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तिल तिल कर खत्म हो रहा ऐतिहासिक सुल्तान पोखर

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अररिया: फारबिसगंज शहर के बीचों बीच स्थित सुल्तान पोखर, जो इस शहर की पहचान है, धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। दशकों बीत गये, मगर आजतक फारबिसगंज के ऐतिहासिक व ब्रिटिश कालीन सुल्तान पोखर का जीर्णोद्धार नहीं हो सका है।

सुल्तान पोखर को पर्यटक स्थल बनाने की योजना सरकारी फाइलों में दम तोड़ रही है। हिन्दू-मुस्लिम सद्भावना के प्रतीक के रूप में इस तालाब का निर्माण कराया गया था। बाद में इसका इस्तेमाल धार्मिक रूप से होने लगा।

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मान्यता है कि सुल्तान पोखर में डुबकी लगाकर मन्नत मांगने से पूरी होती है इसलिए हजारों महिलाएं और पुरुष यहां आस्था की डुबकी लगाते हैं। लेकिन प्रशासन की तरफ से इस तालाब पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।


पोखर किनारे मंदिर भी, मजार भी

पोखर के किनारे सुल्तानी माई का मंदिर है जिससे भीतर मजार है। इस मंदिर में हिन्दू उसी आस्था से पूजते हैं जैसे मंदिरों में भगवान की प्रतिमा को। साथ ही मुस्लिम समुदाय के लोग यहां अगरबत्ती जलाकर दुआ मांगते हैं।

sultani mai mandir forbesganj

आज जब मजहब के नाम पर जनता को बांटा जा रहा है, धर्म के नाम पर नफरत फैलाई जा रही है, तो ऐसे समय में यह सुल्तान पोखर और सुल्तानी माई का मंदिर हिन्दू और मुसलमानों के बीच श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है।

मंदिर का इतिहास

इस सुल्तानी माई के मंदिर के साथ एक इतिहास जुड़ा हुआ है। इसके साथ ही एक अद्भुत प्रेम कथा भी जुड़ी हुई है। कहते हैं कि शाह सुल्तान के वारिस मीर द्वारा 1857-58 में ब्रिटिश हुकूमत के समय पूरे सुल्तानपुर स्टेट को सर एलेक्जेण्डर हैनरी फोरबेस से कानपुर के सेठ जुगीलाल कमलापति द्वारा खरीदे जाने से पूर्व एक गरीब ब्राह्मण कन्या पर मोहित होकर सुल्तान ने इस पोखर को खुदवाया था।

कहते हैं कि भारत-नेपाल सीमा पर अवस्थित फारबिसगंज का ऐतिहासिक सुल्तान पोखर आज भी हिन्दू-मुस्लिम का सौहार्द का एक ऐसा प्रतीक माना जाता है जहां एक साथ दोनों समुदाय के लोग पूजा और इबादत करते हैं। ऐसी आस्था चली आ रही है कि इस पोखर में स्नान करके मंदिर में आकर जो भी मन्नत मांगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है। खासकर निसंतान औरतें मुख्य रूप से औलाद की मन्नतें मांगने आती है, इसलिए इस मंदिर में सुबह और शाम श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

सुल्तानी मंदिर का इतिहास

जानकारों के अनुसार इस इलाके का मुस्लिम शासक सहबाजपुर की एक हिन्दू लड़की का धर्म परिवर्तन कर उससे शादी करना चाहता था। इसके लिए उसने लड़की के माता पिता को खबर भिजवाई। खबर पाने के बाद लड़की के पिता चिंतित हो गए। अपने पिता की चिंता देख बेटी सुल्तान से शादी करने को तैयार हो गई।

लड़की ने शादी के लिए तीन शर्तें भी रखीं। इनमें से शादी के पहले धर्म परिवर्तन नहीं करने, शादी के पहले मुस्लिम रीति -रिवाज सीखने व पूनम की किसी रात पोखर में सुल्तान के साथ नौका पर झूमर खेलने की शर्त शामिल थीं।

सुल्तान को जैसे ही यह खबर मिली तो उसने सारी शर्तें मान ली। लेकिन पूनम की रात जैसे ही वह नौका विहार के लिए नाव पर सवार हुई, साथ ही सुल्तान भी उसमें सवार हो गया। नाव जैसे ही बीच में गयी लड़की ने पानी में छलांग लगा कर जान दे दी।

sultan pokhar makbara

इस घटना ने सुल्तान को अंदर से झकझोर कर रख दिया। सुल्तान ने मृत्यु के बावजूद भी उसे सिन्दूर देकर विवाह किया और लाश को इस्लामी तौर-तरीके से दफना दिया। इस घटना के बाद उसने कसम खाई कि अब वह किसी का जबरन धर्म परिवर्तन नहीं करेगा।

इसके बाद उसने कन्या को पोखर के किनारे पर दफना कर उसकी मजार बना दी। तब से ही यह स्थान दो समुदायों की सामूहिक आस्था का प्रतीक हुआ है।

तालाब में गिरता है शहर का गंदा पानी

कहते हैं कि शाह-सुल्तान के वारिस कतईमीर ने 1857-58 में ब्रिटिश हुकूमत के समय पूरे सुल्तानपुर स्टेट को सर एलेक्जेण्डर हेनरी फोरेबेस को बेच दिया और फिर आजादी के बाद उन अंग्रेजों ने एस्टेट को कानपुर के सेठ जुग्गीलाल कमलापति के हाथों बेच दिया गया।

बाद में सेठ ने भी मंदिर और मंदिर की जमीन भी टुकड़ों में बेच दिया, जिसपर आज भी लोग रह रहे हैं। बाद में बढ़ती आबादी और पोखर के बेतहाशा इस्तेमाल के चलते इसकी स्वच्छता व मंदिर की पवित्रता भंग होने लगी। इस इलाके का गंदा पानी भी पोखर में गिराया जाने लगा।

सरकारी बेरुखी और प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह धरोहर अपना मूलरूप खोती जा रही है। इसके बावजूद लोगों के विश्वास में कहीं कोई कमी नहीं आई है। आज भी लोग इस स्थान को देवी का स्थान मानते हैं और पूरी श्रद्धा व अकीदत के साथ यहां इबादत और पूजा करते हैं।

फारबिसगंज के शहरवासी सुल्तान पोखर को फारबिसगंज की धरोहर मानते है। अंग्रेजी शासन काल में यहां रहने वाले अलेक्जेंडर जॉन फो‌र्ब्स नाम पर फार्ब्सगंज पड़ा था, जिसे बाद में स्थानीय लोग फारबिसगंज कहने लगे। फारबिसगंज को जूट की मंडियों व सुल्तान पोखर की वजह से जाना जाता रहा है। एजे फो‌र्ब्स कर कचहरी व उनके मैनेजर का निवास लाल कोठी इसी पोखर के किनारे था। इन दिनों सुल्तानी माई मंदिर की वजह से यह दोनों समुदायों के आकर्षण का केंद्र बन गया है।

सुल्तानी मंदिर नेपाल के लोगों की आस्था का भी केंद्र

सुल्तानी माई मंदिर के अध्यक्ष कर्ण कुमार पप्पू ने बताया कि ये मंदिर सिर्फ अररिया जिले ही नहीं बल्कि पड़ोसी देश नेपाल के लोगों की आस्था का भी केंद्र है। उन्होंने बताया, “52 बीघे में फैला सुल्तान पोखर हमारे पूर्वजों की निशानी है। इसपर हमारे दादा गणेश लाल रजक का मालिकाना हक था। इसके अभी चार हिस्सेदार हैं।”

पप्पू ने बताया कि चारों ओर मकान बन जाने से उन घरों का गंदा पानी तालाब में जाता है, जिस कारण पानी दूषित हो रहा है। अगर सरकार इसको पर्यटन के रूप में विकसित कर दे, तो यह जगह और खूबसूरत हो जाएग। साथ ही सरकारी राजस्व भी बढ़ेगा।

उन्होंने बताया कि इस तालाब की चारों ओर घेराव करने की जरूरत है। अगर यह तालाब घिर जाता है और चारों ओर घाट बना दिया जाता है, तो छठ के मौके पर श्रद्धालुओं को सुविधा होगी। क्योंकि अभी किनारे में लोग जैसे-तैसे छठ मनाने को मजबूर होते हैं। उन्होंने बताया कि तालाब के सफाई की भी जरूरत है। साथ ही उनके आश्रितों पर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।


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