माकपा (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) के वरिष्ठ नेता व पूर्व राज्यसभा सांसद सीताराम येचुरी का गुरुवार को 72 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
पिछले 19 अगस्त को फेफड़े में संक्रमण की शिकायत पर उन्हें नई दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उसी वक्त से उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। चिकित्सकों की एक टीम लगातार उनका इलाज कर रही थी, लेकिन उन्हें बचाया न जा सका।
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उनके परिवार ने उनके पार्थिव शरीर को शोध के लिए एम्स अस्पताल को दान किया है।
वह अपने पीछे पत्नी सीमा चिश्ती (वरिष्ठ पत्रकार), पुत्र दानिश और बेटी अखिला को छोड़ गये हैं। उनके बड़े बेटे आशीष येचुरी की मृत्यु कोविड के दौरान हो गई थी।
येचुरी अपने परिवार की पहली पीढ़ी थे, जो राजनीति में थे। उनके पिता सर्वेश्वरा येचुरी सरकारी विभाग में इंजीनियर और माता कल्पाकम येचुरी सरकारी मुलाजिम थी। वे तेलुगुभाषी थे।
1969 में आंध्र प्रदेश से दिल्ली आये
सीताराम येचुरी का जन्म 12 अगस्त 1952 को आंध्रप्रदेश में हुआ। उन्होंने हैदराबाद में रहकर अपनी पढ़ाई की। 17 साल की उम्र में ही वह राजनीतिक धरना प्रदर्शनों में शामिल होने लगे। साल 1969 में आंध्रप्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए हुए बड़े राजनीतिक आंदोलन के चलते वह दिल्ली आ गये। दिल्ली में उन्होंने प्रेसिडेंट्स इस्टेट स्कूल में दाखिला लिया और सीबीएससी बोर्ड से हायर सेकेंडरी परीक्षा में पूरे भारत में अव्वल स्थान हासिल किया।
उन्होंने दिल्ली के मशहूर सेंट स्टीफेन्स कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया और पूरे कॉलेज में अव्वल दर्जा हासिल किया। इसके बाद उन्होंने जेएनयू (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय) में एमए (अर्थशास्त्र) में दाखिला लिया और वहां भी पहला रैंक लाया। इसके बाद उन्होंने जेएनयू में ही पीएचडी में एडमिशन लिया। जेएनयू में दाखिले के साथ ही वह छात्र राजनीति में भी कूद गये और माकपा की छात्र इकाई एसएफआई में शामिल हो गये। जेएनयू में पढ़ते हुए उन्होंने इमरजेंसी का सख्त विरोध किया जिसके चलते उन पर दबिश बढ़ी, तो वह भूमिगत हो गये। बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
पढ़ाई में अव्वल रहने वाले सीताराम येचुरी राजनीति में भी अव्वल रहे और जल्द ही एसएफआई में शीर्ष पद पर पहुंच गये। वह दो साल में तीन बार जेएनयू छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गये और 1978 में एसएफआई के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव और फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। कहा जाता है कि एसएफआई का अध्यक्ष बनने वाले येचुरी पहले नेता था, जो न तो केरल और न ही बंगाल से थे। कहा जाता है कि उन्हीं के दौर में जेएनयू वामपंथी राजनीति का गढ़ बन गया।
इंदिरा गांधी के सामने ही उनसे मांग लिया था इस्तीफा
उनके राजनीतिक करियर के लिए 1978 का साल बहुत अहम था, जब उन्होंने जेएनयू में इंदिरा गांधी के सामने उनके खिलाफ चार्जशीट पढ़ा था और जेएनयू की चांसलर के पद से इस्तीफा मांगा था।
बाद में उन्होंने छात्र राजनीति छोड़ दी और माकपा में शामिल हो गये। वह बहुत कम समय में पार्टी में भी शीर्ष पदों पर पहुंच गये। साल 2015 में वह पहली बार पार्टी के महासचिव चुने गये और अब तक वह इस पद पर बने हुए थे।
साल 1996 में यूनाइटेड फ्रंट सरकार और साल 2004 में यूपीए सरकार में माकपा के सहयोगी पार्टी बनने में येचुरी की बड़ी भूमिका मानी जाती है। वर्ष 2005 से 2017 तक वह पश्चिम बंगाल से राज्यसभा सांसद रहे और वर्ष 2017 में उन्हें बेहतरीन सांसद का अवार्ड दिया गया।
लगभग दो दशक तक येचुरी, पार्टी के साप्ताहिक मुखपत्र पीपल्स डेमोक्रेसी के संपादक रहे और अपने जीवन काल में दो किताबें – ‘ये हिन्दू राष्ट्र क्या है’ और ‘कम्युनिज्म बनाम सेकुलरिज्म’ लिखीं।
उनके निधन को पार्टी ने भारी क्षति बताया और श्रद्धांजलि लेख में लिखा, “राष्ट्रीय राजनीति में इस कठिन वक्त पर उनका निधन पार्टी के लिए बड़ा झटका और वामपंथी, लोकतांत्रिक और सेकुलर शक्ति के लिए गहरा नुकसान है।
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने उन्हें भारत की गहरी समझ रखने वाला और भारत के विचार का संरक्षक करार देते हुए अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर लिखा, “मैं हमारे बीच होने वाली लंबी चर्चाओं को याद करूंगा। दुख की इस घड़ी में उनके परिवार, दोस्तों और अनुयायियों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदनाएं।”
देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, “सीपीआई (एम) महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद सीताराम येचुरी के निधन से दुख हुआ। सार्वजनिक जीवन में अपने लंबे वर्षों में उन्होंने खुद को एक अनुभवी सांसद के रूप में प्रतिष्ठित किया जो अपने ज्ञान और अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते थे। वह मेरे मित्र भी थे जिसके साथ मेरी कई बार बातचीत हुई। मैं उनके साथ अपनी बातचीत को हमेशा याद रखूंगा।”
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर लिखा, “यह जानकर दुख हुआ कि सीताराम येचुरी का निधन हो गया है। वह एक अनुभवी सांसद थे और उनका निधन राष्ट्रीय राजनीति के लिए एक क्षति होगी।”
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