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गुदरी का लाल: आँखों में रौशनी नहीं होने के बावजूद कैसे दौड़ में चैंपियन बना सीमांचल का मुरसलीम

पढ़ाई से स्पोर्ट्स में आने के सफर को लेकर मुरसलीम कहते हैं कि पहले तो उनके प्रिंसिपल ने मान कर दिया था, लेकिन, बाद में वह मान गये। वहां से शुरू हुआ मुरसलीम के दौड़ने का सफर लगातार जारी है। मुरसलीम का लक्ष्य 2026 में होने वाले एशियन गेम्स और 2028 में अमेरिका स्थित लॉस एंजलिस शहर में होने वाले ओलंपिक में भाग लेकर मेडल जीतना है।

shah faisal main media correspondent Reported By Shah Faisal |
Published On :
how mursalim of seemanchal became champion in running despite not having eyesight

किसी शायर ने क्या ख़ूब कहा है कि आसमां को ज़िद है जहां बिजलियां गिराने की, हमें भी ज़िद है वहीं आशियां बनाने की। अररिया के 14 वर्षीय मुरसलीम ने इस शेर को बख़ूबी जिया है। क़ुदरत ने भले ही मुरसलीम को आंखों से महरूम रखा, लेकिन, उनका हौसला नहीं छीन पायी। आंखों से दिव्यांग मुरसलीम ने हाल ही में बंगलुरू में आयोजित 13वीं सब जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में बिहार का नेतृत्व करते हुए सिल्वर मेडल जीत कर अररिया समेत पूरे बिहार का नाम रौशन किया है। उन्होंने सब जूनियर दिव्यांग कैटेगरी में 15 सौ मीटर की दौड़ प्रतियोगिता में यह सिल्वर मेडल जीता है।


जोकीहाट प्रखंड अन्तर्गत तारण पंचायत के कामत गांव के रहने वाले मुरसलीम फिलहाल जयपुर स्थित नेत्रहीन कल्याण संघ स्कूल में पांचवीं कक्षा में पढ़ते हैं। दौड़ की ट्रेनिंग उन्होंने इसी स्कूल से ली थी। ट्रेनिंग के शुरुआती दिनों को याद करते हुए मुरसलीम कहते हैं कि शुरू-शुरू में तो उन्हें बहुत दिक़्क़त हुई, लेकिन, बाद में अपने कोच और प्रिंसिपल के सहयोग से वह सफलता की ओर बढ़ते गये।

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इससे पहले भी मुरसलीम राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में दो गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। वह पिछले साल मुज़फ़्फ़रपुर में आयोजित 15 सौ मीटर और चार सौ मीटर जूनियर दौड़ प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता था। जिस समय प्रतियोगित का आयोजन हो रहा था, मुरसलीम इंजुरी से जूझ रहे थे, इसके बावजूद उन्होंने दौड़ में भाग लिया और गोल्ड मेडल जीता।


दिव्यांग खिलाड़ियों के लिये होने वाली दौड़ प्रतियोगिता में खिलाड़ी रनर का सहयोग लेते हैं। रनर खिलाड़ी के पीछे-पीछे दौड़ते हैं और सिर्फ दिशा बताते हैं। मुरसलीम के रनर के रूप में उनके भाई गुलशेर आलम दौड़ते हैं। राजस्थान के जयपुर में रहते हुए गुलशेर ने दिव्यांग छात्रों के स्कूल बारे में सुना था। वह मुरसलीम को भी उस स्कूल में पढ़ाना चाहते थे, लेकिन, घर वाले इसके लिये तैयार नहीं थे, क्योंकि उनको लगता था कि आंखों से दिव्यांग होने की वजह से मुरसलीम शायद अब जीवन में कुछ नहीं कर पायेगा। उस वक़्त मुरसलीम कटिहार के एक मदरसा में पढ़ाई करता था। गुलशेर बताते हैं कि मुरसलीम दौड़ के साथ-साथ पढ़ाई में भी बहुत अच्छा है।

पढ़ाई से स्पोर्ट्स में आने के सफर को लेकर मुरसलीम कहते हैं कि पहले तो उनके प्रिंसिपल ने मान कर दिया था, लेकिन, बाद में वह मान गये। वहां से शुरू हुआ मुरसलीम के दौड़ने का सफर लगातार जारी है। मुरसलीम का लक्ष्य 2026 में होने वाले एशियन गेम्स और 2028 में अमेरिका स्थित लॉस एंजलिस शहर में होने वाले ओलंपिक में भाग लेकर मेडल जीतना है।

मुरसलीम के सफर में काफ़ी मुश्किलें भी आईं, लेकिन मुरसलीम ने इसका डट कर सामना किया। दौड़ के लिये एक धावक को बेहतरीन डाईट की ज़रूरत पड़ती है। इसके लिये काफी पैसों की ज़रूरत होती है। मुरसलीम के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, उसके बावजूद उन्होंने मुरसलीम का पूरा सहयोग किया। मगर, बिहार सरकार की तरफ़ से मुरसलीम को कोई भी सहयोग नहीं मिला। यहां तक कि मेडल जीतने के बाद भी अररिया ज़िला प्रशासन की तरफ से कोई मिलने तक नहीं आया।

मुरसलीम जैसे होनहार बच्चे इस क्षेत्र में कैसे आगे बढ़े, इस सवाल के जवाब में गुलशेर कहते हैं कि सही ट्रेनिंग और गाइड से इस क्षेत्र में बिहार के बच्चे आगे बढ़ सकते हैं। उन्होंने राज्य में अधिक से अधिक सिंथेटिक ट्रैक का निर्माण करने की अपील की, ताकि इस ट्रैक पर दौड़ कर बच्चे अपनी तैयारी जारी रख सकें।

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Shah Faisal is using alternative media to bring attention to problems faced by people in rural Bihar. He is also a part of Change Chitra program run by Video Volunteers and US Embassy. ‘Open Defecation Failure’, a documentary made by Faisal’s team brought forth the harsh truth of Prime Minister Narendra Modi’s dream project – Swacch Bharat Mission.

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