Main Media

Get Latest Hindi News (हिंदी न्यूज़), Hindi Samachar

Support Us

कैथी लिपि का इतिहास: कहां खो गई धार्मिक ग्रंथों और मस्जिदों की नक्काशी में प्रयोग होने वाली कैथी लिपि

भैरव लाल दास 'कैथी का इतिहास' में लिखते हैं कि उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में कैथी लिपि का प्रयोग पारिवारिक और व्यापारिक दस्तावेज़ में प्रयोग होने लगा। बिहार और उत्तर प्रदेश में कैथी जबकि गुजरात और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में महाजनी लिपि आम लोगों में काफी प्रचलित थीं।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
Published On :
history of kaithi script

20 अगस्त 2024 से बिहार सरकार ने जमीन सर्वेक्षण व बंदोबस्त कार्य शुरू किया है। भू सर्वेक्षण की घोषणा के बाद से ही लोग पुश्तैनी जमीनों के पुराने कागज़ात निकालने में लगे हैं। इसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह आ रही है कि इनमे से अधिकतर दस्तावेज़ों में क्या लिखा है यह पढ़ना मुश्किल हो रहा है। इन कागज़ात में जमीनों से जुड़ी जो जानकारियां लिखी हैं वे सब कैथी लिपि में हैं।


कैथी लिपि बिहार समेत उत्तर भारत के कई क्षेत्रों की जन-लिपि हुआ करती थी जिसे दशकों पहले शासकीय और न्यायालय प्रक्रियाओं से सेवामुक्त कर दिया गया।

Also Read Story

बैगना एस्टेट: गंगा-जमुनी तहज़ीब, शिक्षा के सुनहरे दौर और पतन की कहानी

बिहार सरकार की उदासीनता से मैथिली, शास्त्रीय भाषा के दर्जे से वंचित

एक गांव, जहां हिन्दू के जिम्मे है इमामबाड़ा और मुस्लिम के जिम्मे मंदिर

पूर्णिया की मध्यरात्रि झंडोत्तोलन को राजकीय समारोह का दर्जा नहीं मिला, फिर भी हौसला नहीं हुआ कम

पूर्णिया की ऐतिहासिक काझा कोठी में दिल्ली हाट की तर्ज़ पर बनेगा ‘काझा हाट’

स्वतंत्रता सेनानी जमील जट को भूल गया अररिया, कभी उन्होंने लिया था अंग्रेज़ों से लोहा

पदमपुर एस्टेट: नदी में बह चुकी धरोहर और खंडहरों की कहानी

पुरानी इमारत व परम्पराओं में झलकता किशनगंज की देसियाटोली एस्टेट का इतिहास

मलबों में गुम होता किशनगंज के धबेली एस्टेट का इतिहास

कैथी लिपि सदियों से बिहार में जन-जन की लिपि रही। लोगों ने कैथी लिपि का प्रयोग डायरी, पत्र, लोकगीत, जमीनी दस्तावेज़ आदि लिखने के लिए किया। देश की स्वतंत्रता के करीब डेढ़ दशक तक जमीनी कागज़ात में लेखन के लिए कैथी लिपि लोगों की पहली पसंद रही। बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश समेत उत्तरी भारत के कई भागों में सदियों से कैथी लिपि का प्रयोग होता रहा। धीरे धीरे देवनागरी लिपि का प्रभाव बढ़ता गया और देश की आज़ादी के बाद सरकारी संस्थानों में कैथी लिपि का अंत हो गया।


कैथी और प्राचीन लिपियां

माना जाता है कि कैथी लिपि का अविष्कार ‘कायस्थ’ जाति के लोगों ने किया था इसलिए इसका नाम कैथी लिपि पड़ा। ‘कैथी लिपि का इतिहास’ के लेखक भैरव लाल दास की मानें तो छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ब्राह्मी लिपि ने भारत समेत दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ देशों में कई लिपियों को जन्म दिया जिनमें से एक कैथी लिपि थी।

1920 के दशक में करीब 2500 ईसा पूर्व में बसी सिंधु घाटी सभ्यता की खोज हुई। इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है। पंजाब प्रांत में मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर हड़प्पा सभ्यता की खोज की गई थी, आज यह जगह पाकिस्तान में है। अगले वर्ष 1922 में पाकिस्तान पंजाब के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर मोहनजोदड़ो की खोज हुई जिसे सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे बड़े शहर के अवशेष मिले थे।

रामकृष्ण मिशन से जुड़े शोधकर्ता स्वामी शंकरानन्द ने प्राचीन पश्चिम एशिया के कई देशों की लिपियों के अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला कि सिंधु घाटी लिपि ने ही पश्चिम एशियाई देशों की लिपियों को जन्म दिया। उन्होंने ‘दि इन्डस पीपल स्पीकर्स’ नामक पुस्तक में प्राचीन सिंधु सभ्यता की एक मुहर के शब्दों को तांत्रिक आधार पर ‘कथ’ पढ़ा है। उनकी मानें तो ‘कैथ’ जाति उपनिषद काल की एक कृषि और मसीजीवी जाति थी।

पुस्तक ‘अंगिका लिपि की ऐतिहासिक पृष्टभूमि’ में हरिशंकर श्रीवास्तव ने लिखा है कि विद्वानों के अनुसार सिंधु लिपि विकसित अवस्था में पाई गई थी यानी इससे पहले कोई प्राचीन लिपि होगी जिसका विकसित रूप सिंधु लिपि है। भाषाविद राजेश्वर झा के अनुसार कैथी लिपि ‘कथ’ जाति से संबंधित है जो पूरे उत्तर भारत की जनलिपि के रूप में प्रचलित हुई।

कैथी के जानकार भैरव लाल दास अपनी पुस्तक ‘कैथी लिपि का इतिहास’ में लिखते हैं कि भारत की कुछ सबसे पुरानी लिपियों में से एक ब्राह्मी लिपि का विकास सिंधु-घाटी-लिपि, उत्तरी सेमेटिक और अरमायक लिपि के मिश्रण से हुआ। जैन ग्रंथों में मिलता है कि ब्राह्मी लिपि जैन तीर्थकर भगवान् ऋषभदेव द्वारा अस्तित्व में आया।

चौथी शताब्दी के दूसरे भाग में ब्राह्मी लिपि की उत्तरी शैली में एक नई लिपि का जन्म हुआ जिसे गुप्त लिपि कहा गया। गुप्त लिपि से कुटिल लिपि, कुटिल लिपि नागरी और शारदा लिपि विकसित हुई। प्राचीन नागरी लिपि से कैथी, बंगला, गुजराती, महाजनी, उड़िया, नेपाली, देवनागरी समेत उत्तर भारत की सभी आधुनिक लिपियों का जन्म हुआ।

कैसे हुआ कैथी लिपि का जन्म

‘कायस्थों की सामाजिक पृष्ठभूमि’ नामक पुस्तक के लेखक अशोक कुमार वर्मा ने लिखा कि कायस्थों के आदिपरुष भगवान चित्रगुप्त को वेद-अक्षर दाता माना जाता है। ऐसा इस लिए क्योंकि उन्होंने वेदों को श्रुति-स्मृति की परम्परा से मुक्त कर लेखनबद्ध किया। उनके वंशज कायस्थों ने लेखन कला के पेशे को अपनाया और एक लिपि का आविष्कार किया, जो कैथी लिपि कहलाई और यह सबसे पुराने लिपियों में से एक है।

‘भारत का भाषा सर्वेक्षण’ के लेखक जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक में लिखा कि कैथी लिपि उत्तर भारत में कैथ या कायस्थ नामक एक लिपि जाति में प्रचलित है। आगे उन्होंने लिखा कि कैथी लिपि और देवनागरी लिपि के बीच वही सम्बन्ध है जो लिखित और छपे हुए अंग्रेजी के बीच है।

धार्मिक पुस्तकों में कैथी का प्रयोग

धार्मिक और साहित्यिक कार्यों में कैथी लिपि का इस्तेमाल होता था। कैथी में पाण्डुलिपियां भी लिखी गईं। धार्मिक ग्रंथ भगवत पुराण से लिया गया ‘सुदामाचरित’ नामक पोथी को कैथी लिपि में लिखा गया जो मारवाड़ी भाषा में है। उन्नीसवीं शताब्दी के इस पुस्तक को राजस्थान के बीकानेर में पाया गया है। यहां यह बताना अहम है कि राजस्थान और गुजरात के क्षेत्रों में प्रयोग होने वाली महाजनी लिपि कैथी का एक स्वरूप है।

हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रन्थ ‘महागणपतिस्त्रोत’ के संस्कृत भाषा में लिखे श्लोक देवनागरी लिपि में हैं जबकि उसका अर्थ मैथिली शैली के कैथी लिपि में लिखा गया है। इसी ग्रन्थ के आखिरी कुछ पन्नों में श्लोकों के अर्थ भोजपुरी शैली के कैथी में लिखे गए हैं। यही नहीं, तुलसीदास की रचना रामचरितमानस की कई पाण्डुलिपियां कैथी में लिखी गईं हैं। कैथी विशेषज्ञों के अनुसार, 17वीं सदी में जो पाण्डुलिपियां तैयार की गईं उनमें से करीब 10 प्रतिशत कैथी लिपि में है।

भैरव लाल दास ‘कैथी का इतिहास’ में लिखते हैं कि उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में कैथी लिपि का प्रयोग पारिवारिक और व्यापारिक दस्तावेज़ में प्रयोग होने लगा। बिहार और उत्तर प्रदेश में कैथी जबकि गुजरात और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में महाजनी लिपि आम लोगों में काफी प्रचलित थीं।

इसी दौरान भारत से हज़ारों की संख्या में भोजपुरी बोलने वाले लोगों ने कैरिबियाई देश त्रिनिदाद और भारत महासागर में स्थित मॉरीशस जैसे देशों में पलायन किया तो अपने साथ कैथी में लिखी गरी किताबें ले गए, जिनमें हनुमान चालीसा और रामचरितमानस जैसी धार्मिक पुस्तकें शामिल थीं।

उन्नीसवीं सदी में भारत में आयी ईसाई मिशिनिरियों ने धार्मिक प्रचार प्रसार के लिए कैथी लिपि का प्रयोग किया। उत्तरी भारत में उन्होंने स्थानीय लोगों को जो धार्मिक दस्तावेज़ बांटे वे कैथी लिपि में लिखे गए थे। यहां तक कि कैथी में लिखी बाइबिल की कई प्रतियां भी बांटी गईं। लगभग उसी समय संयुक्त राज्य अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में कैथी की पढ़ाई शुरू की गई। इसमें मिशिनरियों के कार्यकर्ताओं को हिन्दी भाषा और व्याकरण पढ़ाया जाता था। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कैथी लिपि उत्तरी भारत में आम लोगों के बीच कितना अधिक प्रचलित थी।

कैथी लिपि का प्रयोग न्यायालय में भी किया जाता था। सर्वोच्च न्यायालय, कलकत्ता के राजकीय मुहर में बांग्ला और फ़ारसी लिपि के साथ साथ कैथी लिपि का उपयोग किया जाता था। राजकीय मुहर में कैथी का उपयोग होना इस बात का सबूत है कि कैथी लिपि को भारत में सर्वोच्च मान्यता प्राप्त थी।

बिहार के सूफी कवियों और मस्जिदों से कैथी लिपि का रिश्ता

कैथी लिपि में कई सूफी कवियों की रचनाएं भी मिली हैं। इनमें मलिक मोहम्मद जायसी, मुल्ला दाउद, किफ़ायतुल्लाह जैसे बड़े सूफी कवियों के नाम शामिल हैं। ये सभी कवियों ने उर्दू, फ़ारसी के साथ साथ कैथी लिपि में रचनाएं कीं, जो ये बताता है कि कैथी लिपि मुसलमानों में भी एक प्रचलित लिपि थी।

बिहार की कई मस्जिदें, वक्फ एस्टेट और जागीरदारी के कागज़ों में कैथी लिपि का प्रयोग किया गया है। इनमें से कुछ एस्टेट का ज़िक्र ‘मैं मीडिया’ की ‘विरासत‘ श्रंखला में कि गया है। पूर्णिया जिला स्थित मोहम्मदिया एस्टेट और किशनगंज के पनासी एस्टेट की पुरानी मस्जिदों के मुख्य दरवाज़ों पर कैथी लिपि में स्थापना तिथि लिखी गई थी।

किशनगंज के पदमपुर एस्टेट के संस्थापक मोहम्मद फ़ज़्लुर्रहमान के बेटे ने ‘मैं मीडिया’ से बताया कि उनके पिता कैथी में हिंदी लिखना पढ़ना जानते थे। इसका लाभ उन्हें तब मिला जब पूर्णिया सिटी के ज़मींदार राजा पीसी लाल को पौआखाली स्थित अपने दफ्तर में कैथी लिपि जानने वाले की जरूरत पड़ी। स्थानीय लोगों ने राजा पीसी लाल को मोहम्मद फ़ज़्लुर्रहमान के बारे में बताया और इस तरह फ़ज़्लुर्रहमान, राजा पीसी लाल के यहां काम करने लगे और कुछ वर्षों बाद बड़े जमींदार हुए और मोहम्मदिया एस्टेट के संस्थापक बने।

कैथी लिपि में लिखी जाने वाली भाषाएं

पुस्तक ‘कैथी लिपि का इतिहास’ के लेखक भैरव लाल दास ने ‘मैं मीडिया’ से बताया कि बिहार में कैथी लिपि का इस्तेमाल मगही, भोजपुरी, बज्जिका, अंगिका और मैथिली भाषाओं के लिए किया जाता था। वहीं, उत्तर प्रदेश में अवधि, ब्रज भाषा और खरी बोली में कैथी का प्रयोग काफी प्रचलित था। कैथी लिपि का इस्तेमाल उर्दू भाषा के लिए भी होता था।

बिहार, उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में भी कैथी लिपि के इस्तेमाल के सबूत पाए गए हैं। सन 1904 में जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन के भाषा सर्वेक्षण में पाया गया कि मूल रूप से उत्तर प्रदेश की भाषा कही जाने वाली अवधि का प्रयोग उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, बिहार और नेपाल के कुछ हिस्सों में किया जाता था।

पहले अवधि, कैथी और देवनागरी दोनों में लिखी जाती थी लेकिन बीसवीं शताब्दी आते आते अवधि को अधिकतर देवनागरी में ही लिखा जाने लगा। “यह कहना कि कैथी सिर्फ बिहार राज्य की लिपि थी, इसके प्रसार के अध्ययन को छोटा करना ही है,” भैरव लाल दास ने अपनी पुस्तक में लिखा।

बिहार से नेपाल तक होता था कैथी का प्रयोग

मगही, भोजपुरी और मैथिली जैसी भाषाएं लंबे समय तक कैथी लिपि में लिखी जाती रहीं। हालांकि देवनागरी और मिथिलाक्षर में भी इन भाषाओं को लिखा जाता रहा था लेकिन कैथी लिपि आमलोगों में ज्यादा प्रचलित था। कई पुराने लोकगीत कैथी लिपि में लिखे गए जो बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में दादी-नानी के पुराने संदूकों में अक्सर मिलते हैं। बीसवीं सदी में कैथी लिपि को सरकारी दस्तावेज़ से हटाया गया और देखते देखते कैथी लिपि पुराने दिनों की बात बन गई।

“मगही हो, भोजपुरी हो, मैथिली हो, सुरजापुरी हो, अंगिका हो, बज्जिका हो, नेपाली हो, यूपी चले जाइए तो, खरी बोली हो, ब्रज भाषा हो, सभी की लिपि कैथी है। कैथी आपके रग रग में बसी हुई है। बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल का कुछ भाग, पश्चिम बंगाल के मालदा का क्षेत्र, पूरा झारखंड, उत्तर प्रदेश के आगरा से लेकर गोरखपुर, गाज़ीपुर इस पूरे क्षेत्र में कैथी थी और आज एक हज़ार साल से कैथी है यहां,” भैरव लाल दास ने ‘मैं मीडिया’ से कहा।

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

Related News

किशनगंज व पूर्णिया के सांसद रहे अंबेडकर के ‘मित्र’ मोहम्मद ताहिर की कहानी

पूर्णिया के मोहम्मदिया एस्टेट का इतिहास, जिसने शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाई

पूर्णिया: 1864 में बने एम.एम हुसैन स्कूल की पुरानी इमारत ढाहने का आदेश, स्थानीय लोग निराश

कटिहार के कुर्सेला एस्टेट का इतिहास, जहां के जमींदार हवाई जहाज़ों पर सफर करते थे

कर्पूरी ठाकुर: सीएम बने, अंग्रेजी हटाया, आरक्षण लाया, फिर अप्रासंगिक हो गये

हलीमुद्दीन अहमद की कहानी: किशनगंज का गुमनाम सांसद व अररिया का ‘गांधी’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

चचरी के सहारे सहरसा का हाटी घाट – ‘हमको लगता है विधायक मर गया है’

अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस पर प्रदर्शन – सिर्फ 400 रुपया पेंशन में क्या होगा?

फिजिकल टेस्ट की तैयारी छोड़ कांस्टेबल अभ्यर्थी क्यों कर रहे हैं प्रदर्शन?

बिहार में पैक्स अपनी ज़िम्मेदारियों को निभा पाने में कितना सफल है?

अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती किशनगंज की रमज़ान नदी