“एक किताब आपको दुनिया और आपके अपने बारे में बहुत कुछ सिखा सकती है” अमेरिकी दार्शनिक और लेखक मोर्टिमर एडलर ने करीब एक सदी पहले यह बात कही थी। किशनगंज की भूमिका देवी (बदला हुआ नाम) ने इस पंक्ति को साक्षात जिया है। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की किताब “अछूत कौन थे” पढ़ते वक्त 15 वर्ष की भूमिका सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन के संचालकों से आकार कहने लगी -“भैया हमारे साथ भी यही सब होता है, मुझे तो पता भी नहीं था। ये सब तो मैं बचपन से देख रही हूं।”
सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन के सह संस्थापक गुलाम यज़दानी बताते हैं कि भूमिका की डब डबाई आंखों ने उस रोज उन्हें और उनके साथियों को यह यक़ीन दिला दिया कि सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन से किशनगंज जैसे पिछड़े इलाक़े में भी शैक्षिक क्रांति आ सकती है।
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सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन नामक संस्था बिहार के किशनगंज के गांव और कस्बों में पुस्तक पढ़ने और पढ़ाने की मुहिम चला रही है। इसके संस्थापक साकिब अहमद ने ‘मैं मीडिया’ से बातचीत में बताया कि लाइब्रेरी के माध्यम से वह और उनकी टीम सीमांचल और खास तौर पर किशनगंज के पिछड़े इलाकों में बच्चों को पुस्तक से करीब लाना चाहते हैं ताकि उनके लिए शिक्षा का द्वार खोला जा सके।
“ग्रामीण इलाकों में हमारे अंदर हीन भावना बचपन से ही पनपने लगती है, किताबें इसको दूर कर सकती हैं। यहां किताब पढ़ने का कोई कल्चर नहीं है, इसे बदलना है वरना वही होता रहेगा, जो सालों से होता आया है। कुछ तो बदलना चाहिए,” साकिब अहमद कहते हैं।
सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन के बैनर तले अभी फातिमा शेख लाइब्रेरी, सावित्री बाई फुले लाइब्रेरी और रुकैया सखावत लाइब्रेरी चल रही है।
साकिब अहमद ने बताया कि तीनों लाइब्रेरियों में कुल मिलाकर रोज़ाना 200 से ज़्यादा बच्चे आते हैं। “फातिमा शेख़ लाइब्रेरी में तो बच्चे रात में भी आकर पढ़ाई करते हैं, दिन में तो आते ही हैं। उस लाइब्ररी में करीब 100 बच्चे हर रोज़ आते हैं,” साकिब कहते हैं ।
तीन लाइब्रेरी में 4000 किताबें
सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन की स्थापना जनवरी 2021 में हुई। किशनगंज के पोठिया प्रखंड के दामलबाड़ी गांव में स्थित फातिमा शेख लाइब्रेरी इस संस्था की पहली पुस्तकालय थी। इसके बाद उसी वर्ष जून में किशनगंज के बेलवा गांव के मदारी टोला इलाके में सावित्रा बाई फुले पुस्तकालय की स्थापना की गई। सितंबर 2021 में सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन ने कोचाधामन प्रखंड के कन्हैयाबाड़ी गांव में रुकैया सखावत लाइब्रेरी का अनावरण किया। तीनों लाइब्रेरियों में 4000 से अधिक पुस्तकें हैं जिनमें 200 से ज्यादा बच्चे नियमित पढ़ने आते हैं। लाइब्रेरी में किताबें पढ़ना पूरी तरह से निःशुल्क है। वैसे तो ये लाइब्रेरी सब के लिए खुली है, लेकिन बच्चों के लिए खास तौर पर किताबों का कलेक्शन रखा गया है।
‘मैं मीडिया’ जब मदारी टोला स्थित सावित्री बाई फुले लाइब्रेरी पहुँचा, तो एक बाउंडरी के अंदर एक मकान नुमा कमरा दिखा। बाहर के बरामदे में सफेद बोर्ड पर अंग्रेजी और हिंदी के कुछ शब्द लिखे थे और अंदर कमरे में पुस्तकालय के संचालक कुछ डिब्बों में रंग बिरंगे दीये और रुई पैक कर रहे थे।
साकिब ने हमें बताया, “इन दीयों को लाइब्रेरी में आने वाले बच्चों ने पेंट किया है और ये यहां के लोगों के लिए दिवाली का छोटा सा तोहफा है बच्चों की तरफ से।”
बातचीत शुरू ही हुई थी कि कुछ बच्चे लाइब्रेरी में आते हैं और एक स्वर में कहते हैं- “जिंदाबाद भैया।” हमने इस नारे के बारे में पूछा तो साकिब ने बताया, “हम ने बच्चों को गुड मॉर्निंग और गुड इवनिंग के साथ जिंदाबाद कहना सिखाया है। हम चाहते हैं कि बच्चों को यह एहसास दिलाया जाए कि वे कितने अहम हैं। क्योंकि हर बच्चा और हर इंसान इस समाज के लिए अहम है, जब हमें अपनी अहमियत का एहसास होता है तो हम अपनी जिम्मेदारी समझ कर समाज को कुछ अच्छा देकर जाते हैं।”
पुस्तक प्रदर्शनी
सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन ने पिछले डेढ़ सालों में 5 अलग अलग लोकेशन पर पुस्तक प्रदर्शनी लगायी है। ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में यह प्रदर्शनी लगायी गई है, जिसमे किशनगंज के सबसे पुराने स्कूल संस्थाओं में से एक इंसान स्कूल भी शामिल है।
“एक दिन की पुस्तक प्रदर्शनी से कुछ नहीं होगा, लेकिन यह एक शुरुआत है। हम इन प्रदर्शनियों से लोगों को बताना चाहते हैं के हम और हमारा पुस्तकालय आंदोलन अब भी अस्तित्व में है,” साकिब ने कहा।
साकिब का मानना है कि बच्चों पर ज्यादा से ज्यादा काम करने की जरूरत है क्योंकि व ही भविष्य की नींव रखेंगे। साकिब आगे कहते हैं, “हम बच्चों को ‘नॉन-जजमेंटल’ बनाना चाहते हैं। उनके पास अच्छे नैतिक मूल्य होने चाहिए। हमारी लाइब्रेरी में बच्चों को पढ़ाया भी जाता है। हम बच्चों को किताबी शिक्षा के साथ ही नैतिक मूल्यों के बारे में भी बताते हैं।”
सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन की कैसे हुई शुरुआत
27 वर्षीय साकिब अहमद का रूझान साहित्य की तरफ़ काफ़ी अधिक था। वह कहते हैं, “रूसी साहित्य पढ़ने के बाद मुझे ऐसा लगता था कि जाति व्यवस्था अब मौजूद नहीं है। बाद में मेरा यह वहम टूट गया। मेरे आसपास भेदभाव साफ दिख रहा था। मैं और मेरे कुछ साथी हर रविवार की शाम बैठते और किताबों पर बातें किया करते थे। हमने इस बैठकी को “चाय, दोस्त और साहित्य” नाम दिया था। बातचीत करते हुए ही हमें पता चला कि किशनगंज में एक भी पुस्तकालय नहीं है।”
“मैं फेसबुक पर सिस्टम की बहुत आलोचना किया करता था फिर एक दिन एहसास हुआ कि कब तक शिकायत करता रहूंगा, खुद के बलबूते पर कुछ करना चाहिए और इस तरह लाइब्रेरी मूवमेंट की शुरुआत हो गई।”
साकिब और उनके साथियों ने मिलकर सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन नाम से संगठन बनाया और जनवरी 2021 में इसी के बैनर तले दामलबाड़ी गांव में फातिमा शेख लाइब्रेरी की शुरुआत की। स्थानीय लोगों से कोई खास समर्थन न मिलने के बावजूद किसी तरह 3-4 महीने फातिमा शेख लाइब्रेरी चलती रही लेकिन फिर चीज़े मुश्किल हो गईं।
साकिब बताते हैं कि जब उनकी सारी जमा पूंजी पुस्तकालय पर खत्म हो गई और आगे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था तब फिल्म लेखक, गीतकार और लोकप्रिय स्टैंड अप कॉमेडियन वरुण ग्रोवर ने उनके लाइब्रेरी फाउंडेशन का समर्थन किया और उन्होंने अपने समर्थन का एक वीडियो संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने लोगों से इस लाइब्रेरी मूवमेंट का समर्थन करने की अपील की।
साकिब कहते हैं, “उस वीडियो के बाद से हमारी लाइब्रेरी मूवमेंट में एक नई जान आ गयी। हम सब ऊर्जा से भर गए और फिर लोगों ने भी धीरे धीरे हमारे काम को सराहना शुरू किया। इस गाँव में दलित बहुसंख्यक हैं। उनके बच्चे हमारी लाइब्रेरी से जाकर अपने घर वालों को जिंदाबाद और गुड इवनिंग बोलते हैं, तो घर वाले खुश होकर हमारी टीम से जब मिलते हैं, तो प्रणाम करते हैं। वह समझते हैं कि इससे पहले ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया है।”
लाइब्रेरी में आने वाले बच्चों का अनुभव
मदारी टोला गांव स्थित सावित्री बाई फुले लाइब्रेरी में गांव के आसपास के लगभग 40 बच्चे रोजाना आते हैं। इन बच्चों को अंग्रेजी, हिंदी, गणित, विज्ञान जैसे विषयों की निःशुल्क शिक्षा दी जाती है। 15 वर्षीय राखी कुमारी ने दो महीने पहले सावित्री बाई फुले लाइब्रेरी आना शुरू किया है। वह अंग्रेजी और हिंदी सीख रही है तथा अब वह स्कूल में एडमिशन की तैयारी में लगी हुई है।
राखी कुमारी कहती है,”यहां आना शुरू किया, तो पढ़ाई में दिल लगने लगा। मुझे इंग्लिश सीखना है और स्कूल जाकर आगे बहुत पढ़ना है।
16 वर्षीया सुमन कुमारी पेंटिंग की शौक़ीन है। उसने गांधी जयंती पर महात्मा गाँधी की पेंटिंग बनाई थी। “मुझे उतना ज़्यादा पता नहीं था। भैया लोग ने बताया गाँधी जी के जीवन के बारे में। मुझे भी भैया के जैसे औरों को शिक्षा देना है। पढ़ लिख कर मैं इसी तरह किसी चीज़ में काम करना चाहती हूँ,” सुमन ने कहा। सुमन कुमारी की बड़ी बहन 17 वर्षीया किरण कुमारी पढ़ाई के साथ साथ घर के काम में माँ का हाथ भी बंटाती है। “जब मैं लाइब्रेरी से अपने घर किताबें लेकर जाती हूँ, तो घर वाले खुश होते हैं,” किरण ने कहा। इसके बाद सुमन कहती हैं, “किसी दिन लाइब्रेरी न जाऊं, तो घर पर डांट भी पड़ती है।”
13 साल का सरफ़राज़ अंसारी बड़ा होकर फौज में जाना चाहता है। “यहाँ आकर मैंने सीखा कि बड़ों से तमीज से पेश आना चाहिए। अब मैं गलत शब्दों का इस्तेमाल नहीं करता, यह एक बड़ा फर्क आया है मुझमे” सरफराज़ ने कहा। वह इंग्लिश सीखना चाहता है ताकि बाहर जाए तो रास्तों की पहचान कर सके।
नंदिनी कुमारी अभी 16 वर्ष की है और उसने पिछले दिनों पहली बार अपनी एक पेंटिंग बनायी है। लाइब्रेरी संचालक आकिब रज़ा ने हमें पेंटिंग दिखाई, तो हमने नंदिनी से उस पेंटिंग की कहानी के बारे में पूछा। ”इस चित्र में एक चोर है जिसने मंदिर से चढ़ावे का पैसा चोरी कर लिया है। दूसरी तरफ पुजारी है, जो चोर की तलाश में चिंता में खड़ा है,” नंदिनी ने बताया।
पुस्तकालय आंदोलन के सह संस्थापकों में से एक गुलाम यजदानी कहते हैं कि पुस्तकालय आंदोलन से किशनगंज के ग्रामीण इलाकों के बच्चों को खुद को एक्सप्रेस करने का तरीका आने लगा है। उनके अनुसार बहुत कम आयु के बच्चे कविता लिखने लगे हैं और डिबेट कॉम्पिटिशन में हिस्सा ले रहे हैं। यज़दानी कहते हैं, “आज जिस तरह मनुष्यों का मशीनीकरण हो रहा है, यह हमारे समाज के लिए खतरनाक है। बच्चों को कल्पनाशील होना चाहिए। किताबें हमारे मस्तिष्क को न केवल सोचना बल्कि अच्छा सोचना सिखाती है। मैं ये नहीं कह रहा हूँ के हर इंसान साहित्य का दीवाना हो जाए और बाजू में किताब दबाकर घूमता रहे लेकिन कहीं तो कुछ शुरुआत होनी चाहिए। मैं चाहता हूँ कि हर घर में एक ऐसा कमरा हो जहाँ केवल पुस्तक हों, जहाँ जाकर घर वाले पुस्तकें पढ़ें, रोज़ नहीं कभी कभी ही सही। घर के बड़े बच्चों के सामने मिसाल पेश करें, ताकि बच्चे किताबों से और करीब आ सकें।”
यज़दानी ने अंग्रेजी साहित्य से मास्टर्स की पढ़ाई की है। वह और उनकी टीम इस लाइब्रेरी मूवमेंट को गांव-कस्बों तक ले जाना चाहते हैं। यज़दानी आगे कहते हैं, “कुछ जगहों पर ऐसा कल्चर है कि जब लोग पार्टी में आपस में मिलते हैं तो एक दूसरे से पूछते हैं कि ‘आप आज कल कौनसी किताब पढ़ रहे हैं?’ हमारे यहां ऐसा कोई चलन नहीं है। घर के बड़ों को बच्चों के साथ और समय बिताना चाहिए। हम जब छोटे थे, तो रोज मां रात को कहानी सुनाती थी, मोबाइल फोन ने ये चलन भी खत्म कर दिया है। हमारी लाइब्रेरी में बच्चों के लिए लोक कहानियां की पुस्तकें होती हैं। बच्चे बड़े शौक से उन्हें पढ़ने आते हैं। हमारी मिट्टी जरखेज है, लेकिन इस पर बहुत मेहनत करने की जरूरत है।”
सीमांचल लाइब्रेरी के एक अन्य संचालक आकिब रजा पहले अलग अलग जगहों पर बच्चों को ट्यूशन देते थे। अब वह सावित्री बाई फुले लाइब्रेरी में बच्चों को भाषा, गणित और विज्ञान जैसे विषय पढ़ाते हैं। उनका कहना है के बच्चों के साथ समय बिताने से उनके स्वभाव में और नम्रता आई है और इससे उनके जीवन को एक अर्थ मिला है।
आकिब कहते हैं, “जब से मैं लाइब्रेरी मूवमेंट से जुड़ा हूं, ऐसा लगता है कि अपने समाज और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कुछ करना है।”
आकिब आगे कहते हैं, “ग्रेजुएट लोग डिग्री मिलने के बाद अक्सर किताबें नहीं पढ़ते। शायद गरीबी एक वजह हो सकती है। पैसे कमाने की होड़ सी लगी है। पैसे कमाना बहुत जरूरी है लेकिन किताब केवल इसलिए पढ़ना कि नौकरी मिल जाए और लाइफ सेट हो जाए, अजीब बात है।”
“जिले में लाइब्रेरी कल्चर विकसित करना लक्ष्य”
फ़राग नाहीन भी सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन से जुड़े हुए हैं। वह कहते हैं कि बचपन में नवोदय से पढ़ने के कारण उनको लाइब्रेरी में पढ़ने की आदत लग गई थी। वह लॉकडाउन के बाद किशनगंज आ गए, तब उन्हे किशनगंज में लाइब्रेरी ना होने की बात बहुत खलती थी। सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन के बारे में सुना तो वह संस्था से जुड़कर काम करने लगे। “किशनगंज में पब्लिक लाइब्रेरी तो दूर पेड लाइब्रेरी भी नहीं है। आप पढ़ना चाहते हैं लेकिन कहां और कैसे? सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन उस खालीपन को समाप्त करने की मुहिम है,” उन्होंने कहा।
फ़राग आगे कहते हैं, “जहां ज्यादातर लोग इस बारे में सोचना भी पसंद नहीं करते हम एक नई संस्कृति को स्थापित करने की जद्दोजहद में लगे हैं। यह संघर्ष बहुत लंबा चलेगा।”
सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन के तीनों पुस्तकालय भारत के इतिहास के मशहूर शिक्षावादी महिलाओं पर रखे गए हैं। हमने जब इसका कारण पूछा तो साकिब का कहना था, “हमारी टीम का मानना है कि यह सदी महिलाओं की है और हमें अपने इतिहास की उन महिलाओं को ‘सेलिब्रेट’ करना चाहिए, जिन्होंने रूढ़ीवाद से लड़कर शिक्षा पर काम किया। हम आगे भी जब और लाइब्रेरी खोलेंगे, तो उनके नाम भी ऐसी महिलाओं पर रखेंगे जिन्होंने अपने काम से समाज को और बेहतर किया है।”
किशनगंज का बज़्म ए अदब पुस्तकालय एक जमाने में जिले में किताब पढ़ने का एक केंद्र हुआ करता था। दशकों से बंद पड़ी लाइब्रेरी के कैंपस में आज बच्चे क्रिकेट खेलते हैं। देर शाम के समय अक्सर पुलिस लाइब्रेरी के बाहर जुआ खेलते और नशे का सेवन करते लोगों को पकड़ने के लिए गश लगाती दिख जाती है। ऐसे में सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन किशनगंज के अलग अलग इलाकों में किताब पढ़ने वालों की एक फौज तैयार करने की मुहिम में लगा हुआ है।
हालांकि, फाउंडेशन शहरी इलाके में अब तक एक भी लाइब्रेरी नहीं खोल सका है। इसका कारण पूछने पर साकिब अहमद कहते हैं, “हम चाहते तो हैं कि शहर में भी लाइब्रेरी खोली जाए लेकिन वहां एक दिक्कत यह है कि शहर में जगह नहीं मिल पाती। अगर हमें वहां जगह मिलेगी, तो हम जरूर चाहेंगे कि शहर में भी हमारा एक पुस्तकालय हो।”
साकिब और उनके साथियों का सपना है के अगले 5 सालो में 10 और ऐसी लाइब्रेरी खोली जाएं, ताकि ग्रामीण इलाकों के बच्चों को पुस्तकें मिल पाए।
साकिब ने बताया कि अब स्थानीय निवासी उनके पुस्तकालय आंदोलन की बहुत सराहना अरते हैं। उनके अनुसार, अब उन्हें आलोचना से ज्यादा हौसला अफजाई मिलती है, जो उनके और उनके टीम के लिए ऑक्सीजन जैसा है।
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