाएं यानी ‘एक्सट्रीम वैदर इवेंट्स’ देखने को मिलीं। भारत में इस वर्ष हीटवेव, शीत लहर, बाढ़, भूस्खलन और चक्रवाद जैसी चरम मौसमी घटनाएं बढ़ी हैं जिससे देश में 9 महीनों में कुल 3,238 जानें गईं।
ये खुलासा पर्यावरण, स्वास्थ और विकास से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित पत्रिका ‘डाउन टू अर्थ’ की रिपोर्ट में हुआ है।
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रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में 88% दिनों में चरम पर्यावरणीय घटनाएं देखने को मिली थीं। 2023 में ये आंकड़ा 86% रहा। इस साल चरम मौसमी घटनाओं ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए। 1901 के बाद 2024 का जनवरी भारत में नौवां सबसे सूखा महीना रहा। वहीं, फरवरी में भी पिछले 123 सालों में दूसरा सबसे अधिक न्यूनतम तापमान रिकॉर्ड किया गया।
बिहार में भारी नुकसान
आंकड़े बताते हैं कि बिहार में चरम मौसमी घटनाओं में इजाफा हुआ है। वर्ष 2023 में राज्य में 81 दिन चरम पर्यावरणीय घटनाएं देखने को मिली थीं जबकि 2024 में 88 दिन चरम मौसमी घटनाएं हुईं, जो पिछले वर्ष के मुकाबले 9.87 प्रतिशत अधिक है।
चरम पर्यावरणीय घटनाओं से इस वर्ष देश में 9 महीने में करीब 32 लाख हैक्टर फसलों को नुकसान हुआ। वहीं, 2,35,862 घर नष्ट हुए और 9,457 पशुओं की मौत हुई। भारत के उत्तरी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों की बात करें, तो सबसे अधिक फसलों का नुकसान बिहार को झेलना पड़ा। राज्य में जनवरी 2024 से सितंबर 2024 तक तीन लाख हैक्टर में लगी फसलें नष्ट हुईं।
देश भर में सबसे अधिक फसलों का नुकसान झेलने वाले राज्यों में बिहार, महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर रहा। महाराष्ट्र में 19,51,801 हैक्टर फसलें चरम मौसमी घटनाओं की भेंट चढ़ गईं।
इस बारे में हमने किशनगंज के डॉ कलाम कृषि कॉलेज में कार्यरत कृषि विज्ञानी डॉ स्वराज दत्ता से बात की। उन्होंने बताया कि खरीफ फसलों के लिए बिहार के किसान प्राकृतिक बरसात पर ज्यादा निर्भर होते हैं। दक्षिणी बिहार में सिंचाई के लिए किसान नहर प्रणाली का ज्यादा उपयोग करते हैं वहीँ उत्तरी बिहार में कुएं और ट्यूबवेल का अधिक इस्तेमाल होता है। इस साल सामान्य से कम बारिश हुई जिससे खरीफ की फसलें खासकर धान का उत्पादन काफी प्रभावित हुआ।
आगे उन्होंने कहा कि कभी बारिश बहुत काम होती है और कभी लंबा अंतराल आ जाता है। कई बार लंबे अंतराल के बाद एक साथ काफी बारिश हो जाती है जिससे किसानों को भारी नुक्सान उठाना पड़ता है।
“किसान खेती करते हैं तो उनका अपना कैलेंडर होता है लेकिन अब वर्षा का वितरण एक समान नहीं हो रहा है। मानिए कि जून-जुलाई में बारिश हुई और फसल लग गई, सितंबर में एक ड्राई स्पेल हो गया, जब फसल के बढ़ने का समय है। फिर फसल पकने के समय अक्टूबर-नवंबर में बहुत तेज़ बारिश हो गई। कम समयावधि में अधिक बारिश होने से फसल की बर्बादी हो गई,” कृषि विज्ञानी स्वराज दत्ता ने बताया।
हीटवेव ने लीं कई जानें
रिपोर्ट में दिये गये आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया भर में साल 2024 पिछले कुछ वर्षों में सबसे गर्म वर्ष था। भारत में केवल हीटवेव से 210 लोगों की मौत हुई। हीटवेव से मृत्यु के आंकड़ों से पता चलता है कि इससे बिहार में 49 लोगों की मौत हुई और राज्य दूसरे स्थान पर रहा। 60 मृत्यु के साथ ओडिशा दूसरे स्थान पर रहा।
देश भर में 77 दिन ऐसे रहे जब कहीं न कहीं हीटवेव देखा गया। इनमें से बिहार ने 32 दिन गर्मी की जबरदस्त लहर को झेला।
इसमें एक रोचक बात यह रही कि पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में 31 दिन हीटवेव दर्ज किया गया लेकिन वहां एक भी मृत्यु नहीं हुई। एक और पड़ोसी राज्य झारखंड में 25 दिन हीटवेव का प्रकोप रहा और वहां 6 लोगों की मृत्यु हुई।
अधिक गर्मी से जंगल, झाड़ियों में आग लगने की घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं। इंडिया स्टेट ऑफ़ फारेस्ट रिपोर्ट (आईएसएफआर) 2023 के आंकड़ों की मानें तो बिहार में कुल 343.30 वर्ग किलोमीटर जंगल अत्यंत अग्नि प्रवण (एक्सट्रीमली फायर प्रोन) की सूची में आते हैं। अगर इसमें अत्यधिक अग्नि प्रवण और मध्यम अग्नि प्रवण जंगलों को भी जोड़ दिया जाए तो राज्य के 3,909 वर्ग किलोमीटर जंगल अग्नि प्रवण क्षेत्र में आते हैं। यह कुल जंगलों का लगभग 50% है। 2023-24 में जंगल में आग की सबसे अधिक घटना जमुई, मुंगेर और नवादा में देखने को मिली।
कृषि मौसम विज्ञानी डॉ सोना कुमार ने ‘मैं मीडिया’ से बताया कि पिछले कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण में बहुत तेज़ी से बदलाव आया है। जो पिछले 60-70 सालों में नहीं हुआ वो पिछले 5-6 वर्षों में देखा गया है। तापमान में करीब 1 से 1.25 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी हुई है।
उनका मानना है कि बिहार में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए जागरूकता फैलाने की जरूरत है। मौसम विभाग को जो जानकारी मिलती है उसे बांटने और आम लोगों में जागरूकता फैलाकर पर्यावरण को हो रहे भयावह नुकसान को कम किया जा सकता है।
बरसात के मौसम पर क्लाइमेट चेंज का बड़ा असर
रिपोर्ट बताती है कि जून से लेकर सितंबर तक देश के 35 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में सभी 122 दिनों में चरम मौसम देखने को मिला है। इस दौरान देश भर में 2,716 लोगों ने जान गंवा दी।
2024 में भारत में बिजली गिरने और आंधी से 1,021 लोगों की मृत्यु हुई। इससे सिर्फ बिहार में 100 व्यक्तियों ने जान गंवाई। मध्य प्रदेश (188) और उत्तर प्रदेश (164) के बाद सबसे अधिक लोग बिहार (100) में मरे। बिहार की तरह ही महाराष्ट्र में भी 100 लोगों ने आंधी व आकाशीय बिजली से जान गंवाई। तेज़ बारिश, बाढ़ व भूस्खलन से देश भर में 1,910 लोगों की मृत्यु हुई जबकि बिहार में 50 लोगों ने जान गंवाई।
भारतीय मौसमविज्ञान विभाग (आईएमडी) की वेबसाइट से मिले आंकड़ों के अनुसार, 1 जनवरी 2024 से लेकर 25 दिसंबर 2024 तक बिहार में केवल एक जिला खगड़िया है जहां सामान्य के आसपास वर्षा हुई है। खगड़िया को छोड़ बिहार के बाकी 37 जिलों में सामान्य स्तर से बारिश काफी कम हुई है। मुजफ्फरपुर, पूर्वी चम्पारण और गोपालगंज जैसे जिलों में बारिश, सामान्य से 98% से 99% तक कम देखने को मिली है।
2024 में बिहार में जून में सामान्य से अधिक वर्षा हुई। वहीं, जुलाई में राज्य में सामान्य से 12 से 14% कम बारिश हुई। पिछले कुछ वर्षों में बिहार समेत कई राज्यों में वर्षा ऋतू में काफी अधिक अनियमितता देखने को मिली है।
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग ने वर्षा ऋतू पर ख़ासा असर डाला है। इस वर्ष मानसून में रातों का तापमान 0.61 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है।
इसपर डॉ सोना कुमार कहते हैं, “बारिश के मौसमों में भी आजकल काफी गर्मी देखी जा रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि ताप संतुलन बिगड़ता हुआ दिख रहा है। सूरज से जो गर्मी हमें मिल रही है और हमारे वायुमंडल में जो भी रेडिएशन आ रहा, वह ठीक से नहीं आ रहा, जिससे रातें गर्म हो रही हैं। अत्यधिक बादल या प्रदूषण के कारण वायुमंडल में एक लेयर सा बन जाता है और ऊर्जा का पुनर्विकिरण नहीं हो पाने से रातें गर्म हो जाती हैं।”
शीतलहर ने ढाया कहर
भारत में जनवरी और फरवरी में शीतलहर ने भी कहर ढाया। मगर हीटवेव के मुकाबले इससे कम नुकसान हुआ। कुल 13 प्रदेशों से मिले आंकड़ों के अनुसार, सबसे अधिक हरियाणा (32 दिन) और पंजाब (31 दिन) में शीतलहर रही। हालांकि, हालांकि बिहार को छोड़कर किसी भी राज्य में इससे कोई मौत नहीं हुई। आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 6 लोगों ने शीतलहर से जान गंवाई।
2024 के जनवरी और फरवरी महीने 2023 और 2022 से काफी अधिक ठंडे थे। इन दो महीनों में 2023 में 28 और 2022 में 38 दिन चरम मौसमी घटनाएं हुई थीं लेकिन 2024 में यह आंकड़ा 50 दिन तक पहुँच गया।
वर्ष 2024 में जनवरी और फरवरी के 60 दिनों में से 50 दिन चरम पर्यावरणीय घटनाएं देखने को मिली। इस दौरान देश भर में 41,910 हेक्टेयर में लगी फसल को नुकसान हुआ और 15 लोगों की मौत हुई। केवल जनवरी महीने में शीतलहर से बिहार में 6 लोगों की जान चली गई।
बहुत तेज़ी से हो रहा है क्लाइमेट चेंज
जलवायु परिवर्तन विश्व स्तरीय समस्या है जिसका असर किसी एक क्षेत्र, एक देश या एक महाद्वीप तक सीमित नहीं है। जलवायु परिवर्तन समय के साथ और भी खतरनाक रूप लेता जा रहा है। असामान्य मौसमी घटनाएं धीरे धीरे नियमित घटनाएं बनती जा रही हैं। 2024 में 16 जून से 24 जून के बीच विश्व भर में 4 अरब 97 करोड़ लोगों ने अत्यधिक हीटवेव महसूस किया, इनमें से 61 करोड़ भारतीय थे।
‘डाउन टू अर्थ’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पहले से कई गुना अधिक विकराल रूप ले चुका है। पहले जो जलवायु घटनाएं सदी में एक बार होती थीं, वे अब हर पांच – छह वर्षों में हो रही हैं। इससे भारत जैसी घनी आबादी वाले देश में जान और माल के नुकसान का खतरा अधिक हो गया है। पर्याप्त संसाधन के अभाव के कारण यहां प्राकृतिक आपदाओं से निपटना और भी मुश्किल हो जाता है।
“क्लाइमेट चेंज हो उससे पहले हमें चेंज होने की जरूरत है। बहुत सारे राज्य है जहां बारिश कम होती थी, लेकिन अब वहां सामान्य से 110% -120% अतिरिक्त वर्षा देखने को मिल रही है। राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्य इसकी मिसाल हैं। हमें पेड़ की कटाई और कृषि में अत्यधिक रासायनिक प्रयोग में कमी लानी होगी। ये चीज़ें एक दिन में नहीं होंगी। हमें लोगों को जागरूक कर बदलाव लाना होगा,” कृषि मौसम विज्ञानी डॉ सोना कुमार ने कहा।
आगे उन्होंने कहा, “बिहार के जिलों में बारिश में उतार-चढ़ाव बहुत देखने को मिल रहा है। प्रकृतf के साथ हमें उतनी छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। अगर प्रकृति को आप नष्ट करेंगे तो प्रकृति एक दिन सब तबाह कर देगी। इसका साथ हमें समन्वय बनाकर काम करना होगा।”
बिहार में साल भर हुईं प्राकृतिक आपदाएं
निति आयोग के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में किशनगंज, दरभंगा और सीतामढ़ी जैसे जिले शीर्ष पर हैं। वहीं तेज़ हवाओं और आंधियों के मामले में राज्य का करीब 80% हिस्सा उच्च क्षति जोखिम क्षेत्र में आता है।
बिहार में पिछले कुछ वर्षों से लगातार बाढ़ की घटनाएं बढ़ी हैं। सीमांचल क्षेत्र के कटिहार जिले में जुलाई महीने में बारसोई प्रखंड के विभिन्न हिस्सों में नदियों के बढ़ते जलस्तर से किसानों की धान की फसल बुरी तरह बर्बाद हो गई। ‘मैं मीडिया’ ने इसपर ‘सैलाब से कटिहार में सैकड़ों बीघा धान बर्बाद‘ शीर्षक से खबर चलाई जिसमें किसानों ने बताया कि बाढ़ जैसे हालात पैदा होने से यकायक कैसे उनकी फसलें बर्बाद हो गईं।
इसी साल सितंबर महीने में कटिहार के समेली प्रखंड के विषनीचक गांव में तेज बारिश और आंधी-तूफान से 100 एकड़ में लगी केले की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई। किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। अक्टूबर में ‘मैं मीडिया’ की एक रिपोर्ट ने वज्रपात से हुए अररिया के तीन मृतक किसानों का ज़िक्र किया। तीनों किसानों की मौत खेतों में काम करते समय हुई।
इस वर्ष अगस्त महीने में सहरसा में कोसी नदी के कटाव से नौहट्टा प्रखंड के बिरजेन गांव में 300 से अधिक घर नदी में समा गए। वहीं सितंबर महीने में किशनगंज के दिघलबैंक प्रखंड में कनकई नदी का जलस्तर बढ़ने से कई पंचायतों में बाढ़ ने तबाही मचाई।
ये घटनाएं बताती हैं कि चरम मौसमी घटनाएं बिहार के सीमांचल में भी भारी नुकसान पहुंचा रही हैं।
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